13 जुलाई 2012

ये प्यार नहीं वासना है

जय गुरुदेव की ! राजीव जी ! शायद आप मुझे भूल गये होंगे । क्योंकि आपके पाठकों की संख्या इतनी हो गयी है कि सबको याद रखना मुश्किल है । मैंने पहले भी आपसे कई सवाल पूछे हैं । जिनका मुझे मनोनुकूल जबाब मिला है । और काफ़ी समय बाद अब मैं एक नया सवाल लेकर आया हूँ । आशा है । आप जबाब दोगे । अरे मैंने अपना नाम तो बताया नहीं । मैं - विजय तिवारी । मेरा सवाल ये है राजीव कि आजकल लोग जो प्यार करते हैं । उसमें प्रेम तो कहीं होता नहीं । वस वासना होती है । और इस वासना को प्यार का नाम देकर ये लोग प्यार को बदनाम कर रहे हैं । ऐसा क्यों ? धन्यवाद । आपके जबाब की प्रतीक्षा करूँगा ।
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अगर जीवन व्यवहार के आधार पर इसका उत्तर दिया जाय । तो ये पूरा मनोबैज्ञानिक विषय हो जायेगा । कब क्यों कैसे सिद्धांत पर अनगिनत क्रियाओं प्रतिक्रियाओं का लेखा तैयार हो जायेगा । लेकिन शरीर बिज्ञान और मन की कार्य प्रणाली को समझ कर जीव संस्कार स्तर पर हम इसको जानने की कोशिश करेंगे । तो उत्तर समझना काफ़ी आसान होगा । इंसान अज्ञान वश मन के अधीन हो गया है । जबकि मन इसके विभिन्न भावों में खेलने के लिये उपकरण मात्र ही है । जैसे शराब कभी थोङे आनन्द के लिये पी । बाद में उसका लती ( अधीन ) हो गया । इंटरनेट आपकी ज्ञान वृद्धि । त्वरित सम्पर्क । नये सम्पर्क आदि हेतु है । पर आप इसके कुभावों से आकर्षित होकर लती हो गये । उल्टा हो गया । आपको इससे एक गुलाम की भांति कार्य लेना चाहिये । उल्टे उसने आपको गुलाम बना लिया ।
आपके प्रश्न के उत्तर को सटीक रूप से जानने के लिये मन की गतिविधि के बिज्ञान को समझना होगा । मन 8 पंखुरियों के कमल पर अपनी लीलायें करता है । ये 8 पंखुरियाँ हैं - 1 काम ( विभिन्न वासनायें ) । 2 क्रोध । 3 लोभ । 4 मोह । 5 मद ( घमण्ड या अहंकार ) । 6 मत्सर ( ईर्ष्या या जलन ) । 7 ज्ञान । 8 वैराग । मतलब ये इन्हीं 8 पंखुरियों पर 24 घण्टे इच्छानुसार घूमता रहता है । और जीव ( मनुष्य ) मन की गतिविधियों से मोहित है । अतः वो भी इसके साथ साथ इन्हीं भावों में बहता रहता है ।
उपरोक्त के आधार पर आप आसानी से समझ सकते हैं । इन 8 स्थितियों में " प्रेम " शब्द या स्थिति है ही नहीं । इसलिये स्त्री पुरुष या विपरीत लिंगीय नर मादाओं में जो प्रेम मालूम होता है । वह प्रेम न होकर नर मादा का काम ( यौन या अन्य इच्छायें ) आकर्षण ही होता है । जो - लोभ ( लालच ) और मोह ( ममता ) पदार्थों के साथ मिलकर विभिन्न सामाजिक सरंचनाओं को जन्म देता है । काम भावना के इस परस्पर मिलन संभोग में अङचन या विपरीत परिस्थितियाँ बन जाने पर - क्रोध । घमण्ड । और जलन आदि पदार्थ ( स्थिति ) बनने लगते हैं । फ़िर व्यक्ति अपने स्तर पर जब इनका निदान नहीं कर पाता ।  तब वह उपलब्ध ज्ञान के आधार पर अपने को संयमित और निरोगी करने की कोशिश करता है । ऐसी ही मिली जुली अवस्थाओं में वैराग्य भाव भी जागृत हो जाता है ।
तो देखा आपने । मनुष्य को अपने स्तर पर सब क्रियाओं से परिचय हुआ । वास्ता पङा । पर प्रेम से वह दूर ही रहा । छू तक न सका । प्रेम इनसे एक अलग भाव है । वह ही शाश्वत धारा है । तो जिस व्यक्ति में कुछ सतगुण प्रधानता या भक्ति अंश प्रभाव होता है । उसके आचरण में प्रेम झलकता है । एक मोहक खुशबू सी आती है । पर वह स्थायी नहीं होती । बल्कि जुङाव के अनुसार ही होती है । इसलिये जब तक आप मन की स्थितियों से हटकर शाश्वत को नहीं जानोगे । प्रेम कर ही नहीं पाओगे । चाहे चह स्त्री या पुरुष कोई भी हो । संसारी प्रेम संस्कार रूपी मूल्य देकर सृष्टि रूपी बाजार से खरीदा गया सौदा भर है । इस सौदे की जितनी गारंटी वारंटी होगी । जितनी उस प्रेम वस्तु की आयु होगी । जितनी गुणवत्ता होगी । और फ़िर खरीदने के बाद जितना आप उसको संभाल पायेंगे । वह उसी अनुपात में टिकाऊ होगी । बाकी फ़िर आप कितना भी मोह करते रहना । आयु  ( संस्कार की ) समाप्त होते ही वह वस्तु मर जायेगी ।
इसलिये संसार के सभी रिश्ते स्वार्थ की नींव पर टिके हुये हैं । आधारित हैं । एक दूसरे से अपनी अपनी वासना की पूर्ति । और इसमें सिर्फ़ प्रेमी प्रेमिका या पति पत्नी ही नहीं आते । माँ पुत्र - पुत्री । पिता पुत्र - पुत्री । बहन भाई । भाई भाई । चाचा भतीजा । मित्र । रिश्तेदार । पङोसी । कर्म क्षेत्र सम्बन्धी । ये सभी आपके गुण और सामर्थ्य के आधार पर ही रिश्ता जोङे हुये हैं । यहाँ तक कि आपका TV आदि कोई उपकरण जब तक वो आपके काम आ रहा है । आप उसको महत्व देते हो । और बेकार ( गुणहीन ) होते ही उपेक्षित सा फ़ेंक देते हो । ठीक ऐसा ही इस उपकरण ( आपके शरीर ) के साथ भी है । आम चलन के अनुसार नपुंसकता आते ही ( अभी भी ) शारीरिक रूप से ताकतवर और धनी व्यक्ति भी पत्नी प्रेमिका के लिये घृणा का पात्र हो जाता है । फ़िर भले ही दोनों में पूर्व में बेहद प्यार रहा हो । पत्नी के स्तन आदि यौवनांग समय पूर्व ढलने से यौनांगों में विकार आने से काम क्रीङा के लायक न रहने पर पति प्रेमी के लिये वह युवती रसहीन हो जाती है । भले ही कभी वह रात दिन उसी के सपनों में खोया रहता हो ।
तो हकीकत के धरातल पर सच्चाई यही है कि - आप अपनी वासना की स्वार्थ पूर्ति हेतु ही किसी से भी जुङे हुये हैं । चाहे वह पुरुष हो । अथवा स्त्री । इसलिये  दिल को छू लेने वाले प्रेम का अनुभव करना है । आत्मा के तार झंकृत हों । ऐसा प्रेम महसूस करना  है । जन्म जन्म का प्यार जानना महसूस करना हो । और सबसे बढकर शाश्वत सत्य को जानना हो । तब आपको टाप लव गुरु राजीव बाबा के कालेज में एडमीशन लेना ही होगा । और जिस काल खण्ड में आपने यह प्रश्न किया है । सिर्फ़ इसी कालेज को सर्वोच्च स्तर पर मान्यता प्राप्त है । अगर दूसरा विधालय हो । तो मुझे बतायें । आपको आजीवन निशुल्क शिक्षा दी जायेगी ।

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326