आजकल कम से कम आगरा में मौसम बहुत अच्छा ही रहता है । बस बारिश नहीं हो रही । कभी हल्के कभी गहरे बादल छाये रहते हैं । धूप बहुत कम निकलती है । और जगहों से लोग जब फ़ोन पर बेहद गर्मी की बात कहते हैं । तो फ़िर ख्याल आता है । कम से कम यहाँ ऐसा तो नहीं है । पिछले कुछ दिनों से दिनचर्या अव्यवस्थित सी हो चली है । अचानक के काम लग जाते हैं । लेकिन हैं बहुत जरूरी ।
खैर..सुबह को चाय पीते समय अक्सर मेल देखने के बाद अपना फ़ेस बुक पेज खोलता हूँ । इसमें मैंने बहुत सारे - जन जागृति अभियान । क्रांतिकारी विचार । अदभुत जानकारी । आश्चर्य । मुस्कान.. आदि आदि जैसे पेज पसन्द किये हुये हैं । उनके UPDATE देखता हूँ । और मुझे लगता है । बहुत कम शब्दों और चित्रों द्वारा ये लोग बहुत अच्छा काम कर रहे हैं । लेकिन आगे बढने से पहले आप इस UPDATE घटना को पढिये ।
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आज एक कहानी सुनाते हैं । कहानी उस समय की है । जब भारत में अकबर का शासन था । एक दिन एक कसाई एक गाय को पकड़ कर काटने के लिए ले जा रहा था । अपनी मौत को करीब आते देख गाय घोर गम
के आगोश में डूबी जा रही थी । चेहरे पर निराशा और गले से ऐसे स्वर फुट रहे थे । मानो रुदायन कर करके अपनी जान की भीख मांग रही हो ।
अचानक उस गाय पर एक ' कविराज ' की दृष्टि पड़ी । उसकी इतनी दयनीय हालत देख कर उन्हें उस गाय पर तरस आ गया । तो उन्होंने उस कसाई को उस गाय की कीमत देकर खरीद लिया ।
उसके बाद वो उस गाय को घर ले गए । उसे खिलाया पिलाया । तो गाय के हर्षाये मुख मंडल को देख कर अति प्रसन्न हुए । परन्तु फिर सोचने लगे । आज तो मैंने इसे बचा लिया । परन्तु पता नहीं । पूरे देश में रोज़ कितनी ही निरपराध बेजुबान गायों के प्राण हर लिए जाते होंगे । इनकी प्राणों की रक्षा के लिए अवश्य ही कुछ करना होगा । ऐसा सोच कर उन्होंने एक योजना बनायीं ।
उस समय अकबर ने अपने राज्य के बीचो बीच । या यूँ कहें कि अपने महल के पास एक बड़ा सा घंटा लगवा
रखा था । और पूरे प्रजा में ऐलान करवा रखा था । कोई भी फरियादी कोई भी फ़रियाद लेकर आये । तो उस घंटे को बजाये । उसकी फ़रियाद हम खुद आकर सुनेगे ।
कविराज ने एक पत्र लिखा । महाराज अकबर के नाम । उस गाय की ओर से कि - महाराज मेरा क्या कसूर है । मैंने किसी का क्या बिगाड़ा है । मैंने तो किसी का कभी कोई अहित नहीं किया । मैंने तो आज तक कभी कोई भेद भाव नहीं किया । चाहे वो हिन्दू हो । या मुस्लिम ।
मैंने तो सभी को मीठा दूध ही दिया । मैंने तो ऐसा कभी नहीं किया कि एक हिन्दू को मैंने पौष्टिक दूध दिया हो । और एक मुस्लिम को नहीं । फिर मुझे क्यों इतनी बेदर्दी से मारा जाता है । बेगुनाह होने के बावजूद मुझे क्यूँ मार दिया जाता है ।
क्या मुझे जीने का कोई अधिकार नहीं ? महाराज आप तो हर फरियादी की फ़रियाद सुनते हैं । उसे न्याय देते हैं । क्या आप मुझे न्याय नहीं देंगे । क्या मेरे जीवन की कोई कीमत नहीं । ऐसा लिख कर उन्होंने ये ख़त गाय के गले में बांध दिया । और उस घन्टे के पास ले जाकर घंटा बजा कर स्वयं वहाँ से हट कर दूर खड़े हो गए । घंटे की आवाज सुनकर जब महाराज अकबर आये । तो उन्होंने देखा कि घंटे के आस पास कोई नहीं है । सिर्फ एक गाय खड़ी है । अकबर ने अपने सेवकों को भेज कर उस गाय को अपने पास बुलवाया । तो देखा । उसके गले में एक पत्र है । उस पत्र को खोल कर पढ़ा । तो अकबर की आँखों में आंसू आ गए । अकबर ने ठीक उसी वक़्त ऐलान किया कि - आज से मेरे राज में कहीं भी कोई गौ हत्या नहीं होगी । और जो इस आदेश का उलंघन करेगा । उसे दंड दिया जायेगा ।
नोट - ये कोई मनघढंत कहानी नहीं है । बल्कि सत्य है । इतिहास उठा कर देख लीजिये । अकबर के राज्य में गौ हत्या पर प्रतिबन्ध था । अब हम क्यूँ न कहें - आज के गौ हत्यारे ( मुल्ले ) इंसानियत पर ही नहीं । अपने धर्म पर भी कलंक है । क्योंकि कुरआन तो निर्दोष की हत्या को हरम की कहता है ।
साभार - The Only Alive God On Earth At This Time Is The COWs & GAU; save cows
http://www.facebook.com/photo.php?fbid=446893125341620&set=a.242016039162664.64418.242011395829795&type=1&theater क्लिक करें ।
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अगर आप सरसरी तौर पर यह घटना पढ जायें । कोई चिंतन न करें । तो निसंदेह आपको पूरा कसूर मुसलमानों या अन्य निम्न जाति वर्ग के कसाईयों का ही नजर आयेगा । और जब ऐसा विचार बनेगा । तो
फ़िर हिन्दू ही गाय का सबसे बङा रक्षक नजर आयेगा । पर वास्तविक सत्य क्या है ? शायद आपने कभी इस पर विचार नहीं किया । मैंने हिन्दू मुसलमान ईसाई इन तीन धर्म के लोगों को ( भारत में ) काफ़ी करीब से देखा है । जाना है । सिखों के बारे में इस विषय चिंतन के अनुसार ? नहीं जानता । लेकिन सिख परिचितों के अनुसार ( पंजाब आदि में ) सिख भी गाय पालते हैं । ध्यान रखें । यहाँ मैं सिर्फ़ भारत की बात कर रहा हूँ । क्योंकि गौ रक्षा की बात भारत में ही अधिक होती है । बाकी अन्य देशों ( के लोगों ) का गाय के प्रति भारतीय हिन्दुओं जैसा सम्माननीय भाव नहीं है । उनके लिये गाय सिर्फ़ एक दुधारू पशु और माँस उत्पाद का अच्छा स्रोत भर है । आप बारीकी से गौर करेंगे । तो हिन्दू ही गौ हत्या रोकने के प्रति आन्दोलन आदि करता नजर आयेगा । अब थोङा गहरायी से विचार करना । मैंने भारत में सर्वाधिक % पर हिन्दुओं को ही गाय पालते
देखा है ( गौर करें । अधिकतर मुसलमान ईसाई बकरी मुर्गी पालन करते ही दिखेंगे ) । इसके तुलनात्मक ईसाई या मुसलमान जिस % पर गौ पालते हैं । उसे सामान्य बोली में इक्का दुक्का कहा जायेगा । इससे सहज सिद्ध हो जाता है । गौ की मालिकी अधिकांश हिन्दुओं की ही है । अब बङा सवाल ये उठता है - फ़िर हिन्दुओं की पूज्य गाय कैसे कसाईयों के हाथों में पहुँच जाती है ?
मेरे आगरा आवास के आसपास ( 2 किमी तक ) अधिक संख्या में यादव रहते हैं । और ज्यादातर लोगों के घर गाय भैंस पली हुयी हैं । ( सिर्फ़ कुछेक ( नगण्य ) मुसलमान डेयरी उधोग के तौर पर गाय भैंस रखते हैं ) मुझे इनमें से किसी का भी गाय का प्रति ऐसा दया भाव नहीं दिखा । मैंने पहले भी लिखा है । गाय के बछङा या भैंस के पड्ढा हो जाने पर ये लोग सिर्फ़ शुरू के 2-3 दिन बहुत मामूली ( 250 gm ) दूध उसे पिलाते हैं । जिससे पशु दूध देता रहे । 2-3 दिन का बच्चा घास नहीं खा सकता । अतः कुछ दया वाले लोग उसे गुढ आटे का पतला घोल कुछ दिन और पिला देते हैं । इसके बाद उसे भूखा ही रहने दिया जाता है । कुछ और भी दयावान नरम घास आगे डाल देते हैं ।
लेकिन संक्षेप में कुल मिलाकर वह तङपती भूख से ही मर जाता है । ऐसे पशु पालकों के घर के आगे से सभी कसाई पेशे वाले सुबह नियम से गुजरते हैं । और अभिवादन करते हैं । लोग जान गये हैं । अतः हँसते हैं - फ़िर किसी की मौत का अभिलाषी है । आप कल्पना कीजिये । हाल का पैदा हुआ बच्चा अपनी भूखी जिन्दगी के 10-15 दिन इन दयावानों के बीच तङप तङप कर जीता हुआ मर जाता है । प्रसन्न कसाई उसका आंतरिक भाग निकाल कर खाल में भूसा भरकर लौटा जाता है । इस ( ऐसे तमाम ) बुत बच्चे पर नारकीय ढंग से मक्खियाँ भिनभिनाती है । बङे बङे डिब्बों में ( 35-40 रुपये किलो ) 2-3 किलो दूध लेने वाले सभ्रांत डाक्टर इंजीनियर पुजारी पंडित आदि आदि दयावान धर्मी लोग इस दृश्य को रोज ही देखते हैं । मुझे भी दूध का धुला न समझें । गाय को रोटी आटे की लोई खिलाने वाली मेरी पूर्ण धार्मिक माँ भी यहीं से ( ऐसे कई घर ) ढाई किलो दूध लाती है । मैं सोचता हूँ । कसाई पशु का वध करता होगा । तो बहुत हद उसे 15 मिनट कष्ट होता होगा ..ना ?
मैंने इस स्थान ( वर्तमान आवास या बहुत से अन्य भी ) को 9 वर्ष पहले भी देखा था । तब यहाँ पशुओं के चरने के लिये बहुत से स्थान थे । अब सिर्फ़ 100 वर्ग गज जमीन लोगों को मकान बनाने के लिये नहीं है । कहीं कोई टुकङा शेष नहीं । 100 वर्ग गज जमीन 8 00 000 के आसपास कीमत पर भी नहीं मिलती । क्योंकि है ही नहीं । फ़िर पशुओं के लिये कहाँ से हो ?
लेकिन लोग अपनी प्राचीन भारतीय सभ्यता संस्कृति के प्रति बेहद जागरूक हैं । उन्होंने गाय माता को पालना नहीं छोङा । गाय सङकों पर घूमती हुयी नालियों के किनारे उगी घास । लोगों द्वारा फ़ेकें सब्जियों आदि के छिलके । खराब हुयी पकी सब्जियाँ आदि आदि फ़ेंकी गयी कूङा जैसी चीजों को खाती रहती है । फ़िर यदि वो दूध देती है । तो शाम को उसका मालिक याद से दुह लेता है । बेकार हो जाने पर कसाई को दे देता है । मैं सोचता हूँ । कसाई पशु का वध करता होगा । तो बहुत हद उसे 15 मिनट कष्ट होता होगा ..ना ?
** खैर छोङिये । इस क्रूर कहानी के बजाय गाय की इस दुर्दशा का मूल कारण जानते हैं । आदि सृष्टि के समय जब काल पुरुष की पत्नी अष्टांगी ने अपने अंश से गायत्री कन्या को उत्पन्न किया । और उसे अपने पिता की खोज में गये ( अपने पुत्र ) बृह्मा के पास भेजा । तो अपने अहम की तुष्टि हेतु बृह्मा ने उससे झूठ बोलने को कहा कि - कहना बृह्मा ने मेरे ( गायत्री ) सामने अपने पिता ( काल पुरुष ) के दर्शन पाये । गायत्री ने इस झूठ को बोलने के लिये बृह्मा से काम भोग करने की शर्त रखी । फ़िर दोनों ने अष्टांगी से झूठ बोला । अष्टांगी ने बह्मा को अपूज्य देवता और गायत्री को गाय होने का शाप दिया । जिसकी कामवासना की पूर्ति कई सांड करेंगे । और भक्ष्य अभक्ष्य का सेवन करेगी । गायत्री ने पलट कर अष्टांगी को अवैध तरीके से उत्पन्न 5 पुत्रों की माँ ( कुन्ती ) होने का शाप दिया । अगर आप अनुराग सागर पढें । तो गाय का सभी सच आपके सामने होगा । गाय इंसानी मल भी खाती है । ये सभी जानते ही हैं ।
- लेकिन मैं सोचता हूँ । इस पाशविकता का कारण समय से उत्पन्न परिस्थितियाँ ही हैं । वरना गाय हर तरह से बेहद उपयोगी पशु है । उसका गोबर मूत्र दूध दही मक्खन यहाँ तक उसके स्वांस प्रश्वांस में वो क्षमता है । जिसको जानकर आज भी लोग आश्चर्य चकित हो सकते हैं । अगर सिर्फ़ जमीन का अभाव न होता । तो आज भी बूङी होकर मरी कई वर्ष तक दूध न देने वाली गाय भी कतई घाटे वाली नहीं थी । अतः कसाई कोई 2-4 लोग नहीं हैं । हम सब कसाई हैं ।
- चलिये मैं आपसे वादा करता हूँ । मैं अकेला ही गौ हत्या जीव हत्या रोक दूँगा । पर आप मुझे सिर्फ़ इतना बताईये । इनके खाने पीने रहने का आपके पास क्या इंतजाम है ? जंगल नहीं रहे । जमीन नहीं रहीं । तब जब ये पशु सङकों पर बस्तियों में आवारा होकर भोजन की तलाश में घूमते हैं । उस समय कितने ही हिन्दुओं को दयावानों को पंडो पुजारियों को मैंने इन्हें मोटे डंडे से मारते देखा है । अक्सर देखता हूँ । आप नहीं देखते क्या ? इसीलिये तो.. मैं सोचता हूँ । कसाई पशु का वध करता होगा । तो बहुत हद उसे 15 मिनट कष्ट होता होगा ..ना ?
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और किन किन चीजों मे गौ मांस होता है । जानने के लिए यहाँ क्लिक करे ।
http://www.youtube.com/watch?v=Ze1syyZYLYg
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इंटरनेट के जागरूक लोगों की वजह से इस दोगले ( हिन्दू से ईसाई ) के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही आरम्भ हो गयी । मुझे आशा है । आप लोग अपने अपने तरीके से सुविधा साधनों से इसे ( और इस जैसों को ) सबक सिखाने हेतु इस कार्यवाही का बङे स्तर पर समर्थन करेंगे ।
साभार - Hindu Janajagruti Samiti
HJS files FIR against Converted Christian Laxman Johnson insulting Hinduism
Read full story at : http://www.hindujagruti.org/news/14568.html क्लिक करें ।
Spread this news with every Hindu and serve Hindu Dharma !
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आज एक कहानी सुनाते हैं । कहानी उस समय की है । जब भारत में अकबर का शासन था । एक दिन एक कसाई एक गाय को पकड़ कर काटने के लिए ले जा रहा था । अपनी मौत को करीब आते देख गाय घोर गम
के आगोश में डूबी जा रही थी । चेहरे पर निराशा और गले से ऐसे स्वर फुट रहे थे । मानो रुदायन कर करके अपनी जान की भीख मांग रही हो ।
अचानक उस गाय पर एक ' कविराज ' की दृष्टि पड़ी । उसकी इतनी दयनीय हालत देख कर उन्हें उस गाय पर तरस आ गया । तो उन्होंने उस कसाई को उस गाय की कीमत देकर खरीद लिया ।
उसके बाद वो उस गाय को घर ले गए । उसे खिलाया पिलाया । तो गाय के हर्षाये मुख मंडल को देख कर अति प्रसन्न हुए । परन्तु फिर सोचने लगे । आज तो मैंने इसे बचा लिया । परन्तु पता नहीं । पूरे देश में रोज़ कितनी ही निरपराध बेजुबान गायों के प्राण हर लिए जाते होंगे । इनकी प्राणों की रक्षा के लिए अवश्य ही कुछ करना होगा । ऐसा सोच कर उन्होंने एक योजना बनायीं ।
उस समय अकबर ने अपने राज्य के बीचो बीच । या यूँ कहें कि अपने महल के पास एक बड़ा सा घंटा लगवा
रखा था । और पूरे प्रजा में ऐलान करवा रखा था । कोई भी फरियादी कोई भी फ़रियाद लेकर आये । तो उस घंटे को बजाये । उसकी फ़रियाद हम खुद आकर सुनेगे ।
कविराज ने एक पत्र लिखा । महाराज अकबर के नाम । उस गाय की ओर से कि - महाराज मेरा क्या कसूर है । मैंने किसी का क्या बिगाड़ा है । मैंने तो किसी का कभी कोई अहित नहीं किया । मैंने तो आज तक कभी कोई भेद भाव नहीं किया । चाहे वो हिन्दू हो । या मुस्लिम ।
मैंने तो सभी को मीठा दूध ही दिया । मैंने तो ऐसा कभी नहीं किया कि एक हिन्दू को मैंने पौष्टिक दूध दिया हो । और एक मुस्लिम को नहीं । फिर मुझे क्यों इतनी बेदर्दी से मारा जाता है । बेगुनाह होने के बावजूद मुझे क्यूँ मार दिया जाता है ।
क्या मुझे जीने का कोई अधिकार नहीं ? महाराज आप तो हर फरियादी की फ़रियाद सुनते हैं । उसे न्याय देते हैं । क्या आप मुझे न्याय नहीं देंगे । क्या मेरे जीवन की कोई कीमत नहीं । ऐसा लिख कर उन्होंने ये ख़त गाय के गले में बांध दिया । और उस घन्टे के पास ले जाकर घंटा बजा कर स्वयं वहाँ से हट कर दूर खड़े हो गए । घंटे की आवाज सुनकर जब महाराज अकबर आये । तो उन्होंने देखा कि घंटे के आस पास कोई नहीं है । सिर्फ एक गाय खड़ी है । अकबर ने अपने सेवकों को भेज कर उस गाय को अपने पास बुलवाया । तो देखा । उसके गले में एक पत्र है । उस पत्र को खोल कर पढ़ा । तो अकबर की आँखों में आंसू आ गए । अकबर ने ठीक उसी वक़्त ऐलान किया कि - आज से मेरे राज में कहीं भी कोई गौ हत्या नहीं होगी । और जो इस आदेश का उलंघन करेगा । उसे दंड दिया जायेगा ।
नोट - ये कोई मनघढंत कहानी नहीं है । बल्कि सत्य है । इतिहास उठा कर देख लीजिये । अकबर के राज्य में गौ हत्या पर प्रतिबन्ध था । अब हम क्यूँ न कहें - आज के गौ हत्यारे ( मुल्ले ) इंसानियत पर ही नहीं । अपने धर्म पर भी कलंक है । क्योंकि कुरआन तो निर्दोष की हत्या को हरम की कहता है ।
साभार - The Only Alive God On Earth At This Time Is The COWs & GAU; save cows
http://www.facebook.com/photo.php?fbid=446893125341620&set=a.242016039162664.64418.242011395829795&type=1&theater क्लिक करें ।
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अगर आप सरसरी तौर पर यह घटना पढ जायें । कोई चिंतन न करें । तो निसंदेह आपको पूरा कसूर मुसलमानों या अन्य निम्न जाति वर्ग के कसाईयों का ही नजर आयेगा । और जब ऐसा विचार बनेगा । तो
फ़िर हिन्दू ही गाय का सबसे बङा रक्षक नजर आयेगा । पर वास्तविक सत्य क्या है ? शायद आपने कभी इस पर विचार नहीं किया । मैंने हिन्दू मुसलमान ईसाई इन तीन धर्म के लोगों को ( भारत में ) काफ़ी करीब से देखा है । जाना है । सिखों के बारे में इस विषय चिंतन के अनुसार ? नहीं जानता । लेकिन सिख परिचितों के अनुसार ( पंजाब आदि में ) सिख भी गाय पालते हैं । ध्यान रखें । यहाँ मैं सिर्फ़ भारत की बात कर रहा हूँ । क्योंकि गौ रक्षा की बात भारत में ही अधिक होती है । बाकी अन्य देशों ( के लोगों ) का गाय के प्रति भारतीय हिन्दुओं जैसा सम्माननीय भाव नहीं है । उनके लिये गाय सिर्फ़ एक दुधारू पशु और माँस उत्पाद का अच्छा स्रोत भर है । आप बारीकी से गौर करेंगे । तो हिन्दू ही गौ हत्या रोकने के प्रति आन्दोलन आदि करता नजर आयेगा । अब थोङा गहरायी से विचार करना । मैंने भारत में सर्वाधिक % पर हिन्दुओं को ही गाय पालते
देखा है ( गौर करें । अधिकतर मुसलमान ईसाई बकरी मुर्गी पालन करते ही दिखेंगे ) । इसके तुलनात्मक ईसाई या मुसलमान जिस % पर गौ पालते हैं । उसे सामान्य बोली में इक्का दुक्का कहा जायेगा । इससे सहज सिद्ध हो जाता है । गौ की मालिकी अधिकांश हिन्दुओं की ही है । अब बङा सवाल ये उठता है - फ़िर हिन्दुओं की पूज्य गाय कैसे कसाईयों के हाथों में पहुँच जाती है ?
मेरे आगरा आवास के आसपास ( 2 किमी तक ) अधिक संख्या में यादव रहते हैं । और ज्यादातर लोगों के घर गाय भैंस पली हुयी हैं । ( सिर्फ़ कुछेक ( नगण्य ) मुसलमान डेयरी उधोग के तौर पर गाय भैंस रखते हैं ) मुझे इनमें से किसी का भी गाय का प्रति ऐसा दया भाव नहीं दिखा । मैंने पहले भी लिखा है । गाय के बछङा या भैंस के पड्ढा हो जाने पर ये लोग सिर्फ़ शुरू के 2-3 दिन बहुत मामूली ( 250 gm ) दूध उसे पिलाते हैं । जिससे पशु दूध देता रहे । 2-3 दिन का बच्चा घास नहीं खा सकता । अतः कुछ दया वाले लोग उसे गुढ आटे का पतला घोल कुछ दिन और पिला देते हैं । इसके बाद उसे भूखा ही रहने दिया जाता है । कुछ और भी दयावान नरम घास आगे डाल देते हैं ।
लेकिन संक्षेप में कुल मिलाकर वह तङपती भूख से ही मर जाता है । ऐसे पशु पालकों के घर के आगे से सभी कसाई पेशे वाले सुबह नियम से गुजरते हैं । और अभिवादन करते हैं । लोग जान गये हैं । अतः हँसते हैं - फ़िर किसी की मौत का अभिलाषी है । आप कल्पना कीजिये । हाल का पैदा हुआ बच्चा अपनी भूखी जिन्दगी के 10-15 दिन इन दयावानों के बीच तङप तङप कर जीता हुआ मर जाता है । प्रसन्न कसाई उसका आंतरिक भाग निकाल कर खाल में भूसा भरकर लौटा जाता है । इस ( ऐसे तमाम ) बुत बच्चे पर नारकीय ढंग से मक्खियाँ भिनभिनाती है । बङे बङे डिब्बों में ( 35-40 रुपये किलो ) 2-3 किलो दूध लेने वाले सभ्रांत डाक्टर इंजीनियर पुजारी पंडित आदि आदि दयावान धर्मी लोग इस दृश्य को रोज ही देखते हैं । मुझे भी दूध का धुला न समझें । गाय को रोटी आटे की लोई खिलाने वाली मेरी पूर्ण धार्मिक माँ भी यहीं से ( ऐसे कई घर ) ढाई किलो दूध लाती है । मैं सोचता हूँ । कसाई पशु का वध करता होगा । तो बहुत हद उसे 15 मिनट कष्ट होता होगा ..ना ?
मैंने इस स्थान ( वर्तमान आवास या बहुत से अन्य भी ) को 9 वर्ष पहले भी देखा था । तब यहाँ पशुओं के चरने के लिये बहुत से स्थान थे । अब सिर्फ़ 100 वर्ग गज जमीन लोगों को मकान बनाने के लिये नहीं है । कहीं कोई टुकङा शेष नहीं । 100 वर्ग गज जमीन 8 00 000 के आसपास कीमत पर भी नहीं मिलती । क्योंकि है ही नहीं । फ़िर पशुओं के लिये कहाँ से हो ?
लेकिन लोग अपनी प्राचीन भारतीय सभ्यता संस्कृति के प्रति बेहद जागरूक हैं । उन्होंने गाय माता को पालना नहीं छोङा । गाय सङकों पर घूमती हुयी नालियों के किनारे उगी घास । लोगों द्वारा फ़ेकें सब्जियों आदि के छिलके । खराब हुयी पकी सब्जियाँ आदि आदि फ़ेंकी गयी कूङा जैसी चीजों को खाती रहती है । फ़िर यदि वो दूध देती है । तो शाम को उसका मालिक याद से दुह लेता है । बेकार हो जाने पर कसाई को दे देता है । मैं सोचता हूँ । कसाई पशु का वध करता होगा । तो बहुत हद उसे 15 मिनट कष्ट होता होगा ..ना ?
** खैर छोङिये । इस क्रूर कहानी के बजाय गाय की इस दुर्दशा का मूल कारण जानते हैं । आदि सृष्टि के समय जब काल पुरुष की पत्नी अष्टांगी ने अपने अंश से गायत्री कन्या को उत्पन्न किया । और उसे अपने पिता की खोज में गये ( अपने पुत्र ) बृह्मा के पास भेजा । तो अपने अहम की तुष्टि हेतु बृह्मा ने उससे झूठ बोलने को कहा कि - कहना बृह्मा ने मेरे ( गायत्री ) सामने अपने पिता ( काल पुरुष ) के दर्शन पाये । गायत्री ने इस झूठ को बोलने के लिये बृह्मा से काम भोग करने की शर्त रखी । फ़िर दोनों ने अष्टांगी से झूठ बोला । अष्टांगी ने बह्मा को अपूज्य देवता और गायत्री को गाय होने का शाप दिया । जिसकी कामवासना की पूर्ति कई सांड करेंगे । और भक्ष्य अभक्ष्य का सेवन करेगी । गायत्री ने पलट कर अष्टांगी को अवैध तरीके से उत्पन्न 5 पुत्रों की माँ ( कुन्ती ) होने का शाप दिया । अगर आप अनुराग सागर पढें । तो गाय का सभी सच आपके सामने होगा । गाय इंसानी मल भी खाती है । ये सभी जानते ही हैं ।
- लेकिन मैं सोचता हूँ । इस पाशविकता का कारण समय से उत्पन्न परिस्थितियाँ ही हैं । वरना गाय हर तरह से बेहद उपयोगी पशु है । उसका गोबर मूत्र दूध दही मक्खन यहाँ तक उसके स्वांस प्रश्वांस में वो क्षमता है । जिसको जानकर आज भी लोग आश्चर्य चकित हो सकते हैं । अगर सिर्फ़ जमीन का अभाव न होता । तो आज भी बूङी होकर मरी कई वर्ष तक दूध न देने वाली गाय भी कतई घाटे वाली नहीं थी । अतः कसाई कोई 2-4 लोग नहीं हैं । हम सब कसाई हैं ।
- चलिये मैं आपसे वादा करता हूँ । मैं अकेला ही गौ हत्या जीव हत्या रोक दूँगा । पर आप मुझे सिर्फ़ इतना बताईये । इनके खाने पीने रहने का आपके पास क्या इंतजाम है ? जंगल नहीं रहे । जमीन नहीं रहीं । तब जब ये पशु सङकों पर बस्तियों में आवारा होकर भोजन की तलाश में घूमते हैं । उस समय कितने ही हिन्दुओं को दयावानों को पंडो पुजारियों को मैंने इन्हें मोटे डंडे से मारते देखा है । अक्सर देखता हूँ । आप नहीं देखते क्या ? इसीलिये तो.. मैं सोचता हूँ । कसाई पशु का वध करता होगा । तो बहुत हद उसे 15 मिनट कष्ट होता होगा ..ना ?
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और किन किन चीजों मे गौ मांस होता है । जानने के लिए यहाँ क्लिक करे ।
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साभार - Hindu Janajagruti Samiti
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