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इस सम्बन्ध में मैंने पहले भी लिखा है । फ़िरोजाबाद से 22 km दूर नगला भादों के पास चिंताहरण नाम से प्रसिद्ध हमारा आश्रम.. आश्रम के ( दिवंगत ) संस्थापक द्वारा श्री महाराज जी को अर्पित किया गया । लेकिन इससे भी कुछ ही पहले आश्रम के लिये 5 बीघा जमीन ( चिंताहरण आश्रम से कुछ ही दूर ) किसी ग्रामीण ने महाराज जी को अर्पित की । इसके अतिरिक्त राधा स्वामी पंथ से जुङे किसी श्रद्धालु ने एक निर्मित आश्रम श्री महाराज जी की सेवा में लगाया । इस तरह ढाई किमी की दूरी में 3 आश्रम महाराज जी की अध्यक्षता में चल रहे हैं । स्मरणीय है । महाराज जी इस क्षेत्र में सिर्फ़ 6 महीने से टिके हुये हैं । इस तरह ( उस ) राधा स्वामी आश्रम वाले भी चिंताहरण आश्रम पर आते जाते रहते हैं ।
गुरु पूर्णिमा पर्व के अवसर पर उन्हीं लोगों ने अपनी भावना से राधा स्वामी पंथ के किसी गुरु का फ़ोटो रख दिया होगा । किसी भी सन्त समागम में इस तरह का मत विरोध नहीं होता । सन्तों की आपस में बैठक ज्ञान के आदान प्रदान और प्रेम भाव को बाँटने के लिये होती है । न कि मैं ऊँचा । तू नीचा के लिये । सन्त मत के गूढ अर्थ के अनुसार राधा का अर्थ सुरति और स्वामी का मालिक है । इस तरह काफ़ी हद तक वह सुरति शब्द योग ही है । पर थोङा सा ही मार्ग अलग सा हो जाने के कारण वह अद्वैत का वह सहज योग नहीं है । जो सर्वोच्च
है । ऐसा ( उनके ) गुरु द्वारा प्राप्त हुयी स्थिति और साधना तरीके की परम्परा बन जाने से होता है ।
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हमारे मण्डल के एक साधारण शिष्य का मेल -
( चेतन प्रकृति के बिना अपूर्ण है । यह बात दूसरे भाव में कुछ गलत हो जाती है । क्योंकि चेतन अपने आप में पूर्ण है । और प्रकृति उससे ही प्रकट हुयी है । लेकिन जब ( पहली बार ) से यह सृष्टि खेल शुरू हुआ है । तभी से यह सारा खेल प्रकृति में ही हो रहा है । इसलिये किसी हद तक ऐसा कहा जा सकता है )
सोचिये । ऐसे ही बारिश की बूँदें पङ रही हों । आप अकेले हों । प्रकृति पूर्ण रोमानियत से मचल रही हो । तब आपको किस बात की इच्छा होगी । निसंदेह । गर्मागर्म पकौङे । चाय । एक खूबसूरत प्रेमिका या पत्नी । और पूरी बेतकल्लुफ़ी के हसीन पल । यही है - चेतन और प्रकृति का खेल । और ध्यान रहे । ये सिर्फ़ कामवासना हरगिज नहीं है । बल्कि एक उच्च धरातल पर
तो ये वासना भी नहीं है । आप गहराई से सोचें । तो इससे बङी चाहत और कोई हो ही नहीं सकती । । क्योंकि सचखण्ड और ऊपर के लोकों या मेरे निजी लोक में रहने का अधिकार सामान्य युवती को किसी कीमत पर नहीं मिल सकता )
God Particle का रहस्य से लेख अंश ( क्लिक करें )
http://searchoftruth-rajeev.blogspot.in/2012/07/god-particle.html
- और इसके बाद खुद की भावनायें -
क्या आप अपना लोक बना सकते हो । उस लोक में कितनी यूवतियाँ होंगी ? उनमें से 1 यूवती मेरे लिए रिज़र्व रखना । लेकिन आपका लोक बनने में तो अभी काफी टाइम लगेगा । आप तो परम सत्ता से जुड़े हुए हो । आपके पास तो काफी पॉवर है । अगर आप किसी यक्षिणी को या अप्सरा को आज्ञा देंगे । तो वो आपको मना नहीं करेगी । आप एक यक्षिणी को या अप्सरा मेरे पास भेज दो । अगर वो ज्यादा दिन नहीं रूक सके । तो कुछ समय के लिए ही सही । पर भेज दो । नहीं तो एक बार दर्शन ही दे जा ।
मैंने कोई तपस्या नहीं की । लेकिन आपने तो बहुत की है । आपका तो कहना मानेगी ना ? तो आज आप भेजो किसी को । ये सिर्फ़ कामवासना हरगिज नहीं है । जल्दी भेजो । जल्दी भेजो । जल्दी भेजो - एक प्रेमिका । और पूरी बेतकल्लुफ़ी के हसीन पल । और ध्यान रहे । ये सिर्फ़ कामवासना हरगिज नहीं है
Thursday, 12 July 2012 8:54 AM ( को मेल भेजा गया )
Friday, 13 July 2012 8:23 AM ( को फ़ारवर्ड किया गया ) मेल का विषय देखते हुये नाम छापना उचित नहीं लगा ।
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मेरी तरफ़ से हमारे एक अन्य साधक द्वारा दिया गया उत्तर - Who am i to judge you ?
सबसे पहले तो मैं ये कहना चाहूँगा कि अभी तक आप खुद ही विश्वास से नहीं कह सकते कि - कोई अपना लोक बना सकता है । और दूसरी तरफ आप पूर्ण विश्वास से कहते हो कि - आपका लोक बनने में तो अभी टाइम लगेगा ( किस भरोसे से आप ये कह रहे हैं ? ) और खुद ही विरोधाभास भी पैदा कर रहे हो कि आपके पास तो काफी पॉवर है । और आप परम सत्ता से जुड़े हुए हो । तो फिर आप ही बताओ कि अगर कोई व्यक्ति किसी पावर फुल सत्ता से जुड़ा हुआ है । तो उसके लिए अपना कोई लोक बनाना कितना मुश्किल काम होगा ?. खैर आपकी जानकारी के लिए जोड़ना चाहूँगा कि प्रकृति ने स्वयं ही कितने लोक लोकांतर बनाये हुए हैं । और प्रत्येक लोक में उत्पत्ति और विनाश का खेल निरंतर चल रहा है । और प्रत्येक लोक का कोई न कोई स्वामी या
प्रबंध कर्ता भी नियुक्त है । एक "जागृत साधक" अपने शरीर के भीतर ही अनेक लोकों के दर्शन करने में सक्षम होता है । आपके पास तो सतगुरु द्वारा प्रदान की हुई कुंजी है ही । और "हाथ कंगन को आरसी क्या..." आप मुझसे मांगने के बजाय स्वयं ही इस बात का PRACTICLE कर सकते थे । और ऐसा भी नहीं है कि मेरे लिए यह कोई बहुत बड़ा कार्य हो । परन्तु मैं आपके लिए यह कार्य किस आधार पर करूँ ? इसलिए कि आप हमारे मंडल से जुड़े हैं ? यदि हाँ ! तो इस मंडल में आप अकेले नहीं हैं । और मंडल से जुड़ने पर जो सत्ता आपके साथ काम कर रही है । उसका स्तर शायद आप जानते नहीं है । यदि जानते । तो इस तरह का प्रश्न ही न करते । और जुड़े है । तो किसी स्वार्थ वश ही । भले ही वह स्वार्थ आत्म उन्नति का ही क्यों न हो । या फिर इसलिए कि आप मुझे औपचारिक रूप से जानते हैं । तो मैं यह भी स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि औपचारिक जानकारी के चलते भी मैं यह कार्य आपके लिए क्यों करूँ ?
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और अब मेरी बात - धार्मिक इतिहास में ऐसे कई योगी और भक्त हुये हैं । जिनका जीवन चरित्र आपके प्रश्न का उत्तर है । और यह सब विवरण मैं कई लेखों में प्रसंग अनुसार बता भी चुका हूँ । प्रहलाद और ध्रुब द्वैत योग के असली मगर सामान्य भक्त की श्रेणी में आते हैं । क्योंकि उनकी भक्ति की तकनीक और प्रकार बङी प्राप्ति के फ़ल वाला नहीं था । प्रहलाद अब तक इन्द्र पद पर रहा है । और स्वर्ग लोक का राजा और देवताओं का राजा इन्द्र पदासीन ही होता है । सीधी सी बात है । किसी
प्रधानमंत्री के निर्वाचित कार्यकाल ( 5 वर्ष ) की तरह इन्द्र को स्वर्ग मण्डल के समय अनुसार हजारों साल का दिव्य जीवन और भोग प्राप्त होता है । इन्द्र के लिये इन्द्राणी या स्वर्ग देवांगनायें या अप्सरायें वे युवतियाँ होती हैं । जिन्होंने ऐश विलास भोग की भरपूर कामना के साथ तपस्या या ऋषि महर्षि सन्तों आदि की सेवा की हुयी होती है । और परिणाम स्वरूप वे उस गति को प्राप्त होती हैं । जाहिर है । वे सामान्य युवतियाँ नहीं होती । इसके लिये कभी उन्होंने कठिन परिश्रम किया था ।
मैंने इस प्रश्न से पहले ही सूक्ष्म लोकों की ये जानकारी दी थी कि - अब ध्रुब को इन्द्र पद मिलने वाला है । इस समय के बीच ध्रुव दिव्य लोकों में सुख भोगता हुआ आनन्द से रहा । ये प्रसिद्ध बाल भक्त अवश्य हुये । पर बहुत उच्च श्रेणी के भक्त नहीं थे । इसलिये आपके प्रश्न का उत्तर तो यहीं मिल जाता है ।
इसके बाद इस मामले में ( प्रसिद्ध लोगों में ) क्रोधी ऋषि विश्वामित्र की बात करें । द्वैत के सफ़ल योगी या महर्षि विश्वामित्र आराम से ऐसा लोक ( अपने स्तर का ) तपोबल से बना सकते थे । और अप्सराये तथा देवांगनायें उनकी सेवा में रहती थी ।
इसके बाद दशरथ पुत्र राम हँस ( दीक्षा ) योगी हुये । और उनका राम लोक है । ये स्वर्ग आदि से बहुत ऊँचा है । इसी कृम में परम हँस ( दीक्षा ) योगी योगेश्वर वसुदेव पुत्र श्रीकृष्ण हुये । इनका गोलोक है । बृह्माण्ड में सबसे ऊँचा यही लोक होता है । इन दोनों लोकों में भी साधारण स्त्री पुरुष रूप
सेवकों की जो दिव्य आभा सौन्दर्य और शक्ति होती है । वह बङे बङे देवताओं के लिये ईर्ष्या का विषय होती है । उदाहरण के लिये श्रीकृष्ण के लोक में सुन्दर सेविकाओं युवतियों की भरमार होती है । इसका क्षेत्रफ़ल इतना बङा है कि प्रथ्वी के पैमाने से उसका आंकलन नहीं किया जा सकता । ये पालिंग ( सूक्ष्म लोकों का पैमाना ) में होता है । सामान्य धार्मिक जानकारी रखने वाले भी जानते हैं कि बृह्मा विष्णु शंकर का भी अपना अपना एक लोक होता है । और ये सभी वे मनुष्य ही हैं । जिन्होंने कभी अपने तप भक्ति से इन पदों को प्राप्त किया ।
- पर अद्वैत गुरु के ( सफ़ल ) सिर्फ़ हँस जीव ही श्रीकृष्ण से ऊँची स्थिति को प्राप्त होते हैं । क्योंकि इन्हें सचखण्ड में हँस जीव का स्थान मिलता है । और सचखण्ड महा प्रलय में भी नष्ट नहीं होता । जबकि बृह्माण्ड की चोटी तक की सृष्टि और आत्मायें महाप्रलय में ( अपनी प्राप्त स्थिति से ) नष्ट हो जाती हैं । ये उपरोक्त विवरण प्रमाणिक रूप से धार्मिक बिज्ञान । भक्ति नियम । और इतिहास पर आधारित है ।
अब उपरोक्त के बाद मैं अपने स्तर पर बात कहता हूँ । मैं कोई लोक वगैरह बनाता नहीं हूँ । यह सव अद्वैत की सत्ता अपने आप तैयार कराती है । प्रथ्वी पर जिस तरह किसी D.M किसी मंत्री । मुख्य मंत्री । प्रधानमंत्री । राष्ट्रपति के लिये कोई राज्य । देश । आलीशान सुसज्जित भवन । सभी व्यवस्थायें । सेवक । कर्मचारी आदि सरकार मुहैया कराती है । ऐसे ही त्रिलोकी राज सत्ता और केन्द्र सत्ता योग में सफ़ल हुए विभिन्न पदासीनों को नियम अनुसार लोक और अन्य सुविधायें उपलब्ध कराती हैं ।
मेरा लोक पहले ही तैयार है । मैं अक्सर वहाँ आता जाता भी हूँ । इसलिये न तो बनने में कोई टाइम लगना है । और न ही बनाना है । जहाँ तक युवतियों की बात है । और ये भाव आपने ( युवतियों से ) वासनात्मक सम्बन्ध के दृष्टिकोण से किया है । तो ये पूर्णतया गलत है । किसी भी लोक की दिव्यांगनाओं से सभी के साथ रति भाव नहीं होता । हालांकि उन युवतियों में से अधिकांश की चाहत यही होती है । इसका एक प्रमाणिक उदाहरण रावण जैसे असुर के जीवन चरित्र से देख सकते हैं । रावण के रंगमहल में उसके साथ काम भोग विलास की इच्छुक लंका की तमाम राक्षस युवतियाँ रहती थी । बहुत सी देव । यक्ष । गंधर्व । नाग कन्याओं में श्रेष्ठ और सुन्दरतम युवतियाँ उसके रंगमहल में होती थी ।
उच्च स्तर के एक योग पुरुष को सामान्यतः 8 पत्नियाँ और 1 प्रेमिका रखने का सिद्ध अधिकार होता है । वास्तव में ये शक्ति रूपा आत्मायें होती हैं । जिनके परस्पर प्रेम भाव के अतिरिक्त कई महत्वपूर्ण कार्य भी होते हैं । और जो करोंङों जन्मों से ऐसी प्राप्ति के लिये तपशील होती हैं । इसके भी अतिरिक्त जो सेवक सेविकाओं के तौर पर गण जैसी नियुक्तियाँ होती हैं । वे भी काफ़ी संचित पुण्य भक्ति द्वारा इस परिणाम को प्राप्त होते हैं । फ़िर अन्य पद स्तरों की आत्माओं की बात और भी अलग है । भले ही आप मेरे मण्डल से दीक्षित हो । पर ( अभी की स्थिति अनुसार ) न तो ऐसे लोकों तक कभी जा सकते हो । और न वहाँ रहने का कोई स्थान प्राप्त होगा । यहाँ तक मात्र देखने के लिये भी प्रवेश नहीं मिल सकता । सरल शब्दों में नीची स्थिति वाले ऊपर जा ही नहीं सकते । अतः ऐसे लोकों की एक साधारण सेविका भी बहुत बङी हैसियत वाली होती है । बृह्म वैवर्त पुराण या गर्ग सहिंता जैसे शास्त्रों में इसकी एक झलक मिलती है । जब बृह्मा विष्णु और शंकर को विशेष कार्य से और विशेष सिफ़ारिश से किसी सन्तों के साथ गोलोक भेजा गया । तो वहाँ के लम्बे गलियारों में घूमते साधारण सेवक
सेविकाओं ने उन्हें न बैठने को पूछा । और न ही उनमें कोई दिलचस्पी दिखाई । शंकर को हैरानी हुयी । क्योंकि अब तक उन्हें दूसरों द्वारा प्रणाम स्तुति भगवान आदि सुनने का अनुभव अभ्यास था । अतः उन्होंने अपना परिचय दिया - मैं भगवान शंकर हूँ ।
तब उस ( जिससे कहा ) गोपिका ने कहा - वो तो ठीक है । पर कौन सी प्रथ्वी खण्ड के । कौन से बृह्माण्ड के । क्या काम है ? यहाँ तो रोज ही हजारों बृह्मा विष्णु शंकर और जाने कौन कौन दर्शन की फ़रियाद लेकर आते हैं । जाहिर है । ये प्रसंग गोलोक की साधारण सेविका के सामने बृह्मा विष्णु शंकर जैसे त्रिदेवों की हैसियत बता देता है । अतः अभी की स्थिति अनुसार आपकी एक साधारण सेवक की भी स्थिति नहीं बनेगी । तब दिव्य युवतियों का मिलना कतई निराधार बात है । लेकिन ये दीक्षा जीव की भक्ति चाह रहने तक निरंतर मनुष्य जन्म और भक्ति योग प्रदान करती है । इसलिये कोई भी साधक भक्त की पूर्ण परिभाषा में आ जाने पर बहुत कुछ प्राप्त कर सकता है । तब ऐसी कोई युवती मांगने की आवश्यकता नहीं होगी ।
अब जैसा कि मैं हमेशा ही कहता रहा हूँ । और जैसा हमारे साधक ने ऊपर उत्तर में कहा है । मेरा आपसे क्या परिचय है ? क्या सम्बन्ध है ? क्या लेना देना है ? आप अभी सिर्फ़ हमारे स्कूल के साधारण छात्र भर हो । वो भी जिसका सिर्फ़ नाम लिखा है । जिसमें कोई उल्लेखनीय बात या गुण या उपलब्धि नहीं । फ़िर आप कोई 1 वजह ही बताईये । जिस आधार पर ऐसा सोचा जाये । जबकि आपसे बहुत अच्छे स्तर के बहुत से छात्र हैं । और अच्छे योग्य छात्रों को ऐसे प्रयोगात्मक अनुभव स्वयं ही होते हैं । और वे जिज्ञासावश मुझसे अनुभव की जानकारी के बारे में पूछते हुये भी हिचकते हैं ।
जिस तरह निर्धन व्यक्ति का समाज में कोई स्थान महत्व नहीं होता । उसी तरह भक्ति रहित व्यक्ति को ऐसे दिव्य स्वपन भी स्वपनावस्था में देखना नसीब नहीं होता । फ़िर दिव्य लोगों से सम्पर्क की बात ही बहुत बङी है । अतः अभी समय है । यदि ऐसी कोई इच्छा है । तो उसके लिये कठोर तप करें । धार्मिक इतिहास गवाह है । तमाम स्त्री पुरुषों ने अपने तप और भक्ति से बङे बङे ऊँचे स्थान और दिव्य भोग प्राप्त किये हैं ।
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