तजै अल्यंगन काटै माया । ममता, मोह, लोभ धीरे धीरे छोड़ो । क्योंकि तुम जिस चीज को बाहर पकड़े हो । वह तो मौत छीन लेगी । उसे मौत से छीनने के पहले छोड़ दो । तो तुम्हारा बड़ा पुरस्कार है । तुम फिर धन्यभागी हो । क्योंकि जो मौत के पहले ही चीजों को छोड़ देता है । उसकी फिर मौत नहीं आती । फिर उसके पास कुछ बचता ही नहीं । जो मौत छीन ले जाये । उसने खुद ही छोड़ दिया । इसी का नाम संन्यास है । और छोड़ने का अर्थ भागना नहीं है । जो भागता है । वह तो पकड़े है । इसीलिए भागता है । नहीं तो भागेगा क्यों ? अगर कोई पत्नी को छोड्कर जंगल भागता है । उसका मतलब पत्नी को पकडे हुए है । नहीं तो डर क्या है । भय क्या है ?
मैं अपने संन्यासी को कहता हूं - जहां हो । वहीं छोड़ा जा सकता है । भागने की बात तो भूल भरी है । भागना कायरता है । छोड़ना भागने से नहीं होता । छोड़ना जागने से होता है । सिर्फ जागकर देखो । धीरे धीरे होश सम्हालो । और तुम पाओगे । उस होश के प्रकाश में जो व्यर्थ है । व्यर्थ दिखाई पड़ जायेगा । और जो व्यर्थ दिखाई पड़ गया । उस पर तुम मुट्ठी बांधकर न रख सकोगे । उससे आलिंगन छूट जायेगा ।
तजै अल्यंगन काटै माया । ताका बिसनु पषालै पाया ।
उसका पैर दबाने विष्णु आ जाते हैं । हिम्मत के वचन हैं । जिसने कहे होंगे । जरूर हिम्मतवर आदमी था । इसलिए गोरख को मैं नहीं छोड़ पाता । 4 में गिनती मुझे करनी पड़ती है । विष्णु से पैर दबवा दे जो लोगों के । उसकी कुछ तो हिम्मत है । कुछ तो साहस है । कोई साधारण आदमी नहीं है ।
मरौ वे जोगी मरौ । मरौ मरन है मीठा ।
तिस मरणी मरौ । जिस मरणी गोरष मरि दीठा ।
प्रेम में मरना होता है । प्रेम मृत्यु है । और जो मरता है । वही पाता है - शाश्वत को । अमृत को ।
यह न रहीम सराहिये । लेन देन की प्रीति ।
प्रानन बाजी राखिये । हार होय के जीत ।
यह न रहीम सराहिये । देन लेन की प्रीति ।
प्रानन बाजी राखिये । हार होय के जीत ।
जीतो कि हारो । प्राण बाजी पर लगाने होंगे तो ही । यह प्रेम कोई लेन देन का मामला नहीं है । यह कोई व्यवसाय नहीं है । तुम अपना पूरा दाव पर लगा देते हो । यह जुए का दाव है ।
रहिमन मैन तुरंग चढ़ि । चलिबो पावक माहि ।
प्रेम पंथ ऐसो कठिन । सब कोऊ निबहत नाहिं ।
रहीम ने कहा - रहिमन मैन तुरंग चढ़ि...। जैसे कोई मोम का घोड़ा बना ले । मोम के घोड़े पर बैठकर आग में से गुजरे ।
रहिमन मैन तुरंग चढ़ि । चलिबो पावक माहि ।
मोम के घोड़े पर बैठकर आग से निकलना जितना कठिन है । एक तो मोम का घोड़ा और फिर आग । निकल कहाँ पाओगे । निकल कैसे पाओगे ? घोड़ा तो गल ही जायेगा ।
रहिमन मैन तुरंग चढ़ि । चलिबो पावक माहि ।
प्रेम पंथ ऐसो कठिन । सब कोऊ निबहत नाहिं ।
ऐसा है प्रेम का पंथ । ऐसा कठिन है । क्योंकि जो मरने को राजी हैं । वे ही केवल प्रेम में प्रवेश कर पाते हैं ।
मरौ वे जोगी मरौ । मरौ मरन है मीठा ।
लेकिन बड़ी मिठास है इस मृत्यु में । जो ध्यान की मृत्यु मर जाये । इससे ज्यादा और अमृत पूर्ण कोई अनुभव नहीं है । क्योंकि उस मृत्यु में मर कर ही पता चलता है कि अरे, जो मरा वह मैं था ही नहीं । और जो बच गया है मरने के बाद भी । वही मैं हूं । सार सार बच रहता है । असार असार जलकर राख हो जाता है ।
मैं भी मृत्यु सिखाता हूं ।
मरौ वे जोगी मरौ । मरौ मरन है मीठा ।
तिस मरणी मरौ । जिस मरणी गोरष मरि दीठा ।
गोरख कहते हैं - मैंने मरकर उसे देखा । तुम भी मर जाओ । तुम भी मिट जाओ । सीख लो मरने की यह कला । मिटोगे तो उसे पा सकोगे । जो मिटता है । वही पाता है । इससे कम में जिसने सौदा करना चाहा । वह सिर्फ अपने को धोखा दे रहा है । ऐसी 1 अपूर्व यात्रा आज हम शुरू करते हैं । गोरख की वाणी मनुष्य जाति के इतिहास में जो थोडी सी अपूर्व वाणिया हैं । उनमें 1 है । गुनना, समझना, सूझना, बूझना, जीना । और ये सूत्र तुम्हारे भीतर गूंजते रह जायें ।
हसिबा खेलिबा धरिबा ध्यानं । अहनिसि कथिबा ब्रह्मगियान ।
हंसै षेलै न करै मन भंग । ते निहचल सदा नाथ के संग ।
मरौ वे जोगी मरौ । मरौ मरन है मीठा ।
तिस मरणी मरौ । जिस मरणी गोरष मरि दीठा ।
मैं अपने संन्यासी को कहता हूं - जहां हो । वहीं छोड़ा जा सकता है । भागने की बात तो भूल भरी है । भागना कायरता है । छोड़ना भागने से नहीं होता । छोड़ना जागने से होता है । सिर्फ जागकर देखो । धीरे धीरे होश सम्हालो । और तुम पाओगे । उस होश के प्रकाश में जो व्यर्थ है । व्यर्थ दिखाई पड़ जायेगा । और जो व्यर्थ दिखाई पड़ गया । उस पर तुम मुट्ठी बांधकर न रख सकोगे । उससे आलिंगन छूट जायेगा ।
तजै अल्यंगन काटै माया । ताका बिसनु पषालै पाया ।
उसका पैर दबाने विष्णु आ जाते हैं । हिम्मत के वचन हैं । जिसने कहे होंगे । जरूर हिम्मतवर आदमी था । इसलिए गोरख को मैं नहीं छोड़ पाता । 4 में गिनती मुझे करनी पड़ती है । विष्णु से पैर दबवा दे जो लोगों के । उसकी कुछ तो हिम्मत है । कुछ तो साहस है । कोई साधारण आदमी नहीं है ।
मरौ वे जोगी मरौ । मरौ मरन है मीठा ।
तिस मरणी मरौ । जिस मरणी गोरष मरि दीठा ।
प्रेम में मरना होता है । प्रेम मृत्यु है । और जो मरता है । वही पाता है - शाश्वत को । अमृत को ।
यह न रहीम सराहिये । लेन देन की प्रीति ।
प्रानन बाजी राखिये । हार होय के जीत ।
यह न रहीम सराहिये । देन लेन की प्रीति ।
प्रानन बाजी राखिये । हार होय के जीत ।
जीतो कि हारो । प्राण बाजी पर लगाने होंगे तो ही । यह प्रेम कोई लेन देन का मामला नहीं है । यह कोई व्यवसाय नहीं है । तुम अपना पूरा दाव पर लगा देते हो । यह जुए का दाव है ।
रहिमन मैन तुरंग चढ़ि । चलिबो पावक माहि ।
प्रेम पंथ ऐसो कठिन । सब कोऊ निबहत नाहिं ।
रहीम ने कहा - रहिमन मैन तुरंग चढ़ि...। जैसे कोई मोम का घोड़ा बना ले । मोम के घोड़े पर बैठकर आग में से गुजरे ।
रहिमन मैन तुरंग चढ़ि । चलिबो पावक माहि ।
मोम के घोड़े पर बैठकर आग से निकलना जितना कठिन है । एक तो मोम का घोड़ा और फिर आग । निकल कहाँ पाओगे । निकल कैसे पाओगे ? घोड़ा तो गल ही जायेगा ।
रहिमन मैन तुरंग चढ़ि । चलिबो पावक माहि ।
प्रेम पंथ ऐसो कठिन । सब कोऊ निबहत नाहिं ।
ऐसा है प्रेम का पंथ । ऐसा कठिन है । क्योंकि जो मरने को राजी हैं । वे ही केवल प्रेम में प्रवेश कर पाते हैं ।
मरौ वे जोगी मरौ । मरौ मरन है मीठा ।
लेकिन बड़ी मिठास है इस मृत्यु में । जो ध्यान की मृत्यु मर जाये । इससे ज्यादा और अमृत पूर्ण कोई अनुभव नहीं है । क्योंकि उस मृत्यु में मर कर ही पता चलता है कि अरे, जो मरा वह मैं था ही नहीं । और जो बच गया है मरने के बाद भी । वही मैं हूं । सार सार बच रहता है । असार असार जलकर राख हो जाता है ।
मैं भी मृत्यु सिखाता हूं ।
मरौ वे जोगी मरौ । मरौ मरन है मीठा ।
तिस मरणी मरौ । जिस मरणी गोरष मरि दीठा ।
गोरख कहते हैं - मैंने मरकर उसे देखा । तुम भी मर जाओ । तुम भी मिट जाओ । सीख लो मरने की यह कला । मिटोगे तो उसे पा सकोगे । जो मिटता है । वही पाता है । इससे कम में जिसने सौदा करना चाहा । वह सिर्फ अपने को धोखा दे रहा है । ऐसी 1 अपूर्व यात्रा आज हम शुरू करते हैं । गोरख की वाणी मनुष्य जाति के इतिहास में जो थोडी सी अपूर्व वाणिया हैं । उनमें 1 है । गुनना, समझना, सूझना, बूझना, जीना । और ये सूत्र तुम्हारे भीतर गूंजते रह जायें ।
हसिबा खेलिबा धरिबा ध्यानं । अहनिसि कथिबा ब्रह्मगियान ।
हंसै षेलै न करै मन भंग । ते निहचल सदा नाथ के संग ।
मरौ वे जोगी मरौ । मरौ मरन है मीठा ।
तिस मरणी मरौ । जिस मरणी गोरष मरि दीठा ।
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