08 नवंबर 2012

मन से भी अधिक गतिमान किंतु अचल भी


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वेद हिन्दू सनातन धर्म का आधार स्तम्भ हैं । परन्तु दुर्भाग्य से आधुनिक एवं कलुषित शिक्षा प्रणाली के कारण आज अत्यधिक पढ़े लिखे लोग भी धार्मिक एवं परम पवित्र वेद के बारे में बहुत ही कम जानते हैं । वेद " विद " शब्द से बना है । जिसका अर्थ है - ज्ञान या जानना । अथवा - ज्ञाता या जानने वाला । सिर्फ जानने वाला । और जानकर जाना परखा ज्ञान । अनुभूत सत्य । जाँचा परखा मार्ग ही वेद है ।
और हमारे इसी वेद में संकलित है - बृह्म वाक्य । वेद मानव सभ्यता के सबसे पुराने लिखित दस्तावेज हैं ।
इनमे से वेदों की 28 000 पांडुलिपियाँ भारत में पुणे के " भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीटयूट " में रखी हुई हैं । जिनमे ऋग्वेद की 30 पांडुलिपियाँ बहुत ही महत्वपूर्ण हैं । जिन्हें यूनेस्को ने विरासत सूची में शामिल किया है । यूनेस्को ने ऋग्वेद की 1800 से 1500 ई.पू. की 30 पांडुलिपियों को सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया है । और यूनेस्को की 158 सूची में भारत की महत्वपूर्ण पांडुलिपियों की सूची 38 है । वेद को " श्रुति " भी कहा जाता है । और श्रुति शब्द श्रु धातु से शब्द बना है । श्रु - यानी सुनना ।
कहते हैं । इसके मन्त्रों को ईश्वर ( बृह्म ) ने प्राचीन तपस्वियों को अप्रत्यक्ष रूप से सुनाया था । जब वे गहरी तपस्या में लीन थे । सर्वप्रथम ईश्वर ने 4 ऋषियों को इसका ज्ञान दिया - अग्नि । वायु । अंगिरा और आदित्य । वेद वैदिक काल की वाचिक परम्परा की अनुपम कृति हैं । जो पीढ़ी दर पीढ़ी पिछले 6-7000 ईस्वी पूर्व से चली आ रही है । विद्वानों ने संहिता । ब्राह्मण । आरण्यक और उपनिषद इन चारों के संयोग को समग्र वेद कहा है । और ये चारों भाग सम्मिलित रूप से श्रुति कहे जाते हैं । बाकी ग्रन्थ स्मृति के अंतर्गत आते हैं । संहिता इसका मन्त्र भाग है । वेद के मन्त्रों में सुंदरता भरी पड़ी है । वैदिक ऋषि जब स्वर के साथ वेद मंत्रों का पाठ करते हैं । तो चित्त प्रसन्न हो उठता है । जो भी सस्वर वेद पाठ सुनता है । वो मुग्ध हो उठता है ।
ब्राह्मण - ब्राह्मण ग्रंथों में मुख्य रूप से यज्ञों की चर्चा है । और वेदों के मंत्रों की व्याख्या है । तथा यज्ञों के विधान और विज्ञान का विस्तार से वर्णन है । मुख्य ब्राह्मण 3 हैं - 1 ऐतरेय  2  तैत्तिरीय 3 शतपथ ।
आरण्यक - संस्कृत में वन को कहते हैं - अरण्य । इसीलिए अरण्य में उत्पन्न हुए ग्रंथों का नाम पड़ गया - आरण्यक । मुख्य आरण्यक 5 हैं - 1 ऐतरेय 2 शांखायन 3 बृहदारण्यक 4 तैत्तिरीय 5 तवलकार ।
उपनिषद - उपनिषद को वेद का शीर्ष भाग कहा गया है । और यही वेदों का अंतिम सर्वश्रेष्ठ भाग होने के कारण " वेदांत " कहलाए । उपनिषद में - ईश्वर । सृष्टि और आत्मा के संबंध में गहन दार्शनिक और वैज्ञानिक वर्णन मिलता है । उपनिषदों की संख्या 1180 मानी गई है । लेकिन वर्तमान में 108 उपनिषद ही उपलब्ध हैं । जिनमें से मुख्य उपनिषद हैं - ईश । केन । कठ । प्रश्न । मुंडक । मांडूक्य । तैत्तिरीय । ऐतरेय । छांदोग्य । बृहदारण्यक । श्वेताश्वर । असंख्य वेद शाखाएँ । ब्राह्मण ग्रन्थ । आरण्यक और उपनिषद विलुप्त हो चुके हैं । और वर्तमान में ऋग्वेद के 10 । कृष्ण यजुर्वेद के 32 । सामवेद के 16 । अथर्ववेद के 31 उपनिषद उपलब्ध माने गए हैं ।
वैदिक काल - प्रोफेसर विंटरनिटज मानते हैं कि - वैदिक साहित्य का रचना काल 2000-2500 ईसा पूर्व हुआ था । दरअसल वेदों की रचना किसी 1 काल में नहीं हुई । अर्थात यह धीरे धीरे रचे गए । और अंतत: माना यह जाता है कि पहले वेद को 3 भागों में संकलित किया गया - ऋग्‍वेद । यजुर्वेद । सामवेद । जि‍से वेद त्रयी भी कहा जाता था । ऐसी मान्यता है कि वेद का वि‍भाजन भगवान राम के जन्‍म के पूर्व पुरुरवा ऋषि के समय में हुआ था । और बाद में अथर्व वेद का संकलन ऋषि‍ अथर्वा द्वारा कि‍या गया । दूसरी ओर कुछ लोगों का यह भी मानना है कि भगवान कृष्ण के समय द्वापर युग की समाप्ति के बाद महर्षि वेद व्यास ने वेद को 4 प्रभागों संपादित करके व्यवस्थित किया । इन चारों प्रभागों की शिक्षा 4 शिष्यों - पैल । वैशम्पायन । जैमिनी और सुमन्तु को दी । और उस कृम में ऋग्वेद - पैल को । यजुर्वेद - वैशम्पायन को । सामवेद - जैमिनि को । तथा अथर्ववेद - सुमन्तु को सौंपा गया । अगर इस गणना को ही मान लिया जाये । तो भी लिखित रूप में आज से 6508 वर्ष पूर्व पुराने हैं - वेद । और इस तथ्य को भी नकारा नहीं जा सकता है कि कृष्ण के आज से 5112 वर्ष पूर्व होने के पुख्ता प्रमाण ढूँढ लिए गए हैं ।
वेद के कुल 4 विभाग हैं - ऋग्वेद । यजुर्वेद । सामवेद । अथर्ववेद । 1 ऋग - स्थिति । 2 यजु - रूपांतरण । 3 साम - गति‍शील । 4 अथर्व - जड़ । ऋक को धर्म । यजुः को मोक्ष । साम को काम । अथर्व को अर्थ भी कहा जाता है । इन्ही चारों के आधार पर - धर्मशास्त्र । अर्थशास्त्र । कामशास्त्र और मोक्ष शास्त्र की रचना हुई । ऋग्वेद - ऋक अर्थात स्थिति और ज्ञान । इसमें 10 मंडल हैं । और 1 028 ऋचाएँ । ऋग्वेद की ऋचाओं में देवताओं की प्रार्थना । स्तुतियाँ । और देवलोक में उनकी स्थिति का वर्णन है । इसमें 5 शाखाएँ हैं - शाकल्प । वास्कल । अश्वलायन । शांखायन । मंडूकायन ।
यजुर्वेद - यजुर्वेद का अर्थ । यत + जु = यजु । यत का अर्थ होता है - गतिशील । तथा जु का अर्थ होता है - आकाश । इसके अलावा कर्म । श्रेष्ठतम कर्म की प्रेरणा । यजुर्वेद में 1975 मन्त्र और 40 अध्याय हैं । इस वेद में अधिकतर यज्ञ के मन्त्र हैं । यज्ञ के अलावा तत्व ज्ञान का वर्णन है । यजुर्वेद की 2 शाखाएँ हैं - कृष्ण और शुक्ल ।
सामवेद - साम अर्थात रूपांतरण और संगीत । सौम्यता और उपासना । इसमें 1875 ( 1824 ) मन्त्र हैं । ऋग्वेद की ही अधिकतर ऋचाएँ हैं । इस संहिता के सभी मन्त्र संगीतमय हैं । गेय हैं । इसमें मुख्य 3 शाखाएँ हैं । 75 ऋचाएँ हैं । और विशेषकर संगीत शास्त्र का समावेश किया गया है ।
अथर्ववेद - थर्व का अर्थ है - कंपन । और अथर्व का अर्थ - अकंपन । ज्ञान से श्रेष्ठ कर्म करते हुए जो परमात्मा की उपासना में लीन रहता है । वही अकंप बुद्धि को प्राप्त होकर मोक्ष धारण करता है । अथर्ववेद में 5987 मन्त्र और 20 कांड हैं । इसमें भी ऋग्वेद की बहुत सी ऋचाएँ हैं । इसमें रहस्यमय विद्या का वर्णन है ।
उक्त सभी में परमात्मा । प्रकृति और आत्मा का विषद वर्णन और स्तुति गान किया गया है । इसके अलावा वेदों में अपने काल के महापुरुषों की महिमा का गुणगान व उक्त काल की सामाजिक । राजनीतिक और भौगोलिक परिस्थिति का वर्णन भी मिलता है ।
6 वेदांग  ( वेदों के 6 अंग ) - 1 शिक्षा 2 छन्द 3 व्याकरण 4 निरुक्त 5 ज्योतिष 6 कल्प ।
6 उपांग - 1 प्रतिपद सूत्र 2 अनुपद 3 छन्दोभाषा ( प्रातिशाख्य ) 4 धर्म शास्त्र 5 न्याय 6  वैशेषिक ।
6 उपांग ग्रन्थ उपलब्ध हैं । इसे ही षड दर्शन कहते हैं । जो इस तरह हैं - सांख्य । योग । न्याय । वैशेषिक । मीमांसा । वेदांत ।
वेदों के उप वेद - ऋग्वेद का आयुर्वेद । यजुर्वेद का धनुर्वेद । सामवेद का गंधर्व वेद । अथर्ववेद का स्थापत्य वेद । ये क्रमशः चारों वेदों के उप वेद बतलाए गए हैं ।
आधुनिक विभाजन - आधुनिक विचारधारा के अनुसार 4 वेदों का विभाजन इस प्रकार किया गया - 1  याज्ञिक 2 प्रायोगिक 3 साहित्यिक । वेदों का सार है - उपनिषद । और उपनिषदों का सार - गीता को माना है । इस कृम से वेद । उपनिषद और गीता ही धर्म ग्रंथ हैं । दूसरा अन्य कोई नहीं । स्मृतियों में वेद वाक्यों को विस्तृत समझाया गया है । जबकि वाल्मिकी रामायण और महाभारत को इतिहास तथा पुराणों को पुरातन इतिहास का ग्रंथ माना है । विद्वानों ने भी वेद । उपनिषद और गीता के पाठ को ही उचित बताया है । ऋषि मुनियों को दृष्टा कहा गया है । और वेदों को ईश्वर वाक्य । वेद ऋषियों के मन या विचार की उपज नहीं है । और ऋषियों ने वह लिखा । या कहा । जैसा कि उन्होंने पूर्ण जागृत अवस्था में देखा । सुना और परखा । मनु स्मृति में श्लोक II.6 के माध्यम से कहा गया है कि - वेद ही सर्वोच्च और प्रथम प्राधिकृत है । और वेद किसी भी प्रकार के - ऊँच नीच । जात पात । महिला पुरुष आदि के भेद को नहीं मानते । ऋग्वेद की ऋचाओं में लगभग 414 ऋषियों के नाम मिलते हैं । जिनमें से लगभग 30 नाम महिला ऋषियों के हैं ।

जन्म के आधार पर जाति का विरोध ऋग्वेद के पुरुष सुक्त X.90.12 व श्रीमद भगवत गीता के श्लोक IV.13  XVIII.41 में मिलता है ।
श्रुतिस्मृतिपुराणानां विरोधो यत्र दृश्यते । तत्र श्रौतं प्रमाणन्तु तयोद्वैधे स्मृति‌र्त्वरा ।
अर्थात - जहाँ कहीं भी वेदों और दूसरे ग्रंथों में विरोध दिखता हो । वहाँ वेद की बात की मान्य होगी । वेद व्यास । प्रकाश से अधिक गतिशील तत्व अभी खोजा नहीं गया है । और न ही मन की गति को मापा गया है । परन्तु हमारे ऋषि मुनियों ने मन से भी अधिक गतिमान । किंतु अविचल ( अचल ) का साक्षात्कार किया । और उसे - वेद वाक्य या " बृह्म वाक्य " बना दिया ।
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उड़ते विमान में दी धमकी - इस्लाम कबूल करो । वरना ?
http://navbharattimes.indiatimes.com/passenger-triggers-panic-says-accept-islam-or-i-will-blow-up--/articleshow/17132887.cms.

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