Mukesh Sharma ने आपकी पोस्ट " अब आजकल के साधु कैसे होते हैं ? " पर 1 टिप्पणी छोड़ी है:
गुरूजी आपको मेरा शत शत प्रणाम । आपने मेरे द्वारा पूर्व में पूछे गए सभी प्रश्नों के उत्तर आश्रम कार्यो की व्यस्तता के बावजूद बड़े प्रेम से दिए हैं । जिनसे में पूर्ण रूप से संतुष्ट हूँ । गुरुजी आपको इसके लिए साधूवाद देता हूँ । अतएव गुरूजी मैं पुनः आपकी सेवा में उपस्थित हूँ । कुछ प्रश्नों के उत्तर और देकर आप मेरी जिज्ञासा शांत कीजिये ।
1 हम जीवधारी इस दुनिया में क्यों आये है । मुझे पता नहीं । परन्तु हम इस दुनिया में रहकर जो भी कार्य करते हैं । वो एक अनुभूति के लिए करते हैं । चाहे वो अनुभूति ख़ुशी की हो । अहंकार की हो । अथवा स्वार्थ या ईर्ष्या को संतुष्ट करने की । और ज्ञानी लोग कहते हैं कि हमारा अंतिम और प्रथम लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति का होता है ? मोक्ष प्राप्ति क्या है ? या क्यों प्राप्त करना चाहिए ? सिर्फ एक अलौकिक अनु्भूति के लिए या कुछ और भी है ।
- बहुत ही कम शब्दों में कहा जाये । तो मोक्ष का अर्थ कर्म और कर्मफ़ल की विवशता रूपी जंजीरों से छुटकारा हो जाना है । आवागमन यानी जन्म मरण के चक्कर से मुक्त हो जाना है । यहाँ थोङा समझना आवश्यक है । बहुधा लोग इस तरह के मोक्ष का अर्थ ये लगा लेते हैं । कोई ऐसी कल्पित जगह जो स्वर्ग या परमात्मा का लोक है । जहाँ सब प्रकार के सुख ही सुख हैं । और दुख कुछ भी नहीं । ये एकदम गलत
ही है । वास्तविकता ये है कि मुक्त आत्मायें भी इच्छानुसार शरीर धारण करती हैं । पर उसमें किसी प्रकार की भोग विवशता नहीं होती । मुक्त आत्मा को शरीर धारण करने के लिये गर्भवास में नहीं जाना होता । वह स्व संकल्प से प्रकट होते हैं । परवश जीव स्ववश भगवन्ता । जीव अनेक एक श्रीकन्ता । मोह का सर्वदा के लिये क्षय हो जाना ही मोक्ष है । मोह सकल व्याधि कर मूला । जाते पुन उपजत भवशूला । एक महत्वपूर्ण बात और भी है । कोई भी जीवात्मा करोङों जन्म क्यों न भटकता रहे । जब तक मोक्ष रूपी ज्ञान को प्राप्त नहीं होगा । तब तक उसे सुख शान्ति नहीं मिल सकती ।
2 ज्योतिष ( जन्म कुण्डली ) के बारे में आपके क्या विचार है ।
- ज्योतिष ग्रह नक्षत्र पर आधारित एक सिद्ध और प्रमाणित विज्ञान है । लेकिन इसकी काल गणना और सिद्ध आंतरिकता का बेहद उच्च स्तरीय तरीका है । जो इसे बहुत कुछ आंतरिक साधना से जोङता है । न कि सिर्फ़ गणित के आधार पर ग्रह नक्षत्रों की स्थिति के आधार पर फ़ालादेश बताना । मेरे कहने का मतलब है । एक ज्योतिषी जब किसी जातक के बारे में कोई बात बताता है । तो वह अदृश्य आंतरिक स्तर पर भी अपनी साधना
के अनुसार सम्पर्क स्थापित कर सटीक फ़लादेश बता पाता है । लेकिन ( इतने पर भी ) फ़िर भी यह 80% ही बता सकता है । अपवाद स्वरूप यदि विधि ( संस्कार ) विपरीत हो । और फ़लादेश शुभ आ रहा हो । तो विधि का पलङा ही भारी रहेगा । उदाहरण - फ़लादेश में राम का राजतिलक था । और विधि के अनुसार उन्हें कठोर वनवास हुआ ।
3 मनुष्य को पूर्वजन्म की बातें कैसे याद रहती हैं । यादों का संग्रह तो दिमाग में होता है । और मरने के पश्चात तो दिमाग के साथ साथ मनुष्य का पूरा भौतिक शरीर नष्ट हो जाता है । तो यादें कहाँ संगृहीत रहती है ।
- अंतकरण जो मन बुद्धि चित्त अहम इन चार पार्टस का ( संयुक्त ) कम्प्यूटर की हार्डडिस्क की तरह एक उपकरण होता है । इसी को दूसरे नम्बर का सूक्ष्म शरीर भी कहा जाता है । किसी भी योग क्रिया में । मृत्यु के बाद । या कोई दूसरा शरीर धारण करना । परकाया प्रवेश । या फ़िर प्रेत योनि प्राप्त होने पर यही शरीर रहता है । मैं कई बार बता चुका हूँ । यह अदृश्य अवश्य होता है । पर सूक्ष्म शरीर के देहधारी को खुद का बिलकुल स्थूल शरीरी होने जैसा ही भान होता है । इस शरीर का भोजन मुख्यतयाः भोजम आदि से निकलमे वाली गन्ध जैसे सूक्ष्म पदार्थ होते हैं । जीवित शरीर होने की दशा में यह प्राणी द्वारा खाये हुये भोजन का निर्धारित सार अंश ग्रहण करता है । जब मनुष्य का भौतिक शरीर जल जाता है । तब यही बाहर चला जाता है । मतलब मृत्यु होते ही यह निकल जाता है । इसमें सिर्फ़ 1 पूर्व जन्म का ही नहीं अनेकों जन्मों का डाटा जमा होता है । मुक्त होने के बाद यह शरीर हमेशा के लिये छूट जाता है ।
4 टेलीपैथी का उपयोग प्राचीन काल में बड़े बङे योगी महात्मा करते थे । क्या आज के समय में भी कोई इसका उपयोग कर सकता है ।
- टैलीपैथी कोई बहुत बङा बिज्ञान नहीं है । अतः यह कहना गलत है कि प्राचीनकाल में बङे बङे ? योगी महात्मा इसका उपयोग किया करते थे । संसार या सृष्टि में हरेक ज्ञान समय परिस्थिति के अनुसार कम या अधिक % में सदैव रहा है । बस फ़र्क इतना है कि हम अपने जैसे लोगों के व्रर्ग में रहते हैं । अतः प्रायः इन बातों को किस्से कहानियों से अधिक नहीं जान पाते । आपको किसी बङे महात्मा की तलाश की आवश्यकता नहीं । मैं कुछ सरल तरीकों से ही इसे आपको सिखा दूँगा ।
5 मेरे दादाजी ने संसार की मोह माया त्याग दी थी । और हमेशा ध्यान में लीन रहते थे । परन्तु मेरे पिता को शुरू में ये सब पसंद नहीं था । और वो बहुत महत्वाकांक्षी है । परन्तु वो अब भगवान की सुबह शाम पूजा करते है । मेरा सवाल है कि जब मैं अध्यात्म की किसी भी सामग्री का अध्ययन करता हूँ । तो मुझे समझने के लिए सामान्य लोगों की तुलना में ज्यादा प्रयास नहीं करना पड़ता । मुझे एक ही रीडिंग में समझ आती है । और समझने के साथ साथ अनुभव भी करता हूँ । और साथ साथ भौतिक जगत में मेरी महत्वकांक्षा भी बहुत ज्यादा है । तो क्या ये गुण मुझे अनुवांशिक तौर पर मिले हैं । और मेरे पुर्वजों को भी अनुवांशिकी तौर पर मिले हों । या ये गुण वातावरण से मेरे पूर्वजों ने प्राप्त किये हैं । और मुझे अनुवांशिकी तौर पर मिले हों । क्योंकि मेरे घर में अब अध्यात्म का कोई माहौल नहीं हैं । वैसे बृह्मांड का सारा ज्ञान मनुष्य में समाहित होता है । पर मैं आपके विचार जानना चाहता हूँ ।
- ये गुण आपको आनुवांशिक तौर पर नहीं मिले । वरन पूर्व जन्म के संस्कार वश मिले हैं । इसको सरलता से समझने के लिये ये जानिये कि आदि सृष्टि के समय से ही अभी तक आप सत ( साधुता या ऊर्जा ) रज ( क्रियाशीलता ) और तम ( अज्ञान या दुष्टता समान राक्षसी ) गुणों से अनेकानेक शरीरों द्वारा विभिन्न जीवन खेल खेलते रहे हैं हैं । इसमें गुणों से अगले जीवन पदार्थ का निर्माण होता है । तब यदि पूर्व जन्म में सत गुण की अधिकता रही हो । और कृमशः ( 84 लाख योनियों को भोगने के बाद ) प्राप्त आगामी जमीन में यदि सात्विक भूमि ही प्राप्त हो । तब कुल पदार्थ के % के अनुसार भक्ति भाव की अधिकता रहती है । मैं यह मौटे तौर पर ही बता रहा हूँ । सूक्ष्मता के स्तर पर बात बेहद जटिल होती है । यह बात सही है कि बृह्माण्ड का सारा ज्ञान मनुष्य के अन्दर समाहित होता है । पर कितने लोग हैं ? जो अपने ही अन्दर के इस ज्ञान से जुङ पाते हैं । जान पाते हैं । उदाहरण के लिये प्रथ्वी पर ही अनेकों स्थान पदार्थ ज्ञान विभिन्नतायें आदि बहुत सी अन्य चीजें बहुलता से मौजूद हैं । पर कितने लोग इन सबको जान पाते हैं । अनुभव आदि कर पाते हैं । अतः ये इतना सरल नहीं हैं ।
6 क्या आत्मज्ञान और बृह्मांड के सम्पूर्ण ज्ञान और भूत भविष्य का ज्ञान रखने वाला कोई महान योगी आज भी उपस्थित है । या सम्पूर्ण ज्ञान महाभारत के युद्ध के बाद ख़त्म हो गया । क्या हिमालयों में तपस्या करने वाले और सम्पूर्ण ज्ञान को रखने वाले महान योगी आज भी है ? और महाभारत का योद्धा अश्वत्थामा आज भी है ?
- आपको आश्चर्य होगा । महाभारत के युद्ध के समय बृह्माण्ड का सम्पूर्ण ज्ञान या आत्मज्ञान ( आपके प्रश्न भाव के अनुसार ) रखने वाला कोई महान योगी नहीं था । स्वयं श्रीकृष्ण भी नहीं । हाँ महाभारत युद्ध के दौरान स्वयं श्रीकृष्ण ( को निमित्त बनाकर ) पर जो आत्मदेव द्वारा ज्ञान उतरा था । वह आत्मज्ञान की झलक अवश्य था । बाकी महाभारत के बहुत बाद एक से एक दिग्गज शक्तियाँ समय समय पर अपना प्रभाव दिखाती रही हैं । लेकिन उन सबको एक ही तराजू में नहीं तौला जा सकता । उनके स्तर अलग अलग थे । आपको एक और आश्चर्य होगा कि इस समय प्रथ्वी पर विभिन्न मनुष्यों को आवेशित कर सभी दिग्गज शक्तियां अपना कार्य कर रही हैं । क्योंकि ये सनातन धर्म की पुनर्स्थापना का अदभुत समय है । द्वैत अद्वैत के विभिन्न स्तरों के अच्छे योगी हमेशा से रहे हैं । पर वो टीवी पर नहीं । गुप्त एकान्त स्थानों पर मिलते हैं । वो प्रवचन नहीं देते । बल्कि योग सूत्र बताते हैं । पर ऐसी महान दुर्लभ हस्तियों से मिलना अति भाग्य वालों को नसीब होता है । जिन्होंने पूर्व जन्म में इस हेतु पुण्य संचय किया हो ।
7 क्या सब कुछ पूर्व लिखित होता है । या ( हरेक संभव बृह्मांड की रचना होती है ) अर्थात हर एक जीव हर संभव रूप में होता है । जैसा कि कागभुसण्डि कहते हैं कि मैं अलग अलग बृह्मांड देख रहा हूँ । उनमें सभी के अलग अलग रूप हैं । और यही बात भौतिक विज्ञानं की शाखा क्वांटम भौतिकी कहती है कि हर एक कण अपने हर संभव पथ में गमन गमन करता चाहे । वो अति सूक्ष्म कण हो । या वृहद अर्थात हरेक संभव बृह्मांड की समान्तर रूप से रचना होती जाती है । इस बिंदु को शायद मैं पूर्ण रूप से समझा नहीं पा रहा हूँ । उसके लिए मुझे और शब्दों की आवश्यकता होगी । और बिंदु बड़ा हो जायेगा । आप अपनी समझ के अनुसार उत्तर दे दीजये ।
- आपके इस प्रश्न के उत्तर के लिये विस्त्रत वर्णन की आवश्यकता है । वैसे कहीं न कहीं मेरे लेखों में ये उत्तर आपको प्राप्त हो जायेगा । न होने पर फ़िर से पूछ लेना ।
8 बाबा रामदेव योग के क्षेत्र में कहाँ तक उपलब्धि रखते हैं ।
- रामदेव कुछ योगासन । और 3-4 योग क्रियायें । इससे ज्यादा नहीं जानते । पतंजलि के मुख्य ज्ञान से बाबा रामदेव का दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं है । धारणा ध्यान समाधि किस चिङिया का नाम है ? रामदेव को सपने में भी नहीं पता । रामदेव के नाम के साथ योगाचार्य ? शब्द का प्रयोग भी गलत है । उन्हें योगासन शिक्षक निसंदेह कहा जा सकता है ।
9 क्या धर्म ग्रंथों का परमात्मा और विज्ञानं का ब्लैक होल एक ही है । क्योंकि यदि धर्म और विज्ञानं के ज्ञान जोड़कर देखा जाये । तो दोनों एक ही बात कहते हैं कि इसका न कोई रूप है । न आकार । न ही कोई रंग । गीता में श्रीकृष्ण भगवान कहते हैं कि सभी मुझ में से उत्पन्न होते हैं । और मुझ ही में समाहित होते हैं । यही थ्योरी ब्लैक होल की भी है ।
- ब्लैक होल और परमात्मा का आपस में दूर दूर तक कोई मेल नहीं हैं । ब्लैक होल अंतरिक्ष में स्थित है । और परमात्मा सबसे परे । वह शाश्वत है । और तब भी था । जब कहीं कुछ नहीं था । बाकी ये बेबकूफ़ ही कहते हैं कि परमात्मा का न कोई रूप है । न रंग है । न आकार है । नाम रूप दोऊ अकथ कहानी । समझत सुखद न जात बखानी । वास्तव में ( आज या आदि सृष्टि के बाद से ) परमात्मा सगुण साकार और निर्गुण निराकार दोनों ही है । यहाँ बेहद सोचने वाली बात है । जिसका कोई रूप रंग आकार आदि कुछ भी नहीं है । फ़िर किस चीज को उन्होंने परमात्मा बताया । या कैसे निश्चित किया कि - ये ही मिस्टर परमात्मा है ? या फ़िर साक्षात्कार आदि भक्ति क्रियाओं में क्या प्रत्यक्ष होता है ? अधिकतर व्यवसायिक साधुओं की मानसिकता इस तरह की है । झूठा से झूठा मिला । हाँ जी हाँ जी होय । कान में कर दी कुर्र । तुम चेला हम गुर्र ।
गुरुजी शब्दों के इस्तेमाल में मुझसे जल्दी जल्दी में जो गलती हुई है । क्षमा करें ।
mukesh sharma ,alwar
प्रणाम गरु देव ! आपने कहा - प्रहलाद का नाम अवश्य सुना होगा । अपनी भक्ति के चलते इन दोनों को ही देवराज इन्द्र का पद और स्वर्ग लोक प्राप्त हुआ था । जिसमें अभी तक इन्द्र पद पर प्रहलाद था । अब उसका कार्यकाल समाप्त हो रहा है । उसे नीचे फ़ेंक दिया जायेगा । और उसकी जगह नया इन्द्र ध्रुव बनेगा । बस इस कार्य हेतु कार्यवाही जारी है । प्रथ्वी से जाने के बाद इतना समय ध्रुव ने दिव्य लोकों में ऐश्वर्य भोगते हुये गुजारा । आप इनके प्रथ्वी पर होने के कालखण्ड से अभी तक की समय गणना करते हुये अलौकिक रहस्यों के नये ज्ञान से परिचित हो सकते हैं । गंगा 1 महीने से कुछ ही पहले प्रथ्वी पर अपना शाप और उतरने के अन्य उद्देश्य पूरा कर वापस चली गयी
1 कृपया आप अपनी बात को विस्तार से समझायें । गंगा तो अभी भी बह रही है ।
- जैसे बहुत से राजाओं के राजमहल आज खण्डहर ( अवशेष ) के रूप में मौजूद हैं । पर वह राजा और उनका वैभवशाली राज्य समाप्त हो गया । तो उसका प्रभाव भी समाप्त हो गया । ताजा उदाहरण सद्दाम हुसैन का है । इसी उदाहरण से आप गंगा की बात समझ सकते हैं । गंगा में आज गंगा जैसा कुछ नहीं है । क्योंकि उसका कार्यकाल समाप्त हो चुका है । अब वह सिर्फ़ साधारण नदी का बहता पानी है । उसकी यौगिक शक्ति समाप्त हो चुकी है ।
2 आप कहते हैं कि शरीर छोड़ने के बाद यदि हमने योग की से महत्वपूर्ण अवस्था प्राप्त की है । तो हमें भोग के लिए हमें अप्सराए और अनेक पदार्थ मिलेंगे । मैं पूछना चाहता हूँ कि भौतिक शरीर के नष्ट होने के पश्चात उनका उपभोग कौन करता है ।
- जैसा कि मैंने ऊपर बताया कि अंतकरण रूपी सूक्ष्म शरीर पर ( मुक्त होने तक ) स्थिति अनुसार अनेक शरीर ( का आवरण ) पहनाये जाते हैं । आपने देव । सिद्ध । भगवान आदि जो भी पद ( स्थिति ) प्राप्त किया । वही शरीर सूक्ष्म शरीर के ढांचे पर पहना दिया जाता है । उदाहरण के लिये कोई व्यक्ति अपने पुण्य धर्म अनुसार देवता बनता है । तो शरीर छूटने के बाद मानसरोवर में उसको स्नान कराया जाता है । वही पर उसका शेष कलुषित आवरण धुल जाता है । और वह डुबकी के बाद ऊपर आता है । तो अपने नये दिव्य शरीर में जगमगा रहा होता है । प्राप्त स्थिति अनुसार यही भोग करता है ।
3 निर्मल बाबा के बारे में आपके क्या विचार है । ये कोई ठग है । आत्म प्रेरित है । या तत्व ज्ञानी ।
- मैंने नेट पर ही एक बहुत अच्छी कहावत देखी थी । जब तक मूर्ख अच्छी संख्या में मौजूद है । चतुर व्यक्ति बिना परिश्रम के मौज करता है । इसकी तो बात छोङो । मैं बहुत से प्रसिद्ध अन्य के बारे में बता रहा हूँ - ठगियन ने बात बिगाङी । धर वेश ठगे नर नारी ।
4 एक बार तत्व ज्ञान और आत्म ज्ञान और इससे सम्बंधित अन्य ज्ञान के बारे में विस्तार से बताईये ।
- इसको एक ही जगह एक ही बार में विस्तार से बता पाना सम्भव नहीं । लेकिन मैं अपने जीवनकाल में अनुभवजन्य वह रहस्य बताने की कोशिश करूँगा । जो इससे पहले ( उपलब्ध जानकारी में ) कोई भी न बता पाया हो । उस तरीके से बताऊँगा । जो कोई भी न बता पाया हो । और ऐसा अभी भी है । यदि आप फ़र्क कर सकें । और तुलनात्मक नजरिये से देखें तब ।
m.k sharma
गुरूजी आपको मेरा शत शत प्रणाम । आपने मेरे द्वारा पूर्व में पूछे गए सभी प्रश्नों के उत्तर आश्रम कार्यो की व्यस्तता के बावजूद बड़े प्रेम से दिए हैं । जिनसे में पूर्ण रूप से संतुष्ट हूँ । गुरुजी आपको इसके लिए साधूवाद देता हूँ । अतएव गुरूजी मैं पुनः आपकी सेवा में उपस्थित हूँ । कुछ प्रश्नों के उत्तर और देकर आप मेरी जिज्ञासा शांत कीजिये ।
1 हम जीवधारी इस दुनिया में क्यों आये है । मुझे पता नहीं । परन्तु हम इस दुनिया में रहकर जो भी कार्य करते हैं । वो एक अनुभूति के लिए करते हैं । चाहे वो अनुभूति ख़ुशी की हो । अहंकार की हो । अथवा स्वार्थ या ईर्ष्या को संतुष्ट करने की । और ज्ञानी लोग कहते हैं कि हमारा अंतिम और प्रथम लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति का होता है ? मोक्ष प्राप्ति क्या है ? या क्यों प्राप्त करना चाहिए ? सिर्फ एक अलौकिक अनु्भूति के लिए या कुछ और भी है ।
- बहुत ही कम शब्दों में कहा जाये । तो मोक्ष का अर्थ कर्म और कर्मफ़ल की विवशता रूपी जंजीरों से छुटकारा हो जाना है । आवागमन यानी जन्म मरण के चक्कर से मुक्त हो जाना है । यहाँ थोङा समझना आवश्यक है । बहुधा लोग इस तरह के मोक्ष का अर्थ ये लगा लेते हैं । कोई ऐसी कल्पित जगह जो स्वर्ग या परमात्मा का लोक है । जहाँ सब प्रकार के सुख ही सुख हैं । और दुख कुछ भी नहीं । ये एकदम गलत
ही है । वास्तविकता ये है कि मुक्त आत्मायें भी इच्छानुसार शरीर धारण करती हैं । पर उसमें किसी प्रकार की भोग विवशता नहीं होती । मुक्त आत्मा को शरीर धारण करने के लिये गर्भवास में नहीं जाना होता । वह स्व संकल्प से प्रकट होते हैं । परवश जीव स्ववश भगवन्ता । जीव अनेक एक श्रीकन्ता । मोह का सर्वदा के लिये क्षय हो जाना ही मोक्ष है । मोह सकल व्याधि कर मूला । जाते पुन उपजत भवशूला । एक महत्वपूर्ण बात और भी है । कोई भी जीवात्मा करोङों जन्म क्यों न भटकता रहे । जब तक मोक्ष रूपी ज्ञान को प्राप्त नहीं होगा । तब तक उसे सुख शान्ति नहीं मिल सकती ।
2 ज्योतिष ( जन्म कुण्डली ) के बारे में आपके क्या विचार है ।
- ज्योतिष ग्रह नक्षत्र पर आधारित एक सिद्ध और प्रमाणित विज्ञान है । लेकिन इसकी काल गणना और सिद्ध आंतरिकता का बेहद उच्च स्तरीय तरीका है । जो इसे बहुत कुछ आंतरिक साधना से जोङता है । न कि सिर्फ़ गणित के आधार पर ग्रह नक्षत्रों की स्थिति के आधार पर फ़ालादेश बताना । मेरे कहने का मतलब है । एक ज्योतिषी जब किसी जातक के बारे में कोई बात बताता है । तो वह अदृश्य आंतरिक स्तर पर भी अपनी साधना
के अनुसार सम्पर्क स्थापित कर सटीक फ़लादेश बता पाता है । लेकिन ( इतने पर भी ) फ़िर भी यह 80% ही बता सकता है । अपवाद स्वरूप यदि विधि ( संस्कार ) विपरीत हो । और फ़लादेश शुभ आ रहा हो । तो विधि का पलङा ही भारी रहेगा । उदाहरण - फ़लादेश में राम का राजतिलक था । और विधि के अनुसार उन्हें कठोर वनवास हुआ ।
3 मनुष्य को पूर्वजन्म की बातें कैसे याद रहती हैं । यादों का संग्रह तो दिमाग में होता है । और मरने के पश्चात तो दिमाग के साथ साथ मनुष्य का पूरा भौतिक शरीर नष्ट हो जाता है । तो यादें कहाँ संगृहीत रहती है ।
- अंतकरण जो मन बुद्धि चित्त अहम इन चार पार्टस का ( संयुक्त ) कम्प्यूटर की हार्डडिस्क की तरह एक उपकरण होता है । इसी को दूसरे नम्बर का सूक्ष्म शरीर भी कहा जाता है । किसी भी योग क्रिया में । मृत्यु के बाद । या कोई दूसरा शरीर धारण करना । परकाया प्रवेश । या फ़िर प्रेत योनि प्राप्त होने पर यही शरीर रहता है । मैं कई बार बता चुका हूँ । यह अदृश्य अवश्य होता है । पर सूक्ष्म शरीर के देहधारी को खुद का बिलकुल स्थूल शरीरी होने जैसा ही भान होता है । इस शरीर का भोजन मुख्यतयाः भोजम आदि से निकलमे वाली गन्ध जैसे सूक्ष्म पदार्थ होते हैं । जीवित शरीर होने की दशा में यह प्राणी द्वारा खाये हुये भोजन का निर्धारित सार अंश ग्रहण करता है । जब मनुष्य का भौतिक शरीर जल जाता है । तब यही बाहर चला जाता है । मतलब मृत्यु होते ही यह निकल जाता है । इसमें सिर्फ़ 1 पूर्व जन्म का ही नहीं अनेकों जन्मों का डाटा जमा होता है । मुक्त होने के बाद यह शरीर हमेशा के लिये छूट जाता है ।
4 टेलीपैथी का उपयोग प्राचीन काल में बड़े बङे योगी महात्मा करते थे । क्या आज के समय में भी कोई इसका उपयोग कर सकता है ।
- टैलीपैथी कोई बहुत बङा बिज्ञान नहीं है । अतः यह कहना गलत है कि प्राचीनकाल में बङे बङे ? योगी महात्मा इसका उपयोग किया करते थे । संसार या सृष्टि में हरेक ज्ञान समय परिस्थिति के अनुसार कम या अधिक % में सदैव रहा है । बस फ़र्क इतना है कि हम अपने जैसे लोगों के व्रर्ग में रहते हैं । अतः प्रायः इन बातों को किस्से कहानियों से अधिक नहीं जान पाते । आपको किसी बङे महात्मा की तलाश की आवश्यकता नहीं । मैं कुछ सरल तरीकों से ही इसे आपको सिखा दूँगा ।
5 मेरे दादाजी ने संसार की मोह माया त्याग दी थी । और हमेशा ध्यान में लीन रहते थे । परन्तु मेरे पिता को शुरू में ये सब पसंद नहीं था । और वो बहुत महत्वाकांक्षी है । परन्तु वो अब भगवान की सुबह शाम पूजा करते है । मेरा सवाल है कि जब मैं अध्यात्म की किसी भी सामग्री का अध्ययन करता हूँ । तो मुझे समझने के लिए सामान्य लोगों की तुलना में ज्यादा प्रयास नहीं करना पड़ता । मुझे एक ही रीडिंग में समझ आती है । और समझने के साथ साथ अनुभव भी करता हूँ । और साथ साथ भौतिक जगत में मेरी महत्वकांक्षा भी बहुत ज्यादा है । तो क्या ये गुण मुझे अनुवांशिक तौर पर मिले हैं । और मेरे पुर्वजों को भी अनुवांशिकी तौर पर मिले हों । या ये गुण वातावरण से मेरे पूर्वजों ने प्राप्त किये हैं । और मुझे अनुवांशिकी तौर पर मिले हों । क्योंकि मेरे घर में अब अध्यात्म का कोई माहौल नहीं हैं । वैसे बृह्मांड का सारा ज्ञान मनुष्य में समाहित होता है । पर मैं आपके विचार जानना चाहता हूँ ।
- ये गुण आपको आनुवांशिक तौर पर नहीं मिले । वरन पूर्व जन्म के संस्कार वश मिले हैं । इसको सरलता से समझने के लिये ये जानिये कि आदि सृष्टि के समय से ही अभी तक आप सत ( साधुता या ऊर्जा ) रज ( क्रियाशीलता ) और तम ( अज्ञान या दुष्टता समान राक्षसी ) गुणों से अनेकानेक शरीरों द्वारा विभिन्न जीवन खेल खेलते रहे हैं हैं । इसमें गुणों से अगले जीवन पदार्थ का निर्माण होता है । तब यदि पूर्व जन्म में सत गुण की अधिकता रही हो । और कृमशः ( 84 लाख योनियों को भोगने के बाद ) प्राप्त आगामी जमीन में यदि सात्विक भूमि ही प्राप्त हो । तब कुल पदार्थ के % के अनुसार भक्ति भाव की अधिकता रहती है । मैं यह मौटे तौर पर ही बता रहा हूँ । सूक्ष्मता के स्तर पर बात बेहद जटिल होती है । यह बात सही है कि बृह्माण्ड का सारा ज्ञान मनुष्य के अन्दर समाहित होता है । पर कितने लोग हैं ? जो अपने ही अन्दर के इस ज्ञान से जुङ पाते हैं । जान पाते हैं । उदाहरण के लिये प्रथ्वी पर ही अनेकों स्थान पदार्थ ज्ञान विभिन्नतायें आदि बहुत सी अन्य चीजें बहुलता से मौजूद हैं । पर कितने लोग इन सबको जान पाते हैं । अनुभव आदि कर पाते हैं । अतः ये इतना सरल नहीं हैं ।
6 क्या आत्मज्ञान और बृह्मांड के सम्पूर्ण ज्ञान और भूत भविष्य का ज्ञान रखने वाला कोई महान योगी आज भी उपस्थित है । या सम्पूर्ण ज्ञान महाभारत के युद्ध के बाद ख़त्म हो गया । क्या हिमालयों में तपस्या करने वाले और सम्पूर्ण ज्ञान को रखने वाले महान योगी आज भी है ? और महाभारत का योद्धा अश्वत्थामा आज भी है ?
- आपको आश्चर्य होगा । महाभारत के युद्ध के समय बृह्माण्ड का सम्पूर्ण ज्ञान या आत्मज्ञान ( आपके प्रश्न भाव के अनुसार ) रखने वाला कोई महान योगी नहीं था । स्वयं श्रीकृष्ण भी नहीं । हाँ महाभारत युद्ध के दौरान स्वयं श्रीकृष्ण ( को निमित्त बनाकर ) पर जो आत्मदेव द्वारा ज्ञान उतरा था । वह आत्मज्ञान की झलक अवश्य था । बाकी महाभारत के बहुत बाद एक से एक दिग्गज शक्तियाँ समय समय पर अपना प्रभाव दिखाती रही हैं । लेकिन उन सबको एक ही तराजू में नहीं तौला जा सकता । उनके स्तर अलग अलग थे । आपको एक और आश्चर्य होगा कि इस समय प्रथ्वी पर विभिन्न मनुष्यों को आवेशित कर सभी दिग्गज शक्तियां अपना कार्य कर रही हैं । क्योंकि ये सनातन धर्म की पुनर्स्थापना का अदभुत समय है । द्वैत अद्वैत के विभिन्न स्तरों के अच्छे योगी हमेशा से रहे हैं । पर वो टीवी पर नहीं । गुप्त एकान्त स्थानों पर मिलते हैं । वो प्रवचन नहीं देते । बल्कि योग सूत्र बताते हैं । पर ऐसी महान दुर्लभ हस्तियों से मिलना अति भाग्य वालों को नसीब होता है । जिन्होंने पूर्व जन्म में इस हेतु पुण्य संचय किया हो ।
7 क्या सब कुछ पूर्व लिखित होता है । या ( हरेक संभव बृह्मांड की रचना होती है ) अर्थात हर एक जीव हर संभव रूप में होता है । जैसा कि कागभुसण्डि कहते हैं कि मैं अलग अलग बृह्मांड देख रहा हूँ । उनमें सभी के अलग अलग रूप हैं । और यही बात भौतिक विज्ञानं की शाखा क्वांटम भौतिकी कहती है कि हर एक कण अपने हर संभव पथ में गमन गमन करता चाहे । वो अति सूक्ष्म कण हो । या वृहद अर्थात हरेक संभव बृह्मांड की समान्तर रूप से रचना होती जाती है । इस बिंदु को शायद मैं पूर्ण रूप से समझा नहीं पा रहा हूँ । उसके लिए मुझे और शब्दों की आवश्यकता होगी । और बिंदु बड़ा हो जायेगा । आप अपनी समझ के अनुसार उत्तर दे दीजये ।
- आपके इस प्रश्न के उत्तर के लिये विस्त्रत वर्णन की आवश्यकता है । वैसे कहीं न कहीं मेरे लेखों में ये उत्तर आपको प्राप्त हो जायेगा । न होने पर फ़िर से पूछ लेना ।
8 बाबा रामदेव योग के क्षेत्र में कहाँ तक उपलब्धि रखते हैं ।
- रामदेव कुछ योगासन । और 3-4 योग क्रियायें । इससे ज्यादा नहीं जानते । पतंजलि के मुख्य ज्ञान से बाबा रामदेव का दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं है । धारणा ध्यान समाधि किस चिङिया का नाम है ? रामदेव को सपने में भी नहीं पता । रामदेव के नाम के साथ योगाचार्य ? शब्द का प्रयोग भी गलत है । उन्हें योगासन शिक्षक निसंदेह कहा जा सकता है ।
9 क्या धर्म ग्रंथों का परमात्मा और विज्ञानं का ब्लैक होल एक ही है । क्योंकि यदि धर्म और विज्ञानं के ज्ञान जोड़कर देखा जाये । तो दोनों एक ही बात कहते हैं कि इसका न कोई रूप है । न आकार । न ही कोई रंग । गीता में श्रीकृष्ण भगवान कहते हैं कि सभी मुझ में से उत्पन्न होते हैं । और मुझ ही में समाहित होते हैं । यही थ्योरी ब्लैक होल की भी है ।
- ब्लैक होल और परमात्मा का आपस में दूर दूर तक कोई मेल नहीं हैं । ब्लैक होल अंतरिक्ष में स्थित है । और परमात्मा सबसे परे । वह शाश्वत है । और तब भी था । जब कहीं कुछ नहीं था । बाकी ये बेबकूफ़ ही कहते हैं कि परमात्मा का न कोई रूप है । न रंग है । न आकार है । नाम रूप दोऊ अकथ कहानी । समझत सुखद न जात बखानी । वास्तव में ( आज या आदि सृष्टि के बाद से ) परमात्मा सगुण साकार और निर्गुण निराकार दोनों ही है । यहाँ बेहद सोचने वाली बात है । जिसका कोई रूप रंग आकार आदि कुछ भी नहीं है । फ़िर किस चीज को उन्होंने परमात्मा बताया । या कैसे निश्चित किया कि - ये ही मिस्टर परमात्मा है ? या फ़िर साक्षात्कार आदि भक्ति क्रियाओं में क्या प्रत्यक्ष होता है ? अधिकतर व्यवसायिक साधुओं की मानसिकता इस तरह की है । झूठा से झूठा मिला । हाँ जी हाँ जी होय । कान में कर दी कुर्र । तुम चेला हम गुर्र ।
गुरुजी शब्दों के इस्तेमाल में मुझसे जल्दी जल्दी में जो गलती हुई है । क्षमा करें ।
mukesh sharma ,alwar
प्रणाम गरु देव ! आपने कहा - प्रहलाद का नाम अवश्य सुना होगा । अपनी भक्ति के चलते इन दोनों को ही देवराज इन्द्र का पद और स्वर्ग लोक प्राप्त हुआ था । जिसमें अभी तक इन्द्र पद पर प्रहलाद था । अब उसका कार्यकाल समाप्त हो रहा है । उसे नीचे फ़ेंक दिया जायेगा । और उसकी जगह नया इन्द्र ध्रुव बनेगा । बस इस कार्य हेतु कार्यवाही जारी है । प्रथ्वी से जाने के बाद इतना समय ध्रुव ने दिव्य लोकों में ऐश्वर्य भोगते हुये गुजारा । आप इनके प्रथ्वी पर होने के कालखण्ड से अभी तक की समय गणना करते हुये अलौकिक रहस्यों के नये ज्ञान से परिचित हो सकते हैं । गंगा 1 महीने से कुछ ही पहले प्रथ्वी पर अपना शाप और उतरने के अन्य उद्देश्य पूरा कर वापस चली गयी
1 कृपया आप अपनी बात को विस्तार से समझायें । गंगा तो अभी भी बह रही है ।
- जैसे बहुत से राजाओं के राजमहल आज खण्डहर ( अवशेष ) के रूप में मौजूद हैं । पर वह राजा और उनका वैभवशाली राज्य समाप्त हो गया । तो उसका प्रभाव भी समाप्त हो गया । ताजा उदाहरण सद्दाम हुसैन का है । इसी उदाहरण से आप गंगा की बात समझ सकते हैं । गंगा में आज गंगा जैसा कुछ नहीं है । क्योंकि उसका कार्यकाल समाप्त हो चुका है । अब वह सिर्फ़ साधारण नदी का बहता पानी है । उसकी यौगिक शक्ति समाप्त हो चुकी है ।
2 आप कहते हैं कि शरीर छोड़ने के बाद यदि हमने योग की से महत्वपूर्ण अवस्था प्राप्त की है । तो हमें भोग के लिए हमें अप्सराए और अनेक पदार्थ मिलेंगे । मैं पूछना चाहता हूँ कि भौतिक शरीर के नष्ट होने के पश्चात उनका उपभोग कौन करता है ।
- जैसा कि मैंने ऊपर बताया कि अंतकरण रूपी सूक्ष्म शरीर पर ( मुक्त होने तक ) स्थिति अनुसार अनेक शरीर ( का आवरण ) पहनाये जाते हैं । आपने देव । सिद्ध । भगवान आदि जो भी पद ( स्थिति ) प्राप्त किया । वही शरीर सूक्ष्म शरीर के ढांचे पर पहना दिया जाता है । उदाहरण के लिये कोई व्यक्ति अपने पुण्य धर्म अनुसार देवता बनता है । तो शरीर छूटने के बाद मानसरोवर में उसको स्नान कराया जाता है । वही पर उसका शेष कलुषित आवरण धुल जाता है । और वह डुबकी के बाद ऊपर आता है । तो अपने नये दिव्य शरीर में जगमगा रहा होता है । प्राप्त स्थिति अनुसार यही भोग करता है ।
3 निर्मल बाबा के बारे में आपके क्या विचार है । ये कोई ठग है । आत्म प्रेरित है । या तत्व ज्ञानी ।
- मैंने नेट पर ही एक बहुत अच्छी कहावत देखी थी । जब तक मूर्ख अच्छी संख्या में मौजूद है । चतुर व्यक्ति बिना परिश्रम के मौज करता है । इसकी तो बात छोङो । मैं बहुत से प्रसिद्ध अन्य के बारे में बता रहा हूँ - ठगियन ने बात बिगाङी । धर वेश ठगे नर नारी ।
4 एक बार तत्व ज्ञान और आत्म ज्ञान और इससे सम्बंधित अन्य ज्ञान के बारे में विस्तार से बताईये ।
- इसको एक ही जगह एक ही बार में विस्तार से बता पाना सम्भव नहीं । लेकिन मैं अपने जीवनकाल में अनुभवजन्य वह रहस्य बताने की कोशिश करूँगा । जो इससे पहले ( उपलब्ध जानकारी में ) कोई भी न बता पाया हो । उस तरीके से बताऊँगा । जो कोई भी न बता पाया हो । और ऐसा अभी भी है । यदि आप फ़र्क कर सकें । और तुलनात्मक नजरिये से देखें तब ।
m.k sharma
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