10 सितंबर 2016

ध्यान बिन्दु

सुरति शब्द योग या सहज योग करने वाले ऋषियों मुनियों के लिये तथा सृष्टि रहस्य विज्ञान और आत्मज्ञान विज्ञान के शोधार्थियों, साधकों के लिये ध्यान यात्रा में घटने वाली प्रमुख वृतियों, सुर्तियों और घटनाओं, पढ़ाव आदि में ऐसी जानकारी युक्त विवरण न सिर्फ़ उन्हें सम्हलने की प्रेरणा देते हैं । बल्कि निरन्तर आगे बढ़ने को प्रोत्साहित भी करते हैं । अतः कबीर साहब की ‘भेदवानी’ शीर्षक के तहत यह सचित्र जानकारी ऐसे ही ध्यानार्थियों हेतु अधिकाधिक सरल तरीके से उपलब्ध कराने का हमारा तुच्छ प्रयास भर ही है । बाकी इससे किसको क्या लाभ मिला ? यह उस बन्दे और उसकी बन्दगी तथा साहेब कृपा पर निर्भर है ।
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इस विवरण का कृम नीचे से ऊपर की ओर है । अर्थात जब आप कंठ पर संयम करेंगे । तो प्रथम आद्या का स्थान और उसकी वर्तमान स्थिति और भूमिका से अनुभूत होंगे । अतः सही रूप में जानने/समझने/परखने हेतु नीचे से ऊपर की ओर पढ़ें ।

सत्त लोक (शंखों कोस ऊँचा)
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निर्वाण पद (सत्त पुरुष)
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बन्दीछोङ सतगुरु 
(अदल कबीर गद्दी) (5 शंख ऊँचाई) (16 सुतों के दीप)
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4 चकरी - धुन ।       8 चकरी - अनुरोध
3 चकरी - मुनिकर । 7 चकरी - बिनोद ।
2 चकरी - अगाध ।   6 चकरी - विलास
1 चकरी -  समाध ।  5 चकरी - रास ।  
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_/\_सत्य नगर_/\_
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7 सत्त सुन्न । सत भंडार (निःतत रचना)
6 सार सुन्न । सार भंडार 7 सत्त सुन्न । सत भंडार (निःतत रचना) 
5 अलील सुन्न । सतपुरुष (बन्दीवान)
4 अजोख सुन्न । शुद्ध ब्रह्म (आद्या का सृष्टि बीज लाना)
3 महासुन्न । महाकाल (आद्या को खाया)
2 सकल सुन्न । माया, निरंजन (अमर कोट की नकल) 
1 अभय सुन्न । आद्या
(बेहद के 7 सुन्न, ऊँचाई 7 शंख) (3 सुन्न तक काल क्षेत्र । फ़िर सत्त क्षेत्र )  
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तू सूरत नैन निहार । यह अंड के पारा है ।
तू हिरदै सोच विचार । यह देस हमारा है ।
पहिले ध्यान गुरन का धारो । सुरति निरति मन पवन चितारो ।
सुहेलना* धुन में नाम उचारो । तब सतगुरु लहो दीदारा है । (सहज)
सतगुरु दरस होइ जब भाई । वे दें तुमको नाम चिताई ।
सुरत सब्द दोउ भेद बताई । तब देखे अंड के पारा है ।
सतगुरु कृपा दृष्टि पहिचाना । अंड सिखर बेहद मैदाना ।
सहज दास तहँ रोपा थाना । जो अग्रदीप सरदारा है ।
सात सुन्न बेहद के माहीं । सात संख तिन की ऊंचाई ।
तीन सुन्न लों काल कहाई । आगे सत्त पसारा है ।
पिरथम अभय सुन्न है भाई । कन्या निकल यहाँ बाहर आई ।
जोग संतायन* पूछो वाही । मम दारा* वह भरतारा है । (कबीर, स्त्री)
दूजे सकल सुन्न कर गाई । माया सहित निरंजन राई ।
अमर कोट कै नकल बनाई । जिन अंड मधि रच्यो पसारा है ।
तीजे है महसुन्न सुखाली । महाकाल यहँ कन्या ग्रासी ।
जोग संतायन आये अविनासी । जिन गलनख छेद निकारा है ।
चौथे सुन्न अजोख कहाई । सुद्ध ब्रह्म पुरुष ध्यान समाई ।
आद्या यहँ बीजा ले आई । देखो दृष्टि पसारा है ।
पंचम सुन्न अलेल कहाई । तहँ अदली बन्दीवान रहाई ।
जिनका सतगुरु न्याव चुकाई । जहँ गादी अदली सारा है ।
षष्ठे सार सुन्न कहलाई । सार भंडार याही के माही ।
नीचे रचना जाहि रचाई । जा का सकल पसारा है ।
सतवें सत्त सुन्न कहलाई । सत भंडार याही के माही ।
निःतत रचना ताहि रचाई । जो सबहिन तें न्यारा है ।
सत सुन्न ऊपर सत की नगरी । बाट विहंगम बांकी डगरी ।
सो पहुंचे चाले बिन पग री । ऐसा खेल अपारा है ।
पहली चकरी समाध कहाई । जिन हंसन सतगुरु मति पाई ।
वेद भर्म सब दियो उङाई । तिरगुन तजि भये न्यारा है ।
दूजी चकरी अगाध कहाई । जिन सतगुरु संग द्रोह कराई ।
पीछे आनि गहे सरनाई । सो यहँ आन पधारा है ।
तीजी चकरी मुनिकर नामा । जिन मुनियन सतगुरु मति जाना ।
सो मुनियन यहँ आइ रहाना । करम भरम तजि डारा है ।
चौथी चकरी धुनि है भाई । जिन हंसन धुनि ध्यान लगाई ।
धुनि संग पहुँचे हमरे पाहीं । यह धुनि सबद मंझारा है ।
पंचम चकरी रास जो भाखी । अलमीना है तहँ मधि झांकी ।
लीला कोट अनंत वहाँ की । जहँ रास विलास अपारा है ।
षष्टम चकरी विलास कहाई । जिन सतगुरु संग प्रीति निबाही ।
छुटते देंह जगह यह पाई । फ़िर नहि भव अवतारा है ।
सतवीं चकरी बिनोद कहानो । कोटिन बंस गुरन तहँ जानो ।
कलि में बोध किया ज्यों भानो । अंधकार खोया ज्यों उजियारा है ।
अठवीं चकरी अनुरोध बखाना । तहाँ जुलहदी ताना ताना ।
जा का नाम कबीर बखाना । जो सब सन्तन सिर धारा है ।
ऐसी ऐसी सहस करोङी । ऊपर तले रची ज्यों पौङी* । (सीङी)
गादी अदली रही सिर मौरी । जहँ सतगुरु बन्दीछोरा है ।
अनुरोधी के ऊपर भाई । पद निर्बान के नीचे ताही ।
पाँच संख है याहि ऊँचाई । जहँ अदभुत ठाठ पसारा है ।
सोलह सुत हित दीप रचाई । सब सुत रहैं तासु के माहीं ।
गादी अदल कबीर यहाँ ही । जो सबहिन में सरदारा है ।
पद निरबान है अनंत अपारा । नूतन सूरत लोक सुधारा ।
सत्त पुरुष नूतन तन धारा । जो सतगुरु सन्तन सारा है ।
आगे सत्त लोक है भाई । संखन कोस तासु ऊँचाई ।
हीरा पन्ना लाल जङाई । जहँ अदभुत खेल अपारा है ।
बाग बगीचे खिली फ़ुलवारी । अमृत नहरें होहिं रही जारी ।
हंसा केलि करत तहँ भारी । जहँ अनहद घुरै अपारा है ।
ता मधि अधर सिंघासन गाजै । पुरुष सब्द तहाँ अधिक विराजै ।
कोटिन सूर रोम एक लाजे । ऐसा पुरुष दीदारा है ।  

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326