मैंने कई बार इसे दोहराया है कि आत्मा और परमात्मा (आत्मज्ञान) के बारे में सही, सटीक, प्रमाणिक और आरपार की जानकारी सरल शब्दों में चाहते हैं । तो फ़िर कबीर साहब के अतिरिक्त दूसरा विकल्प ही नही है । इस विषय पर उपलब्ध ज्यादातर वाणियां सिर्फ़ कबीर ज्ञान के आधार पर अपने शब्दों में बदल कर लिखी गयी हैं । जो कि थोङे भी गहन अध्ययनकर्ता को आसानी से गोचर होती है । अतः यदि वाकई ‘सत्यज्ञान की तलाश और प्राप्ति की चाह’ है । तो कबीर के बीजक साखी सबद रमैनी आदि के पदों का गहन अध्ययन करें ।
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मैंने प्रत्यक्ष और टीवी आदि माध्यमों में देखा है कि गुरु सदगुरु आदि उपाधि धारी भी बङे भाव के साथ इस तरफ़ मुङे जीव को स्पष्ट जानकारी नहीं देते । या कहिये स्वयं ही नहीं जानते । अतः जीव अपनी शिक्षा, मूलभूत जानकारी, परिवेश, संस्कार और धर्मभीरुता के चलते ज्ञान के बजाय और भी अधिक अज्ञान शिकंजे में जकङ जाता है ।
यद्यपि यह ज्ञान एक पूर्ण गुरु बिना लगभग असंभव ही है । परन्तु पिछले 20 वर्ष से अधिक समय से जिस रफ़्तार से सतगुरु अवतरित हुये । और जीवों का इस दिशा में तीवृ रुझान हुआ । उस दृष्टिकोण से कोई ज्ञान प्रकाश या लोगों के जीवन में सुख शान्ति सदाशयता देखने में नही आती ।
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मेरा प्रयास है । मुख्य और तकनीकी तथा आंतरिक स्थानों और स्थिति की सचित्र जानकारी सारगर्भित शब्दों में आम और जिज्ञासुओं को उपलब्ध करा सकूं । मैं इसको और भी सरल स्पष्ट करने हेतु विस्त्रत अर्थ व्याख्या कर सकता हूँ । परन्तु ध्यान रखिये - उधार का ज्ञान काम नही आता । अतः आपको खोजने समझने की मेहनत करनी ही होगी ।
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एक जीव को स्वतः पद । बुद्धि भ्रांति सो काल ।
काल होइ यह काल रचि । ता में भये बिहाल ।
बीहाले को मतो जो । देउ सकल बतलाय ।
जाते पारख प्रौढ़ लहि । जीव नष्ट नहि जाय ।
करि अनुमान जो शून्यभो । सूझै कतहूँ नाहि ।
आपु आप बिसरो जबै । तन विज्ञान कहि ताहि ।
ज्ञान भयो जाग्यो जबै । करि आपन अनुमान ।
प्रतिबिंबित झाईं लखै । साक्षी रूप बखान ।
साक्षी होय प्रकाश भो । महाकारण त्यहि नाम ।
मसुर प्रमाण सो बिंब भो । नील वरण घन श्याम ।
बढ़यो बिंब अध पर्व भो । शून्याकार स्वरूप ।
ताको कारण कहत हैं । महा अंधियारी कूप ।
कारण सों आकार भो । श्वेत अंगुष्ठ प्रमान ।
वेद शास्त्र सब कहत हैं । सूक्षम रूप बखान ।
सूक्ष्म रूप ते कर्म भो । कर्महि ते यह अस्थूल ।
परा जीव या रहट में । सहे घनेरी शूल ।
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संतौ षट प्रकार की देही ।
स्थूल सूक्ष्म कारण महँकारण केवल हंस कि लेही ।
साढ़े तीन हाथ परमाना । देह स्थूल बखानी ।
राता वर्ण बैखरी वाचा । जाग्रत अवस्था जानी । (राता = लाल)
रजोगुणी ओंकार मात्रुका । त्रिकुटी है अस्थाना ।
मुक्तिश्लोक प्रथम पद गायत्री । ब्रह्मा वेद बखाना ।
प्रथ्वी तत्व खेचरी मुद्रा । मग पपील घट कासा ।
क्षए निर्णय बङवाग्नि दशेंद्री । देव चर्तुदश वासा ।
और अहै ऋग्वेद बतायू । अर्द्ध शुन्नि संचारा ।
सत्यलोक विषय का अभिमानी । विषयानंद हंकारा ।
आदि अन्त औ मध्य शब्द । या लखै कोई बुधिवारा ।
कहै कबीर सुनो हो संतो । इति स्थूल शरीरा ।
6 प्रकार के शरीर - सूक्ष्म (महा) कारण (2)
6 प्रकार के शरीर - कैवल्य हंस (3) (क्लिक करें)
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मैंने प्रत्यक्ष और टीवी आदि माध्यमों में देखा है कि गुरु सदगुरु आदि उपाधि धारी भी बङे भाव के साथ इस तरफ़ मुङे जीव को स्पष्ट जानकारी नहीं देते । या कहिये स्वयं ही नहीं जानते । अतः जीव अपनी शिक्षा, मूलभूत जानकारी, परिवेश, संस्कार और धर्मभीरुता के चलते ज्ञान के बजाय और भी अधिक अज्ञान शिकंजे में जकङ जाता है ।
यद्यपि यह ज्ञान एक पूर्ण गुरु बिना लगभग असंभव ही है । परन्तु पिछले 20 वर्ष से अधिक समय से जिस रफ़्तार से सतगुरु अवतरित हुये । और जीवों का इस दिशा में तीवृ रुझान हुआ । उस दृष्टिकोण से कोई ज्ञान प्रकाश या लोगों के जीवन में सुख शान्ति सदाशयता देखने में नही आती ।
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मेरा प्रयास है । मुख्य और तकनीकी तथा आंतरिक स्थानों और स्थिति की सचित्र जानकारी सारगर्भित शब्दों में आम और जिज्ञासुओं को उपलब्ध करा सकूं । मैं इसको और भी सरल स्पष्ट करने हेतु विस्त्रत अर्थ व्याख्या कर सकता हूँ । परन्तु ध्यान रखिये - उधार का ज्ञान काम नही आता । अतः आपको खोजने समझने की मेहनत करनी ही होगी ।
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एक जीव को स्वतः पद । बुद्धि भ्रांति सो काल ।
काल होइ यह काल रचि । ता में भये बिहाल ।
बीहाले को मतो जो । देउ सकल बतलाय ।
जाते पारख प्रौढ़ लहि । जीव नष्ट नहि जाय ।
करि अनुमान जो शून्यभो । सूझै कतहूँ नाहि ।
आपु आप बिसरो जबै । तन विज्ञान कहि ताहि ।
ज्ञान भयो जाग्यो जबै । करि आपन अनुमान ।
प्रतिबिंबित झाईं लखै । साक्षी रूप बखान ।
साक्षी होय प्रकाश भो । महाकारण त्यहि नाम ।
मसुर प्रमाण सो बिंब भो । नील वरण घन श्याम ।
बढ़यो बिंब अध पर्व भो । शून्याकार स्वरूप ।
ताको कारण कहत हैं । महा अंधियारी कूप ।
कारण सों आकार भो । श्वेत अंगुष्ठ प्रमान ।
वेद शास्त्र सब कहत हैं । सूक्षम रूप बखान ।
सूक्ष्म रूप ते कर्म भो । कर्महि ते यह अस्थूल ।
परा जीव या रहट में । सहे घनेरी शूल ।
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संतौ षट प्रकार की देही ।
स्थूल सूक्ष्म कारण महँकारण केवल हंस कि लेही ।
साढ़े तीन हाथ परमाना । देह स्थूल बखानी ।
राता वर्ण बैखरी वाचा । जाग्रत अवस्था जानी । (राता = लाल)
रजोगुणी ओंकार मात्रुका । त्रिकुटी है अस्थाना ।
मुक्तिश्लोक प्रथम पद गायत्री । ब्रह्मा वेद बखाना ।
प्रथ्वी तत्व खेचरी मुद्रा । मग पपील घट कासा ।
क्षए निर्णय बङवाग्नि दशेंद्री । देव चर्तुदश वासा ।
और अहै ऋग्वेद बतायू । अर्द्ध शुन्नि संचारा ।
सत्यलोक विषय का अभिमानी । विषयानंद हंकारा ।
आदि अन्त औ मध्य शब्द । या लखै कोई बुधिवारा ।
कहै कबीर सुनो हो संतो । इति स्थूल शरीरा ।
6 प्रकार के शरीर - सूक्ष्म (महा) कारण (2)
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