यदि इस रचना का सही लाभ प्राप्त करना है तो कृपया बेहद ध्यान से पढ़ें । इसी उद्देश्य के तहत इस रूपक के मूल आदि के बारे में सब कुछ गोपनीय रखा है ।
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आज प्रातः लगभग 2 बजे के निकट असंप्रज्ञात समाधि के कैलाश से बासंती वायु का झोंका आया था । वह हर्षजनक शुभ समाचार के रूप में कृष्ण मुहर के साथ गंगाजल से लिखकर रवाना किया गया । आज सांयकाल रिमझिम रिमझिम वर्षा हो रही थी । राम के शुद्ध सतोगुणी मन्दिर के आंगन में अग्निकुण्ड के चतुर्दिश नारायण मदनमोहन और तुलाराम बैठे नित्य नियमानुसार उच्च स्वर से अन्तःकरण से आंसू बहाते हुये यह वेदमन्त्र बारबार गा रहे हैं ।
तं त्वा भग प्रविशान स्वाहा । स मा भग प्रविश स्वाहा ।
तस्मिन सहस्र शाखे निभगाहं । त्वयि मृजे स्वाहा ।
- हे परमात्मा तू हमें अपने स्वरूप में प्रविष्ट हो जाने दे । तू हमारे रोम रोम में प्रविष्ट हो जा । दुख देने वाली भेद बुद्धि हजारों जोखिमों में डालती है । मैं तेरे स्वरूप में मलमल कर नहाता हूँ । और यह मैल धोकर उतारता हूँ ।
फ़िर ॐ ॐ की ध्वनि परमानन्द के स्वर में कुछ देर होती रही । अपने आप आँखें मिंच गयी और सब प्रणव में लीन । बहुत देर यह शान्ति की अवस्था रही । इसके बाद गीता - क्षर और अक्षर दोनों से मैं श्रेष्ठ हूँ ।
इस समय सब अपनी अपनी कुटिया में हैं । राम एकान्त बैठा है । पूर्णिमा की चाँदनी चटक रही है ।
यहाँ से बादलों के टुकङे, घर की फ़ुलवारी और सामना पर्वत ज्योत्सान में स्नान किये प्रतीत हो रहे हैं । गंगा का मधुर गायन कर्ण कुहरों में पवित्रता भर रहा है ।
गंगाजी क्या गा रही है ।
जाग मोहन जाग रेवल गयी ।
उठो जागो, खाओ माखन, फ़ेर डारों रई ।
रात भारी गयी सारी, भोर अब तो भई ।
चिङी पंछी बुलावत है, खेल उन से सही ।
- प्यारे मोहन जागो । अविद्या की नींद बहुत सोये । मैं बलिहार, अब बैठे हो जाओ । होशियार बनो । संसार रूपी गाय का मक्खन खा लो (अपने भीतर प्रविष्ट कर लो । अथवा यों कहो कि श्रुति (वेद) रूपी कामधेनु का मक्खन (महावाक्य) मुँह में डाल लो । यह शक्ति (सत) भरा श्वेत श्वेत (ज्ञान चित) मीठा मीठा (आनन्दस्वरूप) मक्खन (तत्व ज्ञान) चख लो । बङा बल आयेगा । शक्ति भर जायेगी ।
गोवर्धन (भारी कठिनाईयां) उठाना बांये हाथ का कर्तव्य नहीं, चटली उंगली का खेल हो जायेगा ।
हे दामोदर ! कमर की डोरियों रस्सियों (देश, काल, वस्तु, परिच्छेद) को तोङना कुछ बात ही न रहेगी ।
कालिय नाग के समस्त फ़णों (मन, अहंकार की समस्त वृतियां) को पैरों तले कुचलना सरल हो जायेगा । यह माखन (वेदान्त) सब अवयवों (कूल्हों) को पुष्ट और हड्डियों को लोहे के समान कठोर और मुखमंडल को दीप्तमान करने वाला है । फ़ुफ़्फ़ुसों (फ़ेफ़ङों) में बल भर देगा । जादू भरी बांसुरी बजाते बजाते कभी न थकोगे ।
वह देखो नन्हा कृष्ण जाग पङा ।
ऊँ ऊँ ऊँ ऊँ नही ऊँ ! ऊँ !! ऊँ !!!
मैया (सतगुण प्रवाह) ने बिसूरते हुये अधरों को तनिक माखन लगा दिया (सोऽहं) मुँह में आहुति पङ गयी (शिवोऽहं) पच पच करते हुये माखन खाने लगे (ब्रह्मास्मि)
मैया कुछ देर अपने हाथ से मक्खन खिलाकर अपने धंधे में लगती है ।
नयी सदी आरम्भ होती है । संकल्प की रई पङी है । काल (समय) का नेजा (रई की रस्सी) है । कभी इधर खिंच आता है (दिन) कभी उधर खिंच जाता है (रात) बिलोना आरम्भ हो गया । रढ़ रढ़ रढ़ आरम्भ हो गयी ।
ऐ माता ! अब इस कृष्ण को माखन की चाट लग गयी ।
छुटती नही ये जालिम मुँह को लगी हुयी ।
माखन भूख (अहंग्रह उपासना) घनेरी री मैया ! माखन भूख घनेरी ।
ऐ प्रकृति (दुन्या) यह माखन चोर तुझे कब चैन से बिलोने देगा । रई तोङेगा और नाम रूप की मटकी फ़ोङेगा ।
रात बीत चुकी । पौ फ़टने लगी । प्रकाश का प्रभात है । पक्षी कबूतर मयूर आदिक तो सब जाग पङे । कृष्ण अभी सोया ही पङा है । कुछ हर्ज नही । पक्षी आदि तो सदैव पहले ही जागा करते हैं ।
ऐ मोहन ! यह पक्षी जाग जाग कर तुझे जगाया चाहते हैं । कल की तरह (प्राचीनकाल अनुसार) अब भी तेरे हाथों दाना चावल तिल आदि खायेंगे ।
ऐ प्रेम भरे बाल गोपाल, तेरे साथ खेलने को यह पक्षी जमा हो रहे हैं । तेरे मनो मोद के सब सामान तैयार हैं । उठ खङा हो जा ।
चिङिया चूं चूं कर रही है । कौये कां कां छेङ रहे हैं । मोर प्यां प्यां कूक रहे हैं (कोई किसी बाहरी कला के पीछे पङा है । कोई किसी शारीरिक सुख में अङा है । कोई स्थूल विज्ञान में उलझा है । यह सब इन्द्रियों तक पहुँचने वाली रागनियां जारी है)
हे भगवन ! ये सब केवल तेरे जगाने के समान है । नींद में भी विचित्र आनन्द था । पर अब तो खूब सो लिये । ताजह हो चुके । मचलते क्यों हो तुम भी गाओ ।
यह देखो तुम्हारी बांसुरी कौन चुरा ले गया ?
नही नही तुम्हारे ही पास है ।
अहा हा हा ! मोहन ने सूर्य के समान आँखे खोली । अधरों पर बांसुरी रखी और ह्रदय में समा जाने वाली आत्मिक ध्वनि वायु के पर्दे पर सवार हो चारो ओर गूंजने लगी । समस्त गोकुल (संसार) में फ़ैलने लगी । आकाश की खबर लाने लगी । जय जय जय !
अब चूं चूं प्यां प्यां कां कां किसको भाने की है ?
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प्रश्न - रहस्य विधा के इस रूपक में - मोहन या कृष्ण = ?
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आज प्रातः लगभग 2 बजे के निकट असंप्रज्ञात समाधि के कैलाश से बासंती वायु का झोंका आया था । वह हर्षजनक शुभ समाचार के रूप में कृष्ण मुहर के साथ गंगाजल से लिखकर रवाना किया गया । आज सांयकाल रिमझिम रिमझिम वर्षा हो रही थी । राम के शुद्ध सतोगुणी मन्दिर के आंगन में अग्निकुण्ड के चतुर्दिश नारायण मदनमोहन और तुलाराम बैठे नित्य नियमानुसार उच्च स्वर से अन्तःकरण से आंसू बहाते हुये यह वेदमन्त्र बारबार गा रहे हैं ।
तं त्वा भग प्रविशान स्वाहा । स मा भग प्रविश स्वाहा ।
तस्मिन सहस्र शाखे निभगाहं । त्वयि मृजे स्वाहा ।
- हे परमात्मा तू हमें अपने स्वरूप में प्रविष्ट हो जाने दे । तू हमारे रोम रोम में प्रविष्ट हो जा । दुख देने वाली भेद बुद्धि हजारों जोखिमों में डालती है । मैं तेरे स्वरूप में मलमल कर नहाता हूँ । और यह मैल धोकर उतारता हूँ ।
फ़िर ॐ ॐ की ध्वनि परमानन्द के स्वर में कुछ देर होती रही । अपने आप आँखें मिंच गयी और सब प्रणव में लीन । बहुत देर यह शान्ति की अवस्था रही । इसके बाद गीता - क्षर और अक्षर दोनों से मैं श्रेष्ठ हूँ ।
इस समय सब अपनी अपनी कुटिया में हैं । राम एकान्त बैठा है । पूर्णिमा की चाँदनी चटक रही है ।
यहाँ से बादलों के टुकङे, घर की फ़ुलवारी और सामना पर्वत ज्योत्सान में स्नान किये प्रतीत हो रहे हैं । गंगा का मधुर गायन कर्ण कुहरों में पवित्रता भर रहा है ।
गंगाजी क्या गा रही है ।
जाग मोहन जाग रेवल गयी ।
उठो जागो, खाओ माखन, फ़ेर डारों रई ।
रात भारी गयी सारी, भोर अब तो भई ।
चिङी पंछी बुलावत है, खेल उन से सही ।
- प्यारे मोहन जागो । अविद्या की नींद बहुत सोये । मैं बलिहार, अब बैठे हो जाओ । होशियार बनो । संसार रूपी गाय का मक्खन खा लो (अपने भीतर प्रविष्ट कर लो । अथवा यों कहो कि श्रुति (वेद) रूपी कामधेनु का मक्खन (महावाक्य) मुँह में डाल लो । यह शक्ति (सत) भरा श्वेत श्वेत (ज्ञान चित) मीठा मीठा (आनन्दस्वरूप) मक्खन (तत्व ज्ञान) चख लो । बङा बल आयेगा । शक्ति भर जायेगी ।
गोवर्धन (भारी कठिनाईयां) उठाना बांये हाथ का कर्तव्य नहीं, चटली उंगली का खेल हो जायेगा ।
हे दामोदर ! कमर की डोरियों रस्सियों (देश, काल, वस्तु, परिच्छेद) को तोङना कुछ बात ही न रहेगी ।
कालिय नाग के समस्त फ़णों (मन, अहंकार की समस्त वृतियां) को पैरों तले कुचलना सरल हो जायेगा । यह माखन (वेदान्त) सब अवयवों (कूल्हों) को पुष्ट और हड्डियों को लोहे के समान कठोर और मुखमंडल को दीप्तमान करने वाला है । फ़ुफ़्फ़ुसों (फ़ेफ़ङों) में बल भर देगा । जादू भरी बांसुरी बजाते बजाते कभी न थकोगे ।
वह देखो नन्हा कृष्ण जाग पङा ।
ऊँ ऊँ ऊँ ऊँ नही ऊँ ! ऊँ !! ऊँ !!!
मैया (सतगुण प्रवाह) ने बिसूरते हुये अधरों को तनिक माखन लगा दिया (सोऽहं) मुँह में आहुति पङ गयी (शिवोऽहं) पच पच करते हुये माखन खाने लगे (ब्रह्मास्मि)
मैया कुछ देर अपने हाथ से मक्खन खिलाकर अपने धंधे में लगती है ।
नयी सदी आरम्भ होती है । संकल्प की रई पङी है । काल (समय) का नेजा (रई की रस्सी) है । कभी इधर खिंच आता है (दिन) कभी उधर खिंच जाता है (रात) बिलोना आरम्भ हो गया । रढ़ रढ़ रढ़ आरम्भ हो गयी ।
ऐ माता ! अब इस कृष्ण को माखन की चाट लग गयी ।
छुटती नही ये जालिम मुँह को लगी हुयी ।
माखन भूख (अहंग्रह उपासना) घनेरी री मैया ! माखन भूख घनेरी ।
ऐ प्रकृति (दुन्या) यह माखन चोर तुझे कब चैन से बिलोने देगा । रई तोङेगा और नाम रूप की मटकी फ़ोङेगा ।
रात बीत चुकी । पौ फ़टने लगी । प्रकाश का प्रभात है । पक्षी कबूतर मयूर आदिक तो सब जाग पङे । कृष्ण अभी सोया ही पङा है । कुछ हर्ज नही । पक्षी आदि तो सदैव पहले ही जागा करते हैं ।
ऐ मोहन ! यह पक्षी जाग जाग कर तुझे जगाया चाहते हैं । कल की तरह (प्राचीनकाल अनुसार) अब भी तेरे हाथों दाना चावल तिल आदि खायेंगे ।
ऐ प्रेम भरे बाल गोपाल, तेरे साथ खेलने को यह पक्षी जमा हो रहे हैं । तेरे मनो मोद के सब सामान तैयार हैं । उठ खङा हो जा ।
चिङिया चूं चूं कर रही है । कौये कां कां छेङ रहे हैं । मोर प्यां प्यां कूक रहे हैं (कोई किसी बाहरी कला के पीछे पङा है । कोई किसी शारीरिक सुख में अङा है । कोई स्थूल विज्ञान में उलझा है । यह सब इन्द्रियों तक पहुँचने वाली रागनियां जारी है)
हे भगवन ! ये सब केवल तेरे जगाने के समान है । नींद में भी विचित्र आनन्द था । पर अब तो खूब सो लिये । ताजह हो चुके । मचलते क्यों हो तुम भी गाओ ।
यह देखो तुम्हारी बांसुरी कौन चुरा ले गया ?
नही नही तुम्हारे ही पास है ।
अहा हा हा ! मोहन ने सूर्य के समान आँखे खोली । अधरों पर बांसुरी रखी और ह्रदय में समा जाने वाली आत्मिक ध्वनि वायु के पर्दे पर सवार हो चारो ओर गूंजने लगी । समस्त गोकुल (संसार) में फ़ैलने लगी । आकाश की खबर लाने लगी । जय जय जय !
अब चूं चूं प्यां प्यां कां कां किसको भाने की है ?
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प्रश्न - रहस्य विधा के इस रूपक में - मोहन या कृष्ण = ?
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