शिवानन्द मौरो लरिका । अरु हैगो बाप ।
दोऊ जामैं एक संग । दोऊ आपहि आप ।
बादि कोई थिति नहि । और नाहि लोइ ।
बेटा नहि बाप कोइ । झगरौ न होइ ।
लरिका = पुत्र
(इसका अर्थ इस चित्र में भी छिपा है । वैसे पद भी सरल है)
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तब कुछ अन्य कमेंटस के साथ किन्ही ‘अनीता नेगी’ का निम्न कमेंट पोस्ट पर हुआ ।
Aadrniya..pranam
Kripya meri ek shanka ka nivaran kiziyega. Jab main khuli aakhon se dhyan karti hu. Bilkul aisi hi aakriti dhikhti hai. Jo gol gol ghumti bhi hai. Kripya bataiyega ye aakriti ka kya arth hai.? Aapki ati kripa rahegi
मेरा उत्तर -
ऐसी ही या इस तरह की मिलती जुलती रंगीन आकृति आपकी ध्यान में पहुंच और अचेतन कारण (वासना) पर निर्भर करती है । अतः यह स्थूल या सूक्ष्म (शरीर) से लेकर कारण और फ़िर सूक्ष्म प्रकृति के ‘कारण’ की भी हो सकती है ।
- लेकिन अगर यह गोल घूमती या कोई अन्य आन्दोलित क्रियात्मक है । तो यह अच्छा संकेत हैं । क्योंकि यह ध्यान उर्जा (चेतना) के सबल होने का लक्षण हैं ।
- वस्तुतः यह बहुत ठीक भी नहीं । क्योंकि आपके ध्यान से उत्पन्न उर्जा आगे मार्ग या दिशा न होने के कारण एक दायरे या कुछ बङे दायरे में अटक रहती है ।
- खुली आँखों का अपलक ध्यान सरल सुगम हो जाता है । इससे थिरता होनी आसान रहती है ।
- क्योंकि आपने सिर्फ़ थोङा ही विवरण दिया । उससे इतना ही बताया जा सकता है ।
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पुनः प्रति प्रतिक्रिया के रूप में अनीता नेगी की जिज्ञासा -
Dhyanwad. Ye aakriti Bilkul inhi do rango ki.. Gahre andhere men khuli aankhon se dhyan par dikhti hai.. us ke pahle white aur sunhare... Bindu kan ekaththa hote hain. jo badlon ki tarah hote hain. Phir.. Ye sab galaxy ki jaise ghumte hai... Uske bad.. Chahe Aankhen band karo Ya Khuli. Koi fark nahi padta.. Dono hi dasha men ye ek saman dikhte hai.
Manyvar. Kripya Marg darshan Diziyega.
मेरा उत्तर -
यद्यपि यह कुछ हास्यास्पद सा लगता है । जबकि बङे बङे यौगिक उपलब्धियों के सहज दावे करने वाले बङे बङे मंडल, महामंडल विद कमंडल और बङे बङे ऋषी मूनी विद चिलम एण्ड धूनी अभी वर्तमान में इस धराधाम पर अवतरित हैं ।
लेकिन मेरे लम्बे साधुई जीवन में ऐसी जिज्ञासा और सत्य सरल वचन लेकर आने वाले हजारों में से महज दो चार साधक ही आये । जिनके वचन निर्दोष और यथा उपलब्धि के तल से उत्पन्न थे ।
अनीता की इस जिज्ञासा को पूर्ण सार्वजनिक रूपेण प्रस्तुत करने का कारण था - उनको ध्यान अवस्था में खुली और बन्द आँखों से समान दृश्यात्मक अनुभूतियां । जिसको सन्तों की भाषा में अन्दर बाहर एक होना कहा जाता है ।
इससे पूर्व सिर्फ़ एक विधवा और अधेङ आयु स्त्री ने ऐसा अनुभव मुझसे कहा । उनको अनीता से थोङा अधिक खुली आँखों से ‘कारण संस्कार’ या ‘मायिक विघ्न’ दिखते थे । सरल शब्दों में अलौकिक या सूक्ष्म पदार्थ, अस्तित्व आदि खुली आँखों से सहज ही दिखना ।
वैसे इससे भी बङी बङी असत्य उपलब्धियां गिनाने वाले भी मिले । पर वे महज मिथ्यावादी ही थे ।
अब अनीता की 2nd जिज्ञासा (ऊपर रोमन में) पर बात - ये आकृति बिलकुल इन्हीं दो रंगों (पोस्ट का चित्र देखें) की है । गहरे अंधेरे में खुली आँखों से ध्यान पर दिखती है । उसके पहले सफ़ेद और सुनहरे बिन्दु कण इकठ्ठा होते हैं । जो बादलों की तरह होते हैं । फ़िर ये सब गेलेक्सी के जैसे घूमते हैं । उसके बाद, चाहे आँखें बन्द करो या खुली । कोई फ़र्क नहीं पङता । दोनों ही दशा में ये एक समान दिखते हैं ।
समाधान - आकाशीय विद्युत जैसे चमकीले सफ़ेद के अतिरिक्त सभी सात रंग त्रिगुण अंतःकरण में ध्यान के समय जुङी या पूर्व की किन्तु उस समय प्रभावी वासना से दिखते हैं । जैसे क्लाइडोस्कोप या प्रिज्म सिर्फ़ धूप (प्रकाश) के सौजन्य से सप्तरंग की झिलमिल या बहुकला दृश्यों का निर्माण करते हैं ।
- वास्तव में यह सिद्ध त्राटक की लगभग 50% एकाग्रता है । जिसके कारण अंधेरे पटल की आवश्यकता होती है । पूर्ण सिद्धता में अंधेरा भी आवश्यक नहीं होता ।
- पूर्व में सफ़ेद और सुनहरे बिन्दु का एकत्रीकरण होना, ध्यान का केन्द्रबिन्दुत होना और फ़िर एकाग्र हो जाने से है । इनका बादल रूप विचारों के अन्तर्द्वन्दीय संयोजन को दर्शाता है । अर्थात अभी अन्तःकरण निशंक नही है (क्योंकि आपको आगे क्या कैसे, जैसा कुछ ज्ञात नही, यही बादलों की छाया बनती है)
- अब आपकी इस नयी घटना के प्रति तीवृ जिज्ञासा और लौ से उत्पन्न हुयी ध्यान उर्जा उत्पन्न दृश्य पदार्थों को बल देती है । और दृश्य या पदार्थ (गेलेक्सी घूमने के समान) गतिशील हो उठता है । क्योंकि सुरति आगे कहाँ कैसे जाये ? इसके बारे में गुरु, मार्ग और बोध नही है ।
- क्योंकि यह लगभग सिद्ध त्राटक और क्रियायोग के जैसा मिश्रण हो जाता है । अतः यह मस्तिष्क की शून्य स्थिति (शून्य ध्यान) को उत्पन्न करता है । अतः आखें खुली या बन्द (क्योंकि मूल में तो आँख 1 ही है) दोनों स्थिति में समान दिखता है ।
निराकरण - वास्तव में आपके पास साधारण अष्टांग योग से आगे का गुरु नही है । जब गुरु मिल जायेगा । तो सुरति सिर्फ़ गुण+उर्जा के दायरे से निकलकर (गुरु अनुसार) लक्ष्य या अनन्त की ओर जाने लगेगी ।
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