मुझे लगता है कि ‘6 शरीर प्रकार’ की यह कबीरवाणी और इसके साथ प्रकाशित चित्रों का आपने सजगता और गम्भीरता से अध्ययन किया है । तो कोई कारण नहीं कि आप आदि सृष्टि, हंस से जीव होना और अज्ञानता के कारण कर्मचक्र (रहट डोरी) में फ़ंसकर घोर कष्ट उठाना आदि स्थितियों को सरलता से न समझ सके हों ।
जब आप इतना जान लेते हैं । तो फ़िर इस सबको तल पर जानने और अन्दर प्रविष्टि हेतु एक सक्षम मार्गदर्शक, गुरु से मिलने भर की आवश्यकता शेष रह जाती है । जो यदि पहुँचा हुआ है । तो फ़िर आत्मा से परमात्मा, जीव से ब्रह्म की यात्रा तुलनात्मक रूप से आसान ही है ।
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संतौ केवल देह बखाना ।
केवल सकल देह का साक्षी । भमर गुफ़ा अस्थाना ।
निराकाश औ लोक निराश्रय । निर्णय ज्ञान बसेखा ।
सूक्ष्म वेद है उनमुन मुद्रा । उनमुन वाणी लेखा ।
ब्रह्मानन्द कही हंकारा । ब्रह्मज्ञान को माना ।
पूरण बोध अवस्था कहिये । ज्योति स्वरूपी नाना ।
पुण्य गिरी अरु चारु मात्रुका । निरंजन अभिमानी ।
परमारथ पंचम पद गायत्री । परामुक्ति पहिचानी ।
सदाशीव औ मारग सिखा है । लहै सन्त मत धीरा ।
कालेतीत कला सम्पूरण । केवल कहै कबीरा ।
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संतौ सुनो हंस तन ब्याना ।
अवरण वरण रूप नहि रेखा । ज्ञान रहित विज्ञाना ।
नहि उपजै नहि बिनसै कबहू । नहि आवै नहि जाही ।
इच्छ अनिच्छ न दृष्ट अदृष्टी । नहि बाहर नहि माही ।
मैं तू रहित न करता भोगता । नही मान अपमाना ।
नही ब्रह्म जीव न माया । ज्यों का त्यों वह जाना ।
मन बुद्धि गुन इन्द्रिय नहि जाना । अलख अकह निर्बाना ।
अकल अनीह अनादि अभेदा । निगम नीत फ़िर नाना ।
तत्व रहित रवि चन्द्र न तारा । नहि देवी नहि देवा ।
स्वयं सिद्धि परकाशक सोई । नहि स्वामी नहि सेवा ।
हंस देह विज्ञान भाव यह । सकल बासना त्यागे ।
नहि आगे नहि पाछे कोई । निज प्रकाश में पागे ।
निज प्रकाश में आप अपनपौ । भूलि भये विज्ञानी ।
उनमत बाल पिशाच मूक जङ । दशा पाँच यह लानी ।
खोये आप अपुनपौ सरबस । निज स्वरूप नहि जाने ।
फ़िरि केवल महाकारण कारण । सूक्षम स्थूल समाने ।
स्थूल सूक्ष्म कारण महाकारण । केवल पुनि विज्ञाना ।
भये नष्ट ये हेरफ़ेर में । कतौं नही कल्याना ।
कहे कबीर सुनो हो संतौ । खोज करो गुरु ऐसा ।
ज्यहि ते आप अपुनपौ जानो । मेटो खटका रैसा ।
जब आप इतना जान लेते हैं । तो फ़िर इस सबको तल पर जानने और अन्दर प्रविष्टि हेतु एक सक्षम मार्गदर्शक, गुरु से मिलने भर की आवश्यकता शेष रह जाती है । जो यदि पहुँचा हुआ है । तो फ़िर आत्मा से परमात्मा, जीव से ब्रह्म की यात्रा तुलनात्मक रूप से आसान ही है ।
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संतौ केवल देह बखाना ।
केवल सकल देह का साक्षी । भमर गुफ़ा अस्थाना ।
निराकाश औ लोक निराश्रय । निर्णय ज्ञान बसेखा ।
सूक्ष्म वेद है उनमुन मुद्रा । उनमुन वाणी लेखा ।
ब्रह्मानन्द कही हंकारा । ब्रह्मज्ञान को माना ।
पूरण बोध अवस्था कहिये । ज्योति स्वरूपी नाना ।
पुण्य गिरी अरु चारु मात्रुका । निरंजन अभिमानी ।
परमारथ पंचम पद गायत्री । परामुक्ति पहिचानी ।
सदाशीव औ मारग सिखा है । लहै सन्त मत धीरा ।
कालेतीत कला सम्पूरण । केवल कहै कबीरा ।
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संतौ सुनो हंस तन ब्याना ।
अवरण वरण रूप नहि रेखा । ज्ञान रहित विज्ञाना ।
नहि उपजै नहि बिनसै कबहू । नहि आवै नहि जाही ।
इच्छ अनिच्छ न दृष्ट अदृष्टी । नहि बाहर नहि माही ।
मैं तू रहित न करता भोगता । नही मान अपमाना ।
नही ब्रह्म जीव न माया । ज्यों का त्यों वह जाना ।
मन बुद्धि गुन इन्द्रिय नहि जाना । अलख अकह निर्बाना ।
अकल अनीह अनादि अभेदा । निगम नीत फ़िर नाना ।
तत्व रहित रवि चन्द्र न तारा । नहि देवी नहि देवा ।
स्वयं सिद्धि परकाशक सोई । नहि स्वामी नहि सेवा ।
हंस देह विज्ञान भाव यह । सकल बासना त्यागे ।
नहि आगे नहि पाछे कोई । निज प्रकाश में पागे ।
निज प्रकाश में आप अपनपौ । भूलि भये विज्ञानी ।
उनमत बाल पिशाच मूक जङ । दशा पाँच यह लानी ।
खोये आप अपुनपौ सरबस । निज स्वरूप नहि जाने ।
फ़िरि केवल महाकारण कारण । सूक्षम स्थूल समाने ।
स्थूल सूक्ष्म कारण महाकारण । केवल पुनि विज्ञाना ।
भये नष्ट ये हेरफ़ेर में । कतौं नही कल्याना ।
कहे कबीर सुनो हो संतौ । खोज करो गुरु ऐसा ।
ज्यहि ते आप अपुनपौ जानो । मेटो खटका रैसा ।
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राम राम
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