15 दिसंबर 2017

62 किताबें 47 mb में

सन्तमत और महाभारत आदि धार्मिक ग्रन्थों की सरल सहज भाषा में जानकारी।
63 किताबें, कुल 100 mb साइज में।
सिर्फ़ अभिलाष साहब की जीवनी 42.1 mb में है, ये जीवन दर्पन (राम साहब) के नाम से पेज में सबसे नीचे 11 नम्बर पर है।
यानी बाकी 62 किताबें 47 mb में।
इन 63 में 4 किताबें home पेज पर ‘पारख पत्रिका’ के लिंक के रूप में हैं।
स्पष्ट और बेहतरीन पेज गुणवत्ता।
फ़ी डाउनलोड का डायरेक्ट लिंक!
डाउनलोड लिंक साइट का ही, वायरस आदि का खतरा नहीं।
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तो अगर धार्मिक जानकारी का विशाल खजाना सिर्फ़ 47 mb में पाना चाहते हैं तो लिंक पर जायें।

http://www.kabirparakh.com/library.htm

06 दिसंबर 2017

2018 से 2022 तक

आने वाले बड़े भूकम्प के लिए भी तैयार रहें।
इसी सप्ताह, बाली में ज्वालामुखी विस्फोट भी हो चुका तथा केलीफोर्निया के जंगलों में बड़ी आग लग गयी।
पिछले कुछ पोस्टों में मैंने लिखा था बड़े भूकम्प के पहले दुनियां को आग एवं ज्वालामुखी विस्फोट का सामना करना पड़ेगा।

डिग्री का जिक्र करते हुए लिखा था कि 30 से 36.40 डिग्री हिमालय क्षेत्र में बड़ा भूकम्प आएगा, आज उत्तरांचल में आया भूकम्प 30.71 डिग्री latitude में आया है,
बहुत बड़ा भूकम्प भी इसी डिग्री मध्य आएगा। 

2018 में पृथ्वी पर महाविनाश होगा। 

अब इस तरह के न्यूज़ के क्षेत्रों से भी आ रहे हैं कि 2018 विनाशकारी होगा।

2017 का दिसंबर माह चल रहा है।
मेरे अनुसार 2018 का अंतिम गणित 03 दिसंबर 2017 से प्रभाव में आ गया है।
अब यह नहीं कहूंगा सतर्क रहें, अब सब कुछ प्रकृति करेगी।

मार्च 2018 तक एक चिंगारी अथवा एक बड़ा झटका 2022 तक कष्ट देता रहेग।

आज रुद्रप्रयाग दिल्ली एवं अन्य राज्यों में आए भूकंप के समाचार को न्यूज चैनलों ने प्रमुखता से प्रसारित किया है।
- नासा के अध्ययन के मुताबिक वर्ष 2018 में पृथ्वी पर बहुत ही विनाशकारी भूकंप आएंगे। 
(आज तक चैनल)

द्वारा -
(कालसूत्रभिषेकम)
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EM signals on satellite relayed for the week supports the stress rise in the Indian subcontinent wgiin as well as global sensitive zone.
Our apprehension estimates for this week that is 5-15 will have one six and two middle size.
On which today one 5.5 Mb occured in Uttrakhand as expected as foreshock.
We must not ignore the preparation of major sized in next one month in the region This is still Not serious alert but primary informative notice to undertake better data acquisition in the region.

द्वारा -
Umesh Prasad Verma
Member state Innovative Council

08 अक्टूबर 2017

साधु या ग्रहस्थ?

1 - So-ham kya hai, So-hang kya hai, Ho-hang kya hai? 
उत्तर - सही शब्द सोऽहंग ही है । सोऽहम प्रचलित अशुद्ध लोकवाणी (और अपभ्रंश) रूप है ।
होऽहंग जैसा कुछ नहीं है ।
पर जिन सन्तों ने भजन आदि भक्ति काव्य का निर्माण किया, उन्होंने भाव के अनुसार वोऽहम, कोऽहम, जोऽहम आदि शब्द भी स्थिति अनुसार लिखे हैं ।

2 - So-hang aap ki nazron men yani hans-diksha.
उत्तर - सोऽहंग (की हंस-दीक्षा में सोऽहंग) पलट कर ‘हं(ग)ऽसो’ होता है । 
इसमें ‘ग’ मूक हो जाता है क्योंकि ये ठहराव लेता है इसलिये गऽ..ऽ रूपी कंपन खत्म होता है ।
सोऽहंग काग (कौआ) वृति है और हंऽसो हंस वृति है ।

So-hang ka hindi bhasha men kya matlab hai?
उत्तर - सोऽहंग = वहीऽमैं (यानी अं-हंकार व्यक्त होना, मैं का बोध, जाग्रति आदि)

3 - Kya is se bhi upar koi diksha hai ya phir ye shuruaat hai?
उत्तर - कृमशः सोऽहंग (हंस-दीक्षा), समाधि दीक्षा, शब्दनाद (परमहंस-दीक्षा), अणु दीक्षा, आकर्षण (शक्ति-दीक्षा) सारशब्द (सारशब्द-दीक्षा)
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बाह्य और देह रूप से हंस, परमहंस और समाधि दीक्षा दी जाती है ।
अणु-दीक्षा किसी किसी पात्र शिष्य को ही गुरू देता है ।
शक्ति और सारशब्द दीक्षा अंतरगुरू देता है लेकिन शरीर गुरू भी आदेशित करता है ।
‘शक्ति’ और ‘सारशब्द’ परम दुर्लभ दीक्षायें हैं इसका पात्र बनना ‘आग का दरिया’ डूब कर पार करने जैसा है ।

4 - Jab aap kaal, maya, kabir aur sat-purush se mile to un se kya baat hui aapki?
उत्तर - सभी तरह की बात हुयी, कभी चाय नाश्ता, खानपान, नृत्यगान आदि विलास ।
इसके अलावा काम, क्रोध, लोभ, मोह के प्रपंच और डराना, धमकाना तथा भ्रमित करना आदि ।
और कभी अपने-अपने क्षेत्र और नियम के अनुसार समझौते की भी ।
ये काल, माया से थी ।
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कबीर और सत-पुरुष से ज्ञान, विज्ञान, नियम और सृष्टि रहस्य आदि पर चर्चा ।

5 - Kya aap sat-purush se bhi aage gaye hain?
उत्तर - हाँ, अनेकों बार

6 - Kya ye sabhi aap ko manushya roop men dikhai dete hain?
उत्तर - कृमशः मनुष्य, तत्व, प्रकाश, चुम्बक, शक्ति, वायु, शब्द और बोध रूप आदि में ।
सिर्फ़ मनुष्य रूप में दिखाई देना, साधक की सबसे स्थूल और कमजोर स्थिति है ।

7 - maine suna hai kaal ka chehra bahut bhyanak hota hai aur is ke hajaron bhujayen hain, Kya ye sahi hai?
उत्तर - गलत सुना है । वह सामान्य कदकाठी, सात फ़ुट लम्बा और औसत शरीर वाला है ।
हाँ, जो पढ़ सुनकर कल्पना बना लेते हैं उन्हें कैसा भी दिख सकता है ।

8 - Jab aap kaal se milte ho. wo apko darata nahi hai kya?
उत्तर - मुझे तो नहीं डराता । वह अपने स्वभाव के अनुसार आचरण करता है ।
ऊपर जो डराने, धमकाने की बात है वह व्यक्तिगत (मुझे) नहीं बल्कि स्थितियों को लेकर है ।
जैसे किसी व्यक्ति को किसी बात को लेकर डराना ।

9 - Main aur important sawal, kya aap ashram men rahte hain ya alag ho gyen hain?
उत्तर - मैं हमेशा मुक्त रूप से रहता हूँ इसलिये न जुङा हूँ और न अलग हूँ ।
वैसे ये Main और important कैसे और क्यों हुआ, मेरी समझ से बाहर है ।

10 - Kaam, krodh, moh, lobh ke bare men aap ka kya kahna hai kyon ki ye keval hamare hi shatru nahi balki ye to kaal, maya, kabir ke bhi baap nikle.
dehkiye men unhen prove karta hoon kaise.
(a) Jab kabir aur kaal ki ladai hui to krodh un dono par havi tha. jis ki vajah se dono men ladai hui.
(b) Kaal ne maya ko hawas k shikar banaya yani kaal par kaam havi hua.
(c) Isi tarah sat-puruush ne bhi krodh men aakar kaal ko satlok se bahar nikala to ab aap ye batayen kya ye un se bhi badi saktiya nhi hain.
उत्तर - ये सिर्फ़ स्थिति अनुसार उठने वाले भाव हैं, कोई शक्ति आदि नहीं ।
भाव ही कारण बीजों का निर्माण करते हैं । भाव और स्वभाव से ही सृष्टि संचालित है ।
विरोधी भाव से ही हलचल और नये पदार्थों का सृजन होता है ।


11 - Kaal ne aur kitne jagah par logo ko phansa rakha hai?
उत्तर - काल अपने आदि स्वभाव के अनुसार ही आचरण करता है । उसने किसी को नहीं फ़ंसा रखा । लोग स्वेच्छा से लालचवश खुद फ़ंसे रहते हैं ।

12 - Kaal ne aise kitni prithviyan banai hain?
उत्तर - असंख्य! प्रथ्वी और लोकों का निर्माण विनाश निरन्तर होता ही रहता है ।

13 - Maine kahi se read kiya, shayad geeta ya phir kabir-vani se ki sahi mayno men jo real tatva-darshi sant hoga. vo teen prakar ki diksha (naam) dekar mukti dilayega.

उत्तर - अलग अलग गुरू अपनी-अपनी अलग ही परम्परा बनाते हैं ।
ये गुरू के विधान पर निर्भर है ।
वैसे इस तरह का सभी विवरण सांकेतिक और प्रारम्भिक तौर पर होता है ।
अतः उससे कोई भी निश्चित धारणा बना लेना गलत है ।
यह भी कहा है -
कोटि जन्म का पंथ था, पल में दिया मिलाय ।

14 - Aap bhavishya-vani bhi karte hain kya. kyon ki aap ne blog par post kar rakha hai. jis men kafi to galat hi nikli. bura mat manna guru ji. main keval isliye poochh raha hoon ki jo sadhna aap de rahe hain. us se bhavishyavani bhi ki ja sakti hai?
agar ki ja sakti hai to wo galat kyon ho rahi hai. kyon ki aap to trikal-darshi sadhna men safal ho hi chuken hain na.
उत्तर - मैं कभी भविष्यवाणी नहीं करता । संकेत और भविष्यवाणी में बहुत फ़र्क है ।
ब्लाग पर भविष्यवाणी से सम्बन्धित जो तथ्य हैं ।
वे कुछ ज्योतिषीय गणनाओं पर आधारित, मगर अन्य लोगों के हैं ।
इसी प्रकार कई लोगों ने अपनी विधाओं द्वारा भविष्य का पूर्व आंकलन किया है ।
उनमें जो हो चुके, ऐसे कई सच निकले ।
साधना (में छठी इन्द्रिय जाग्रत होने) से पूर्वाभास होते हैं पर सबको नहीं ।
मैं त्रिकालदर्शी नहीं हूँ और कोई साधना आदि नहीं देता ।

15 - Kya aap ko gussa nahi aata aur aata hai to use control kaise karte hain?
उत्तर - किसी चीज को नियन्त्रण नहीं किया जाता ।
अपनी ‘पदार्थिक मात्रा, क्षमता’ क्षय होते ही वह स्वयं समाप्त हो जाती है ।
मुझे गुस्सा किस बात पर और क्यों आयेगा?
ऐसी कोई चीज अनुभव में नहीं आती ।
स्थिति अनुसार भाव-अभिव्यक्ति क्रोध नहीं है ।
क्रोध विपरीत का होना है और मुझे कुछ भी विपरीत नही है । 

16 - Kya aap grahasth jeevan vyatit kar rahe hain aur kar rahe hain to kaise?
उत्तर - ग्रहस्थ का मतलब पत्नी, बच्चों से है तो नही कर रहे
घर में निवास करने से है तो कर रहे हैं ।
आश्रम भी साधुओं का घर होता है । उसमें आटा, चूल्हा, चक्की, सुई धागा आदि सब होता है ।
बल्कि आजकल तो ग्रहस्थों से ज्यादा होता है ।
कुछ आश्रम में (स्त्री साधु) बाई नहीं होतीं लेकिन कुछ आश्रम में ऐसी बाईयां भी होती है कि सभी ग्रहस्थ, ग्रहस्थी छोङकर संन्यासी बनने को लालायित हो उठते हैं ।
और बहुत से बन भी जाते हैं ।

17 - Kya grahasth jeevan men bhi sadhna ki ja sakti hai kyon ki vahan to patni aur bachche taang adaenge?
उत्तर - ग्रहस्थ जीवन में साधना नहीं सिर्फ़ कुछ हद तक भक्ति की जा सकती है
पर यदि साधक पूर्वजन्म का चला हुआ है और धन, स्वास्थय, परिवार आदि स्तरों पर अङचन रहित है ।
तो वह इसके अपवाद ग्रहस्थ धर्म में भी पूर्ण साधना कर सकता है ।
इस साधना में सद-गुरू मिलना अधिक महत्वपूर्ण है ।

18 - Yadi aap ki sat-purush se baat hoti hai to kya kabhi aap ne un se ye nahi poochha ki tum ne ye kaal, Maya, Jeev, Kabir 16 sut kyon banaye. kya karan tha in ke pichhe? agar main hota to jarur poochta.
उत्तर - वही प्रश्न पूछा जाता है जिसके बारे में ज्ञात न हो ।
जब वह बात स्वयं ही पता हो फ़िर पूछने का कोई कारण ही नहीं ।
आदिमूल में सर्वप्रथम स्फ़ुरणा से लेकर, उसके बहुत बाद तक, सृष्टि कई चरणों में कई तरह से सृजित हुयी । उसी क्रम में बहुत स्थितियों, उपाधियों, विभूतियों और बीजमूल का सृजन हुआ ।
प्रत्येक बीस हजार वर्ष में सृष्टि एक नये रंग रूप, नवीन उपाधियों और सब कुछ नये के साथ अवतरित हो जाती है ।
बस कुछ नैसर्गिक चीजें आदि-अनादि और मौलिक हैं ।

19 - Kya so-hang se upar bhi koi naam hai?
उत्तर - हाँ, अनेक हैं पर जीव मूल यही सोऽहंग है ।

20 - Sach batayen aap ko kahan tak santushti hui, is marg par.
उत्तर - पूर्णतः! वैसे एक स्थिति ‘वह’ है जहाँ सन्तुष्टि असन्तुष्टि दोनों समाप्त हो जाती है ।
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प्रश्नकर्ता - राजशेखर, हरियाणा

29 सितंबर 2017

धर्मदास तोहे लाख दुहाई

धर्म सम्बन्धी अनेकानेक वर्णन, सिर्फ़ उसकी अनेकों स्थितियों के बारे में हैं ।
इसलिये किसी को भी ‘अन्तिम’ और ‘निश्चित’ तौर पर मान्यता नहीं दी जा सकती ।
जगत का सत्य, शाश्वत सत्य से बहुत अलग है
और ‘वास्तविक सत्य’ शब्दों से नहीं कहा जा सकता ।
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नमस्ते ! मैं रूपेश दिल्ली से हूँ ।
क्या आप मेरे प्रश्नों के answer दे सकते हैं ?
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1 - सदगुरू कौन होता है ?

उत्तर - सत्य दो प्रकार से कहा जाता है ।
एक - जागतिक सत्य, दूसरा - शाश्वत सत्य
इसी शाश्वत सत्य (परमात्मा) से जो शिष्य का एकीकरण करा दे । उसको सदगुरू कहते हैं ।
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2 - ब्रह्मांड के ऊपर कितने खण्ड हैं ?

उत्तर - प्रश्न का आशय स्पष्ट नहीं है, पर लाखों, और असंख्य, और एक भी नहीं
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3 - आत्मा को सत-पुरुष के दर्शन कहाँ होते हैं ?

उत्तर - शून्य-शिखर और ‘मूल-सुरत’ में पहुँच कर ।
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4 - क्या हम सतपुरुष के पास पहुंच कर ‘महाप्रलय’ से बच सकते हैं ?

उत्तर - महाप्रलय में तो खुद सतपुरुष भी नहीं बचता । महाप्रलय के अलावा भी कुछ स्थितियाँ हैं जिनमें ‘सतपुरुष’ पानी के बुलबुले के समान गायब (अस्तित्वहीन) हो जाता है ।
वास्तव में महाप्रलय के भी अनेक प्रकार, अनेक स्तर हैं ।
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5 - मैंने सुना है, सबसे ऊँचे खंड के द्वारपाल हंस होते हैं क्या ये सच है ?

उत्तर - कालखण्ड से ऊपर की सभी स्थितियाँ हंस ही हैं पर उनकी स्थिति और उपाधियां भिन्न हैं ।
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6 - सबसे ऊँचे खंड में कौन सी धुन आ रही है ?

उत्तर - सार धुन, गूंज, जो मूल धुन है ।
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राजीव जी, सबसे पहले आपको नमस्कार
Sir मेरे मन में कई तरह के सवाल हैं ।
और उन्हें पूछने के लिये मैं काफ़ी दिन से (try) कोशिश कर रहा हूँ ।
(Rajesh Shekhar)
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1 -  आपने अपने ब्लाग पर जो ‘अनुराग सागर’ upload किया है वह आपकी खुद की व्याख्या है या कहीं से link उठाकर upload की है ।

उत्तर - अनुराग सागर जैसे कुछ भक्ति काव्यों का पद्य इतना सरल और (अक्सर) सामान्य अर्थ वाला है कि उनके लिये व्याख्या जैसा शब्द नहीं कहा जा सकता ।
पद्य को गद्य में रूपान्तरित करना व्याख्या नहीं होता ।
उदाहरण -
प्रातःकाल उठकर रघुनाथा, गुरु पितु मात नवावहि माथा ।
- रामचन्द्र प्रातःकाल उठकर गुरू और माता, पिता को प्रणाम करते थे ।
ये पद्य का गद्य रूपान्तरण है व्याख्या नहीं ।
हाँ, उसके शब्द और भाव संयोजन मेरा ही है ।
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2 - आपके acording काल साकार है या निराकार ?

उत्तर - दोनों ।
वास्तव में सृष्टि की प्रत्येक चीज ही निराकार, साकार दोनों है । अणु से विराट तक ।
जब मनुष्य बेहद गहरी नींद में होता है तब वह निराकार तो क्या, कुछ भी नहीं होता लेकिन फ़िर चेतना में लौटते ही, पहले अणु, फ़िर कारण, फ़िर सूक्ष्म और फ़िर प्रकट हो जाता है ।
जाग्रत बोध, निद्रा बोध ये दो मुख्य स्थितियां हैं ।
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3 - द्रौपदी किसका अवतार थी ?

उत्तर - एक समय की इन्द्राणी शची का, और पाँचो पांडव इसी शची के पति इन्द्र के तेज के पाँच अंश थे । जो गौतम नारी अहिल्या के साथ छल करने के कारण गौतम के शापवश पाँच अंशों में विभक्त हो गया था ।
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4 - आप सुमिरन मार्ग देते हो या वही मार्ग, यानी ढाई अक्षर का नाम जो कबीर ने धर्मदास जी को दिया ?

उत्तर - मैं तो कोई भी मार्ग या नाम आदि नहीं देता न ही शिष्य बनाता हूँ ।
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5 - अगर वो ही है तो आपके पास कहाँ से आया ?

उत्तर - आसमान से ।
वैसे कबीर ने यह भी कहा है -
शब्द कहो तो शब्दहू नाहीं । शब्द पङा माया की छाहीं ।       
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6 - क्योंकि कबीर ने तो धर्मदास के अलावा यह मार्ग किसी को दिया ही नहीं ।

उत्तर - यह कबीर और धर्मदास का आपस का (व्यक्तिगत) मामला है ।
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7 - उनके एक दोहे - धर्मदास तोहे लाख दुहाई, के अनुसार आपके पास कब और कहाँ से आया ?

उत्तर - किसी स्त्री ने एक स्त्री को पक्की कसम दिलाकर ‘एक बात’ कही कि कभी किसी को मत बताना ।
उसने दूसरी से यही बात फ़िर ‘पक्की कसम’ दिलाकर कि किसी को मत बताना, बता दी ।
दूसरी ने तीसरी को, और फ़िर चौथी..सातवीं..हजारवीं ।
लेकिन अपनी समझ में उनमें से किसी ने बात को लीक नहीं किया था ।
संभव है, यह लोई की वजह से हुआ हो ?
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मुझे यह बताने की कृपा करें ताकि मेरे मन को सन्तुष्टि हो ।

28 सितंबर 2017

बोल - दो मीठे बोल !

एक चुटकला है ।
There is a joke.

पहला व्यक्ति - मैं ट को हमेशा ट बोलता हूँ ।
First person - I always speak T to T
दूसरा व्यक्ति - तो इसमें क्या है, ट को सब ट ही बोलते हैं, ठ नहीं ।
second person - so what is in it, speaks everyone T, T, not Th.
पहला व्यक्ति - लगटा है, बाट टुम्हारी समझ में नहीं आयी ।
First person - Looks like, you did not understand the point.

यह चुटकला हिन्दी भाषी तुरन्त समझ जायेगा ।
This joke, that speaks Hindi will be understood instantly.
पर अंग्रेजी भाषी, इसका बहुत भावार्थ करने पर ही समझेगा ।
But the speaker of English will understand only after making a lot of sense.
यह लेख इसी पर आधारित है 
This article is based on this
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जिस तरह हिन्दी भाषा में अनुमानतः संस्कृत के ‘चार अक्षर’ नहीं हैं ।
Just as in Hindi language, there are not ‘four characters’ of Sanskrit.
इसी तरह संस्कृत में वैदिक-भाषा का लयात्मक उच्चारण नहीं ।
And likewise, not the Rhythmic pronunciation of Vedic-language in Sanskrit.
जो कि अब विलुप्त ‘आर्य-भाषा’ में था ।
Which was in an extinct 'Arya-language'.
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उसी प्रकार अंग्रेजी में त, ख, घ, छ, झ, ठ, ध, त्र, ज्ञ, भ अक्षर और उनसे बनने वाले शब्द नहीं हैं ।
Similarly, there are no words and ‘Akshar’ in English त, ख, घ, छ, झ, भ, ठ, ध, त्र, ज्ञ,
जब शब्द नहीं हैं तो उच्चारण कैसे और किसका होगा? 
When words are not there, how will the pronunciation?
हाँ, घ (gh) से ghost और अन्य 1-2 शब्द हो सकते हैं ।
Yes, घ (gh) can be ghost and other 1-2 words.
ठ (Th) से शब्दों का उच्चारण थ (th) करते हैं या नहीं ।
थ (th) do not pronounce words from ठ (Th)

मुझे पता नहीं ।
I do not know.
जैसे thunder!
Like thunder!
ये थंडर है या ठंडर, मेरे लिये स्पष्ट नहीं ।
It's थंडर or ठंडर, not clear to me.
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ध (dh) तो है ही नहीं ।
ध (dh) is not there.
त्र - जब त भी नहीं है तो त्र कैसे होगा ?
When does not it त, how will it be त्र ?
ज्ञ - भी नहीं है पर go आदि शब्दों के रूप में ‘ग’ का उच्चारण है ।
There is no word ज्ञ but it is pronounced 'ग' as the word 'go'.
भ - भी नहीं है ।
भ - It's not even there.
भ से कुछ शब्द शब्दकोष में हैं ।
There are some words in the dictionary, word भ
पर वे भंग (bhang) भिस्ती (bhisti) भूटान (bhutan) आदि हिन्दी शब्द हैं ।
but they are Hindi words like Bhang (भंग, भांग) bhisti (भिस्ती) Bhutan (भूटान)
अंग्रेजी बोलने वाले भ (bh) का उच्चारण करते हैं या नहीं ।
English speakers speak भ (bh) or not.
ये मेरे लिये अज्ञात है ।
This is unknown to me.

25 सितंबर 2017

आर्मूर की गुफ़ा का रहस्य

 सिद्धों की पहाड़ी !
hills of Siddhas !
चतुर्थ आयाम !
Fourth dimensionFourth dimension !
विश्व के सबसे रहस्यमय शिव-मन्दिर की गुफाएं !
Caves of the world's most mysterious Shiva temple !
जिसमें है #worm_hole या #star_gate
Containing #worm_hole or #star_gate
यानी इस पृथ्वी से दूसरे लोक और दूसरे आयामों में पहुँचने का शार्टकट !
That is the shortcut to reach from other planet and dimensions from Earth !
आर्मूर गाँव तेलंगाना के निजामाबाद शहर से पच्चीस किमी दूरी पर स्थित है !
Armur village is located 25 km from Nizamabad city of Telangana state !
यह गाँव एक ऊँची पहाड़ी श्रृंखला की तलहटी में बसा है ।
This village is situated in the foothills of a high mountain range.
इस गाँव को ‘आर्मूर’ कहने के पीछे कारण था ।
That is why this village name is Armor.
क्योंकि तेलुगू में आरु = छः (6) और मूरु= तीन (3) मिलाने से संयोग नौ (9) बनता है ।
Because in Telugu, aaru = six (6) and mouru = three (3) combines to coincide with nine (9).
इन पहाङियों पर नौ सिद्धों ने तप किया था ।
Nine Sidhdhas had done penance on these hills.
इसीलिए इस गाँव का नाम ‘आर्मूर’ और इन पहाङों का नाम ‘नवनाथों की पहाड़ी’ या ‘सिद्धों की पहाड़ी’ कहा जाता है ।
That is why the name of this village is called as ‘Aramur’ and the name of these hills is called the ‘hills of Navnathas’ or the ‘hills of Siddhas’.
इन पहाङों पर असंख्य गुफाएँ हैं ।
There are innumerable caves on these mountains.

और उन्ही गुफाओं में से एक में एक अत्यंत प्राचीन शिव मन्दिर है ।
And in one of those caves, there is a very ancient Shiva temple.
जहाँ पर गुरू गोरखनाथ, मत्स्येन्द्रनाथ आदि नौ ऋषियों ने तप किया ।
Where nine Gurus like Gorakhnath, Matsyendranath, have done penance.
इससे जुङी एक सत्यकथा है ।
There is a true story related to it.
लगभग चालीस साल पहले ! 
Almost forty years ago!
गाँव का एक किसान गायों के लिए घास लाने उस पहाड़ी पर चढ़ गया ।
A farmer of the village brought the grass for the cows to climb the hill.
और घास काट कर एक-दो बड़े गठ्ठर बाँध दिए ।
And cutting off the grass, tied one-two big bundle.
उस पहाड़ी पर कई गुफाएं हैं ।
There are many caves on that hill.
पास की गुफा से उसे कुछ साधू दिखाई दिए । 
He saw some monks from the nearby cave.
जैसे ही वह किसान उस गुफा के पास पहुँचा ।
As soon as the farmer approached that cave.
साधुओं ने उसे प्रसाद ? देने के लिये गुफा के अन्दर बुलाया ।
The sadhus called him inside the cave to give him offerings

(prasad - Blessed food, Sacrament) - a devotional offering made to a god, typically consisting of food that is later shared among devotees.)

किसान साधुओं के साथ गुफा के अन्दर चला गया ।
The farmer went inside the cave with sadhus.
वहाँ पर उसने कई दिव्य साधुओं को देखा और बड़ा शिव मन्दिर भी देखा ।
There he saw many divine saints and saw a big Shiva temple too.
कुछ देर शिव भजन करने के बाद,
After reciting Shiva for some time,
(लगभग एक घण्टा बाद) उसे याद आया कि उसे तो गायों के लिए घास लेकर पहाड़ी के नीचे जाना है ।
(After about an hour) he remembered that he had to go under the mountain by taking grass for cows.
फिर क्या था, वह तुरन्त गुफा से बाहर की ओर जाने लगा ।
So he immediately started going out of the cave.
एक-दो साधु उसे गुफा के बाहर तक छोड़ने आये ।
One-two sadhus came to leave him outside the cave.
जैसे ही वह गुफा से बाहर निकाला तो उसके घास के गठ्ठर गायब थे ।
As soon as he got out of the cave, the bundle of grass were missing.
वह सुबह आया था और अब दोपहर हो चुकी थी । 
He had come in the morning and now it was noon.
वह प्यासा था ।
He was thirsty .
इसलिए वह बिना घास के नीचे गांव में अपने घर की ओर चल पड़ा ।
So he walked towards his house in the village without grass.
रास्ते में उसे सब कुछ नया-नया सा लग रहा था ।
On the way, everything seemed a bit new.
आश्चर्य से अपना घर ढूँढ कर जैसे ही अंदर गया ।
Just as soon as he went in search of own house.
वह हैरान रह गया । 
He was shocked.
उसके और उसकी पत्नी की बड़ी से फोटो पर एक माला चढ़ी हुई थी । 
There was a rosary on the large photo of him and his wife.
उस घर में सब नए लोग दिखाई दे रहे थे ।
All new people were seen in that house.
एक पल के लिए तो उसने समझा कि किसी अन्य के घर में आ गया है ।
For a moment, he understood that he came at another's house.
लेकिन एक सत्तर साल के बूढ़े ने उसे पहचान लिया और पापा कहकर गले लगा लिया । 
But a seventy-year old man recognized him and embraced him as a father.
उस समय किसान की आयु लगभग तीस-पैंतीस साल थी । 
At that time the farmer's age was thirty-five years old.
लेकिन उसका बेटा अब सत्तर साल का हो चुका था
But his son was now seventy years old.
यानी कि उस किसान के गुफा में बिताए हुए एक-डेढ़ घण्टे में इस पृथ्वी के पचास साल बीत गए ।
That means fifty years of this earth passed in one and a half hours spent in that farmer's cave.
इस परिवार के पोते पढ़पोते अभी भी उसी गाँव में रहते हैं ।
The grandchildren of this family still live in the same village.
और इन पहाङियों के नीचे एक भू-गर्भ जल की धारा भी बहती है ।
And the stream of water in the underground water also flows under these hills.
जिसे स्थानीय वासी ‘पाताल-गंगा’ कहते हैं ।
The locals are called 'Patal-Ganga'.
जिसका पानी पीने के लिए देश-विदेशों से लोग आते हैं ।
People who come from country and abroad to drink water.
हमेशा बहुत लम्बी लाइन रहती है ।
There is always a long line to drink water.
इस पाताल गंगा का पानी पीने से ह्रदय रोग से लेकर कैंसर जैसे असाध्य रोग भी ठीक हो जाते हैं ।
Due to drinking this water from the Gangas, it is also cured of diseases like heart disease and cancer.
मुझे लगभग हर एक-दो महीने में किसी कार्यवश यदि आर्मूर जाना पड़ जाए ।
I have to go to Armor if I have any work in almost every one or two months.
तो मैं उन पहाङियों पर गुफाओं में शिव-मन्दिर जरूर जाता हूँ ।
then I must go to Shiva temple in caves on those hills.
कहा जाता है वह नौ-सिद्ध अभी भी उन पहाङियों में संचार करते हैं । 
It says that the nine-sidhdhas still communicate in those hills.
और उन पहाङियों से कैलाश से लेकर अतल, सुतल, तलातल, पाताल से लेकर अनेक लोकों के लिए गुप्त रास्ते हैं ।
And from those hills, there are secret paths ranging from Kailash to Atal, Sutal, Talatal, Patal and many other planet.
जिन्हें मैं आज भी खोज रहा हूँ ।
I'm still searching those.
(नरेश आर्य)

23 सितंबर 2017

सावधान ! Alert

Please Be Alert..
कृपया सावधान रहें.. 
According to Kaalsutrabhishekam,
कालसूत्राभिषेकम के अनुसार
Instantly worst earthquake could (99.9%) hit in Himalayan region with areas mentioned in my book and earlier posts.
बहुत जल्द हिमालय क्षेत्र एवं अन्य क्षेत्रों में (जिनका वर्णन मैंने पिछले पोस्ट में किया था) भयावह भूकंप आने वाला है ।
जिसकी संभावना 99.9% है
It will cover more than 1000 km, which can destroy everything’s.
यह भूकंप अपने केन्द्र से 1000 किमी तक सब कुछ समाप्त कर देगा ।
Before worst earthquake in Earth there will be three big earthquakes will hit in triangle area and world will suffer by fire or volcano.
इस भयावह भूकंप के पूर्व त्रिकोण क्षेत्र में बड़े भूकंप आयेंगे ।
तथा उस विनाशकारी भूकंप के पूर्व विश्व के लोगों को भयावह आग अथवा ज्वालामुखी विस्फ़ोट का सामना करना पड़ेगा ।
As I wrote in a previous post that a big earthquake will hit like 8.5 to 9.5 mag, when Jupiter transit in virgo.
(11 August 2016 to 12th September 2017)
पिछले पोस्टों में मैंने लिखा था कि जब कन्या राशि में वृहस्पति रहेंगे ।
तो 8.5 से 9.5 रिक्टर का भूकंप आएगा ।
यह समय 11 अगस्त 2016 से 12 सितम्बर 2017 के मध्य का था ।
(8.5 से ऊपर का भूकंप 25 से 50 वर्ष में एक-दो बार आता है)
As predicted, 8.4 mag Earthquake hits in Mexico Sea on 8th September 2017, thereafter constant earthquake occurred in maxico.
अतः गणना के अनुसार 08 सितम्बर 2017 को मेक्सिको में 8.4 रिक्टर का भूकंप आया ।
उसके बाद मेक्सिको में लगातार भूकंप आता गया ।
(पिछले 15 दिनों में मेक्सिको में 4 रिक्टर से ऊपर करीब 100 से ज्यादा भूकंप आ चुका है)

Because transit of era with we are destroying mountain, rainforests, nature; So Now Nature is taking revenge on its own way like earthquake, tsunami, floods, and eruptions of volcano.
यह समय चक्र ही है जिसे आप महायुग का अन्त-काल कह सकते हैं ।
तथा वो विनाश जो स्वयं मानव ने किया है ।
जिसका बदला प्रकृति भूकंप, सुनामी, बाढ़, ज्वालामुखी विस्फ़ोट द्वारा ले रही है ।
(आज से 15-20 वर्ष पूर्व इतना भूकंप नहीं आता था 7 रिक्टर से ऊपर का ।
जितना अब प्रत्येक सप्ताह आ रहा है)
In previous post, I wrote before election of USA that Mr. Donald trump will last President of United states.
अमेरिकी चुनाव के पूर्व मैंने लिखा था कि श्री डोनाल्ड ट्रम्प संयुक्त राष्ट्र के अंतिम राष्ट्रपति होंगे । (वह समय अब आ ही गया है ।
(वर्तमान में दुनिया दो भागों में बँट गयी है ।
कई देशों में तो प्रतिदिन विनाश हो रहा है ।
वहाँ इंसान तो दूर पशु-पक्षी की जिन्दगी नरक बन चुकी है, हजारों बच्चों को मारा जा रहा है)
Now we are facing Third World War,
विश्व आज तृतीय विश्वयुद्ध को झेल रहा है ।
we all are going to be gone within few months by war and natural disasters.
सभी देशों के पास परमाणु हथियार होने के कारण खुलकर युद्ध नहीं हो पा रहा है ।
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किन्तु मेरे अनुसार मार्च 2018 तक विश्व की अधिकांश जनसंख्या समाप्त हो जायेगी ।
कारण विश्वयुद्ध एवं प्राकृतिक आपदा होगी ।
12 अक्तूबर तक तो मेरे गणित का पूर्ण प्रमाण मिल जाएगा ।
बहुत जल्द हमारा देश भारत सहित पड़ोसी में भी विनाशकारी घटनाएँ घटेंगी ।
प्राकृतिक आपदा, युद्ध, गृह-युद्ध के कारण जीवों का महाविनाश होगा ।
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एक सन्देश भारतीय योग गुरु एवं धार्मिक गुरु के नाम !
आपकी कुण्डली के अनुसार अत्यन्त अशुभ समय आरम्भ हो चुका है ।
कृपया प्रत्येक क्षेत्र में विशेष सावधानी बरतें ।
विशेष अशुभ प्रभाव 17 सितम्बर 2017 से ही आरम्भ हो चुका है ।
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एक भारतीय नेता (पुरुष/स्त्री) को बहुत जल्द सत्ता से हाथ धोना पड़ेगा ।
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Important points from Kaalsutrabhishekam, that published on 8th October 2015, (ISBN 9781329589070).
इन समस्त घटनाओं का जिक्र मैंने अपनी पुस्तक में किया था ।
जो 08 अक्तूबर 2015 को प्रकाशित हुई थी ।
(जिसे आप मेरे वेबसाइट ‘कालसूत्राभिषेकम डॉट कॉम’ से डाउनलोड कर सकते हैं)

As per “Kaalsutrabhishekam” calculations we are in the second phase of Kaliyuga. ‘कालसूत्रभिषेकम’ की गणना के अनुसार हम कलियुग के दूसरे चरण में हैं ।
As per the calculations, 5795 years are remaining for the completion of Kalyuga. गणना के अनुसार, कलयुग के पूरा होने के लिए 579 5 साल शेष हैं ।
By March 21st, 2018, when the earth will re-incline itself at 23.27 degrees,
21 मार्च, 2018 तक, जब पृथ्वी 23.27 डिग्री पर खुद को फिर से बढ़ेगी ।
the situation for Pralaya/Mahapralaya will arise.
प्रलय/महाप्रलय की स्थिति पैदा हो जाएगी।
This condition will prevail till the very end of this particular cycle of Mahayuga.
महायोग के इस विशेष चक्र के अंत तक इस स्थिति का अस्तित्व होगा।
It is predicated that in the mere time interval of three years, there will be massive destruction on planet earth. यह अनुमान लगाया जाता है कि तीन वर्षों के अंतराल में ग्रह पृथ्वी पर बड़े पैमाने पर विनाश होगा।
In the year 2015, geographical changes in the position of earth will start taking place. वर्ष 2015 में, पृथ्वी की स्थिति में भौगोलिक परिवर्तन होने लगेगा।
Natural disasters, earthquakes will be an everyday occurrence.
प्राकृतिक आपदाओं, भूकंप एक हर रोज़ घटना होगी।
The situation will worsen all the more in the year 2016.
स्थिति वर्ष 2016 में और अधिक खराब हो जाएगी
A highly significant change in the geographic position of earth will occur by March 21st 2018.
पृथ्वी की भौगोलिक स्थिति में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन 21 मार्च 2018 तक होगा
As the earth proceeds to the inclination position of 23.27 degrees, vibrations in the crust of the earth will increase accordingly. जैसा कि पृथ्वी 23.27 डिग्री के झुकाव की स्थिति से आय करता है, पृथ्वी की परत में कंपन तदनुसार बढ़ेगी।
At 23.27 degrees the possibility of a highly destructive Pralaya will arise.
23.27 डिग्री पर एक उच्च विनाशकारी प्रलय की संभावना पैदा होगी।
Every passing day will see changes in the weather condition, rivers will change their course and rampant changes in the position of North Pole and South Pole will occur in the course of these three years.
हर गुजरते दिन मौसम की स्थिति में परिवर्तन देखेंगे, नदियां अपने पाठ्यक्रम को बदल देगी और उत्तर ध्रुव और दक्षिण ध्रुव की स्थिति में इन तीन वर्षों के दौरान बड़े पैमाने पर परिवर्तन आ जाएगा।
The temperature on the surface of the earth will increase highly by the year 2018.
पृथ्वी की सतह पर तापमान वर्ष 2018 तक अत्यधिक बढ़ जाएगा
This will cause melting of the glaciers/Himalayas.
इससे ग्लेशियर/हिमालय के पिघलने का कारण होगा
This in turn will increase the water level of the Oceans.
इसके बदले में महासागरों के जल स्तर में वृद्धि होगी
The temperature of the Ocean will rise subsequently.
महासागर का तापमान बाद में बढ़ेगा।
Eventually, the outer surface of the earth will heat up and the temperature in the already burning inner crust of the earth will increase all the more.
अंततः, पृथ्वी की बाहरी सतह गर्मी होगी और पृथ्वी के पहले से ही जलने वाले आंतरिक परत में तापमान अधिक बढ़ेगा।
In face of all these climatic and environmental changes, by the year 2018, all the life on Earth will be destroyed owing to Flood/earthquakes/high temperature.
इन सभी जलवायु और पर्यावरणीय परिवर्तनों के चेहरे में वर्ष 2018 तक, धरती पर रहने वाले सभी जीवन में बाढ़/भूकंप/उच्च तापमान के कारण नष्ट हो जाएगा
The geographical changes on the planet earth will affect changes on the moon as well. ग्रह पृथ्वी पर भौगोलिक परिवर्तन के रूप में अच्छी तरह से चंद्रमा पर परिवर्तन को प्रभावित करेगा।
At 23.27 degrees, the vibrations produces on the surface of the earth will affect the gravitational force. 23.27 डिग्री पर, पृथ्वी की सतह पर उत्पन्न कंपन कंपनियां गुरुत्वाकर्षण बल को प्रभावित करेगी।
Because of this distortion in the gravitational force of the Earth, the possibility of collision with smaller planets will increase.
पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल में इस विकृति के कारण छोटे ग्रहों के साथ टक्कर होने की संभावना बढ़ जाएगी।
This in turn will cause the production of energy greater than hundreds of atom bomb. यह बदले में परमाणु बम के सैकड़ों से ज्यादा उर्जा का उत्पादन होगा।
This will cause complete destruction of the environment.
इससे पर्यावरण के पूर्ण विनाश का कारण होगा
The energy thus produced will further cause the meltdown of the glaciers and will cause the extinction of life on earth.
इस तरह से उत्पन्न उर्जा में ग्लेशियरों के मंदी का कारण होगा और पृथ्वी पर जीवन के विलुप्त होने का कारण होगा।
The energy produced will cause the glaciers to melt which will cause the glaciers to melt, which in turn will destroy life.
उत्पादित उर्जा से ग्लेशियर पिघल आएगा जिससे ग्लेशियर पिघल आएगा, जो बदले में जीवन को नष्ट कर देगा।
2015- 2016, beginning; 2017-2018- Middle; 2019-2020- End- this situation will prevail.
2015- 2016, शुरुआत; 2017-2018- मध्य; 2019-2020- अंत- यह स्थिति प्रबल होगी
From 2015 to 2020, Earth will be in complete imbalance.
2015 से 2020 तक, धरती पूरी तरह असंतुलन में होगी।

Earthquakes and high Temperatures will keep increasing in frequency.
भूकंप और उच्च तापमान आवृत्ति में बढ़ते रहेंगे।
From the year 2021, Mid 2017-2018 will be highly destructive.
वर्ष 2021 से, 2017-2018 के मध्य में अत्यधिक विनाशकारी होगा
Such a destructive outcome occurs because of the vibrations produced on earth when it is inclined at 23.27 degrees.
इस तरह के एक विनाशकारी परिणाम पृथ्वी पर निर्मित कंपनों की वजह से होता है, जब यह 23.27 डिग्री पर झुका है।
Events of massive destruction will begin occurring by March 2016.
मार्च 2016 तक बड़े पैमाने पर विनाश होने की घटनाएं शुरू हो जाएंगी।
Undoubtedly, February- March 2016 will witness a high frequency of occurrences of natural disasters.
निस्संदेह, फरवरी-मार्च 2016 में प्राकृतिक आपदाओं की घटनाओं की एक उच्च आवृत्ति देखी जाएगी।
Due to the distortion in the gravitational force of the earth, the possibility of collision of earth with smaller planets in solar system will be unduly high between 2016 and 2018.
पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल में विरूपण के कारण, सौरमंडल में छोटे ग्रहों के साथ पृथ्वी के टकराव की संभावना 2016 से 2018 के बीच अनावृत रूप से उच्च होगी

By the year 2016, only 5.366% will be remaining for the present cycle of Mahayuga and Kalyuga to end.
वर्ष 2016 तक, महायुग और कलयुग के वर्तमान चक्र को समाप्त करने के लिए केवल 5.366% शेष रहेंगे।
The time period of one Mahayuga is 108000 years and at the end of this time period Mahapralaya occurs.
एक महायुग की समय अवधि 108000 साल है और इस अवधि के अंत में महाप्रलय होता है।
The time period of Mahapralaya has already begun from March 21st 2015.
महाप्रलय का समय 21 मार्च 2015 से पहले ही शुरू हो चुका है।
In the mere time span of coming three years, life forms from the surface of earth will perish, but not completely.
आने वाले तीन सालों में केवल पृथ्वी की सतह से जीवन ही नष्ट हो जाएगा ।
लेकिन पूरी तरह से नहीं।
One message for Famous yoga and religious teacher in India.
You have to take precaution in coming Days.
भारत में प्रसिद्ध योग और धार्मिक शिक्षक के लिए एक संदेश
आने वाले दिनों में आपको सावधानी बरतनी होगी।

17 अगस्त 2017

ब्रह्मांडिय असन्तुलन

ब्रह्मांड में बिगड़ता सन्तुलन किसी न किसी रूप में पृथ्वी पर भी दिखाई पड़ता है।
जब अधिकांश ग्रह एक ओर आ जाते हैं तो गुरुत्वाकर्षण असंतुलित हो जाता है।
जिससे मानव मस्तिष्क पर भी पूर्ण प्रभाव पड़ता है।
इसके कारण मानव आक्रामक रूप धारण कर लेता है उसकी सोचने की क्षमता कम हो जाती है।
इसका प्रभाव जब ‘देश प्रमुख’ पर पड़ता है तो युद्ध में परिवर्तित हो जाता है।
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ग्रहों का असर अति सूक्ष्म होता है जिसको किसी यंत्र द्वारा नहीं मापा जा सकता।
लेकिन इसका प्रभाव उदाहरण के रूप में समुद्र द्वारा ले सकते हैं।
जब भी चंद्रमा चतुर्थ व दशम भाव में आता है।
उसके गुरुत्वाकर्षण के कारण समुद्र में ज्वार भाटे आते हैं।
जब अमावस्या के दिन चंद्रमा के साथ सूर्य का भी मेल हो जाता है।
तो उसका प्रभाव और भी बढ़ जाता है।
ग्रहण पर गुरुत्वाकर्षण प्रभाव और अधिक हो जाता है।
जब चंद्रमा व सूर्य के साथ राहु या केतु भी साथ आ जाते हैं।
इसी प्रकार जब कई ग्रह एक ओर हो जाते है।
तो ये भूकंप व अन्य प्राकृतिक आपदाओं के कारण बनते हैं।
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इस वर्ष 18 नवंबर 2017 को 7 ग्रह 70 अंश के अंदर होंगे।
और 3 दिसंबर 2017 को भी 6 ग्रह केतु से राहु के मध्य 70 अंश के कोण में आ रहे हैं।
जबकि चंद्रमा उनके सामने स्थित होगा।
इस ग्रह स्थिति के कारण बड़े भूकंप के आसार बन रहे हैं।
जिसका रिक्टर स्केल पर माप 8.0 या अधिक हो सकता है। 
यह भूकंप 3 दिसंबर 2017 या 1-2 दिन आगे पीछे हो सकता है।
इसका केंद्र देखने के लिए राहु व केतु से ग्रहों की स्थिति को देखना चाहिए।
चूंकि सभी ग्रह केतु से राहु के मध्य हैं, अर्थात चंद्रमा से नीचे होंगे।
अतः उनका प्रभाव उत्तरी क्षेत्र में लगभग 300-400 अक्षांश पर पड़ेगा। 
अतः 3 दिसंबर 2017 के आसपास उत्तरी क्षेत्र में भारी भूकंप की संभावना बन रही है।
इस प्रकार की ग्रह स्थिति के बाद लगभग 6 मास के अंतराल में प्रायः युद्ध की भी स्थिति बन जाती है।
अतः 2018 के मध्य में भारी युद्ध के भी लक्षण बन रहे हैं। 
कुछ इसी प्रकार की ग्रह स्थिति कारगिल युद्ध (मई 1999 से जुलाई 1999) के मध्य बनी थी।
जब मार्च 99 में मंगल को छोड़ सभी 6 ग्रह केतु से राहु के मध्य आ गये थे।

भारत-चीन युद्ध (20 अक्तूबर 1962 से 20 नवंबर 1962) से पहले भी !
5 फरवरी 1962 में 8 ग्रह एकत्रित हुए थे ।
जिसके परिणामस्वरूप उस समय भी एक बहुत बड़ा भूकंप इरान में आया था।
जिसमें 12 000 से अधिक मौत हुई थी।
प्रथम/द्वितीय विश्वयुद्ध के समय भी इसी प्रकार अनेक ग्रह कोणीय स्थिति में आए थे।
23 जुलाई 1914 में भी यही ग्रह स्थिति बनी थी।
13 जुलाई 1942 को दूसरे विश्वयुद्ध के समय 7 ग्रह 70 अंश के कोण में आ गये थे।
जिसके कारण द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणाम भयावह रहे।
यह सब देखते हुए प्रतीत होता है कि 18 नवंबर 2017 से युद्ध के बादल मंडराने लगेंगे। 
प्राकृतिक आपदाओं के साथ-साथ युद्ध होने की संभावना भी बन रही है।
2018 और 2019 में भी कुछ इसी प्रकार की ग्रह स्थिति पुनः बनने वाली है।
अतः निकट भविष्य में भूकंप, प्राकृतिक आपदाओं और युद्ध की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता।
http://www.futuresamachar.com/hi/third-world-war-8342
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21 अगस्त 2017 सूर्यग्रहण के प्रभाव
अमेरिका - 
सिंह राशि में पड़ रहा यह सूर्यग्रहण अमेरिका की कुंडली तथा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के लग्न को प्रभावित करेगा।
अमेरिका और ट्रम्प दोनों की कुंडली सिंह लग्न की है।
ग्रहण के प्रभाव से अमेरिका अगस्त के अंतिम सप्ताह में या सितम्बर में उत्तर-कोरिया के विरुद्ध कोई बड़ा कदम उठा सकता है
21/22 अगस्त के सूर्यग्रहण के समय सिंह राशि पर पड़ रही शनि की दृष्टि युद्ध और आग लगने की घटनाओं की ओर संकेत दे रही है।
मघा नक्षत्र को पीड़ित कर रहा यह ग्रहण दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में जोरदार भू-कंपन भी ला सकता है।
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भारत -
पराशर ऋषि के उक्ति के अनुसार भाद्रपद महीने में पड़ने वाले सूर्यग्रहण से बंगाल, उड़ीसा, मगध (बिहार, झारखण्ड) में खेती का नाश हो सकता है और अमंगलकारी घटनाएं घटित हो सकती हैं।
ग्रहण के समय मंगल जलीय राशि कर्क तथा शनि वृश्चिक में गोचर कर रहा होगा।
21/22 अगस्त की अमावस्या के आसपास किसी समुद्री तूफान से उड़ीसा, बंगाल और बिहार में अतिवृष्टि होने के योग बन रहे हैं।

श्रवण पूर्णिमा के दिन होने वाले ग्रहण के विषय में ‘अदभुत सागर’ ग्रन्थ (पराशर के मत) अनुसार
चीन, कश्मीर, पुलिंद और गांधार (पाकिस्तान, अफगानिस्तान) में अशुभ घटनाएं हो सकती हैं।
7/8 अगस्त को पड़ने वाली श्रवण पूर्णिमा का ग्रहण पाकिस्तान, चीन और अफगानिस्तान के लिए अमंगलकारी होगा। 
मकर राशि में पड़ रहे इस चंद्रग्रहण के प्रभाव से भारत को कश्मीर और तिब्बत से लगी सीमा पर पाकिस्तान और चीन की ओर से किसी सैन्य आक्रमण का भी सामना करना पड़ सकता है।
ऐसी आशंका है।
श्रवण पूर्णिमा के ग्रहण के 15 दिन के भीतर कश्मीर में आतंकी घटनाएं और सीमा पर युद्ध के हालत भारत सरकार के लिए चिंता का कारण बन सकते हैं।

http://navbharattimes.indiatimes.com/astro/photos/two-eclipse-in-august-what-will-be-happen/eclipse-effects-on-india-pakistan-and-china/photomazaashow/59756896.cms

नास्त्रेदमस की भविष्यवाणी -

जब तृतीय विश्वयुद्ध चल रहा होगा।
उस दौरान चीन के रासायनिक हमले से एशिया में तबाही और मौत का मंजर होगा।
तृतीय विश्वयुद्ध के दौरान ही आकाश से आग का एक गोला पृथ्वी की ओर बढ़ेगा।
और हिंद महासागर में आग का एक तूफान खड़ा कर देगा। 
इस घटना से दुनिया के कई राष्ट्र जलमग्न हो जाएंगे।
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क्लेयरवायंट होरोसिओ विलगैस की भविष्यवाणी के अनुसार - 

तीसरे विश्व युद्ध में वैश्विक नेता सीरिया पर हमला करेंगे।
जो रासायनिक हमले के रूप में होगा। 
इससे रूस, उत्तर कोरिया और चीन के बीच संघर्ष शुरू हो जाएगा।
तीसरा विश्व युद्ध पूरी तरह से एक परमाणु युद्ध होगा। 
और इससे दुनिया का एक हिस्सा खत्म हो जाएगा।
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उपरोक्त सभी matter इंटरनेट से लिया गया है - साभार ।

14 अगस्त 2017

झट-पट..घूं-घट खोल

प्रत्येक बात के दो अर्थ होते हैं । 
एक सामान्य सांसारिक भावों का अर्थ और दूसरा गूढ़, गम्भीर, पहेलीनुमा अर्थ ।
पहुँचे हुये सन्तों की वांणियां ऐसे ही दो अर्थों वाली होती हैं ।

कबीर की वाणी देखिये -
कस्तूरी कुंडलि बसे, मिरग ढ़ूंढ़े वन माहि ।
ऐसे घट घट राम हैं, दुनियां देखे नाहिं ।

सामान्य अर्थ - 
- विशेष जाति का एक मृग जिसकी नाभि में कस्तूरी नामक दुर्लभ वस्तु पायी जाती है । वह मृग अपनी ही नाभि से उठती कस्तूरी की तीव्र गन्ध से व्याकुल उस गन्ध का स्रोत खोजने हेतु वन में दौङता है ।
(इस तरह शिकारियों को उसका आभास हो जाता है और वह उनके विशेष छल द्वारा मारा जाता है)
- इसी प्रकार ‘घट-घट’ (प्रत्येक शरीर में) राम हैं लेकिन संसारी उसे देखते/जानते नहीं ।
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गूढ़ अर्थ - 
- कस्तूरी का अर्थ हम यहाँ उस अतृप्त प्यास, अज्ञात तपन और अज्ञात की चाह से करते हैं जो समय मिलते ही हरेक को बैचेन करती है कि - वह खुद नहीं समझ पाता कि क्या चाह रहा है और उसकी समस्त आपाधापी और अशान्ति किस कारण से है ?
- कुंडल का अर्थ घेरेदार अर्थात नाभि से (बसे) है ।
- मिरग का अर्थ बङा रहस्यपूर्ण है । इसका रहस्य मृगतृष्णा शब्द और मायामृग में भी है ।
मृगतृष्णा मतलब वही, तपते मरुस्थल में प्यास से तङपते हुये मृग को जलते रेत पर शीतल पानी की लहरों की मरीचिका आभासती है ।
और वह बार बार धोखा होने के बाबजूद आगे और आगे चलता जाता है और अन्त में प्यास से बेदम होकर गिर जाता है ।
- मृग के लिये मैंने अक्सर हिन्दी विद्वानों की किताब में ‘हरिण’ शब्द लिखा देखा है जो ही मेरे हिसाब से अधिक उचित है लेकिन हरिण की जगह हिरण या हिरन कैसे कर हुआ, यह शोध का विषय है ।
- अधिक बारीकी में न जाते हुये हिरण शब्द के उदभव में मुझे हिरण्य शब्द कारण लगता है जो (सही अर्थों में) हिरण्यगर्भ यानी सूक्ष्म शरीर के लिये प्रयुक्त होता है
इस शब्द के भी गूढ़ार्थों में जायें तो मृग के भावार्थ लिये ये शब्द ठीक हो जायेगा लेकिन आंतरिक स्थितियों के साथ, जिसको नगण्य लोग समझ पाते हैं ।
- लेकिन हरिण शब्द स्थूल होकर काफ़ी हद तक सरल हो जाता है ।
हरि (स्वांस) और ण (स्थिति, स्थित) यानी सांस द्वारा स्थित ।
- अब ‘सांस द्वारा स्थित = हरिण’ नामक जानवर कैसे हुआ, इतनी बारीकी से इस ‘लेख’ में बताना संभव नहीं (और वैसे भी ऐसे लेख सामान्य लोगों के लिये न होकर शोधार्थियों के लिये होते हैं)
- ढ़ूंढ़े वन माहि का अर्थ सरल है, वन में खोज रहा है ।
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अब ‘आगे की लाइन’ के लिये सतर्क हो जाईये और गौर से समझिये ।
कबीर कह रहे हैं - ऐसे ? ठीक ऐसे ही घट (शरीर) में कुंडल (नाभि) में वह स्रोत है जहाँ से राम को जाया/पाया जा सकता है । 
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विशेष - यह तो अर्थ हुआ आगे समझिये ।
योग वर्णन में नाभि स्थान को ही ‘भवसागर’ कहा गया है और सुरति शब्द योग में इसे भवसागर के अतिरिक्त ‘महाकारण’ शरीर स्थिति कहा है ।
महाकारण का गहरा अर्थ समझिये ।
उस ‘कारण’ से पार की स्थिति जहाँ किसी ने जीवत्व धारण किया और इस भवसागर में भटक गया । और इसी में चाँद, सूरज, तारे, ब्रह्माण्ड आदि स्थित हैं ।
और एक स्थिति में वह स्थिति जब आत्मा से पंच महाभूत क्षिति, जल, पावक, गगन, समीर उपजे । 
इस महाकारण के बाद तुरीया (अहं ब्रह्मास्मि) है । 
जो महाकारण में ‘अविचल स्थिति’ के बाद बहुत सरल बात रह जाती है ।
अब कबीर का इस दोहे को लेकर इशारा समझ में आ गया होगा ।
या नहीं आया ?
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ठीक यही बात निम्न दोहा कह रहा है ।
पानी में मीन प्यासी, मोहे सुन सुन आवत हांसी ।
अर्थात जो अज्ञात, अतृप्त प्यास है उसको तृप्ति देने का स्रोत स्वयं सागर तेरे पास है ।
तू उसके केन्द्र (नाभि) पर सुर्त लगा । सुरति लगा । सु-रति लगा । अपनी-चेष्टा लगा ।
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अब इस पद को देखिये -
काहे री नलिनी तूं कुमिलानी । तेरे ही नालि सरोवर पानीं ॥
- सांसारिक तपन से जलती हुयी (सु-रति) कमलिनी क्यों उस ‘अज्ञात प्यास’ से बैचेन है ।
तेरे ही (गर्भ) नाल कुंड (सरोवर) में वह ‘जल’ है ।

जल में उतपति जल में बास, जल में नलिनी तोर निवास ।
अब यहाँ इसके ‘जल में कमल के उत्पन्न होने’ के बजाय जो छुपा रूपक भाव है उसे देखें ।
इसी नाभि कुंड से तेरी उत्पति हुयी है और ‘सांसों के ठहराव’ से (अभी) यही तेरा वास है ।

ना तलि तपति न ऊपरि आगि, तोर हेतु कहु कासनि लागि ॥
- अपने स्वरूप को जानने पर ये नीचे स्थिति भवसागर भी और ऊपर (सर्वत्र) तेरे लिये शीतल है अर्थात तुझे कोई बन्धन (कासनि) नहीं ।

कहे ‘कबीर’ जे उदकि समान, ते नहिं मुए हमारे जान ।
- उदकि का अर्थ जल है और आपु या आप का भी ।
तब यहाँ नाभि (भवसागर) में जिसका ‘कारण’ खत्म हो गया, मिथ्या अहं नष्ट हो गया तो, क्योंकि वो उत्पन्न ही यहाँ से हुआ है । इसलिये स्वयं भवसागर रूप हो गया, सबमें स्वयं को ही देखने लगा ।
आपु ही आप हो गया ।

तो कबीर कहते हैं ।
विशेष गौर करिये - कबीर कहते हैं वे हमारी जानकारी में फ़िर मृत्यु को प्राप्त नहीं हुये अर्थात अमर हो गये - ते नहिं मुए हमारे जान ।

इस स्थिति पर भी कबीर के बहुत पद/दोहे हैं ।
पर निम्न को और देखिये ।

जल में कुंभ कुंभ में जल है, बाहर भीतर पानी ।
कुंभ, घट, घङा तीनों का एक ही अर्थ है और शरीर को घटोपाधि यानी घट उपाधि यानी (तत्व कच्चे होने के कारण) कच्चा घङा कहा गया है और इसकी स्थिति उसी भवसागर नाभि से हुयी है ।
घङे के अन्दर बाहर जल ही जल है ।

फ़ूटा कुंभ जल जलहि समाना, येहि गति बिरले जानी ।
जिस अहं रूपी कारण से यह कुंभ उत्पन्न हुआ । उसके नष्ट होने पर यह ‘आप ही आप’ हो जायेगा ।
लेकिन इस गति को बिरले ही प्राप्त करते हैं ।
क्योंकि अन्य कहीं न कहीं घट (शरीर), पट (माया), भव (कुछ होने की इच्छा) से बंधे हैं ।
और इसी भवसागर की (मन रूपी) भंवर में घूमते रहते हैं ।
--------------
ब्लाग की पाठिका सुनीता यादव ने निम्न दोहे का अर्थ जानना चाहा है ।
जो बेहद सरल है ।
आप बुद्धि लगाईये और इसका अर्थ टिप्पणी में लिखिये ।

ज्ञान कर ज्ञान कर, ज्ञान का गेंद कर ।
सुर्त का डंड कर, खेल चौगान मैदान माहि । 

खलक की भरमना, छोड़ दे बालका ।
आजा भगवंत भेष माहि । 

09 अगस्त 2017

महाविनाश

केवल सूचना और भाव साझा करने हेतु !
कोई आग्रह नहीं कि सच मानें ।

कुछ मुख्य संकेत -
1 - उत्तरी अटलांटिक में भूस्खलन जैसी स्थिति में विशाल हिमखंडों के धंसने की घटना होगी ।
यह प्राकृतिक हो या मानवीय ज्ञात नही ।
(निश्चय नहीं पर) इसका प्रभाव चीन, नार्वे, स्पेन पर होगा ।
2 - (प्रशांत ?) महासागर में तीन बङे टापू समुद्र में समा जायेंगे ।
साफ़ है कि जल स्तर बढ़ेगा और निचले और करीबी देश डूबेंगे ।
3 - बङी घटनाओं में एक विशालकाय ज्वालामुखी फ़टेगा ।
यह इटली में होगा ।
4 भारत के 3 खण्ड, अमेरिका के 10 और चीन, पाकिस्तान समूचा तबाह ।
(हालांकि इसमें कुछ और भी छोटे देश हैं पर वे उल्लेखनीय नहीं)
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ऐसे में जबकि हर तरफ़ युद्ध की संभावनाओं, कारणों, भूमिकाओं और परिणाम पर मंथन, चर्चायें जारी हैं ।
कुछ ऐसे तथ्य जिन पर ध्यान रखना है ।
कुत्ते - कुत्ते अशुभ घटनाओं, काली आत्माओं और भावी विनाश को सूंघने की अदभुत क्षमता रखते हैं । इनके व्यवहार पर नजर रखेंगे तो पायेंगे कि कुत्तों का व्यवहार (पिछले बहुत दिनों से) बदल गया है । वे रात को (सामान्यतः) सामूहिक भौंकते नहीं और शान्त, उदासीन हो चले हैं ।
अगर जानवरों को देखते रहते हैं तो गौर करना, उनका व्यवहार बदला है ।
चूहे - चूहे भी अकाल, अशुभ, महामारी की सटीक सूचना देते हैं । यदि चूहे आपके आसपास अनुभव में आते हैं तो ध्यान देना ।
कीट पतंगे - अगर हर चीज पर निगाह रहती है तो इन पर भी गौर करना, पहले जैसी बात नहीं होगी ।
गैर पालतू वन्य और अन्य जीव - ये अपनी प्रकृति के अनुसार ऊँचे वृक्षों या पहाङी, गुहाओं की तरफ़ जाने लगे हैं ।
स्वपन - आपके स्वपनों या मानसिक स्थिति में (लेकिन बाह्य पढ़े, सुने आधार पर नही) पहले की तुलना में बदलाव हुआ है ।
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शायद ही लोग इस रहस्य को जानते होंगे कि किसी बङे शुभ या अशुभ परिवर्तन पर ग्रह, नक्षत्र अपना स्थान पाला या दो चार पाला भी कूद जाने की तर्ज पर बदल लेते हैं ।
यह बात शाम (22-7-2017) आठ बजे घटित हुयी है ।
ऐसा खगोलीय इतिहास में अनेकों बार हुआ है ।
धार्मिक इतिहास में ‘राम जन्म’ इसका उदाहरण है ।
- लेकिन यह बात सिर्फ़ गणना आधार पर नक्षत्र स्थिति जानने वाले ज्योतिषी नही जान सकते ।
ये सिर्फ़ खगोलविद परख सकते हैं ।
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नासा वैज्ञानिकों के मुताबिक दिसंबर 2017 में बड़े खगोलीय परिवर्तन होंगे, जिसका असर धरती के कई हिस्‍सों पर पड़ेगा और इन इलाकों में उत्तरी बिहार भी शामिल है ।
पटना मोतीहारी के स्कूल टीचर उमेश प्रसाद वर्मा - दिसंबर 2017 में उत्तरी बिहार में भूकंप से ऐसी तबाही होगी जिसकी भरपाई करना मुश्किल होगा ।
(उमेश जी की कई भविष्यवाणियां सटीक हुयीं)
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और ये
Kaalsutrabhishekam द्वारा

आज 9 अगस्त है ।
पिछले 2 वर्षों से सितंबर 2017 तक होने वाले जिस विनाश की बात करता आ रहा हूँ ।
उसमें 2 माह भी शेष नहीं बचे हैं ।
मात्र 2 माह के अंदर प्राकृतिक एवं अप्राकृतिक रूप में महाविनाश होगा ।
जिसमें लाखों, करोड़ों लोगों की जिंदगी संकट में पड़ जाएगी ।
प्राकृतिक रूप में भूकंप, बाढ़, भूस्खलन, ज्वालामुखी विस्फोट, सुनामी इत्यादि आते हैं ।
एवं अप्राकृतिक रूप में युद्ध ।
मैंने अपने पोस्ट एवं पुस्तक में सितंबर 2017 तक विनाश का प्रथम चक्र
एवं मार्च 2018 तक महाविनाश के अंतिम चक्र का जिक्र किया है ।
अन्य देशों में प्राकृतिक रूप एवं तृतीय विश्वयुद्ध से जो विनाश होगा सो तो होगा ही,
हमारे देश के 36.40 डिग्री से 43.20 डिग्री तक महाविनाश होगा ।
इन डिग्री में भारत, पाकिस्तान, चाइना, नेपाल एवम कुछ छोटे पड़ोसी देश भी आते हैं ।
36.40 डिग्री से 43.20 डिग्री का जिक्र भी पिछले 2 वर्षों से करता आ रहा हूँ ।
मेरे गणित के अनुसार तो फरवरी 2017 से ही तृतीय विश्वयुद्ध आरम्भ हो चुका है,
6 जून 2017 से समय और भी विपरीत हुआ है ।
वर्तमान में तृतीय विश्वयुद्ध का अब विकराल रूप लेना शेष है ।
जो सितंबर 2017 के अंदर देखने को मिल ही जायेगा ।
आज से कुछ माह पूर्व मैंने लिखा था कि
Donald trump will be last President of US.
इसका आशय यह है कि United State कई भागों में विभक्त हो जाएगा ।
परमात्मा से प्रार्थना करे धरती में आने वाली यह संकट टल जाए,
और अगर घटना घटित होती भी है तो नुकसान कम से कम हो ।

15 जुलाई 2017

तिब्बत 125 वर्ष पूर्व

मुझे याद है, आगरा में हमारे परिचित के यहाँ 10-12 गोरे (अंग्रेज) लोग मेहमान हुये थे ।
वे लगभग एक सप्ताह रहे ।
गृह स्वामिनी ने देखा कि वे शौच में जल के बजाय सिर्फ़ टिशू पेपर उपयोग करते हैं और प्रायः शौच के बाद हाथ नही धोते ।
उनको गोरों की एक सप्ताह की मेजबानी बेहद अखरी ।
और खास उनके जाते ही गृह स्वामिनी ने उनके द्वारा इस्तेमाल किये सभी चाय, भोजन आदि के बर्तन और छोटे मोटे अन्य सामान फ़ेंकवा दिये ।
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हिन्दुस्तानी भी !
ऐसे लोग तो अब भी अनेक हैं जो शौच के बाद साबुन या मिट्टी से हाथ नही धोते । सिर्फ़ सादा पानी से हाथ धो लेते हैं ।
हैरानी होती है परन्तु अब भी अक्सर ऐसे लोग मिल जाते हैं जो शौच के बाद शरीर ‘स्थान’ साफ़ नहीं करते ।
और ऐसे लोगों का प्रतिशत तो कही अधिक है जो (देहात क्षेत्र में) शौच उपरान्त मिट्टी से साफ़ करके सफ़ाई मान लेते हैं ।
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बौद्ध मतालम्बी जापानी ‘इकाई कावागुची’ की लगभग 125 वर्ष पूर्व की गयी ‘तिब्बत यात्रा’ तत्कालीन समय का रोचक दस्तावेज है ।

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तिब्बत के लोग बङे ही गन्दे होते हैं ।
जिस घर में मैं टिका हुआ था उसमें प्रायः बीस नौकर थे ।
वे लोग नित्य मेरे लिये चाय लाया करते थे ।
वे प्याले कभी न धोते थे ।
यदि मैं उनसे कहता कि प्याला गन्दा है तो वे उत्तर देते - कल ही रात को आपने ही तो चाय पी है ?
वे लोग प्याले को मैला तभी समझते थे जब उसमें कोई नीचे दर्जे का मनुष्य चाय पी लेता है ।
पर स्वयं अथवा बराबर दर्जे वालों के प्रयुक्त पात्र को वे झूठा नही मानते चाहे वह कितना ही गन्दा क्यों न हो ।
यदि मैं नौकर से प्याला धो लाने के लिये कहता तो वह उसे अपनी आस्तीन से पोंछ देता ।
आस्तीन इसी तरह के प्रयोग से एकदम काला हो गया था ।
वे इस तरह साफ़ कर उसमें चाय डाल देते थे ।
ऐसे गन्दे प्याले में कोई वस्तु पीना असम्भव था ।
पर मैं सफ़ाई की तरफ़ इतना जोर इस कारण नहीं दे सकता था कि सम्भव था मेरा भेद खुल जाय ।
बर्तनों का न धोना इतना गन्दा नही है जितना शौच आदि के बाद गुप्त स्थान का न धोना है ।
यह हालत बङे बङे लामाओं से लेकर छोटे छोटे चरवाहों तक की है ।
मुझे शौच के समय जल का प्रयोग करते देखकर बङे और छोटे सबों ने मेरा परिहास किया । इसके लिये मैं लाचार था ।
उनके यही काम गन्दे नही होते थे कि वे अपने शरीर को नही धोते ।
कितनों ने तो पैदायश के बाद से कभी भी शरीर को नहीं धोया है ।
आपको इस बात से आश्चर्य होगा ।
देहात के लोग और अधिकांश शहर के लोग भी इस बात का अभिमान करते हैं कि उन्होंने अपना बदन कभी साफ़ नही किया है ।
यदि कोई अपना हाथ भी धोये तो उसका परिहास किया जाता है ।
अतएव शरीर भर में हथेली और आँखों में ही मैल दिखाई नहीं देती अन्यथा सम्पूर्ण शरीर मैल से काला हो जाता है ।
शहर के रहने वाले सभ्य पुरुष और पुरोहित लोग कभी कभी अपने मुख और हाथों को धो डालते हैं ।
शेष शरीर ज्यों का त्यों काला बना रहता है ।
उनकी गर्दन और पीठ इत्यादि वैसी ही काली हो जाती है जैसी अफ़्रीका के हब्शियों की है ।
पर उनके हाथ उजले क्यों रहते हैं ?
इसका कारण है कि आटा गूंधते समय हाथों का मैल आटे में चला जाता है । अतएव उनके भोजन में आटा और मैल मिली रहती है ।
पर ऐसी घृणित व्यवस्था वे क्यों रखते हैं ?
उन लोगों में मिथ्या विश्वास है कि यदि वे अपने शरीर को धोयें तो उनका सौभाग्य धुल जायेगा ।
पर यह बात मध्य तिब्बत में नही है ।
सगाई होने के समय केवल बहू का मुख देखने ही से काम नही चलता है । 
यह भी देखना पङता है कि उसके शरीर पर कितनी मैल जमी है ।
यदि उसकी आँखों के अतिरिक्त अन्य सब अंग गन्दे हैं और उसके वस्त्र मैल और मक्खन के कारण चमक रहे हैं तो वह बङी भाग्यशाली बहू है अन्यथा बङी अभागिन है ।
क्योंकि सफ़ाई करने में उसका भाग्य धुल गया ।
लङकियां भी इसी मूढ़ विश्वास को मानती हैं ।
वे भी ऐसे स्वामी को चाहती हैं जो अधिक से अधिक मैल शरीर पर चढ़ाये हो ।
मैं जानता हूँ कि मेरी बात पर सहसा लोग विश्वास न करेंगे और जब तक मैंने अपनी आँखों से न देखा था तब तक मेरी भी यही दशा थी ।
नीचे दर्जे के लोग कपङे नही बदलते । नाक कपङों में ही साफ़ करते हैं । 
कपङों के ऊपर मैल और मक्खन जम कर चमढ़े की भांति कङा हो जाता है ।
(पूर्व तिब्बत में चाय में मक्खन डालकर पीने का जबरदस्त रिवाज था और यह अमीरी का प्रतीक भी था)

पर ऊँचे दर्जे के मनुष्य और पुरोहित हाथ मुँह भी धोते हैं और कपङे भी साफ़ रखते हैं ।
इन घृणित रीतियों के कारण किसी के यहाँ का निमन्त्रण स्वीकार करते समय मुझे बङा कलेश होता था ।
तसरंग में रहकर मैंने ऐसी आदतें डालने की चेष्टा की थी पर फ़िर भी अपने चित्त को पूर्णतया वैसा नही बना सका था ।
इन सब बातों के होते हुये भी वहाँ का प्राकृतिक सौन्दर्य देखकर मुग्ध हो जाता था ।

तिब्बत के रीति रिवाज
(तेतालीसवां परिच्छेद)
प्रष्ठ - 172
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पुस्तक - तिब्बत में तीन वर्ष pdf
लेखक (जापानी यात्री) श्री इकाई कावागुची 
अनुवादक - पण्डित गुलजारी लाल चतुर्वेदी
समय - मैंने मई सन 1897 में अपनी उस यात्रा की तैयारी की जिसमें केवल प्राणघातक घटनाओं की संभावना थी ।
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पुस्तक - तिब्बत में तीन वर्ष pdf
http://www.new.dli.ernet.in/handle/2015/287156?show=full

04 जुलाई 2017

2 या अनेक परमात्मा

बहुत सी बातें बताना उचित नहीं होती या कहिये, उनका कुछ लाभ नहीं होता ।
जैसा कि अधिकांश लोग मुझे (मेरे कथन आधारों पर) किसी दूसरी दुनियाँ का समझते हैं ।
मुझे सामान्यतः लगता है वे सत्य हैं परन्तु आंशिक ही ।
क्योंकि उससे ज्यादा सोचना ‘बुद्धिक परिभाषा, और लक्षण, और क्षमता’ के अंतर्गत संभव नही ।
ऐसा क्यों ?
इस सृष्टि का सर्वोच्च (जो भी ‘वह’ है) और बौद्धिक शब्द और उसमें निहित उपाधि ‘परमात्मा’ है ।
अब इस ‘हौआ’ बन चुके शब्द के निहितार्थ को सरलता से समझें ।
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परमात्मा - न आदि है, न अन्त है । न है, न नही है । अजर, अमर, अविनाशी आदि आदि है ।
ये इस शब्द के निहितार्थ प्रमुख अवयव या गुण-धर्म हैं ।
और इससे ऊपर या परे जैसे सोचने पर भी Stop है ।
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अब इसे उपर लिखित वही ‘निश्चित वैचारिक क्षमता’ या ‘अधिकाधिक ज्ञान सामर्थ्य’ के अन्दर स्वीकार लें तो ठीक है अन्यथा यहाँ ‘प्रज्ञा’ आदि शब्द देकर औपचारिकता सी हो जाती है एक तसल्ली सी ही हो जाती है लेकिन प्रज्ञा भी कहते किसको हैं उसका अनुभव क्या कैसा है ?
ये अधिकांश के लिये हवा हवाई ख्याल ही हैं ।
तब वहाँ ‘बुद्धि’ ‘प्रज्ञा’ या जिससे जाना जा रहा है, अनुभव हो रहा है वो क्या है, कैसा है ।
इसके लिये सर्वाधिक समर्थ संस्कृत या हिन्दी भाषा में भी शब्द नहीं मिलता ।
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यदाकदा सन्त परिभाषा में आने वाले इक्का दुक्का लोग जो अनन्त गहराई (या दूसरे भावों में ऊँचाई) में गये हैं ।
उनका मानना है - यहाँ की परिभाषा, गुण धर्म, वर्णन आदि हेतु सांसारिक शब्द काम नहीं करते ।
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वास्तव में परमात्मा को लेकर जो भी ‘सार निष्कर्ष’ कहे गये ।
वे कृतिम हैं या फ़िर वही बात, उसी ‘सीमित क्षमता’ के अन्दर कहे हैं ।
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अब थोङा विशेष गौर करें - ये क्यों कहा गया कि परमात्मा का न आदि है, न अन्त है ।
कहने वाले को कैसे पता कि उसकी कभी शुरूआत या जन्म नहीं हुआ और वह किस आधार पर निश्चित है कि उसका कभी अन्त नही होगा ?
इसी में अमर (मृत्यु न होना) अविनाशी (नष्ट न होना) भी कहा जा सकता है ।
विशेष गहराई से समझें - सच बात तो यह है कि स्वयं, जिसको परमात्मा आदि कहा जाता है,
उसे ही अब तक नहीं पता कि वो कौन है, क्या है, क्यों है और कब तक है ?
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अब पहले तो परमात्मा के प्रति ‘दो प्रमुख स्थितियों’ को समझें ।
इसमें से एक को अनुभूत कर चुके महाज्ञानी जानते हैं ।
और दूसरे उनके ही वर्णन आधार पर बनी अनेकों धारणाओं का चूरमा बनाकर बनायी हुयी एक मोटी और ‘कामन’ धारणा है ।

जो सामान्यतः बिलकुल नाजानकार से लेकर, कुछ कुछ छोटे मोटे अनुभवी जानते/मानते हैं ।
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यद्यपि (मेरी नहीं बल्कि अब तक उपलब्ध और सटीक) शब्द असामर्थ्य को लेकर यह कठिन ही है फ़िर भी समझाने की कोशिश करता हूँ ।
स्थितिप्रज्ञता और उसके वर्णन आधार पर निर्मित काल्पनिक धारणाओं के आधार पर
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परमात्मा आखिर कहते किसे हैं ?
1 - अब तक अनुभूत और सर्वोच्च स्थिति ‘विस्माध’ है ।
विस्माध के सरल वर्णन में कहा जाता है - तब जब वह ‘आप ही आप’ है ।
बल्कि उससे भी परे । अकथनीय ! अवर्णनीय !
अब इसके लिये समाधि, परम समाधि जैसे शाब्दिक अन्य अन्य अलंकार चाहे जितने बना लें ।
अनुभवी ज्ञानी ‘इसको’ ही परमात्मा कहते हैं ।
विशेष - इसे (जो ये है) किसी से कोई मतलब नहीं, न इसकी कोई सृष्टि है, न ये किसी का कोई नियन्ता है । मूलतः ये समझें, इसे किसी से कुछ लेना देना नही ।
2 - लेकिन परमात्म तत्व को सिर्फ़ प्रारम्भिक और बेहद सीमित स्तर पर जानने/अनुभूत करने वाले इससे भी 2-3 स्थित बाद (नीचे की ओर) को परमात्मा कहते हैं ।
जो दरअसल पहला और मूल अंतःकरण (जिसे ‘आदि-निरंजन’ नाम से कहा गया) है और जिसने पूरी सृष्टि को धीरे धीरे, कई चरणों में, कई बार बना बिगाङ कर, सुधार कर रचा है ।
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कबीर के अतिरिक्त इस ‘परमात्मा 2’ से आगे/अलग बढ़ने की धृष्टता किसी ने नहीं की ।
और कबीर ने भी ‘विस्माध’ ‘हंस’ या ‘आप ही आप’ के बाद बात खत्म कर दी ।
# मैं निश्चित नहीं कि कबीर इससे परे/अतिरिक्त भी जानते थे ।
सन्त-मत में ‘अकह’ को अन्तिम स्थिति कहा है पर सच कहा जाये तो ‘अनन्त’ की यहाँ से शुरूआत होती है ।
अकह को सिर्फ़ एक ही (सामान्य) भाव में कहा गया है । अनन्त के प्रति इसको छुआ भी नही गया । क्योंकि उसके कहे जाने का भी कोई अर्थ नहीं, जो इस ‘सामान्य अकह’ (पर) तक आ जाता है ।
उसे किसी की आवश्यकता नहीं, वह स्वयं है ।
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यद्यपि एक उल्लेखनीय जिक्र करना चाहूँगा कि कबीर मतालम्बियों में ‘सतलोक’ ‘चौथा लोक’ और उसके अधिपति ‘सतपुरुष’ का बङे जोर शोर से और ‘अन्तिम स्थिति’ जैसी घोषणा करता हुआ सिद्धांत आता है ।
पर कबीर ने कहा है - एक बार मेरे अन्दर ये विचार उठा कि सतलोक से आगे क्या है ?
मैं आगे गया और उसी तरह एक के बाद एक अनेक सतलोक आते गये ।
जैसे प्रथ्वी पर ‘अन्तिम क्षितिज को पाना’
और जैसे अनेक सतलोक थे उसी प्रकार उतने ही सतपुरुष भी थे ।
यहाँ एक गूढ़ बात विशेष ध्यान रखना कि - कबीर एक ही थे ।
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इस लेख के द्वारा मैं वह कहना चाहता हूँ जो (मेरी जानकारी में तो) आज तक नहीं कहा गया ।
#आत्म तत्व, परमात्म या जो भी वह है (ध्यान रहे, जो शोध के एकदम करीब पहुँचें उन्होंने) ‘इसे’ आत्मा, परमात्मा जैसे शब्द नहीं दिये । क्योंकि ये शब्द अपने अर्थ को लेकर ‘उस सत्य’ को समझाने में समर्थ नहीं थे और आजकल तो उतना भी प्रभावित नहीं रहे ।
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बात यह है कि वह इतना ‘सूक्ष्म तत्व’ है कि (कितना है ?) इसको लेकर फ़िर वही व्यक्त न कर पाने की असमर्थता ही है । और ‘यहाँ’ पहुँचकर कभी एक विलक्षण अचलता, या फ़िर अन्य मुख्य स्थिति में एक सर्व-व्यापी प्रवाह महसूस होता है ।
अब यहाँ गौर करना, अचलता में भी वह गतिहीन है निस्पन्द है और दूसरी स्थिति में जो सर्व-व्यापी प्रवाह महसूस होता है । वो भी उसी अचल स्थिति में और उसी में, उसी के अन्दर ही महसूस होता है ।
इस समय, जैसे तीव्र वेग से बहती मोटी धारा में हाथ या पैर डालने पर जैसा ‘बल’ अनुभव होता है । ठीक वैसा ही बल अनुभव होता है ।
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अब जो लेख का मुख्य बिन्दु है !
जब वह ‘मूलतत्व’ इतना सूक्ष्म और अचल है (इसमें जो विराट अनुभव होता है उसको किसी led जैसे छोटे बल्ब से निकलती प्रकाश किरणें, बनते दायरे से समझें, यही निरति कही गयी है) और उसमें से उठती निरति और सुरति इतने में ही यह सृष्टि है ।
यहाँ रैदास, कबीर आदि के उन कथनों पर ध्यान दें ।
जिसमें उन्होंने सृष्टि स्थिति को ‘गूलर फ़ल’ वट बीज के समान कहा है ।
फ़िर से ध्यान कर लें, अभी तक अन्तिम और निर्णायक तौर पर इसे ‘अचल’ कहा गया है ।
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तब बहुत संभव है कि इससे परे करोङों, अरबों बल्कि असंख्य और असंख्य प्रकार के सार-तत्व और सृष्टियां हो सकती हैं बल्कि इस सारतत्व का भी नियन्ता, जन्मदाता या अन्य कुछ हो सकता है ।
इस दृश्य को और सरलता से समझने हेतु काली रात के गहन काले आसमान में चमकते असंख्य तारों को देखिये और जानिये कि ये स्थिर, अचल हैं ।
लेकिन इन्हीं में प्रत्येक में एक ऐसी ही सृष्टि समाई हुयी है जैसी हमारे अनुभव में आ रही है ।
अब इन्हीं असंख्य तारों को, एक एक को उसी ‘सार-तत्व’ को जानो । परमात्मा मानो ।
तब ये तारे आपस में सिर्फ़ सौ फ़ुट दूर या एक फ़ुट या छह इंच या एक इंच पर भी हों ।
तो भी हमें उनके बारे में पता नही है कि कितने परमात्मा हैं या हो सकते हैं ?
# इस समय मैं इसी खोज अभियान पर हूँ ।
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अगर लेख में कही बात आप ग्रहण कर सके तो एक ‘अजीब सा’ झटका लग सकता है ।
बस एक बात पर आपको ये लेख एकदम आधारहीन, निरर्थक लग सकता है कि - सृष्टि तो अरबों वर्ष से है, इस तत्व का न आदि है न अन्त है, जीव अविनाशी है, अमर अजर आदि है ।
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ये सब किताबी और किस्साई बातें हैं ।
ये यदि सच हैं तो इसी रचना के अंतर्गत, रचना से बाहर नहीं ।
और ‘समय’ ?
समय की कृतिमता, जोन के अनुसार मानक के घटाव बढ़ाव, अन्य अन्य अनेक भूमिकाई रूपान्तरण तो सन्तों के ही अनुभव में प्रायः आते रहे ।
और अब तो प्रमुख वैज्ञानिक भी स्वीकार करने लगे ।
यानी ‘यथार्थ’ रूप में समय जैसा कुछ है ही नहीं, बल्कि ये अनुभव रूप व्यंजन है ।
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अन्त में माथापच्ची
समाधि, साक्षात्कार, साक्षी, द्वैत, अद्वैत आदि जिनको खोजने हेतु सब व्यग्र हैं ।
ये सब इकठ्ठे कहाँ पाये जाते हैं ?
(अर्थात कुछ ऐसा जानना, युक्ति हो, जिससे सब एक साथ पकङ में आ जायें)
उत्तर - ?

17 जून 2017

ब्रह्मरूपी स्थिति ही भक्ति

ज्ञान और भक्ति
ब्रह्मभूतः प्रसन्नात्मा न शोचति न काङ्क्षति ।
समः सर्वेषु भूतेषु मद्भक्तिं लभते पराम ॥ (गीता 18-54)
टीका - सन्त श्री ज्ञानेश्वर जी
ब्रह्म होने की योग्यता के द्वारा वह पुरुष आत्मज्ञान-प्रसन्नता के पद पर जा बैठता है ।
(जिस अग्नि पर रसोई तैयार की जाती है वह जब शान्त हो जाती है तब रसोई का आनन्द लिया जाता है अथवा शरत-काल में ज्वार-भाटा छोङ जैसे गंगा शान्त हो जाती है, अथवा गीत समाप्त होते ही उसके उपांग तबला, तम्बूरा इत्यादि भी जैसे बन्द हो जाते हैं, वैसे ही आत्मज्ञान के लिये उद्यम करने के जो श्रम होते हैं, वे भी जहाँ शान्त हो जाते हैं)
उस दशा का नाम आत्मज्ञान-प्रसन्नता है ।
(वह योग्य पुरुष उस दशा का उपभोग करता है)
उस समय ‘यह वस्तु मेरी है’ ऐसा समझकर सोच करना अथवा किसी वस्तु की प्राप्ति की इच्छा करना आदि बातों का अन्त हो जाता है ।
उसमें केवल ‘ऐक्यभाव’ भरा हुआ रहता है ।
सूर्य का उदय होते ही सम्पूर्ण नक्षत्र जैसे अपनी दीप्ति खो देते हैं, वैसे ही आत्मानुभव प्राप्त होते ही वह पुरुष अनेक भूत व्यक्तियों की रचना ताङते तोङते सब आकाशरूप ही देखता है । जैसे पाटी पर लिखे हुये अक्षर हाथ से पोंछ लिये जायें, वैसे ही उसकी दृष्टि से सब भेदान्तरों का लोप हो जाता है । जागृति और स्वप्न ये दो अवस्थायें जो विपरीत ज्ञान का ग्रहण करती हैं उन्हें वह सुषप्तिरूपी अज्ञान में लीन कर देता है । फ़िर ज्यों ज्यों ज्ञान बढ़ता है त्यों त्यों वह अव्यक्त भी घटता जाता है और पूर्ण ज्ञान होते ही सम्पूर्ण विलीन हो जाता है ।
जैसे भोजन करते समय भूख धीरे धीरे बुझती जाती है और तृप्ति के समय सम्पूर्ण शान्त हो जाती है, अथवा चलते चलते जैसे रास्ता कटता जाता है और इष्ट स्थान को पहुँचते ही समाप्त हो जाता है, अथवा ज्यों ज्यों जागृति आती जाती है त्यों त्यों नींद छूटती जाती है और पूर्ण जागृत होने पर उसका पता नहीं रहता, अथवा वृद्धि समाप्त होने पर जब चन्द्र पूर्णता प्राप्त कर लेता है तो शुक्ल पक्ष की भी निःशेष समाप्त हो जाता है, वैसे ही वह पुरुष जब ज्ञेय विषयों को लीन कर लेता है तो ज्ञान का नाश हो जाता है, तब कल्पान्त के समय जैसे नदी या समुद्र की सीमा टूट जाने से ब्रह्मलोक तक जल ही जल भर जाता है, अथवा घट या मठ का नाश होने पर जैसे एक आकाश ही सर्वत्र रहता है, अथवा लकङी जलाकर जैसे अग्नि ही रह जाती है, अथवा जैसे अलंकारों को सांचे में डालकर गलाने से उनके नाम और रूपों का नाश हो सोना ही रह जाता है, यह भी रहने दो, फ़िर जागने पर जैसे स्वपन का नाश हो जाता है और मनुष्य केवल एक मेरे अतिरिक्त स्वयं अपने समेत और कुछ भी नही रहता ।
इस प्रकार वह मेरी चौथी भक्ति प्राप्त करता है ।
दूसरे आर्त, जिज्ञासु और अर्थार्थी जिन रीतियों से मेरी भक्ति करते हैं उनकी अपेक्षा से हम इसे चौथी भक्ति कहते हैं ।
अन्यथा यह न तीसरी है, न पहली है, न अन्तिम है ।
वास्तव में मेरी ब्रह्मरूपी स्थिति का ही नाम भक्ति है ।
जो मेरे अज्ञान को प्रकाशित कर, मुझे अन्य रूप से दिखाकर, सबको सब विषयों की रुचि लगाकर उनका ज्ञान करा देता है, जिस अखंड प्रकाश से जो जहाँ जिस वस्तु को देखना चाहे वह वस्तु उसे वहाँ वैसी ही दिखाई देती है ।
स्वपन का दिखाई देना, न देना, जैसे अपने अस्तित्व पर निर्भर है, वैसे ही प्रकाश से ही विश्व की उत्पत्ति या लय होता है, वह मेरा जो स्वाभाविक प्रकाश है उसी को भक्त कहते हैं ।

अतः आर्तों में यह भक्ति इच्छारूप हो जो वस्तु की अपेक्षा करती हो, वह मैं ही हूँ ।
जिज्ञासु में भी यही भक्ति जिज्ञासा रूप हो मुझे जिज्ञास्य रूप से प्रकट करती है और यही भक्ति अर्थप्राप्ति की इच्छा बन मानो मुझे ही अपनी प्राप्ति के पीछे लगा मुझे अर्थ नाम का पात्र बनाती है, एवं यदि मेरी भक्ति अज्ञान के साथ हो तो वह मुझ सर्वसाक्षी को अदृश्य रूप से बताती है ।
दर्पण में मुख से ही मुख दिखाई देता है, इसमें कुछ सन्देह नहीं ।
परन्तु यह जो मिथ्या द्वितीयत्व है उसका हेतु दर्पण है ।
दृष्टि वास्तव में चन्द्रमा का ही ग्रहण करती है पर एक चन्द्र के जो दो रूप दिखाई देते हैं वह नेत्र रोग के कारण ।
वैसे ही वास्तव में मैं ही सर्वत्र निज को ही देखता हूँ ।
परन्तु जो मिथ्या दृश्य पदार्थ दिखाई देते हैं वह अज्ञान का कारण है ।
वह अज्ञान उस चौथे भक्ति का मिट जाता है, और प्रतिबिम्ब जैसे बिम्ब में मिल जाय, वैसे ही मेरी साक्षिरूपता मुझमें ही समा जाती है ।
सोना जब मिश्रित स्थिति में रहता है तब भी सोना ही रहता है, परन्तु मिश्रण अलगाने पर जैसे वह शुद्ध रूप से शेष रहता है ।
पूर्णमासी के पहले चन्द्रमा क्या सावयव नही रहता, परन्तु जैसे उस दिन उसकी पूर्णता उससे आ मिलती है ।
वैसे ही दिखाई तो मैं ही देता हूँ पर अज्ञान के कारण दृश्य रूप से और भिन्न दिखाई देता हूँ और दृष्टात्व विलीन होने पर मुझे ही अपनी प्राप्ति हो जाती है ।

अतएव, दृष्टिपथ के परे जो मेरा भक्तियोग है उसे मैंने चौथा कहा है । 

13 जून 2017

अनमोल ज्ञान सूत्र

चाह चमारी चूहरी, अति नीचन की नीच ।
मैं तो पूरण ब्रह्म था, जो तू न होती बीच ।
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राजीव बाबा, मेरे एक मित्र का प्रश्न है ।
क्या सशरीर चित्त के पार हुआ जा सकता है ? कृपया समाधान करें ।

उत्तर - प्रश्न उलझाव पैदा करता है ।
ऐसे प्रश्न सम्बन्धित साहित्य के अध्ययन के बाद, अनजाने निर्मित हुयी काल्पनिक धारणाओं से उपजते हैं । दूसरे, यदि प्रश्न अपने सभी बिन्दुओं को लेकर अपने सभी आशय को लेकर स्पष्ट न हो तो निराकरण और भी मुश्किल हो जाता है ।
पर फ़िर भी यहाँ ‘सशरीर’ शब्द मुझे इसी बाह्य, दर्शनीय, स्थूल शरीर के लिये प्रयुक्त लगा ।

- सशरीर चित्त के पार से क्या आशय है ?
कोई भी स्वयं और अन्य सब कुछ भी, स्वयं चित्त में ही (मन के द्वारा मन में ही) स्थित है ।
चित्त के पार क्या है ?
अगर ‘मूल स्थिति’ की बात की जाये तो फ़िर चित्त के पार कुछ है ही नहीं ।
जो है, वह सिर्फ़ आपका होना भर है ।
और बारीकी से कहा जाये तो फ़िर वह जो है - है ।
वहाँ होना जैसा भी कुछ नहीं है ।
होना शुरू होते ही चित्त भी हो जाता है ।
मन बुद्धि चित्त अहम, ये मिल जुल कर इतनी तेजी से क्रियान्वित होते हैं कि तय होना मुश्किल है कि ये किस कृमानुसार सक्रिय हुये । फ़िर भी किसी भी इच्छा के उदय होते ही चित्त बनता है ।
या स्थूल जीव में प्रथम चित्त जाता है ।
क्योंकि किसी भी हलन चलन हेतु भूमि और दूसरे अन्य अंगों की आवश्यकता होगी ।

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पुस्तक - अनमोल ज्ञान सूत्र pdf
लेखक - राजीव कुलश्रेष्ठ
विषय - आत्मज्ञान, सुरति शब्द योग
मूल्य - 150 रु.
प्रष्ठ - 157

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326