22 दिसंबर 2010

सभी मनुष्य प्रेम करने के पात्र हैं


तुम्हें कैसे पता चलता है कि कोई सचमुच तुम्हें प्रेम करता है ? आदमी के व्यक्तित्व के 3 तल हैं । उसका शरीर विज्ञान । उसका शरीर । उसका मनोविज्ञान । उसका मन । और उसका अंतरतम या शाश्वत आत्मा । प्रेम इन तीनों तलों पर हो सकता है । लेकिन उसकी गुणवत्ताएं अलग होंगी । शरीर के तल पर वह मात्र कामुकता होती है । तुम भले ही उसे प्रेम कहो । क्योंकि शब्द प्रेम काव्यात्म लगता है । सुंदर लगता है । लेकिन 99%  लोग उनके सेक्स को प्रेम कहते हैं । सेक्स जैविक है । शारीरिक है । तुम्हारी केमिस्ट्री । तुम्हारे हार्मोन । सभी भौतिक तत्व उसमें संलग्न हैं । तुम 1 स्त्री या 1 पुरुष के प्रेम में पड़ते हो । क्या तुम सही सही बता सकते हो कि इस स्त्री ने तुम्हें क्यों आकर्षित किया ? निश्चय ही तुम उसकी आत्मा नहीं देख सकते । तुमने अभी तक अपनी आत्मा को ही नहीं देखा है । तुम उसका मनोविज्ञान भी नहीं देख सकते । क्योंकि किसी का मन पढ़ना आसान काम नहीं है । तो तुमने इस स्त्री में क्या देखा ? तुम्हारे शरीर विज्ञान में । तुम्हारे हार्मोन में कुछ ऐसा है । जो इस स्त्री के शरीर विज्ञान की ओर । उसके हार्मोन की ओर । उसकी केमिस्ट्री की ओर आकर्षित हुआ है । यह प्रेम प्रसंग नहीं है । यह रासायनिक प्रसंग है । जरा सोचो । जिस स्त्री के प्रेम में तुम हो । वह यदि डाक्टर के पास जाकर अपना सेक्स बदलवा ले । और मूछें और दाढ़ी ऊगाने लगे । तो क्या तब भी तुम इससे प्रेम करोगे ? कुछ भी नहीं बदला । सिर्फ केमिस्ट्री । सिर्फ हार्मोन । फिर तुम्हारा प्रेम कहां गया ? सिर्फ 1%  लोग थोड़ी गहरी समझ रखते हैं । कवि, चित्रकार, संगीतकार, नर्तक या गायक के पास 1 संवेदनशीलता होती है । जो शरीर के पार देख सकती है । वे मन की, हृदय की सुंदरताओं को महसूस कर सकते हैं । क्योंकि वे खुद उस तल पर जीते हैं । इसे 1 बुनियादी नियम की तरह याद रखो । तुम जहां भी रहते हो । उसके पार नहीं देख सकते । यदि तुम अपने शरीर में जीते हो । स्वयं को सिर्फ शरीर मानते हो । तो तुम सिर्फ किसी के शरीर की ओर आकर्षित होओगे । यह प्रेम का शारीरिक तल है । लेकिन संगीतज्ञ, चित्रकार, कवि 1 अलग तल पर जीता है । वह सोचता 

नहीं । वह महसूस करता है । और चूंकि वह हृदय में जीता है । वह दूसरे व्यक्ति का हृदय महसूस कर सकता है । सामान्यतया इसे ही प्रेम कहते हैं । यह विरल है । मैं कह रहा हूं । शायद केवल 1%  - कभी कभार । दूसरे तल पर बहुत लोग क्यों नहीं पहुंच पा रहे हैं । जबकि वह अत्यंत सुंदर है ? लेकिन 1 समस्या है । जो बहुत सुंदर है । वह बहुत नाजुक भी है । वह हार्डवेयर नहीं है । वह अति नाजुक शीशे से बना है । और 1 बार शीशा गिरा । और टूटा । तो इसे वापस जोड़ने का कोई उपाय नहीं होता । लोग इतने गहरे जुड़ना नहीं चाहते कि वे प्रेम की नाजुक पर्तों तक पहुंचें । क्योंकि उस तल पर प्रेम अपरिसीम सुंदर होता है । लेकिन उतना ही तेजी से बदलता भी है । भावनाएं पत्थर नहीं होतीं । वे गुलाब के फूलों की भांति होती हैं । इससे तो प्लास्टिक का फूल लाना बेहतर है । क्योंकि वह हमेशा रहेगा । और रोज तुम उसे नहला सकते हो । और वह ताजा रहेगा । तुम उस पर जरा सी फ्रेंच सुगंध छिड़क सकते हो । यदि उसका रंग उड़ जाए । तो तुम उसे पुन: रंग सकते हो । 
प्लास्टिक दुनिया की सबसे अविनाशी चीजों में 1 है । वह स्थिर है । स्थायी है । इसीलिए लोग शारीरिक तल पर रुक जाते हैं । वह सतही है । लेकिन स्थिर है । कवि, कलाकार लगभग हर दिन प्रेम में पड़ते रहते हैं । उनका प्रेम गुलाब के फूल की तरह होता है । जब तक होता है । तब तक इतना सुगंधित होता है । इतना जीवंत । हवाओं में । बारिश में सूरज की रोशनी में नाचता हुआ । अपने सौंदर्य की घोषणा करता हुआ । लेकिन शाम होते होते वह मुरझा जाएगा । और उसे रोकने के लिए तुम कुछ नहीं कर सकते । हृदय का गहरा प्रेम हवा की तरह होता है । जो तुम्हारे कमरे में आती है । वह अपनी ताज़गी, अपनी शीतलता लाती है । और बाद में विदा हो जाती है । तुम उसे अपनी मुट्ठी में बांध नहीं सकते । बहुत कम लोग इतने साहसिक होते हैं कि क्षण क्षण जीएं । जीवन को बदलते रहें । इसलिए उन्होंने ऐसा प्रेम करने का सोचा है । जिस पर वे निर्भर रह सकते हैं । मैं नहीं जानता । तुम किस प्रकार का प्रेम जानते हो ? शायद पहले किस्म का । शायद दूसरे किस्म का । और तुम भयभीत हो कि अगर तुम अपने अंतरतम में पहुंचो । तो तुम्हारे प्रेम का क्या होगा ? निश्चय ही वह खो जाएगा । लेकिन तुम कुछ नहीं खोओगे । एक नए किस्म का प्रेम उभरेगा । जो कि लाखों में एकाध व्यक्ति के भीतर उभरता है । उस प्रेम को केवल प्रेम पूर्णता कहा जा सकता है । पहले प्रकार के प्रेम को सेक्स कहना चाहिए । दूसरे प्रेम को प्रेम कहना चाहिए । तीसरे प्रेम को प्रेम पूर्णता कहना चाहिए । एक गुणवत्ता । असंबोधित । न खुद अधिकार जताता है । न किसी को जताने देता है । यह प्रेम पूर्ण गुणवत्ता ऐसी मूलभूत क्रांति है कि उसकी कल्पना करना भी अति कठिन है । पत्रकार मुझसे पूछते रहते हैं - यहां पर इतनी स्त्रियां क्यों हैं ? स्वभावत: प्रश्न संगत है । और जब मैं जवाब देता हूं । तो उन्हें धक्का लगता है । उन्हें यह उत्तर अपेक्षित नहीं था । मैंने उनसे कहा - मैं पुरुष हूं । उन्होंने अविश्वसनीय रूप से मुझे देखा । मैंने कहा - यह स्वाभाविक है कि स्त्रियां बहुत बड़ी संख्या में होंगी । क्योंकि उन्होंने अपनी जिंदगी में जो भी जाना है । वह है । या तो सेक्स । या बहुत विरले क्षणों में प्रेम । लेकिन उन्हें कभी प्रेम पूर्णता का स्वाद नहीं मिला । मैंने उन पत्रकारों से कहा - तुम यहां पर जो पुरुष देखते हो । उनमें भी बहुत से गुण विकसित हुए हैं । जो बाहर के समाज में दबे रह गए होंगे । बचपन से ही लड़के से कहा जाता है - तुम लड़के हो । लड़की नहीं हो । एक लड़के की तरह बरताव करो । आंसू लड़कियों के लिए होते हैं । तुम्हारे लिए नहीं । मर्द बनो । अत: हर लड़का उसके स्त्रैण गुणों को खारिज करता रहता है । और जो भी सुंदर है । वह सब स्त्रैण है । तो अंतत: जो शेष रहता है । वह सिर्फ 1 बर्बर पशु । उसका पूरा काम ही है । बच्चों को पैदा करना । लड़की के भीतर कोई पुरुष के गुण पालने की इजाजत नहीं होती । अगर वह पेड़ पर चढ़ना चाहे । तो उसे फौरन रोक देंगे - यह लड़कों के लिए है । लड़की के लिए नहीं । कमाल है । यदि लड़की पेड़ पर चढ़ना चाहती है । तो यह पर्याप्त प्रमाण है कि उसे चढ़ने देना चाहिए । सभी पुराने समाजों ने स्त्री और पुरुष के लिए भिन्न भिन्न कपड़े बनाए हैं । यह सही नहीं है । क्योंकि हर पुरुष 1 स्त्री भी है । वह 2 स्रोतों से आया है । उसके पिता और उसकी मां । दोनों ने उसके अंतस को बनने में योगदान दिया है । और हर स्त्री पुरुष भी होती है । हमने दोनों को नष्ट कर दिया । स्त्री ने समूचा साहस, हिम्मत, तर्क, युक्ति खो दी । क्योंकि इन्हें पौरुष की गुणवत्ताएं माना जाता है । और पुरुष ने प्रसाद, संवेदनशीलता, करुणा, दयालुता खो दी । दोनों आधे हो गए । यह 1 बड़ी समस्याओं में 1 है । जिसे हमें हल करना है । कम से कम हमारे लोगों के लिए । मेरे संन्यासियों को दोनों होना है - आधा पुरुष । आधी स्त्री । यह उन्हें समृद्ध बनाएगा । उनके पास वे सभी गुणवत्ताएं होंगी । जो मनुष्य के लिए संभव हैं । केवल आधी ही नहीं । अंतरतम के बिंदु पर । तुम्हारे भीतर सिर्फ प्रेम पूर्णता की 1 सुवास होती है । तो डरो मत । तुम्हारा भय सही है । जिसे तुम प्रेम कहते हो । वह विदा हो जाएगा । लेकिन उसकी जगह जो आएगा । वह अपरिसीम है । अनंत है । तुम बिना लगाव के प्रेम करने में सफल होओगे । तुम अनेक लोगों से प्रेम कर सकोगे । क्योंकि 1 व्यक्ति से प्रेम करना । खुद को गरीब रखना है । वह 1 व्यक्ति तुम्हें 1 अनुभव दे सकता है । लेकिन कई कई लोगों से प्रेम करना । तुम चकित होओगे कि हर व्यक्ति तुम्हें 1 नया अहसास, नया गीत, नई मस्ती देता है । इसीलिए मैं विवाह के खिलाफ हूं । कम्यून में विवाह खारिज कर देने चाहिए । लोग चाहें । तो तह ए जिंदगी 1 दूसरे के साथ रह सकते हैं । लेकिन यह 1 कानूनी आवश्यकता नहीं होगी । लोगों को कई संबंध बनाने चाहिए । प्रेम के जितने अनुभव संभव हैं । उतने लेने चाहिए । उन्हें मालकियत नहीं जमाना चाहिए । और किसी को अपने ऊपर मालकियत नहीं करने देना चाहिए । क्योंकि वह भी प्रेम को नष्ट करता है । सभी मनुष्य प्रेम करने के पात्र हैं । एक ही व्यक्ति के साथ आजीवन बंधकर रहने की जरूरत नहीं है । यह 1 कारण है कि दुनिया में लोग इतने ऊबे हुए क्यों लगते हैं । वे तुम जैसे हंस क्यों नहीं सकते ? वे तुम्हारी तरह नाच क्यों नहीं सकते ? वे अदृश्य जंजीरों से बंधे हैं । विवाह, परिवार, पति, पत्नी, बच्चे । वे हर तरह के कर्तव्यों, जिम्मेदारियों और त्याग के बोझ तले दबे हैं । और तुम चाहते हो कि वे हंसें । मुस्कुराएं । और आनंद मनाएं ? तुम असंभव की मांग कर रहे हो । लोगों के प्रेम को स्वतंत्र करो । लोगों को मालकियत से मुक्त करो । लेकिन यह तभी होता है । जब तुम ध्यान में अपने अंतरतम को खोजते हो । इस प्रेम का अभ्यास नहीं किया जा सकता । मैं यह नहीं कह रहा हूं कि आज रात किसी अलग स्त्री के पास जाओ । अभ्यास की खातिर । तुम्हें कुछ हासिल नहीं होगा । और तुम अपनी पत्नी को भी खो दोगे । और सुबह तुम बेवकूफ दिखाई दोगे । यह अभ्यास का सवाल नहीं है । यह तुम्हारे अंतरतम को खोजने का सवाल है । अंतरतम की खोज के साथ अवैयक्तिक प्रेम पूर्णता, इम्पर्सनल लविंगनैस पैदा होती है । फिर तुम सिर्फ प्रेम होते हो । और वह फैलता जाता है । पहले मनुष्यों पर, फिर जल्दी ही पशु, पक्षी, पेड़ पर्वत, तारे…। वह दिन भी आता है । जब यह पूरा अस्तित्व तुम्हारी महबूबा बनता है । और जो इसको उपलब्ध नहीं होता । वह मात्र जीवन व्यर्थ गंवा रहा है । हां, तुम्हें कुछ चीजें खोनी होंगी । लेकिन वे निरर्थक हैं । तुम्हें इतना कुछ मिलेगा कि तुम्हें दोबारा याद भी न आएगी कि तुमने क्या खोया है । एक विशुद्ध अवैयक्तिक प्रेम पूर्णता रहेगी । जो किसी के भी अंतरतम में प्रविष्ट हो सकती है । यह निष्पत्ति है । ध्यान पूर्ण स्थिति की । मौन की । अपने अंतस में गहरे डूबने की । मैं केवल तुम्हें राजी करने की कोशिश कर रहा हूं । जो है । उसे खोने से डरो मत । ओशो ।
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महावीर की अहिंसा की संपूर्ण धारणा । अस्तित्व के प्रति सम्मान । इन शब्दों के द्वारा बेहतर प्रदर्शित की जा सकती है । अहिंसा केवल ` छोटा सा भाग है । यह होता रहेगा । तुम जितना स्वयं को खोजोगे । उतने तुम उन सभी वस्तुओं के प्रति जिम्मेदार होओगे । जिनकी तुमने कभी फिक्र नहीं की । इसे कसौटी समझो कि जितना तुम लोगों के प्रति, वस्तुओं के प्रति, अस्तित्व के प्रति जिम्मेदार महसूस करो । उतना तुम समझो कि तुम सही मार्ग पर हो । ओशो
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तो जब ध्यान करो । तब ऐसे करना । जैसे सारा जीवन दाव पर लगा है । तब ही उस महा घडी का आगमन होगा । वह महा सौभाग्य का क्षण आएगा । जब तुम पाओगे । अब विसर्जन का समय आ गया । अब ध्यान को भी छोड़ दें । अब ध्यान से भी ऊपर उठ जाएं । अब समाधि । अब समाधान । अब मंजिल । 
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हिंडो तो घलादे सतगुरु म्हारा ।
हिंडो तो घलादे सतगुरु म्हारा बाग़ में जी । 
सतगुरु म्हारा, हिंडे हिंडे सुरता नार । 
काया तो नगरिये में सतगुरु म्हारा आमली जी ।
सतगुरु म्हारा छाई छाई च्यारू मेर ।
अगर चन्दन को सतगुरु म्हारा पालणों जी ।
सतगुरु म्हारा रेशम डोर घलाय ।
पांच सखी मिल पाणी डे न निसरी जी ।
सतगुरु मेरा पांचू ही एक ऊणीयार ।
नाथ गुलाब से सतगुरु म्हारा विनती जी ।
सतगुरु मेरा गावै गावै भानीनाथ ।

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