Hello Rajeev Ji... Aaj bahut dino ke baad aapke gyaan ki baate parne ko mili, par aap 2 mahine se kahan the, main hamesha aapke article ki pratiksha me rehta tha ke kuch aur gyaan mil jaye... kai bar socha ke apko ya guruji ko phone karu par man me aya ke shayad thek nahi hoga aise mera puchna ..
khair.. achha rajeev ji mujhe ye bataiye ke bina bhojan ke insaan ka shareer kaise jivit reh sakta hai, kya hum bina bhojan ke bhi apna jivan gujar sakta hun, kyonki maine kuch samay pehle tv par ek program dekha ke jabalpur me koi bahut purane baba hai (naam to main bhul gya) jo pichle 15 saal se bina kuch khaye jivit hai, un par kai scientific test huye par kuch pta nahi chala... kya ye sambhav hai....?? Dhnyavad....!! kuldeep singh..( EMAIL से ) ये
परमात्मा की लीला बडी विलक्षण है । जिन बाबा की आप बात कर रहे हैं । उनको एक बार न्यूज में मैंने भी देखा था । वे कमजोर शरीर के थे । वे कोई योग बगैरा करते थे ? ये भी ठीक मुझको पता नही है । आपकी बात का उत्तर देने से पहले एक बात याद आ गई । लगभग 15 साल पहले अछल्दा दिबियापुर में एक गांव के बाहर मंदिर में मैं 15 दिन के लिये रुका था । वहां एक सच्चे योगी रहते थे । जिनकी आयु और कहां से आये है । इसके बारे में किसी को कुछ पता नहीं था । कोई उन्हें 200 तो कोई 400 साल आयु का बताता था ।
पर उनका सुगठित शरीर 20 साल के नौजवान जैसा पुष्ट था । एकदम सफ़ेद बाल । सफ़ेद दाढी । और सौम्य शान्त परिपक्व मुख । यानी मुख देखने से 80 का अहसास तो होता था । पर बाडी देखकर हैरानी होने लगती थी । वे सिर्फ़ कमर पर एक धोती बांधते थे और कमर से ऊपर निर्वस्त्र रहते थे । वे पूरे दिन एक कठिन आसन में तखत पर बैठे रहते थे । और शाम को मंदिर में ही अंडरग्राउंड गुफ़ा में चले जाते थे । जिसमें जाने की किसी को इजाजत नहीं थी । सबसे बडी बात ये थी कि तीन चार दिन में अपने एकमात्र शिष्य के बेहद आग्रह पर वो शाम को एक बार आधा टिक्कर ( साधुओं की हाथ की बनी रोटी ) मुश्किल से खाते थे ।
उनके शिष्य ने बताया । मैं भी इसी का अभ्यास कर रहा हूं । इसमें पहले कम भोजन । फ़िर पत्ते । फ़िर पानी । फ़िर वायु का आहार करने का अभ्यास किया जाता है । संयम करते करते धीरे धीरे खाना छूट जाता है । यह सब 15 दिन तक मैंने स्वयं देखा । तो कहने का मतलब ये कि TV वाले बाबा फ़िर भी कमजोर नजर आते थे । और 70 साल के थे । ये तो 24 घंटे तरोताजा दिखते थे ।
टेरी कोहाट सिंध ( अब पाकिस्तान ) के कायस्थ परिवार के स्वरूपानन्द जी ( अब अशरीर ) जिनका नंगली साहिब ( मेरठ ) में विशाल ( 16 किमी दायरे में ) आश्रम है । तपोभूमि नगला पदी आगरा में अपनी तपस्या के दौरान 12 साल तक निराहार रहे । इन्ही के गुरछपरा बिहार के अद्वैतानन्द जी भी ग्यान प्राप्ति के दिनों में काफ़ी समय तक निराहार रहते थे । अब आपकी बात का उत्तर देता हूं । विभिन्न वासनाओं के जाग्रत रहने से । और शरीर के द्वारा अलग अलग कार्य करने के अनुसार हमें भोजन की आवश्यकता होती है । जो लोग कम मेहनत करते हैं । उनको कम भोजन चाहिये होता है ।
5 तत्वों से बने इस शरीर में जल तत्व की जल द्वारा । वायु की वायु द्वारा । अग्नि और प्रथ्वी की भोजन द्वारा आपूर्ति होती है । तत्व में विशेष कमी हो जाने पर ( बीमारी में ) रसायन ( दवा ) आदि के द्वारा उसको पूरा किया जाता है । तत्वों के क्षय होने से ही बुढापा आता है । अधिक क्षीण हो जाने पर शरीर की मृत्यु हो जाती है । योगी इन तत्वों पर संयम ( ठहराव ) करना जानते है । जल तत्व पर संयम करने से प्यास प्रथ्वी पर संयम करने से भूख आदि को जीत लिया जाता है । संयम करने के और भी लाभ होते है । जैसे जल तत्व को सिद्ध करने पर जल पर भूमि के समान चलना । और झील या समुद्र की गहराई ( तल ) में नार्मली बिना सांस आदि रोके ऐसे बैठना । जैसे जमीन पर बैठे हों । आराम से होता है ।
लेकिन बिना किसी योग के भी आम इंसान में ऐसी क्रियायें कभी कभी घटित होती देखी गयी हैं । जैसी आपने TV पर देखी । इसमें किसी कारणवश मन क्रियारहित हो जाता है । और उसकी एक विशेष कनेक्टिविटी ब्रेन के दाहिने हिस्से से हो जाती है । जो आम आदमी का लाक होता है । यह सिद्ध क्षेत्र है । इस तरह आटोमेटिक आदमी के तत्वों की पूर्ति किसी योगी के तरह ही बिना खाये पिये ही होती रहती है । और वह जीवित रहता है । हालांकि में पक्का तो नहीं कह सकता । पर उन बाबा को जो क्रिया उनके शरीर में हुयी । उसका एक योगी की तरह उन्हें ग्यान नहीं है । क्योंकि ऐसा होता तो उनका शरीर भी नौजवान की तरह होता । साइंटिफ़िक टेस्ट की बात छोड दीजिये । कई बार महात्माओं के घरवालों के द्वारा उनके थोडा बीमार पड जाने पर जबरदस्ती डाक्टर को दिखाने पर जब डाक्टर के द्वारा उनका ब्लड प्रेशर आदि चेक किया गया । तो वो भोंचक्का होकर बोले । कमाल है । आप आराम से चल रहे है । जबकि आपका ब्लड प्रेशर 120 to 230 है । ऐसी हालत में तो इंसान खडा नहीं हो पाता । दूसरी अन्य क्रियाओं से भी बिना भोजन के जीने की स्थिति बन जाती है । क्योंकि ये लीला अपरम्पार है कुलदीप जी ?
khair.. achha rajeev ji mujhe ye bataiye ke bina bhojan ke insaan ka shareer kaise jivit reh sakta hai, kya hum bina bhojan ke bhi apna jivan gujar sakta hun, kyonki maine kuch samay pehle tv par ek program dekha ke jabalpur me koi bahut purane baba hai (naam to main bhul gya) jo pichle 15 saal se bina kuch khaye jivit hai, un par kai scientific test huye par kuch pta nahi chala... kya ye sambhav hai....?? Dhnyavad....!! kuldeep singh..( EMAIL से ) ये
परमात्मा की लीला बडी विलक्षण है । जिन बाबा की आप बात कर रहे हैं । उनको एक बार न्यूज में मैंने भी देखा था । वे कमजोर शरीर के थे । वे कोई योग बगैरा करते थे ? ये भी ठीक मुझको पता नही है । आपकी बात का उत्तर देने से पहले एक बात याद आ गई । लगभग 15 साल पहले अछल्दा दिबियापुर में एक गांव के बाहर मंदिर में मैं 15 दिन के लिये रुका था । वहां एक सच्चे योगी रहते थे । जिनकी आयु और कहां से आये है । इसके बारे में किसी को कुछ पता नहीं था । कोई उन्हें 200 तो कोई 400 साल आयु का बताता था ।
पर उनका सुगठित शरीर 20 साल के नौजवान जैसा पुष्ट था । एकदम सफ़ेद बाल । सफ़ेद दाढी । और सौम्य शान्त परिपक्व मुख । यानी मुख देखने से 80 का अहसास तो होता था । पर बाडी देखकर हैरानी होने लगती थी । वे सिर्फ़ कमर पर एक धोती बांधते थे और कमर से ऊपर निर्वस्त्र रहते थे । वे पूरे दिन एक कठिन आसन में तखत पर बैठे रहते थे । और शाम को मंदिर में ही अंडरग्राउंड गुफ़ा में चले जाते थे । जिसमें जाने की किसी को इजाजत नहीं थी । सबसे बडी बात ये थी कि तीन चार दिन में अपने एकमात्र शिष्य के बेहद आग्रह पर वो शाम को एक बार आधा टिक्कर ( साधुओं की हाथ की बनी रोटी ) मुश्किल से खाते थे ।
उनके शिष्य ने बताया । मैं भी इसी का अभ्यास कर रहा हूं । इसमें पहले कम भोजन । फ़िर पत्ते । फ़िर पानी । फ़िर वायु का आहार करने का अभ्यास किया जाता है । संयम करते करते धीरे धीरे खाना छूट जाता है । यह सब 15 दिन तक मैंने स्वयं देखा । तो कहने का मतलब ये कि TV वाले बाबा फ़िर भी कमजोर नजर आते थे । और 70 साल के थे । ये तो 24 घंटे तरोताजा दिखते थे ।
टेरी कोहाट सिंध ( अब पाकिस्तान ) के कायस्थ परिवार के स्वरूपानन्द जी ( अब अशरीर ) जिनका नंगली साहिब ( मेरठ ) में विशाल ( 16 किमी दायरे में ) आश्रम है । तपोभूमि नगला पदी आगरा में अपनी तपस्या के दौरान 12 साल तक निराहार रहे । इन्ही के गुरछपरा बिहार के अद्वैतानन्द जी भी ग्यान प्राप्ति के दिनों में काफ़ी समय तक निराहार रहते थे । अब आपकी बात का उत्तर देता हूं । विभिन्न वासनाओं के जाग्रत रहने से । और शरीर के द्वारा अलग अलग कार्य करने के अनुसार हमें भोजन की आवश्यकता होती है । जो लोग कम मेहनत करते हैं । उनको कम भोजन चाहिये होता है ।
5 तत्वों से बने इस शरीर में जल तत्व की जल द्वारा । वायु की वायु द्वारा । अग्नि और प्रथ्वी की भोजन द्वारा आपूर्ति होती है । तत्व में विशेष कमी हो जाने पर ( बीमारी में ) रसायन ( दवा ) आदि के द्वारा उसको पूरा किया जाता है । तत्वों के क्षय होने से ही बुढापा आता है । अधिक क्षीण हो जाने पर शरीर की मृत्यु हो जाती है । योगी इन तत्वों पर संयम ( ठहराव ) करना जानते है । जल तत्व पर संयम करने से प्यास प्रथ्वी पर संयम करने से भूख आदि को जीत लिया जाता है । संयम करने के और भी लाभ होते है । जैसे जल तत्व को सिद्ध करने पर जल पर भूमि के समान चलना । और झील या समुद्र की गहराई ( तल ) में नार्मली बिना सांस आदि रोके ऐसे बैठना । जैसे जमीन पर बैठे हों । आराम से होता है ।
लेकिन बिना किसी योग के भी आम इंसान में ऐसी क्रियायें कभी कभी घटित होती देखी गयी हैं । जैसी आपने TV पर देखी । इसमें किसी कारणवश मन क्रियारहित हो जाता है । और उसकी एक विशेष कनेक्टिविटी ब्रेन के दाहिने हिस्से से हो जाती है । जो आम आदमी का लाक होता है । यह सिद्ध क्षेत्र है । इस तरह आटोमेटिक आदमी के तत्वों की पूर्ति किसी योगी के तरह ही बिना खाये पिये ही होती रहती है । और वह जीवित रहता है । हालांकि में पक्का तो नहीं कह सकता । पर उन बाबा को जो क्रिया उनके शरीर में हुयी । उसका एक योगी की तरह उन्हें ग्यान नहीं है । क्योंकि ऐसा होता तो उनका शरीर भी नौजवान की तरह होता । साइंटिफ़िक टेस्ट की बात छोड दीजिये । कई बार महात्माओं के घरवालों के द्वारा उनके थोडा बीमार पड जाने पर जबरदस्ती डाक्टर को दिखाने पर जब डाक्टर के द्वारा उनका ब्लड प्रेशर आदि चेक किया गया । तो वो भोंचक्का होकर बोले । कमाल है । आप आराम से चल रहे है । जबकि आपका ब्लड प्रेशर 120 to 230 है । ऐसी हालत में तो इंसान खडा नहीं हो पाता । दूसरी अन्य क्रियाओं से भी बिना भोजन के जीने की स्थिति बन जाती है । क्योंकि ये लीला अपरम्पार है कुलदीप जी ?
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