20 दिसंबर 2010

रात को लेकिन न तारे भूलते हैं


प्रेम बहुत शक्तिशाली संजीवनी है । प्रेम से अधिक कुछ भी गहरा नहीं जाता । यह सिर्फ शरीर का ही उपचार नहीं करता । सिर्फ मन का ही नहीं । बल्कि आत्मा का भी उपचार करता है । यदि कोई प्रेम कर सके । तो उसके सभी घाव विदा हो जाएंगे । तब तुम पूर्ण हो जाते हो । और पूर्ण होना पवित्र होना है । ओशो
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जो अच्छा लगे । वो करते जाओ । कोई गलत भी होगा । तो पीछे वाले अपने आप सही कर लेंगे । कुंआ बावड़ी रास्ते पर कांटा लगाना ना चाहिए । अपने सुख के लिए किसी की आत्मा पर चोट ना हो । बाकी मैं अपने आप ही कर लूंगा । जो भी करें । उसको देखते हुए करते चलो । और पूर्ण भी ।
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दुख पैदा होता है । क्योंकि हम बदलाव को होने नहीं देते । हम पकड़ते हैं । हम चाहते हैं कि चीजें स्थिर हों । यदि तुम स्त्री को प्रेम करते हो । तो तुम उसे आने वाले कल भी चाहते हो । वैसी ही जैसी कि वह तुम्हारे लिए आज है । इस तरह से दुख पैदा होता है । कोई भी आने वाले क्षण के लिए सुनिश्चित नहीं हो सकता । आने वाले कल की तो बात ही क्या करें ? होश से भरा व्यक्ति जानता है कि जीवन सतत बदल रहा है । जीवन बदलाहट है । यहां 1 ही चीज स्थायी है । और वह है - बदलाव । बदलाव के अलावा हर चीज बदलती है । जीवन की इस प्रकृति को स्वीकारना । इस बदलते अस्तित्व को । उसके सभी मौसम और मूड के साथ स्वीकारना । यह सतत प्रवाह । जो 1 क्षण के लिए भी नहीं रुकता । आनंद पूर्ण है । तब कोई भी तुम्हारे आनंद को विचलित नहीं कर सकता । स्थाई हो जाने की तुम्हारी चाह तुम्हारे लिए तकलीफ पैदा करती है । यदि तुम ऐसा जीवन जीना चाहते हो । जिसमें कोई बदलाव न हो । तुम असंभव बात करना चाहते हो । होश से भरा व्यक्ति इतना साहसी होता है कि इस बदलती घटना को स्वीकार लेता है । उस स्वीकार में आनंद है । तब सब कुछ शुभ है । तब तुम कभी भी विषाद से नहीं भरते ।
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1 स्त्री 1 दूसरी स्त्री को किसी तीसरी स्त्री के संबंध में निंदा की बातें कह रही थी । पहली स्त्री बड़ी प्रसन्नता से सुन रही थी । जब पूरी बात हो गयी । तो उसने कहा - अरे, कुछ और सुनाओ । थोड़ा कुछ और बताओ । फिर क्या हुआ ? उस स्त्री ने कहा - अब छोड़ो भी । जितना मैं जानती थी । उससे दुगुना तो बता ही चुकी ।
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जहाँ दरिया कहीं अपने किनारे छोड़ देता है ।
कोई उठता है और तूफ़ान का रुख मोड़ देता है ।
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जब तुमने होश पैदा ही नहीं किया । तो होश कहाँ से होगा ? जब हम सो जाते हैं । और जब तुम उठ जाते हो । और पूरी दिन भर की क्रिया बेहोशी ही में निबट जाती है । होश का मात्र पल भर आपका जीवन बदल देता है ।
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1 तो होता है - मनोरंजन । 1 होता है - आनंद । उत्सव । दोंनों में शरीर साथ होता है । लेकिन 1 में मन साथ होता है । शरीर के जिसको मनोरंजन कहते हैं । मन की प्यास । मन को खुश करना । और जो खुश होता है । वो नाराज भी जल्दी हो जाता है । और 1 है - उत्सव । जिसमें शरीर तो है । लेकिन चेतना में रहता है । जब हम चंग या गाना, गीत, जो भी करते हैं । तब तुम नही रहते । और भीतर की यात्रा शुरू हो जाती है । हां जी आप भी अनुभव करो । जीवन 1 अनुभव ही है । मारवाड़ी में कहते है - राम ही निक्लग्यो । वा रे रसियो । बुढा हो जावोला ।
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यह बात बड़ी गजब की कही बुद्ध ने - मां का पेट है क्या ? मल मूत्र का गड्डा है । वहां और है क्या ? बच्चा मल मूत्र में लिपटा ही पड़ा रहता है । 9 महीने तक । बारबार जन्म लेना । मल मूत्र के गढ्ढे में बारबार गिरना है ।
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सुख का अर्थ है । दुख गया । मगर राह देख रहा है किनारे पर खड़ा कि कब सुख से आपका छुटकारा हो । तो मैं फिर आऊं । कभी ज्यादा दूर नहीं जाता । सुख में दुख ज्यादा दूर नहीं जाता । ऐसे दरवाजे के पास खड़ा हो जाता है निकलकर कि ठीक है । आप थोड़ी देर सुख भोगो । फिर मैं आ जाऊं । सुख और दुख साथ साथ हैं । आनंद का अर्थ है । दुख सदा को गया । और जब दुख ही चला गया सदा को । तो सुख भी चला गया सदा को । सुख दुख का जोड़ा है । वे साथ साथ हैं । आनंद तो 1 परम शांति की दशा है । जहां न दुख सताता । न सुख सताता । जहां कोई सताता ही नहीं । जहां कोई उत्तेजना नहीं होती । सुख की भी उत्तेजना है ।
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निंदा में रस होता है । अगर कोई आदमी आए । और किसी की निंदा करने लगे । तो तुम हजार काम छोड़कर कहते हो - हां भाई ! और कुछ सुनाओ । फिर क्या हुआ ? फिर इसके आगे क्या हुआ ? फिर तुम्हें 1 खुजलाहट पैदा होती है । तुम हजार काम छोड़ देते हो । तुम भगवान की प्रार्थना कर रहे थे । तुम छोड़ देते हो । कोई निंदक आ गया । तुम कहते हो - छोड़ो । प्रार्थना फिर कर लेंगे । ये निंदक महाराज मिलें । न मिलें । इनको वैसे काम भी काफी रहता है । क्योंकि जो मिल जाता है । वही इनको घंटों रोक लेता है कि कहो भाई ! क्या खबर ?
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पंडित मत बनना । इन बातों को सुनकर । प्रज्ञा को जगाना । होश को जगाना । ये बातें तुम्हारा अनुभव बन जाएं । तो ही मुक्तिदायी हैं ।
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तुम्हारी चालाकी ही तुम्हारे गले में फांसी का फंदा बनेगी 1 दिन -ओशो
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समझ लेना मेरी बात । क्या मैं कह रहा हूं ? नहीं तो तुम कहोगे । भगवान ने गलत बात कह दी । गीता पढ़ो । तो अशांति मिलती है । क्योंकि गीता पढ़ो । तो यह पता चलता है कि तुम कहां कीड़े मकोड़ों की तरह सरक रहे हो । उठो । पहाड़ खड़ा हो जाता है सामने । इसको चढ़ना पड़ेगा । अर्जुन चढ़ गया । तुम क्यों नहीं चढ़ रहे हो ? बेचैनी होती है । गीता पढ़कर शांति नहीं मिलती । जिनको मिलती है । उन्होंने गीता पढ़ी नहीं । गीता पढ़ोगे । तो अशात हो जाओगे । तब दुकानदारी नहीं कर सकोगे इतनी आसानी से । जैसी कर रहे हो । क्योंकि फिर अर्जुन कब बनोगे ? फिर यह कृष्ण चेतना का अनुभव कब करोगे ? फिर यह छोटी छोटी बातों में उलझे हो । इसमें नहीं उलझे रह सकोगे । फिर भगवान को कब पुकारोगे ? फिर समर्पण कब होगा ? फिर अर्पण कब होओगे ? यह समय बहा जा रहा है ।
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स्वाध्याय न करना । मंत्रों का मैल है । मंत्र तो सीख लिया । दोहरा दिया तोते की तरह । और उसका स्वाध्याय न किया । तो मंत्र पर धूल जम जाती है । फिर मंत्र मैला हो गया । मंत्र को साफ करो । निखारो । मंत्र में जरूर शक्ति है । जैसे दर्पण में चित्र बन सकता तुम्हारा । लेकिन धूल तो हटाओ । जैसे दर्पण पर धूल जम जाती है । ऐसा बुद्ध कहते हैं । मंत्र पर भी धूल जम जाती है । शास्त्र पर भी धूल जम जाती है । शब्द पर भी धूल जम जाती है । उसे झाड़ो । झाड़ोगे कैसे ? स्वाध्याय से । जो कहा है शब्द ने । उसे जीवन में उतारो । निखारो । पहचानो । परीक्षा करो । प्रयोग करो ।
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तारकों को रात चाहे भूल जाये । रात को लेकिन न तारे भूलते हैं ।
दे भुला सरिता किनारों को भले ही । पर न सरिता को किनारे भूलते हैं । आंसुओ से तर बिछुड़ने की घड़ी में । 1 ही अनुरोध तुमसे कर रहा हूं । हास पर संदेह कर लेना भले ही । आंसुओ की धार पर विश्वास करना । प्राण ! मेरे प्यार पर विश्वास करना । लोग कहते हैं कि भौंरा गुनगुनाता । किंतु मैं कहता कि वह है आह भरता । क्या पता रंगीन कलियों को कि उन पर । 1 जीवन में भ्रमर 100 बार मरता । तीर सी चुभती बिछुड़ने की घड़ी में । 1 ही अनुरोध तुमसे कर रहा हूं । जीत पर संदेह कर लेना भले ही । पर हृदय की हार पर विश्वास करना । प्राण ! मेरे प्यार पर विश्वास करना । अश्रु मेरे जा रहे मुझको गलाये । आग मेरी जा रही मुझको जलाये । रह न जाये द्वैत तुममें और मुझमें । जा रहा हूं इसलिए हस्ती मिटाये । सांझ सी धुंधली बिछुड़ने की घड़ी में । 1 ही अनुरोध तुमसे कर रहा हूं । जिंदगी पर मत भले करना भरोसा । पर मरण त्यौहार पर विश्वास करना । प्राण ! मेरे प्यार पर विश्वास करना ।

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