इल्यूजन का अर्थ है - दूर जाने से जो बढ़ता है । पास जाने से जो घटता है । अब यह बड़ा मजा है । अगर हम इस परिभाषा को समझ लें । तो हमारी जिंदगी में चुकता भ्रमों के सिवाय कुछ भी नहीं है ।
एक स्त्री बहुत सुंदर मालूम पड़ती है । बस आपको उससे मिलने न दिया जाए । वह सदा सुंदर रहेगी । मिलने दिया जाए । सब गड़बड़ हो जाएगा । अगर आपका विवाह करवा दिया जाए । तो वह स्त्री सुंदर नहीं रह जाएगी । जिसको देखकर आप दीवाने हो जाते थे । नाच उठते थे । उसको देखकर आपके भीतर धड़कन भी पैदा नहीं होगी । कुछ भी नहीं होगा ।
सच तो यह है कि पत्नियों को लोग देखना ही बंद कर देते हैं । देखते ही नहीं । आंख भी पड़ती है । तो पत्नी दिखाई नहीं पड़ती । सिर्फ दूसरों की पत्नियां दिखाई पड़ सकती हैं । अपनी पत्नी दिखाई पड़ ही नहीं सकती । बहुत मुश्किल है । क्योंकि भ्रम तो कुछ बचता नहीं है । सब टूट जाता है । सब उघड़ जाता है ।
जो आपके पास नहीं है । वह बड़ा मूल्यवान मालूम पड़ता है । और पास आते ही मूल्य खो जाता है । इसलिए शंकर जैसे ज्ञानियों ने संसार को मिथ्या कहा है । झूठ कहा है । असत्य कहा है । माया कहा है । उसका कुल मतलब इतना है कि माया की परिभाषा यही है कि जिसके पास जाने से जो मिट जाए । और दूर जाने से बढ़े ।
आप सोचते हैं कि धनपति अपने महल में बड़े आनंद में हैं । यह आप ही सोचते हैं । कोई धनपति आनंद में नहीं है । मगर यह आपको पता तब तक नहीं चलेगा । जब तक आप धनपति न हो जाएं । और महल में न पहुंच जाएं । महल में पहुंचते पहुंचते आपको पता चलेगा कि मैं कहां आ गया ? यहां कुछ भी नहीं है । लेकिन यह आपको पता चलेगा । आपके मकान के करीब से जो लोग गुजर रहे हैं । वे सोच रहे हैं कि आप बड़े आनंद में हैं ।
आप देखते हैं - जैनों के 24 तीर्थंकर राजाओं के पुत्र हैं । बुद्ध राजा के पुत्र हैं । हिंदुओं के सब अवतार राजाओं के पुत्र हैं । कारण ? असल में राजा हुए बिना संसार का पूरा भ्रम नहीं टूटता । राजा का मतलब । जिसके पास सब कुछ है । जब सब कुछ है । तो दिखाई पड़ जाता है कि सब बेकार है । तीर्थंकर राजपुत्र ही हो सकता है । दरिद्र का बेटा तीर्थंकर हो । बड़ा मुश्किल है । मुश्किल इसलिए कि भ्रम टूटेंगे कैसे ? जिनसे दूरी है । वे भ्रम नहीं टूटते । जिनसे निकटता है । वे भ्रम टूट जाते हैं ।
पुराने लोग बड़े होशियार थे । उन्होंने स्त्री पुरुष के बीच इतनी बाधाएं खड़ी की थीं कि स्त्री पुरुष का आकर्षण कभी नहीं टूटा । इस मुल्क में अपनी पत्नी से भी आकर्षण कभी नहीं टूटता था । क्योंकि दिन में पति भी नहीं देख सकता था उसको । रात में पति पत्नी भी करीब करीब चोरी से मिलते थे । संयुक्त परिवार । बड़े परिवार । सबके सामने पति पत्नी भी नहीं मिल सकते थे । रस जीवन भर कायम रहता था । बड़े होशियार लोग थे । तलाक का कोई सवाल ही नहीं था । मिलना ही नहीं हो पाता था पूरा । तलाक तो पूरे मिलने का परिणाम है ।
जिंदगी को जितना आप जानेंगे । उतना जिंदगी व्यर्थ होती चली जाएगी । जानने से जो व्यर्थ हो जाए । वह भ्रम है । जानने से जो और भी सार्थक होने लगे । वह सत्य है ।
इसलिए जिसके पास जा जाकर आपको लगे कि और भी सत्य है । और भी सत्य है । समझना कि वह माया का जो जाल था । उसके बाहर है । परमात्मा मैं उसे कहता हूं । जिसके पास जितना ज्यादा आप जाएं । वह उतना सत्यतर होने लगे । और संसार उसे कहता हूं । जिसके पास जितना ज्यादा आप जाएं । वह उतना असत्यतर होने लगे ।
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दृष्टि न हो । तो विपरीत दिखाई पड़ता है । दृष्टि हो । तो जरा भी विपरीत दिखाई न पड़ेगा । जिसको बुद्ध होश कहते हैं । उसी को सूफियों ने बेहोशी कहा । जिसको बुद्ध अप्रमाद कहते हैं । उसी को भक्तों ने शराब कहा । बुद्ध के वचनों में और उमर खैयाम में इंच भर का फासला नहीं । बुद्ध ने जिसे मंदिर कहा है । उसी को उमर खैयाम ने मधुशाला कहा । बुद्ध तो समझे ही नहीं गए । उमर खैयाम भी समझा नहीं गया । उमर खैयाम को लोगों ने समझा कि शराब की प्रशंसा कर रहा है । कुछ अपनी करामात दिखा ए साकी । जो खोल दे आंख वो पिला ए साकी । होशियार को दीवाना बनाया भी तो क्या । दीवाने को होशियार बना ए साकी । तुम बेहोश हो । शराब तो तुमने पी ही रखी है । संसार की शराब । किसी ने धन की शराब पी रखी है । और धन में बेहोश है । किसी ने पद की शराब पी रखी है । और पद में बेहोश है । किसी ने यश की शराब पी रखी है । जिनको न पद, यश, धन की शराब मिली । वे सस्ती शराब मयखानों में पी रहे हैं । वे हारे हुए शराबी हैं ।
एक स्त्री बहुत सुंदर मालूम पड़ती है । बस आपको उससे मिलने न दिया जाए । वह सदा सुंदर रहेगी । मिलने दिया जाए । सब गड़बड़ हो जाएगा । अगर आपका विवाह करवा दिया जाए । तो वह स्त्री सुंदर नहीं रह जाएगी । जिसको देखकर आप दीवाने हो जाते थे । नाच उठते थे । उसको देखकर आपके भीतर धड़कन भी पैदा नहीं होगी । कुछ भी नहीं होगा ।
सच तो यह है कि पत्नियों को लोग देखना ही बंद कर देते हैं । देखते ही नहीं । आंख भी पड़ती है । तो पत्नी दिखाई नहीं पड़ती । सिर्फ दूसरों की पत्नियां दिखाई पड़ सकती हैं । अपनी पत्नी दिखाई पड़ ही नहीं सकती । बहुत मुश्किल है । क्योंकि भ्रम तो कुछ बचता नहीं है । सब टूट जाता है । सब उघड़ जाता है ।
जो आपके पास नहीं है । वह बड़ा मूल्यवान मालूम पड़ता है । और पास आते ही मूल्य खो जाता है । इसलिए शंकर जैसे ज्ञानियों ने संसार को मिथ्या कहा है । झूठ कहा है । असत्य कहा है । माया कहा है । उसका कुल मतलब इतना है कि माया की परिभाषा यही है कि जिसके पास जाने से जो मिट जाए । और दूर जाने से बढ़े ।
आप सोचते हैं कि धनपति अपने महल में बड़े आनंद में हैं । यह आप ही सोचते हैं । कोई धनपति आनंद में नहीं है । मगर यह आपको पता तब तक नहीं चलेगा । जब तक आप धनपति न हो जाएं । और महल में न पहुंच जाएं । महल में पहुंचते पहुंचते आपको पता चलेगा कि मैं कहां आ गया ? यहां कुछ भी नहीं है । लेकिन यह आपको पता चलेगा । आपके मकान के करीब से जो लोग गुजर रहे हैं । वे सोच रहे हैं कि आप बड़े आनंद में हैं ।
आप देखते हैं - जैनों के 24 तीर्थंकर राजाओं के पुत्र हैं । बुद्ध राजा के पुत्र हैं । हिंदुओं के सब अवतार राजाओं के पुत्र हैं । कारण ? असल में राजा हुए बिना संसार का पूरा भ्रम नहीं टूटता । राजा का मतलब । जिसके पास सब कुछ है । जब सब कुछ है । तो दिखाई पड़ जाता है कि सब बेकार है । तीर्थंकर राजपुत्र ही हो सकता है । दरिद्र का बेटा तीर्थंकर हो । बड़ा मुश्किल है । मुश्किल इसलिए कि भ्रम टूटेंगे कैसे ? जिनसे दूरी है । वे भ्रम नहीं टूटते । जिनसे निकटता है । वे भ्रम टूट जाते हैं ।
पुराने लोग बड़े होशियार थे । उन्होंने स्त्री पुरुष के बीच इतनी बाधाएं खड़ी की थीं कि स्त्री पुरुष का आकर्षण कभी नहीं टूटा । इस मुल्क में अपनी पत्नी से भी आकर्षण कभी नहीं टूटता था । क्योंकि दिन में पति भी नहीं देख सकता था उसको । रात में पति पत्नी भी करीब करीब चोरी से मिलते थे । संयुक्त परिवार । बड़े परिवार । सबके सामने पति पत्नी भी नहीं मिल सकते थे । रस जीवन भर कायम रहता था । बड़े होशियार लोग थे । तलाक का कोई सवाल ही नहीं था । मिलना ही नहीं हो पाता था पूरा । तलाक तो पूरे मिलने का परिणाम है ।
जिंदगी को जितना आप जानेंगे । उतना जिंदगी व्यर्थ होती चली जाएगी । जानने से जो व्यर्थ हो जाए । वह भ्रम है । जानने से जो और भी सार्थक होने लगे । वह सत्य है ।
इसलिए जिसके पास जा जाकर आपको लगे कि और भी सत्य है । और भी सत्य है । समझना कि वह माया का जो जाल था । उसके बाहर है । परमात्मा मैं उसे कहता हूं । जिसके पास जितना ज्यादा आप जाएं । वह उतना सत्यतर होने लगे । और संसार उसे कहता हूं । जिसके पास जितना ज्यादा आप जाएं । वह उतना असत्यतर होने लगे ।
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दृष्टि न हो । तो विपरीत दिखाई पड़ता है । दृष्टि हो । तो जरा भी विपरीत दिखाई न पड़ेगा । जिसको बुद्ध होश कहते हैं । उसी को सूफियों ने बेहोशी कहा । जिसको बुद्ध अप्रमाद कहते हैं । उसी को भक्तों ने शराब कहा । बुद्ध के वचनों में और उमर खैयाम में इंच भर का फासला नहीं । बुद्ध ने जिसे मंदिर कहा है । उसी को उमर खैयाम ने मधुशाला कहा । बुद्ध तो समझे ही नहीं गए । उमर खैयाम भी समझा नहीं गया । उमर खैयाम को लोगों ने समझा कि शराब की प्रशंसा कर रहा है । कुछ अपनी करामात दिखा ए साकी । जो खोल दे आंख वो पिला ए साकी । होशियार को दीवाना बनाया भी तो क्या । दीवाने को होशियार बना ए साकी । तुम बेहोश हो । शराब तो तुमने पी ही रखी है । संसार की शराब । किसी ने धन की शराब पी रखी है । और धन में बेहोश है । किसी ने पद की शराब पी रखी है । और पद में बेहोश है । किसी ने यश की शराब पी रखी है । जिनको न पद, यश, धन की शराब मिली । वे सस्ती शराब मयखानों में पी रहे हैं । वे हारे हुए शराबी हैं ।
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