सबसे बड़ा रोग । क्या कहेंगे लोग ? पहला भय । लोग क्या कहेंगे - ओशो । लोग क्या कहेंगे ? यह पहला भय है । और गहरे से गहरा भय है । लोग क्या समझेंगे ? एक महिला मेरे पास कुछ ही दिन पहले आई । और उसने मुझे कहा कि मेरे पति ने कहा है कि सुनना तो जरूर । लेकिन भूलकर कभी कीर्तन में सम्मिलित मत होना । तो मैंने उससे पूछा कि पति को क्या फिक्र है । तेरे कीर्तन में सम्मिलित होने से ? तो उसने कहा - पति मेरे डॉक्टर हैं । प्रतिष्ठा वाले हैं । वे बोले कि अगर तू कीर्तन में सम्मिलित हो जाए । तो लोग मुझे परेशान करेंगे कि पापी पत्नी को क्या हो गया ? तो तू और सब करना । लेकिन कीर्तन भर में सम्मिलित मत होना । घर से लोग समझाकर भेजते हैं कि सुन लेना । करना भर मत कुछ । क्योंकि करने में खतरा है । सुनने तक बात बिलकुल ठीक है । करने में अड़चन मालूम होती है । क्योंकि आप पागल होने के लिए तैयार हैं । और जब तक आप पागल होने के लिए तैयार नहीं हैं । तब तक धार्मिक होने का कोई उपाय नहीं है । तो सुनें मजे से । फिर चिंता में मत पड़ें । जिस दिन भी करेंगे । उस दिन आपको दूसरे क्या कहेंगे ? इसकी फिक्र छोड़ देनी पड़ेगी । दूसरे बहुत सी बातें कहेंगे । वे आपके खिलाफ कह रहे हैं । वे अपनी आत्मरक्षा कर रहे हैं । क्योंकि अगर आपको ठीक मानें । तो वे गलत लगेंगे । इसलिए उपाय एक ही है कि आप गलत हैं । तो वे अपने को ठीक मान सकते हैं । और निश्चित ही उनकी संख्या ज्यादा है । आपको गलत होने के लिए तैयार होना पड़ेगा । बड़े से बड़ा साहस समूह के मत से ऊपर उठता है । इस फिक्र के छोड़ते ही आपके भीतर भी रस का संचार हो जाएगा । यही द्वार बाँधा हुआ है । इसी से दरवाजा रुका हुआ है । यह फिक्र छोड़ते ही से आपके पैर में भी थिरकन आ जाएगी । और आपका हृदय भी नाचने लगेगा । और आप भी गा सकेंगे । और अगर यह फिक्र छोड़कर आप एक बार भी गा सके । और नाच सके । तो आप कहेंगे कि अब दुनिया की मुझे कोई चिंता नहीं है । एक बार आपको स्वाद मिल जाए । किसी और लोक का । तो फिर कठिनाई नहीं है । लोगों की फिक्र छोड़ने में । कठिनाई तो अभी है कि उसका कोई स्वाद भी नहीं है । जिसे पाना है । और लोगों से जो प्रतिष्ठा मिलती है । उसका स्वाद है । जिसको छोड़ना है । जिसको छोड़ना है । उसमें रस है । और जिसको पाना है । उसका हमें कोई रस नहीं है । इसलिए डर लगता है । हाथ की आधी रोटी भी, मिलने वाली स्वर्ग में पूरी रोटी से ज्यादा मालूम पड़ती है । स्वाभाविक है । सीधा गणित है । लेकिन अगर इस दशा में, जिसमें आप हैं । आप सोचते हैं । सब ठीक है । तो मैं आपसे नहीं कहता कि आप कोई बदलाहट करें । और आपको लगता हो कि सब गलत है । जिस हालत में आप हैं । तो फिर हिम्मत करें । और थोड़े परिवर्तन की खोज करें । शांत प्रयोग करना हो । शांत प्रयोग करें । लेकिन कुछ करें । अधिक लोग कहते हैं कि शांत प्रयोग ही ठीक है । क्योंकि अकेले में आँख बंद करके बैठ जाएँगे । किसी को पता तो नहीं चलेगा । लेकिन अक्सर शांत प्रयोग सफल नहीं होता । क्योंकि आप भीतर इतने अशांत है कि जब आप आँख बंद करके बैठते हैं । तो सिवाय अशांति के भीतर और कुछ भी नहीं होता । वह जो भीतर अशांति है । वह चक्कर जोर से मारने लगती है । जब आप शांत होकर बैठते हैं । तब आपको सिवाय भीतर के उपद्रव के और कुछ भी नहीं दिखाई पड़ता । इसलिए, उचित तो यह है कि वह जो भीतर का उपद्रव है । उसे भी बाहर निकल जाने दें । हिम्मत से उसको भी बह जाने दें । उसके बह जाने पर, जैसे तूफान के बाद एक शांति आ जाती है । वैसी शांति आपको अनुभव होगी । तूफान तो धीरे धीरे विलीन हो जाएगा । और शांति स्थिर हो जाएगी । यह कीर्तन का प्रयोग कैथार्सिस है । इसमें जो नाच रहे हैं । लोग, कूद रहे हैं लोग । ये उनके भीतर के वेग हैं । जो निकल रहे हैं । इन वेगों के निकल जाने के बाद भीतर परम शून्यता का अनुभव होता है । उसी शून्यता से द्वार मिलता है । और हम अनंत की यात्रा पर निकल जाते हैं - ओशो । तेईस घंटे संसार को दे दो । एक घंटा स्वयं को दे दो । ध्यान को दे दो । और जीवन के अंत में तुम पाओगे कि वो एक घंटा ही सार्थक सिद्ध हुआ । अमृत सिद्ध हुआ । मृत्यु भी जिसे तुमसे छीन नहीं सकती - ओशो ।
16 अक्टूबर 2011
क्या कहेंगे लोग ?
सबसे बड़ा रोग । क्या कहेंगे लोग ? पहला भय । लोग क्या कहेंगे - ओशो । लोग क्या कहेंगे ? यह पहला भय है । और गहरे से गहरा भय है । लोग क्या समझेंगे ? एक महिला मेरे पास कुछ ही दिन पहले आई । और उसने मुझे कहा कि मेरे पति ने कहा है कि सुनना तो जरूर । लेकिन भूलकर कभी कीर्तन में सम्मिलित मत होना । तो मैंने उससे पूछा कि पति को क्या फिक्र है । तेरे कीर्तन में सम्मिलित होने से ? तो उसने कहा - पति मेरे डॉक्टर हैं । प्रतिष्ठा वाले हैं । वे बोले कि अगर तू कीर्तन में सम्मिलित हो जाए । तो लोग मुझे परेशान करेंगे कि पापी पत्नी को क्या हो गया ? तो तू और सब करना । लेकिन कीर्तन भर में सम्मिलित मत होना । घर से लोग समझाकर भेजते हैं कि सुन लेना । करना भर मत कुछ । क्योंकि करने में खतरा है । सुनने तक बात बिलकुल ठीक है । करने में अड़चन मालूम होती है । क्योंकि आप पागल होने के लिए तैयार हैं । और जब तक आप पागल होने के लिए तैयार नहीं हैं । तब तक धार्मिक होने का कोई उपाय नहीं है । तो सुनें मजे से । फिर चिंता में मत पड़ें । जिस दिन भी करेंगे । उस दिन आपको दूसरे क्या कहेंगे ? इसकी फिक्र छोड़ देनी पड़ेगी । दूसरे बहुत सी बातें कहेंगे । वे आपके खिलाफ कह रहे हैं । वे अपनी आत्मरक्षा कर रहे हैं । क्योंकि अगर आपको ठीक मानें । तो वे गलत लगेंगे । इसलिए उपाय एक ही है कि आप गलत हैं । तो वे अपने को ठीक मान सकते हैं । और निश्चित ही उनकी संख्या ज्यादा है । आपको गलत होने के लिए तैयार होना पड़ेगा । बड़े से बड़ा साहस समूह के मत से ऊपर उठता है । इस फिक्र के छोड़ते ही आपके भीतर भी रस का संचार हो जाएगा । यही द्वार बाँधा हुआ है । इसी से दरवाजा रुका हुआ है । यह फिक्र छोड़ते ही से आपके पैर में भी थिरकन आ जाएगी । और आपका हृदय भी नाचने लगेगा । और आप भी गा सकेंगे । और अगर यह फिक्र छोड़कर आप एक बार भी गा सके । और नाच सके । तो आप कहेंगे कि अब दुनिया की मुझे कोई चिंता नहीं है । एक बार आपको स्वाद मिल जाए । किसी और लोक का । तो फिर कठिनाई नहीं है । लोगों की फिक्र छोड़ने में । कठिनाई तो अभी है कि उसका कोई स्वाद भी नहीं है । जिसे पाना है । और लोगों से जो प्रतिष्ठा मिलती है । उसका स्वाद है । जिसको छोड़ना है । जिसको छोड़ना है । उसमें रस है । और जिसको पाना है । उसका हमें कोई रस नहीं है । इसलिए डर लगता है । हाथ की आधी रोटी भी, मिलने वाली स्वर्ग में पूरी रोटी से ज्यादा मालूम पड़ती है । स्वाभाविक है । सीधा गणित है । लेकिन अगर इस दशा में, जिसमें आप हैं । आप सोचते हैं । सब ठीक है । तो मैं आपसे नहीं कहता कि आप कोई बदलाहट करें । और आपको लगता हो कि सब गलत है । जिस हालत में आप हैं । तो फिर हिम्मत करें । और थोड़े परिवर्तन की खोज करें । शांत प्रयोग करना हो । शांत प्रयोग करें । लेकिन कुछ करें । अधिक लोग कहते हैं कि शांत प्रयोग ही ठीक है । क्योंकि अकेले में आँख बंद करके बैठ जाएँगे । किसी को पता तो नहीं चलेगा । लेकिन अक्सर शांत प्रयोग सफल नहीं होता । क्योंकि आप भीतर इतने अशांत है कि जब आप आँख बंद करके बैठते हैं । तो सिवाय अशांति के भीतर और कुछ भी नहीं होता । वह जो भीतर अशांति है । वह चक्कर जोर से मारने लगती है । जब आप शांत होकर बैठते हैं । तब आपको सिवाय भीतर के उपद्रव के और कुछ भी नहीं दिखाई पड़ता । इसलिए, उचित तो यह है कि वह जो भीतर का उपद्रव है । उसे भी बाहर निकल जाने दें । हिम्मत से उसको भी बह जाने दें । उसके बह जाने पर, जैसे तूफान के बाद एक शांति आ जाती है । वैसी शांति आपको अनुभव होगी । तूफान तो धीरे धीरे विलीन हो जाएगा । और शांति स्थिर हो जाएगी । यह कीर्तन का प्रयोग कैथार्सिस है । इसमें जो नाच रहे हैं । लोग, कूद रहे हैं लोग । ये उनके भीतर के वेग हैं । जो निकल रहे हैं । इन वेगों के निकल जाने के बाद भीतर परम शून्यता का अनुभव होता है । उसी शून्यता से द्वार मिलता है । और हम अनंत की यात्रा पर निकल जाते हैं - ओशो । तेईस घंटे संसार को दे दो । एक घंटा स्वयं को दे दो । ध्यान को दे दो । और जीवन के अंत में तुम पाओगे कि वो एक घंटा ही सार्थक सिद्ध हुआ । अमृत सिद्ध हुआ । मृत्यु भी जिसे तुमसे छीन नहीं सकती - ओशो ।
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