09 अक्टूबर 2011

यह सरासर बात झूठ है ।

 
  युवा कौन हे ? सभी युवक, युवक नहीं होते । सभी बूढे, बूढ़े नहीं होते । जिसे युवक होने की कला आती है । वह बूढ़ा होकर भी युवक होता है । और जिसे युवक होने की कला नहीं आती । वह युवक होकर भी बूढ़ा ही होता है । तो पहले तो इस सत्य को समझने की कोशिश करो कि युवा होना क्या है ? पहली तो बात, युवक हैं कहां ? इस देश में तो नहीं हैं । इस देश में तो बच्चे बूढ़े ही पैदा होते हैं । गायत्री मंत्र पढ़ते हुए ही पैदा होते हैं । कोई गीता का पाठ करते चले आ रहे हैं । कोई राम नाम जपते चले आ रहे हैं । इस देश में युवक हैं कहां ? शक्ल सूरत से भला युवक मालूम पड़ते हों । मगर युवक होना शक्ल सूरत की बात नहीं । युवक होना उम्र की बात नहीं । युवक होना एक बड़ी और ही, बड़ी अनूठी अनुभूति है । एक आध्यात्मिक प्रतीत है । सभी युवक, युवक नहीं होते । सभी बूढे, बूढ़े नहीं होते । जिसे युवक होने की कला आती है । वह बूढ़ा होकर भी युवक होता है । और जिसे युवक होने की कला नहीं आती । वह युवक होकर भी बूढ़ा ही होता है । तो पहले तो इस सत्य को समझने की कोशिश करो कि युवा होना क्या है ? तुम्हारी उम्र पच्चीस साल है । इसलिए तुम युवा हो । इस भ्रांति में मत पड़ना । उम्र से क्या वास्ता ? पच्चीस साल के भला होओ । लेकिन तुम्हारी धारणाएं क्या है ? तुम्हारी धारणाएं तो इतनी पिटी पिटाई हैं । इतनी मुर्दा हैं । इतनी सड़ी गली हैं । इतनी सदियों से तुम्हारे ऊपर लदी हैं । तुम्हें उन्हें उतारने का भी साहस नहीं है । तुम जंजीरों को आभूषण समझते हो । और तुम, जो बीत चुका - अतीत । उसमें जीते हो । और फिर भी अपने को युवा मानते हो ? युवा हो । और पूजते हो । जो मर गया उसको । जो बीत गया उसको । जो जा चुका उसको । तुम्हारी धारणाओं का जो स्वर्ण युग था । वह अतीत में था । तो तुम युवा नहीं हो । राम राज्य, सतयुग सब बीत चुके । वहीं तुम्हारी श्रद्धा है । लेकिन न तुम विचार करते हो । न तुम श्रद्धा के कभी भीतर प्रवेश करते हो कि श्रद्धा है भी । या सिर्फ थोथा एक आवरण है ? पक्षी तो कभी का उड़ गया । पिंजरा पड़ा है । तुम कुछ भी मानते चले जाते हो । इतने अंधेपन में युवा नहीं हो सकते । जैसे उदाहरण के लिए, कोई ईसाई कहे कि - मैं युवा हूं । और फिर भी मानता हो कि जीसस का जन्म कुंवारी मरियम से हुआ था । तो मैं उसे युवा नहीं कह सकता । ऐसी मूढ़तापूर्ण बात, कुंवारी मरियम से कैसे जीसस का जन्म हो सकता है ? अगर तुम मान सकते हो । तो तुम अंधे आदमी हो । तुम्हारे पास विवके ही नहीं है । उसके पास श्रद्धा क्या खाक होगी । जिसके पास संदेह की क्षमता नहीं है । उसके पास श्रद्धा की भी संभावना नहीं होती । लेकिन तुम्हारे पंडित पुरोहित तुम्हें समझाते हैं - संदेह न करना । हम जो कहें - मानना । और वे ऐसी ऐसी बातें कहते हैं तुमसे कि तुम भी जरा सा सजग होओगे । तो नहीं मान सकोगे । कुंवारी लड़की से कैसे जीसस का जन्म हो सकता है ?
हां, अगर तुम हिंदू हो । तो तुम कहोगे - कभी नहीं हो सकता । यह सरासर बात झूठ है । अगर मुसलमान हो । तो तुम राजी हो जाओगे कि यह बात सरासर झूठ है । मगर ईसाई । कैथलिक ईसाई । वह नहीं कह सकेगा कि सरासर झूठ है । उसके प्राण कांपेगे । उसके हाथ पैर भयभीत...डोलने लगेंगे । वह डरेगा कि इसको मैं कैसे झूठ कह दूं । दो हजार साल की मान्यता है । मेरे पूर्वजों ने मानी । मेरे बाप दादा ने मानी । उनके बाप दादों ने मानी । दो हजार साल से लोग नासमझ थे । एक मैं ही समझदार हुआ हूं । वह छिपा लेगा अपने संदेह को । ओढ़ लेगा ऊपर से चदरिया श्रद्धा की । दबा देगा संदेह को । आसान है दूसरे के धर्म पर संदेह करना । युवा वह है । जो अपनी मान्यताओं पर संदेह करता है । अब जैसे हिंदू है कोई । हिंदू की मान्यता है कि गीता का जो प्रवचन हुआ । वह महाभारत के युद्ध में हुआ । और महाभारत का युद्ध हुआ कुरुक्षेत्र के मैदान में । कुरुक्षेत्र के मैदान में कितने लोग खड़े हो सकते हैं ? महाभारत कहता है - अठारह अक्षौहिणी सेना वहां खड़ी थी । और उस युद्ध में एक अरब पच्चीस करोड़ व्यक्ति मारे गए । जिस युद्ध में एक अरब और पच्चीस करोड़ व्यक्ति मारे गए हों । उस युद्ध में कम से कम चार अरब व्यक्ति तो लड़े ही होंगे । क्योंकि इतने लोग मारे जाएंगे तो कोई मारने वाला भी चाहिए, कि यूं ही अपनी अपनी छाती में ही छुरा मार लिया । और मर गए । बुद्ध के जमाने में भारत की कुल आबादी दो करोड़ थी । और कृष्ण के जमाने में तो एक करोड़ से ज्यादा नहीं थी । अभी भी भारत की कुल आबादी सत्तर करोड़ है । अगर पूरा भारत भी अभी कुरुक्षेत्र के मैदान में खड़ा हो । तो पूरी अठारह अक्षौहिणी सेना नहीं बन सकती । अभी दुनिया की आबादी चार अरब है । पूरी दुनिया की अभी । अगर पूरी दुनिया के लोगों को तुम कुरुक्षेत्र के मैदान में खड़ा करो । तब कहीं एक अरब पच्चीस करोड़ लोग मारे जा सकेंगे । मगर कुरुक्षेत्र के मैदान में इतने लोग खड़े कैसे हो सकते हैं ? यह भी तुमने कभी सोचा ? हां, चींटी रहें । तो बात अलग । मच्छर मक्खी रहें हों । तो बात अलग । मगर आदमी अगर रहे हों । इतने आदमी खड़े नहीं हो सकते । और फिर हाथी भी थे । और घोड़े भी थे । और रथ भी थे । फिर इनको चलाने वगैरह के लिए भी कोई जगह चाहिए, कि बस खड़े हैं । जो जहां अड़ गया । सो अड़ गया । फंस गया । सो फंस गया । न लौटने का उपाय । न जाने का उपाय । न चलने का उपाय । कुरुक्षेत्र के मैदान में एक अरब पच्चीस करोड़ लोगों की लाशें भी नहीं बन सकतीं । मैदान ही छोटा सा है । एक अरब की बात छोड़ दो । तुम एक करोड़ आदमियों को खड़ा नहीं कर सकते वहां । मगर नहीं । मानते चले जाएंगे लोग । क्योंकि शास्त्र में जो लिखा है । कुछ भी लिखा हो । उसको मानने में कोई अड़चन नहीं होती ।
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प्रेम क्या है - ओशो । जागे हुए को पूछो । तो कोई अंधेरा नही सुझाएगा । जागे हुए को पूछो । तो कोई दुःख नही होगा । तो जहाँ चेतन की जोत जले । तो और सारा कचरा जल जाने देना । शेष जो रह जाए । वो चेतन्य की रोशनी होगी । आँख बंद मत करना । आंख खोलने की कला जान लेना । होश की चाबी एक ऐसी कुंजी है । जिससे तुम हर प्रकार के ताले को खोल सकते हो - ओशो ।  

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326