30 अक्टूबर 2011

अजीवोगरीब प्रेत संस्कार

ये इत्तफ़ाक की ही बात है कि मैं " अँधेरा " कहानी में एक पूर्व जन्म के संस्कार से जुङी प्रेत बाधा पर लिखता हूँ । और इसके दोनों पक्षों पर स्थिति को स्पष्ट करने की कोशिश करता हूँ । यानी ये संस्कार जस्सी की तरफ़ से क्रियाशील होता है । या फ़िर इस संस्कार से जुङे दूसरे पात्रों से ।
लेकिन अँधेरा लिखने से पूर्व ही इसी ब्लाग पर ठीक इसी तरह के दो केस प्रकट आ चुके हैं । एक कोलकाता के मनोज कुमार जी का । और दूसरा एक लङके का । मनोज कुमार को अधिकांश नींद में एक दृश्य दबाब की स्थिति बनती है । फ़िर एक ताकतवर इंसान विभिन्न परिस्थितियों के साथ किसी को बेतरह सताता नजर आता है । और मनोज उससे लङते हैं । और अंत में घबराकर पसीना पसीना हुये लगभग चीखते हुये जाग जाते हैं । और ये एक ही घटना बहुत बार होती है । दूसरा एक लङके को छिपकलियों से नफ़रत । और अक्सर स्वप्न में उसे छिपकलियाँ बहुभांति परेशान करती हैं ।
ये दोनों परिस्थितियाँ स्वप्न जैसी प्रतीत होती हैं । एक ऐसा  स्वप्न । जो आम स्वप्नों की तुलना में बेहद स्पष्ट दिखने वाला और वास्तविकता के बेहद नजदीक था । और कभी की कहीं की अज्ञात अदृश्य भूमि की हकीकत लगता है । यहीं प्रेत संस्कार हैं । फ़िर अभी अभी मेरे पास मेरे मण्डल से जुङे एक व्यक्ति का फ़ोन आता है । इनका परिचय खोलना उचित नहीं । एक लङकी है । अभी 14 साल की उमृ है । 5 साल की उमृ से अब तक । उसे लगातार हर 6-7 दिन में एक अजीब सी घटना घटती है । जो यही समझ से बाहर है कि - आखिर ये है क्या ?
लङकी को रात में सोते सोते अचानक मिर्गी या दौरा जैसी स्थिति बन जाती है । पर एक आम इंसान भी ऐसे रोग

और उनके लक्षण समझता हैं । इसलिये ये मिर्गी या दौरा या इनके समान अन्य कोई रोग नहीं है । ये पूरा मामला ही अलग है । और गौर से समझने लायक है । लङकी के घरवालों के अनुसार उसके चेहरे और शरीर में एक भयानकता प्रकट होती है । कुछ ऐसा । जो उसे देखने वाले के अन्दर भी डर पैदा कर देता है । यहाँ ध्यान दें । उसके चेहरे पर डरने या सहमने के भाव नहीं बनते । बल्कि वह उल्टे खुद भयानक हो उठती है । उतने समय की उसकी तमाम हरकतें अजीव और डर पैदा करने वाली हैं । पर वे लोग कुछ नहीं कर पाते । फ़िर लङकी कुछ समय बाद धीरे धीरे सामान्य हो जाती है । सुबह उसे कुछ भी मालूम नहीं है । बल्कि उसके साथ रात में ऐसा कुछ हुआ था । इसका भी उसे दूर दूर तक कोई पता नहीं है । और इस बाधा के चलते उस खास समय को छोङकर उसे अब तक कोई भी कैसी भी अन्य परेशानी भी नहीं हुयी ।
फ़ोन सुबह 10 बजे आया है । मैं कहता हूँ - कल लङकी से बात कराईये ।.. अभी कर लो । वह मेरे पास ही बैठी है । लेकिन वह उस बारे में कुछ भी नहीं बता पायेगी । उसे कुछ भी मालूम ही नहीं है ।
मैं कहता हूँ - मुझे उससे कुछ पूछना भी नहीं है । बस सामान्य बात ही करनी है । केवल औपचारिक हाय हल्लो जैसा ।
इसी ब्लाग के जरिये मेरे पास एक और शिकायत भी आती है । एक आदमी हाल ही में मर गया है । वह शिकायत कर्ता को दो रात से निरन्तर दिखाई दे रहा है । पर स्वप्न में नहीं । कुछ अलग ढंग से । मैं पूछता भी नहीं । पर शिकायत कर्ता बताता है । वह कैसा है ? उसकी आँखें स्टिल है । पर वह घूरकर देखता है । आगे जो भी वर्णन है । वह सटीक प्रेतों के सूक्ष्म शरीर का है । शिकायत कर्ता बेहद टेंशन में है । क्या वह प्रेतयोनि में चला गया है ? अगर 


चला भी गया है । तो उसका मुझसे क्या वास्ता । मुझसे क्या चाहता है । मुझे क्यों दिखाई देता है ? राजीव जी ! मुझे क्या करना चाहिये । मैं बेहद टेंशन में हूँ ।
- आप कुछ कर भी नहीं सकते । पर अब नहीं दिखाई देगा । 1% दिखाई दे भी । आप उसी वक्त मुझसे ध्यान जोङना । यही उपाय मैं मनोज जी को बताता हूँ । आप शाम को ध्यान का अभ्यास करते हैं । उस वक्त कुछ दिनों इसी भावना के साथ ध्यान मुझसे जोङें । जो कि एन बाधा के समय स्वाभाविक ही आसानी से मुझसे ध्यान जुङ जाये । इन दोनों लोगों की समस्या खत्म हो जाती है । अब नहीं दिखाई दिया । अव वैसा नहीं होता । ये कैसे हुआ ?
दूसरे दिन फ़िर फ़ोन आता है - लङकी से बात कराऊँ ।
- नहीं । कोई आवश्यकता नहीं । कोई बङा मामला नहीं है । सिर्फ़ एक बङा संस्कार है । जो जटिलता से मजबूती से प्रबल हो उठता है । अब मैं द्वैत के उपचार नहीं कर सकता । वैसे अब ये उतनी प्रबलता से नहीं होगा । भूत पिशाच निकट नहिं आवे । महावीर जब नाम सुनावे । हनुमान जी जिस निर्वाणी नाम को जपते हैं । वही नाम आपके द्वारा लेने पर यह समस्या जङ से कट जायेगी । कितना भी मजबूत अङियल संस्कार हो । उसे जलना ही होगा । पीङिता के सम्बन्धी सहमत हो जाते हैं । फ़िर भी मैं कहता हूँ - जब तक हँसदीक्षा नहीं होती । यदि ऐसा कोई अटैक हो । आप उसके ठीक अगली सुबह मुझसे बात कराना । क्योंकि ये सुरक्षा अस्थायी है । ये दवा नहीं है । ये सिर्फ़ प्रतिरोधक है । रोग को समूल नष्ट करने के लिये दवा खाना और इलाज कराना दोनों आवश्यक है ।
दो और विलक्षण मामले मेरी जानकारी में अनुभव में आये । एक मेरे परिचय में ही 10 साल की लङकी थी । ये नींद में चलती थी । इसे दो बार मैंने स्वयँ देखा है । एक बार अधिक देर तक । एक बार कुछ ही मिनट तक । वो भी दीपावली के एक दिन पूर्व का समय था । मैं छत पर था । लङकी आराम से चलती हुयी मेरे पास आकर खङी हो 


गयी । पर उसकी आँखें सामान्य नहीं थी । वे घूरती सी लग रही थी । और अपलक थी । मेरे लिये यह बङी हैरानी की बात थी । वह बहुत कम शब्द एक फ़िक्स स्लो वाल्यूम पर बोलती है । और एकदम सीध में 180 अँश लाइन पर ही देखती है । मुझे नहीं पता है । यह नींद में है । मैं उससे सामान्य बात करता हूँ । पर वह न सुनती है । और न उत्तर देती है । वह सिर्फ़ जो खुद बोलना चाहती है । वही बोलती है । तब मुझे कुछ अजीव सा अहसास होता है । दूसरी बार में वह मेरे सामने से किसी रोबोट के अन्दाज में विचित्र चाल से गुजर जाती है । मुझे तब भी नहीं पता था । ये नींद में है । इत्तफ़ाकन मैं उसे आवाज देता हूँ । पर वह नहीं सुनती है । ये मेरे लिये एक अजीव अलौकिक अनुभव के समान है । मैं सोचता हूँ । इस तरह इसके साथ कोई हादसा भी हो सकता है । ये चलते चलते छत से गिर सकती है । दूसरी अन्य बहुत सी घटनायें हो सकती हैं ।
- पर सामान्यतयाः ऐसा होता नहीं है । डाक्टर बताते हैं - वह सीङिया चङते समय भी सामान्य और सधे अन्दाज में पाँव रखेगी । उसका शरीरी गतिविधि को लेकर व्यवहार सामान्य ही होगा । इसकी दवाईयाँ हैं ।
बङा अजीव रोग है । मैं सोचता हूँ । अब से करीब 7 साल पहले । मेरा एक साधारण मित्र उमृ 26 साल भी कुछ ऐसी ही बात कहता है । वह सोते सोते उठकर बैठ जाता है । पर वास्तव में वह नींद में है । और पूरी तरह सो रहा है । तब वह अपना दुकान का हिसाब किताब लगाने लगता है । रुपये गिनता है । और रात के सन्नाटे में घर में प्रेत के समान विचरण करता है । अन्य कार्य करने लगता है । क्योंकि वह धीरे ही सही कुछ बोलता है । बङबङाता है । तब एक दिन उसके घरवालों को पता चल ही जाता है । फ़िर उसका भी महँगा इलाज होता है ।
डाक्टरों के पास एक ही इलाज है । और ऐसे सभी केसों का लगभग एक ही इलाज है । जो पागलपन का इलाज है । मानसिक उत्तेजना को उसकी विभिन्न औषधियों द्वारा सामान्य निष्क्रिय और बेहद निर्बल कर देना ।


कुछ और समय लगभग 13 साल पहले । एक और अजीव सा केस देखता हूँ । ये एक विधवा 27 साल थी । इसका एक बच्चा है । जो पति के मरने के बाद पैदा हुआ है । पति सरकारी नौकरी में था । और अब वह मृतक आश्रित नियम अनुसार चपरासी की नौकरी कर रही थी । इसके उठने बैठने में अजीव सी कामुकता झलकती है । खास ये अपने दोनों पैरों के बीच दो फ़ुट का फ़ासला करके ही बैठती है । और ठीक उसी अन्दाज में बैठती है । जिस तरह 7-8 महीने के बढे प्रसवकाल में औरत बैठती है । इसको देखकर कोई भी इसके अन्दर मचलती काम लहरों को सहज ही महसूस कर सकता है । जो उसके विधवा हो जाने से स्वाभाविक ही है । कामुक चाहत इस पर इस कदर हावी है कि 5-6 औरतों के मध्य बैठे हुये या किसी कार्यकृम में बैठे हुये भी ये माहौल को भूल जाती है । और किसी पुरुष की तरफ़ देखते हुये ऐसे हाव भाव प्रकट करने लगती है । मानों उस समय अकेली हो ।
ये मेरे परिचित के यहाँ किरायेदार है । वह बहु स्त्री भोगी है । मैं उससे इस बारे में बात करता हूँ - तुम्हें इसकी भी हेल्प करनी चाहिये । दूसरों की अपेक्षा उसे अधिक आवश्यकता है । तब जबकि तुम ऐसा करते भी हो ।
- जानोगे । तो घिन आयेगी । वह अजीव से घृणित अन्दाज में कहता है - इसकी योनि बाहर निकल आती है । उसने मेरी पत्नी को । और मेरी पत्नी ने मुझे बताया । पति के मरते समय यह गर्भवती थी । और प्रेगनेंसी के दौरान तनावयुक्त स्थिति में बहुत रोती रही है । उस समय पैसे की बहुत कमी थी । देहात में थी । फ़िर बच्चा भी

देहाती व्यवस्था में हुआ । उसी समय से योनि की आंतरिक माँसपेशियाँ अत्यन्त ढीली हो गयी । इतनी कि शायद वह हस्तमैथुन से भी खुद को सन्तुष्ट नहीं कर सकती । बल्कि सोच भी नहीं सकती । वह अब माँस का फ़ैला हुआ बेहद शिथिल लिबलिबा लोथङा सा है ।
बात संवेदना जाहिर करने की है । अफ़सोस करने की है । पर मानवीय स्वभाववश मुझे हँसी आ जाती है । उसे भी आती है । दोनों की हँसी देर तक रुकती ही नहीं । मुझे यह देखने की स्वाभाविक बेहद इच्छा होती है । पर ऐसा संभव ही नहीं है । और इसके लिये बहुत कोशिश मुझे करनी नहीं हैं ।
- वह सिर्फ़ ऊपरी बाह्य काम व्यवहार के साथी की इच्छुक है । वह बताता है - जिसमें उस अंग को छोङकर प्रयोग हो । और वह साथी मर्द से अपनी इच्छानुसार व्यवहार कर सके । अब उसके पास पैसा भी है । पर अभी देहात से नया नया शहर में आयी है । इसलिये खुली नहीं है । कोई न कोई मिल ही जायेगा । आप उसकी फ़िक्र न करो । वैश्या पुरुष भी बहुत होते हैं इस समाज में । और इस तरह की चाहत वाले भी ।
- आप औरतों को मेरे जितना नहीं समझ सकते । वह आगे की बातचीत में समाज का आइना दिखाता है - एक औरत को जानता हूँ । उसका पति बेहद शंकालु है । इतना कि हँसी आती है । वह कुछ घण्टों के लिये भी उससे दूर रहे । और फ़िर वापिसी में तुरन्त किसी डाक्टर की तरह उसे लिटाकर वह उसका गहन चेकअप करता है कि इसने किसी के साथ इतने बीच में सेक्स तो नहीं कर लिया । और भाई साहब ! उसका शंकालु होना एकदम उचित है । उसे इसका डबल शंकालु होना चाहिये । पर वह कोई झण्डे नहीं उखाङ पाता । उसकी औरत थोङा ही मौका मिलने पर इच्छा होते ही सेक्स कर लेती है ।
मुझे सभ्य समाज की इस असभ्य असामाजिक बात पर बीच में ही तेज हँसी आती है । वह भी जबरदस्त हँसता है । विचित्र दुनियाँ । विचित्र लोग । विचित्र व्यवहार । हँसी देर तक नहीं रुकती । अब मुझे जिज्ञासा है कि इतने

सख्त नियन्त्रण के बाद जब वह उसका अंग ही चेक कर लेता है । वह ऐसा कैसे कर लेती है ?
- उसकी इच्छायें है । बह बताता है - दो प्रबल इच्छाय़े । उन्मुक्त बहु कामभोग की इच्छा । और खूब पैसे खर्च करने की इच्छा । इन दोनों को ही लेकर वह पति से सन्तुष्ट नहीं हो पाती । पति कभी कभार सामान्य सेक्स करता है । और उसे सन्तुष्ट नहीं कर पाता । खर्चे के लिये पैसे तो देता ही नहीं है । वह गधा नहीं जानता । औरत को रोटी से भी अधिक इन्ही चीजों की जरूरत है । वह इन पर खास मरती है । और ये सिर्फ़ उसकी नहीं । ज्यादातर औरतों की इच्छा होती है ।
तब वह ऊपर वाली औरत का फ़ार्मूला अपनाती है । और पार्ट टाइम सेक्स वर्कर का काम करती है । देहात में रहती है । और लगभग रोजाना बाजार करने निकट के शहर में जाती है । उसकी शर्त रहती है । मुख्य दो अंग को छोङकर चाहे जो व्यवहार करो । उसकी पूर्ति वह मुख से कर देती है । और भाईसाहब ! एडस आदि के चलते ऐसा चाहने वालों की भी कोई कमी नहीं है ।
उदाहरण लाखों हो सकते हैं । उनके कामना प्रकार करोङों हो सकते हैं । पर उनके मूल में एक ही बात कामन है । कोई छिपी हुयी अतृप्त चाहना । इसी चाहना के % पर संस्कार बनता है । % जितना अधिक होगा । क्रिया प्रतिक्रिया का निर्माण भी उसी अनुपात में होगा । न तो उससे कम । न तो उससे ज्यादा । इसी जन्म में इसी जन्म के बने संस्कार प्रेतक प्रभाव कम ही दिखाते हैं । बहुत अधिक इच्छा दमन पर ये हिस्टीरिया टायप अनुभव में आते हैं । पर यही जीवन भर दमित रहने पर अगले जन्मों के लिये प्रेत संस्कार बन जाते हैं । और  तब समय आने पर पूर्व जन्म के संस्कार उखङने लगते हैं । उभरने लगते हैं । इलाज एक ही है । संस्कार को जलाना । या उसे पूरा करके भोगना ।
बात अभी खत्म नहीं हुयी । पर अभी बीच में ही खत्म करनी पङ रही है । ऐसी ही महत्वपूर्ण जीवन से जुङी बातों पर आगे भी चर्चा होगी । तब तक करते रहिये - सत्यकीखोज ।
आप सबके अंतर में विराजमान सर्वात्मा प्रभु आत्मदेव को मेरा सादर प्रणाम ।

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