प्रश्न - वेदान्त भारतवर्ष की ही संकीर्ण हदों के अन्दर बन्द है और केवल शिक्षित वर्ग का धर्म है, जन साधारण का नही । जबकि ईसाई धर्म सम्पूर्ण संसार में फ़ैल गया । (स्वामी रामतीर्थ से)
उत्तर - यदि ईसाईयत का वास्तव में कौमों पर शासन होता तो कहीं अधिक अच्छा होता । यदि ईसाईयत वास्तव में यूरोप में प्रचलित होती तो यह बङे हर्ष की बात होती । किन्तु यूरोप या अमेरिका में जो प्रचलित है । वह ईसाईयत नही, चर्चियेनिटी (churchianity) अर्थात गिर्जाघरपन है ।
और फ़िर यदि तुम समझते हो कि असली ईसाईयत जन साधारण में फ़ैल गयी है और यह (बात) ईसाईयत के पक्ष में बहुत बङी दलील है, तो भाई, भ्रम में न पङो ।
शैतान के धर्म के मानने वाले, ईसाई धर्म के अनुयायियों से अधिक हैं ।
आप जानते हैं कि असदाचार, बुरी वासनायें, शत्रुता, विद्वेष, मनोविकार, कामुकता..यह शैतान का धर्म है । और शैतान का धर्म ईसाईयत से अधिक प्रचलित है ।
लंदन के पार्लियामेंट भवन में एक मनुष्य जो बङा वाग्मी (oralor) था, धिक्कारा दुत्कारा गया था ।
आप जानते हैं कि बाद में उसने क्या कहा ?
उसने कहा - क्या हुआ यदि बहुमत तुम्हारे पक्ष में है (दूसरे पक्ष से उसने कहा) opinions ought to be weighed, they ought not to be counted.
मतों की तौल (परख) होनी चाहिये । उनकी गिनती नही होनी चाहिये । बहुमत सत्यता का कोई प्रमाण नही है ।
एक समय था जब गैलीलियो (galileo) कोपरनिकस (copernicus) के मत का था ।
उसने कहा था कि - प्रथ्वी घूमती है न कि सूर्य ।
वह पूर्ण अल्पमत (minority) में था । वास्तव में वह अकेला था । सम्पूर्ण विशाल विश्व उसके विपरीत था । सम्पूर्ण बहुमत (majority) उसके विरुद्ध था ।
किन्तु अब सत्य क्या है ?
अल्पमत की बात सच्ची है या बहुमत की ? बहुमत और अल्पमत कोई चीज नही है ।
एक समय (जमाना) था, जब सम्पूर्ण बहुमत रोमन कैथोलिक (roman catholic) सम्प्रदाय के पक्ष में था । एक ऐसा समय आया, जब बहुमत दूसरे पक्ष के ओर था ।
एक समय वह था, जब ईसाईयत ग्यारह शिष्यों के ही अल्पमत तक परिमित थी । एक समय आया है जबकि यह ईसाईयत या गिर्जाघरपन देखने में बहुमत अपनी ओर रखता है ।
बहुमत और अल्पमत कुछ भी नही है । हम शिला पर खङे हैं । हम सत्य पर स्थित हैं और सत्य अवश्य प्रकट होगा ।
(एक और सम्बन्धित प्रश्न) ईसाई कौमें दुनियां में सारी तरक्की क्यों कर रही हैं । केवल ईसाई राष्ट्रों में ही उन्नति और सभ्यता है ।
उत्तर जारी - यदि यूरोप और अमेरिका, भारत, चीन, जापान से राजनैतिक और सामाजिक मामलों में आगे बढ़े हुये हैं, तो ईसाईयत उसका कारण नही है ।
झूठे तर्क का उपयोग न करो ।
यदि सम्पूर्ण सभ्यता और सम्पूर्ण वैज्ञानिक उन्नति का सेहरा ईसाईयत के सिर बांधा जाना है, तो कृपा कर हमें बताओ कि - जब गैलीलियो ने वह छोटा सा आविष्कार किया था तब ईसाईयों ने उसके साथ कैसा (बुरा) बर्ताव किया था ?
ब्रूनो (bruno) जला दिया गया था ।
किसने उसे जलाया था ? ईसाईयत, ईसाईयत ने ।
हक्सले (huxley) स्पेंसर (spencer) और डार्विन (darwin) का ईसाईयत ने विरोध किया । उनके आविष्कारों और उन्नति तथा भाव-स्वाधीनता (independence of spirit) का उत्पादन और प्रोत्साहन ईसाईयत ने नही किया । ईसाईयत के चूर कर देने वाले सब प्रभावों के होते हुये भी वे जी रहे हैं ।
शोपेनहार (schopenhauer) की क्या गति हुयी थी । आप जानते हैं कि उसको कैसे निर्वाह करना पङता था ?
शोपेनहार को उतना ही महान बलिदान करना पङा था जितना कि ईसा को ।
ईसा अपने विश्वासों (convictions) निश्चयों के लिये मर गया और शोपेनहार अपने विश्वासों के ही लिये जीता रहा ।
और आप जानते हैं कि अपने विश्वासों के लिये मर जाना उनके लिये जीते रहने से सहज है । क्या आप जानते हैं कि शोपेनहार की स्वाधीन भावना को रोकने वाला कौन था ?
अपनी पीछे की पुस्तकों में उसने वह तेज और शक्ति खो दी । जो उसके पहले के लेखों में विशेष रूप से थी (व जिससे वह अपने पहले के लेखों में प्रसिद्ध व विशिष्ट था)
हेगल (hegel) और केन्ट (kant) के तत्वज्ञानों की दुर्बलता और हीनता का कारण ईसाईयत का प्रभाव है ।
क्या आप जानते हैं कि फ़िचेट (fichte) को अपना अध्यापक पद कैसे छोङना पङा और वह अपने देश से निकाला गया । इसका क्या कारण था ?
ईसाईयत थी ।
प्रारम्भ से ही ईसाईयत के विरुद्ध होते हुये भी सम्पूर्ण उन्नति हुयी है, न कि उसकी कृपा से ।
गलत निर्णय या अविचार न करो ।
एक भारत प्रवासी अंग्रेज, जो कुछ दिनों भारतवर्ष में रहा था, इंग्लैंड लौटने पर अपनी स्त्री से अपनी शक्ति और बल का घमण्ड करने लगा । वे अपने देहाती घर में रहते थे ।
तभी एन मौके पर एक भालू आ गया ।
भारत प्रवासी अंग्रेज भागकर एक पेङ की चोटी पर चढ़ गया । उसकी स्त्री ने हथियार उठाया और भालू को मार डाला ।
तब वहाँ कुछ दूसरे लोग आये और पूछा - भालू को किसने मारा ?
उसने कहा - मैंने और मेरी स्त्री ने भालू का वध किया ।
किन्तु (सत्य) बात (तो) ऐसी नही थी ।
इसी तरह जब बात पूर्ण हो गयी तब यह कहना कि - मैंने की है, ईसाईयत के द्वारा वह हुयी है । सत्य नही है ।
विज्ञान की सब उन्नति, यूरोप और अमेरिका में सम्पूर्ण दार्शनिक उन्नति, ये सब आविष्कार (inventions) और उपलब्धियाँ (discoveries) वेदान्त की वृत्ति के अमल में लाये जाने का फ़ल है ।
वेदान्त का अर्थ है - स्वाधीनता, स्वतन्त्रता ।
उन (वैज्ञानिक उन्नति आदि) का कारण है, स्वाधीनता की भावना, स्वतन्त्रता की वृत्ति, स्व-वशता की वृत्ति, शारीरिक आवश्यकताओं और आकांक्षाओं से ऊपर उठने की वृत्ति,
इस सारी उन्नति का कारण यही है और यही है वेदान्त का बेजान अमल में लाना ।
तुम इसे सच्ची ईसाईयत भी कह सकते हो । सच्ची ईसाईयत वेदान्त से भिन्न नही है । यदि तुम उसे ठीक ठीक समझो ।
वे कहते हैं कि हमने प्रथ्वीतल से गुलामी उठा दी है और हमने बहुत से सुधार किये हैं ।
भाईयो गुलामी हटाई गयी थी ?
अरे, राम बहुत चाहता है कि गुलामी हट गयी होती । यदि हम यह बयान मान लें कि गुलामी का अन्त हो चुका है, तो उसके दूर होने का कारण ईसाईयत नही है ।
ईसाईयत में गुलामी को हटा सकने वाली कोई चीज होती, तो गत पूर्ववर्ती सत्रह सौ साल में ईसाईयत ने गुलामी दूर क्यों नही कर दी ?
कोई और ही बात थी ।
लोग अमेरिका को आये थे । यूरोपीय राष्ट्र इधर-उधर जा रहे थे । दूसरी कौमों से उनका संसर्ग हो रहा था । और उनको शिक्षा दी जा रही थी । उनके मन विशाल बनाये जा रहे थे ।
यह अमली वेदान्त है ।
गुलामी दूर होने का यह कारण था न कि ईसाईयत ।
राजनैतिक और सामाजिक अवस्थायें लोगों के ह्रदयों और आत्माओं को आन्दोलित कर रही थी । यदि अच्छी बातें तुम ईसाईयत के मत्थे मढ़ते हो तो नास्तिकों को दण्ड देना, टोनहिनियों (जादूगरनियां) का जलाना, सिर काटने का चक्र.. और आप जानते हैं कि नास्तिकों निमित्त विचार, इनक्वीजीशन (inquisition) क्या वस्तु है ?
एक समय सेन-फ़्रांसिस्को में उसका बेरोक-टोक राज्य था ।
अरे दारुण ! दारुण ! छाती से खून निकालना । इन सबके जिक्र की जरूरत राम को नही ।
ये किसके सिर थोपोगे ?
उत्तर - यदि ईसाईयत का वास्तव में कौमों पर शासन होता तो कहीं अधिक अच्छा होता । यदि ईसाईयत वास्तव में यूरोप में प्रचलित होती तो यह बङे हर्ष की बात होती । किन्तु यूरोप या अमेरिका में जो प्रचलित है । वह ईसाईयत नही, चर्चियेनिटी (churchianity) अर्थात गिर्जाघरपन है ।
और फ़िर यदि तुम समझते हो कि असली ईसाईयत जन साधारण में फ़ैल गयी है और यह (बात) ईसाईयत के पक्ष में बहुत बङी दलील है, तो भाई, भ्रम में न पङो ।
शैतान के धर्म के मानने वाले, ईसाई धर्म के अनुयायियों से अधिक हैं ।
आप जानते हैं कि असदाचार, बुरी वासनायें, शत्रुता, विद्वेष, मनोविकार, कामुकता..यह शैतान का धर्म है । और शैतान का धर्म ईसाईयत से अधिक प्रचलित है ।
लंदन के पार्लियामेंट भवन में एक मनुष्य जो बङा वाग्मी (oralor) था, धिक्कारा दुत्कारा गया था ।
आप जानते हैं कि बाद में उसने क्या कहा ?
उसने कहा - क्या हुआ यदि बहुमत तुम्हारे पक्ष में है (दूसरे पक्ष से उसने कहा) opinions ought to be weighed, they ought not to be counted.
मतों की तौल (परख) होनी चाहिये । उनकी गिनती नही होनी चाहिये । बहुमत सत्यता का कोई प्रमाण नही है ।
एक समय था जब गैलीलियो (galileo) कोपरनिकस (copernicus) के मत का था ।
उसने कहा था कि - प्रथ्वी घूमती है न कि सूर्य ।
वह पूर्ण अल्पमत (minority) में था । वास्तव में वह अकेला था । सम्पूर्ण विशाल विश्व उसके विपरीत था । सम्पूर्ण बहुमत (majority) उसके विरुद्ध था ।
किन्तु अब सत्य क्या है ?
अल्पमत की बात सच्ची है या बहुमत की ? बहुमत और अल्पमत कोई चीज नही है ।
एक समय (जमाना) था, जब सम्पूर्ण बहुमत रोमन कैथोलिक (roman catholic) सम्प्रदाय के पक्ष में था । एक ऐसा समय आया, जब बहुमत दूसरे पक्ष के ओर था ।
एक समय वह था, जब ईसाईयत ग्यारह शिष्यों के ही अल्पमत तक परिमित थी । एक समय आया है जबकि यह ईसाईयत या गिर्जाघरपन देखने में बहुमत अपनी ओर रखता है ।
बहुमत और अल्पमत कुछ भी नही है । हम शिला पर खङे हैं । हम सत्य पर स्थित हैं और सत्य अवश्य प्रकट होगा ।
(एक और सम्बन्धित प्रश्न) ईसाई कौमें दुनियां में सारी तरक्की क्यों कर रही हैं । केवल ईसाई राष्ट्रों में ही उन्नति और सभ्यता है ।
उत्तर जारी - यदि यूरोप और अमेरिका, भारत, चीन, जापान से राजनैतिक और सामाजिक मामलों में आगे बढ़े हुये हैं, तो ईसाईयत उसका कारण नही है ।
झूठे तर्क का उपयोग न करो ।
यदि सम्पूर्ण सभ्यता और सम्पूर्ण वैज्ञानिक उन्नति का सेहरा ईसाईयत के सिर बांधा जाना है, तो कृपा कर हमें बताओ कि - जब गैलीलियो ने वह छोटा सा आविष्कार किया था तब ईसाईयों ने उसके साथ कैसा (बुरा) बर्ताव किया था ?
ब्रूनो (bruno) जला दिया गया था ।
किसने उसे जलाया था ? ईसाईयत, ईसाईयत ने ।
हक्सले (huxley) स्पेंसर (spencer) और डार्विन (darwin) का ईसाईयत ने विरोध किया । उनके आविष्कारों और उन्नति तथा भाव-स्वाधीनता (independence of spirit) का उत्पादन और प्रोत्साहन ईसाईयत ने नही किया । ईसाईयत के चूर कर देने वाले सब प्रभावों के होते हुये भी वे जी रहे हैं ।
शोपेनहार (schopenhauer) की क्या गति हुयी थी । आप जानते हैं कि उसको कैसे निर्वाह करना पङता था ?
शोपेनहार को उतना ही महान बलिदान करना पङा था जितना कि ईसा को ।
ईसा अपने विश्वासों (convictions) निश्चयों के लिये मर गया और शोपेनहार अपने विश्वासों के ही लिये जीता रहा ।
और आप जानते हैं कि अपने विश्वासों के लिये मर जाना उनके लिये जीते रहने से सहज है । क्या आप जानते हैं कि शोपेनहार की स्वाधीन भावना को रोकने वाला कौन था ?
अपनी पीछे की पुस्तकों में उसने वह तेज और शक्ति खो दी । जो उसके पहले के लेखों में विशेष रूप से थी (व जिससे वह अपने पहले के लेखों में प्रसिद्ध व विशिष्ट था)
हेगल (hegel) और केन्ट (kant) के तत्वज्ञानों की दुर्बलता और हीनता का कारण ईसाईयत का प्रभाव है ।
क्या आप जानते हैं कि फ़िचेट (fichte) को अपना अध्यापक पद कैसे छोङना पङा और वह अपने देश से निकाला गया । इसका क्या कारण था ?
ईसाईयत थी ।
प्रारम्भ से ही ईसाईयत के विरुद्ध होते हुये भी सम्पूर्ण उन्नति हुयी है, न कि उसकी कृपा से ।
गलत निर्णय या अविचार न करो ।
एक भारत प्रवासी अंग्रेज, जो कुछ दिनों भारतवर्ष में रहा था, इंग्लैंड लौटने पर अपनी स्त्री से अपनी शक्ति और बल का घमण्ड करने लगा । वे अपने देहाती घर में रहते थे ।
तभी एन मौके पर एक भालू आ गया ।
भारत प्रवासी अंग्रेज भागकर एक पेङ की चोटी पर चढ़ गया । उसकी स्त्री ने हथियार उठाया और भालू को मार डाला ।
तब वहाँ कुछ दूसरे लोग आये और पूछा - भालू को किसने मारा ?
उसने कहा - मैंने और मेरी स्त्री ने भालू का वध किया ।
किन्तु (सत्य) बात (तो) ऐसी नही थी ।
इसी तरह जब बात पूर्ण हो गयी तब यह कहना कि - मैंने की है, ईसाईयत के द्वारा वह हुयी है । सत्य नही है ।
विज्ञान की सब उन्नति, यूरोप और अमेरिका में सम्पूर्ण दार्शनिक उन्नति, ये सब आविष्कार (inventions) और उपलब्धियाँ (discoveries) वेदान्त की वृत्ति के अमल में लाये जाने का फ़ल है ।
वेदान्त का अर्थ है - स्वाधीनता, स्वतन्त्रता ।
उन (वैज्ञानिक उन्नति आदि) का कारण है, स्वाधीनता की भावना, स्वतन्त्रता की वृत्ति, स्व-वशता की वृत्ति, शारीरिक आवश्यकताओं और आकांक्षाओं से ऊपर उठने की वृत्ति,
इस सारी उन्नति का कारण यही है और यही है वेदान्त का बेजान अमल में लाना ।
तुम इसे सच्ची ईसाईयत भी कह सकते हो । सच्ची ईसाईयत वेदान्त से भिन्न नही है । यदि तुम उसे ठीक ठीक समझो ।
वे कहते हैं कि हमने प्रथ्वीतल से गुलामी उठा दी है और हमने बहुत से सुधार किये हैं ।
भाईयो गुलामी हटाई गयी थी ?
अरे, राम बहुत चाहता है कि गुलामी हट गयी होती । यदि हम यह बयान मान लें कि गुलामी का अन्त हो चुका है, तो उसके दूर होने का कारण ईसाईयत नही है ।
ईसाईयत में गुलामी को हटा सकने वाली कोई चीज होती, तो गत पूर्ववर्ती सत्रह सौ साल में ईसाईयत ने गुलामी दूर क्यों नही कर दी ?
कोई और ही बात थी ।
लोग अमेरिका को आये थे । यूरोपीय राष्ट्र इधर-उधर जा रहे थे । दूसरी कौमों से उनका संसर्ग हो रहा था । और उनको शिक्षा दी जा रही थी । उनके मन विशाल बनाये जा रहे थे ।
यह अमली वेदान्त है ।
गुलामी दूर होने का यह कारण था न कि ईसाईयत ।
राजनैतिक और सामाजिक अवस्थायें लोगों के ह्रदयों और आत्माओं को आन्दोलित कर रही थी । यदि अच्छी बातें तुम ईसाईयत के मत्थे मढ़ते हो तो नास्तिकों को दण्ड देना, टोनहिनियों (जादूगरनियां) का जलाना, सिर काटने का चक्र.. और आप जानते हैं कि नास्तिकों निमित्त विचार, इनक्वीजीशन (inquisition) क्या वस्तु है ?
एक समय सेन-फ़्रांसिस्को में उसका बेरोक-टोक राज्य था ।
अरे दारुण ! दारुण ! छाती से खून निकालना । इन सबके जिक्र की जरूरत राम को नही ।
ये किसके सिर थोपोगे ?
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