बोधिधर्म बोला - तेरे पास मेरी चमड़ी है ।
दूसरे ने कहा - मेरी दृष्टिं में सत्य अंतर्दृष्टि है । उसे 1 बार पा लिया । फिर खोना नहीं है ।
बोधिधर्म बोला - तेरे पास मेरा मांस है ।
तीसरे ने कहा - मैं मानता हूं कि पंच महाभूत शून्य हैं । और पंच स्कंध भी अवास्तविक हैं । यह शून्यता ही सत्य है ।
बोधिधर्म ने कहा - तेरे पास मेरी हड्डियां हैं ।
और अंतत: वह उठा । जो जानता था । उसने गुरु के चरणों में सिर रख दिया । और मौन रहा । वह चुप था । और उसकी आंखें शून्य थी । बोधिधर्म ने कहा - तेरे पास मेरी मज्जा है । मेरी आत्मा है । और यही कहानी मेरा उत्तर है ।
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हर आदमी के भीतर बहुत से आदमी हैं । आप 1 भीड़ हैं । आपके भीतर कोई व्यक्ति नहीं है । आप कोई इंडिविजुअल नहीं हैं । आपके भीतर तो 1 भीड़ भरी हुई है । महावीर ने कहा है - मनुष्य बहु चित्तवान है । हम साधारणतः सोचते हैं कि 1 ही चित्त है । हमारे पास । महावीर कहते हैं - बहु चित्तवान है । अभी आधुनिक खोजें भी कहती हैं । मनुष्य पोलीसाइकिक है । उसमें बहुत से मन 1 ही साथ हैं । और आप खुद विचार करें । तो दिखाई पड़ेगा । बहुत से चित्त हैं । आपके पास । जब आप क्रोध में होते हैं । तो क्या आपके पास वही चित्त है । जब आप बाद में पश्चात्ताप करते हैं ? पश्चात्ताप करने वाला चित्त बिलकुल दूसरा है । क्रोध करने वाला चित्त बिलकुल दूसरा है । इसीलिए आप बारबार पश्चात्ताप करते हैं । और फिर बारबार क्रोध करते हैं । जिस चित्त ने पश्चात्ताप किया । उसकी आवाज उस चित्त तक नहीं पहुंची । जो कि क्रोध करता है । अन्यथा अन्यथा क्रोध बंद हो गया होता । 1 ही भूल आप हजार बार करते हैं । और भूल को करने के बाद पछताते हैं । दुखी होते हैं । निर्णय लेते हैं कि अब यह भूल नहीं करूंगा । अगर आप 1 ही आदमी होते । आपके भीतर 1 ही मन होता । तो निर्णय पूरा हो जाता । लेकिन आपके भीतर बहुत मन हैं । जो मन निर्णय करता है । वह मन अलग है । और जो मन क्रिया करता है । वह मन अलग है । इसलिए आपके निर्णय निर्णय रहे आते हैं । और जीवन जैसा है । वह वैसा ही चलता जाता है । रात्रि आप तय करके सोते हैं कि सुबह 4 बजे उठ आऊंगा । पूरे मन से निर्णय करते हैं कि मैं सुबह 5 बजे उठूंगा । सुबह 4 बजे कोई आपके भीतर कहता है । पड़े रहो । क्या फायदा है । सर्दी है । आप सो जाते हैं । सुबह उठकर पछताते हैं । और सोचते हैं । यह कैसे हुआ ? मैंने तय किया था कि उठूंगा । फिर उठा नहीं । कल जरूर उठूंगा । कल आप फिर पाते हैं । आपके भीतर कोई कह रहा है । क्या फायदा उठने का । सर्दी बहुत है । सोए रहो । यह मन क्या वही है । जिसने निर्णय किया था ? या कि कोई दूसरा है ?
आपका मन बहुत खंडों में विभाजित है । उसमें बहुत टुकड़े टुकड़े हैं । और इन टुकड़ों के कारण आपके भीतर 1 जटिलता पैदा हो जाती है । जिसका मन 1 नहीं है । वह जटिल होगा ही । और जटिलता अनंत गुना हो जाती है । क्योंकि 1 मन दूसरे मन के विरोध में है । थोड़ा विचार करें । आपने अपने ही हाथ से ये विरोध खड़े कर लिए हैं । शिक्षा और संस्कार ने मन को खंड खंड कर दिया है । उसकी अखंडता नष्ट हो गई है । उसका इंटीग्रेशन नहीं है । आप कहते हैं कि आप 1 आदमी हैं । क्योंकि आपका 1 ही नाम है । 1 ही लेबल है । सारे लोग जानते हैं कि आप 1 ही आदमी हैं । अपने भीतर खोजें । तो आपको बहुत आदमी वहां मिलेंगे । आपके विरोध में । आपसे भिन्न । अनेक अनेक आवाजें आपको भीतर सुनाई पड़ेंगी ।
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