कोई इंसान खुद को साई का अवतार कहता है । साईं बाबा एक महान संत थे । क्या उनका भी कोई अवतार हो सकता है ? क्या सत्य साईं साईं बाबा के अवतार थे ? मेरी नजर में वो एक झूठा इंसान है । जिसे लोगों ने अवतार बना कर मंदिर में बिठा दिया ।
ans - पहली बात तो यही है कि लोग खुद ही गलती पर है । उन्हें साई का सही मतलब ही नही पता । साई भक्ति में प्राप्ति की एक उपाधि है । जैसे आपने साधुओं के कई तरह के मत सम्प्रदाय नागा । गिरी । पुरी । अघोरी । वैष्णव आदि देखे होंगे । इनमें भी पद उपाधियाँ होती हैं । और तब किसी उपाधि का अवतार कैसे हो सकता है ?
मैंने कई लेखों में प्रसंगवश खुद ही ये माना है । बताया है कि शिरडी के साई बाबा सच्चे अर्थों में सन्त थे । लेकिन इसके अतिरिक्त ज्ञात साईयों में कोई भी सच्चा नहीं है । यानी उसे अलौकिक सत्ता से साई उपाधि प्राप्त हुयी हो । यहाँ ये भी महत्वपूर्ण है । अभी बीच में पायलट बाबा भले ही विवादित हुये हों । लेकिन उनका अपने स्तर अनुसार ज्ञान सत्य है । और वे तकनीकी तौर पर अलौकिक सत्ता से जुङे हैं ।
अब बात अवतार की । अवतार - अंश । आधा । और पूर्ण स्थिति से होता है । यानी अवतारी शरीर 5 तत्वों के पुतले को जरूरत अनुसार शक्ति अंश देना । उदाहरण के लिये छोटे अवतारों को विभिन्न शक्तियाँ अपना अंश यथायोग्य समय के लिये प्रदान करती हैं । जैसे कहीं युद्ध । आपदा आदि स्थिति बनने पर विभिन्न देश एक ही मंच पर सयुंक्त होकर एक समूह रूप कार्य करते हैं । ठीक यही स्थिति अवतार की होती है ।
दूसरी एक बात और भी है । कुण्डलिनी ज्ञान से ये अति दुर्लभ मानव शरीर यूँ ही बारबार मिलने लगे । तो इसकी वैल्यू ही फ़िर क्या है । इस तरह तो बहुत से सिद्ध । देवता । महात्मा आदि फ़िर स्वेच्छा से शरीर धारण करने लगेंगे । तब फ़िर ये सुर दुर्लभ ? कहाँ रहा । ये तो सहज सुलभ हो गया ।
अब शिरडी के साई बाबा ने जो भी उच्चता अपनी भक्ति और ज्ञान से प्राप्त की । वो उन्हें ऊपर मिल गया । फ़िर वे यहाँ क्या करेंगे । कार्यकर्ताओं कर्मचारियों की कमी तो नहीं है सत्ता के पास । दूसरे दोनों बाबाओं के स्वभाव आचरण में जमीन आसमान का अंतर है । एक बात यदि ये भी मानी जाये कि साई अपने पुण्य फ़ल को प्राप्त करने हेतु आये । तो जितना वैभव यहाँ आपके उल्लखित साई का था । वह तो वहाँ बहुत मामूली है ।
हाँ एक बात की संभावना बनती है । कभी कभी सत्ता शेष रह गये कार्यों के लिये दुबारा आत्मा को उसी या किसी भूमिका के लिये निर्धारित समय के लिये नियुक्त करती है । तब वे अपना कार्य पूरा करके चले जाते हैं । लेकिन वे कोई आडम्बर या प्रचार नहीं करते । जैसे सन्त ज्ञानेश्वर ज्ञानेश्वरी गीता की टीका करने हेतु ही आये थे । और कार्य समाप्त कर चले गये । विवेकानन्द । रामतीर्थ कार्य समाप्त होते ही चले गये । व्यास वेद आदि गृन्थों के कार्य हेतु आये थे ।
ज्योतिष शास्त्रों के ज्ञाता ऐसा कहते हैं कि - जन्मकुण्डली के माध्यम से यह जाना जा सकता है कि हम पिछले जन्म में क्या थे ? अगले जन्म में क्या होंगे ? आपको क्या लगता है कि ऐसा संभव है ?
ans - ज्योतिष शास्त्रों के ज्ञाता । अनजाने ही सही आपने एकदम सही शब्द का प्रयोग किया है । शास्त्रों के ज्ञाता । न कि ज्योतिष विज्ञान के ज्ञाता । जी हाँ । एकदम सही कहते हैं वे । पर ऐसा होने के लिये ज्योतिष विज्ञान का ज्ञाता होना जरूरी है ।
तकनीकी तौर पर । या क्रियात्मक तौर पर । सृष्टि में रहस्य जानने की दो ही विध्यायें हैं । कुण्डलिनी योग । और अद्वैत योग । और इन दोनों में ही कामन है - चेतनधारा या स्वांस । दोनों में ही प्रवेश इसी के माध्यम से होता है । और कैसी भी कोई युक्ति नहीं है । पर दोनों में एक महत्वपूर्ण फ़र्क है । कुण्डलिनी और उसकी असंख्य शाखाओं में किसी भी योग ज्ञान में खुद को लय करना होता है । जबकि अद्वैत में ये सभी कुछ स्थिति दर स्थिति साधक में स्वयं लय होते जाते हैं ।
कुण्डलिनी की तन्त्र मन्त्र आदि बहुत सी स्थितियाँ बनती हैं । जिनमें विधिवत निपुणता प्राप्त करके ही उसका उपयोग होता है । अद्वैत में सिर्फ़ सकंल्प विस्तार होता है । कुण्डलिनी अगर 10 स्थितियों से लय कराती है । तो अद्वैत उतने ही समय में 10 हजार लय कराता है ।
अब आपके प्रश्न अनुसार कुण्डलिनी की ही एक शाखा ज्योतिष विज्ञान पर बात करते हैं । तब शब्द जन्म कुण्डली पर ध्यान दे । जब किसी रस्सी को गोल लपेटे देकर एकत्र किया जाता है । वह कुण्डली होती है । जैसे सर्प कुण्डली मारकर बैठता है । यानी जाहिर है । जन्म कुण्डली शब्द बङी गहराई लिये हुये है । पूरे जन्म का लेखा जोखा । तब जो इस विज्ञान को तकनीकी क्रियात्मक तौर पर जानता होगा । वो आसानी से न सिर्फ़ वर्तमान जन्म का बल्कि अगले पिछले जन्मों का अपनी काबलियत अनुसार विवरण बता सकता है । क्योंकि जब वो आपकी कुण्डली ( के कारण । आंतरिक सरंचना ) देखेगा । तो कारण ( शरीर ) में पहुँच जायेगा । और आराम से बता देगा । प्रसिद्ध उदाहरणों में भीष्म पितामह बिना ज्योतिष के ही कारण में हजारों साल पीछे जाने की क्षमता रखते थे ।
आपके किसी पिछले लेख में "दसवां द्वार" का जिक्र आया था । ये दसवां द्वार से आपका क्या तात्पर्य है ?
ans - सामान्य चौङाई वाले माथे पर । सामान्य आकृति के सिर में । जहाँ से बाल शुरू होते हैं । वहाँ से चार अंगुल पीछे । लगभग सिर के मध्य में । खोपङी में 1 सेमी नीचे दसवाँ द्वार है । यहाँ झींगुर जैसी आवाज में अखण्ड अनहद ध्वनि निरन्तर हो रही है । यही मोक्ष द्वार है । अगर कोई इंसान इस द्वार तक पहुँच जाये । मतलब ध्यान अवस्था में इस ध्वनि को सुनने लगे । तो उसका मनुष्य जन्म पक्का हो जाता है । यदि द्वार के पार नहीं हो पाया तो । द्वार से पार हो जाने पर तो वह मोक्ष की तरफ़ बङ ही गया ।
बाकी 9 द्वारों में 2 कान ( मृत्यु समय यहाँ से प्राण निकलने पर - प्रेत योनि ) 2 आँख ( कीट पतंगा योनि ) 2 नाक छिद्र ( पक्षी योनि ) 1 मुख ( पशुवत योनियाँ ) 1 लिंग या योनि छिद्र ( विभिन्न जल जीव ) 1 गुदा मार्ग ( नरक )
आपके शेष प्रश्नों को उत्तर यथासंभव विस्तार से अलग अलग लेखों के माध्यम से देने का प्रयास रहेगा ।
- आप सबके अंतर में विराजमान सर्वात्मा प्रभु आत्मदेव को मेरा सादर प्रणाम ।
ans - पहली बात तो यही है कि लोग खुद ही गलती पर है । उन्हें साई का सही मतलब ही नही पता । साई भक्ति में प्राप्ति की एक उपाधि है । जैसे आपने साधुओं के कई तरह के मत सम्प्रदाय नागा । गिरी । पुरी । अघोरी । वैष्णव आदि देखे होंगे । इनमें भी पद उपाधियाँ होती हैं । और तब किसी उपाधि का अवतार कैसे हो सकता है ?
मैंने कई लेखों में प्रसंगवश खुद ही ये माना है । बताया है कि शिरडी के साई बाबा सच्चे अर्थों में सन्त थे । लेकिन इसके अतिरिक्त ज्ञात साईयों में कोई भी सच्चा नहीं है । यानी उसे अलौकिक सत्ता से साई उपाधि प्राप्त हुयी हो । यहाँ ये भी महत्वपूर्ण है । अभी बीच में पायलट बाबा भले ही विवादित हुये हों । लेकिन उनका अपने स्तर अनुसार ज्ञान सत्य है । और वे तकनीकी तौर पर अलौकिक सत्ता से जुङे हैं ।
अब बात अवतार की । अवतार - अंश । आधा । और पूर्ण स्थिति से होता है । यानी अवतारी शरीर 5 तत्वों के पुतले को जरूरत अनुसार शक्ति अंश देना । उदाहरण के लिये छोटे अवतारों को विभिन्न शक्तियाँ अपना अंश यथायोग्य समय के लिये प्रदान करती हैं । जैसे कहीं युद्ध । आपदा आदि स्थिति बनने पर विभिन्न देश एक ही मंच पर सयुंक्त होकर एक समूह रूप कार्य करते हैं । ठीक यही स्थिति अवतार की होती है ।
दूसरी एक बात और भी है । कुण्डलिनी ज्ञान से ये अति दुर्लभ मानव शरीर यूँ ही बारबार मिलने लगे । तो इसकी वैल्यू ही फ़िर क्या है । इस तरह तो बहुत से सिद्ध । देवता । महात्मा आदि फ़िर स्वेच्छा से शरीर धारण करने लगेंगे । तब फ़िर ये सुर दुर्लभ ? कहाँ रहा । ये तो सहज सुलभ हो गया ।
अब शिरडी के साई बाबा ने जो भी उच्चता अपनी भक्ति और ज्ञान से प्राप्त की । वो उन्हें ऊपर मिल गया । फ़िर वे यहाँ क्या करेंगे । कार्यकर्ताओं कर्मचारियों की कमी तो नहीं है सत्ता के पास । दूसरे दोनों बाबाओं के स्वभाव आचरण में जमीन आसमान का अंतर है । एक बात यदि ये भी मानी जाये कि साई अपने पुण्य फ़ल को प्राप्त करने हेतु आये । तो जितना वैभव यहाँ आपके उल्लखित साई का था । वह तो वहाँ बहुत मामूली है ।
हाँ एक बात की संभावना बनती है । कभी कभी सत्ता शेष रह गये कार्यों के लिये दुबारा आत्मा को उसी या किसी भूमिका के लिये निर्धारित समय के लिये नियुक्त करती है । तब वे अपना कार्य पूरा करके चले जाते हैं । लेकिन वे कोई आडम्बर या प्रचार नहीं करते । जैसे सन्त ज्ञानेश्वर ज्ञानेश्वरी गीता की टीका करने हेतु ही आये थे । और कार्य समाप्त कर चले गये । विवेकानन्द । रामतीर्थ कार्य समाप्त होते ही चले गये । व्यास वेद आदि गृन्थों के कार्य हेतु आये थे ।
ज्योतिष शास्त्रों के ज्ञाता ऐसा कहते हैं कि - जन्मकुण्डली के माध्यम से यह जाना जा सकता है कि हम पिछले जन्म में क्या थे ? अगले जन्म में क्या होंगे ? आपको क्या लगता है कि ऐसा संभव है ?
ans - ज्योतिष शास्त्रों के ज्ञाता । अनजाने ही सही आपने एकदम सही शब्द का प्रयोग किया है । शास्त्रों के ज्ञाता । न कि ज्योतिष विज्ञान के ज्ञाता । जी हाँ । एकदम सही कहते हैं वे । पर ऐसा होने के लिये ज्योतिष विज्ञान का ज्ञाता होना जरूरी है ।
तकनीकी तौर पर । या क्रियात्मक तौर पर । सृष्टि में रहस्य जानने की दो ही विध्यायें हैं । कुण्डलिनी योग । और अद्वैत योग । और इन दोनों में ही कामन है - चेतनधारा या स्वांस । दोनों में ही प्रवेश इसी के माध्यम से होता है । और कैसी भी कोई युक्ति नहीं है । पर दोनों में एक महत्वपूर्ण फ़र्क है । कुण्डलिनी और उसकी असंख्य शाखाओं में किसी भी योग ज्ञान में खुद को लय करना होता है । जबकि अद्वैत में ये सभी कुछ स्थिति दर स्थिति साधक में स्वयं लय होते जाते हैं ।
कुण्डलिनी की तन्त्र मन्त्र आदि बहुत सी स्थितियाँ बनती हैं । जिनमें विधिवत निपुणता प्राप्त करके ही उसका उपयोग होता है । अद्वैत में सिर्फ़ सकंल्प विस्तार होता है । कुण्डलिनी अगर 10 स्थितियों से लय कराती है । तो अद्वैत उतने ही समय में 10 हजार लय कराता है ।
अब आपके प्रश्न अनुसार कुण्डलिनी की ही एक शाखा ज्योतिष विज्ञान पर बात करते हैं । तब शब्द जन्म कुण्डली पर ध्यान दे । जब किसी रस्सी को गोल लपेटे देकर एकत्र किया जाता है । वह कुण्डली होती है । जैसे सर्प कुण्डली मारकर बैठता है । यानी जाहिर है । जन्म कुण्डली शब्द बङी गहराई लिये हुये है । पूरे जन्म का लेखा जोखा । तब जो इस विज्ञान को तकनीकी क्रियात्मक तौर पर जानता होगा । वो आसानी से न सिर्फ़ वर्तमान जन्म का बल्कि अगले पिछले जन्मों का अपनी काबलियत अनुसार विवरण बता सकता है । क्योंकि जब वो आपकी कुण्डली ( के कारण । आंतरिक सरंचना ) देखेगा । तो कारण ( शरीर ) में पहुँच जायेगा । और आराम से बता देगा । प्रसिद्ध उदाहरणों में भीष्म पितामह बिना ज्योतिष के ही कारण में हजारों साल पीछे जाने की क्षमता रखते थे ।
आपके किसी पिछले लेख में "दसवां द्वार" का जिक्र आया था । ये दसवां द्वार से आपका क्या तात्पर्य है ?
ans - सामान्य चौङाई वाले माथे पर । सामान्य आकृति के सिर में । जहाँ से बाल शुरू होते हैं । वहाँ से चार अंगुल पीछे । लगभग सिर के मध्य में । खोपङी में 1 सेमी नीचे दसवाँ द्वार है । यहाँ झींगुर जैसी आवाज में अखण्ड अनहद ध्वनि निरन्तर हो रही है । यही मोक्ष द्वार है । अगर कोई इंसान इस द्वार तक पहुँच जाये । मतलब ध्यान अवस्था में इस ध्वनि को सुनने लगे । तो उसका मनुष्य जन्म पक्का हो जाता है । यदि द्वार के पार नहीं हो पाया तो । द्वार से पार हो जाने पर तो वह मोक्ष की तरफ़ बङ ही गया ।
बाकी 9 द्वारों में 2 कान ( मृत्यु समय यहाँ से प्राण निकलने पर - प्रेत योनि ) 2 आँख ( कीट पतंगा योनि ) 2 नाक छिद्र ( पक्षी योनि ) 1 मुख ( पशुवत योनियाँ ) 1 लिंग या योनि छिद्र ( विभिन्न जल जीव ) 1 गुदा मार्ग ( नरक )
आपके शेष प्रश्नों को उत्तर यथासंभव विस्तार से अलग अलग लेखों के माध्यम से देने का प्रयास रहेगा ।
- आप सबके अंतर में विराजमान सर्वात्मा प्रभु आत्मदेव को मेरा सादर प्रणाम ।
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