Ans - आपके प्रश्न भाव के अनुसार स्वर्ग जाने का बहुचर्चित, सटीक और सबसे प्रमाणिक वर्णन धार्मिक इतिहास में युधिष्ठर और उनके भाईयों का आता है । जब वे परीक्षित को राज्य सौंपकर स्वयं स्वर्गारोहण हेतु हिमालय पर गये और रास्ते में द्रौपदी सहित एक-एक पाण्डव बीच में ही मृत्यु को प्राप्त हुये और अन्त में केवल युधिष्ठर और उनका कुत्ता शेष रह गया । तब उन्हें लेने दिव्य विमान से धर्मराज आये और फ़िर थोङी आनाकानी के बाद कुत्ता सहित स्वर्ग गये ।
यहाँ ध्यान रहे, ये पाण्डव गौतम ऋषि की नारी अहिल्या जो हनुमान की सगी नानी थी, के साथ उस समय के इन्द्र द्वारा छल से काम भोग करने पर गौतम ऋषि के द्वारा शापित हुये थे और तब इन्द्र का तेज 5 भागों में बँट गया और वे ही 5 पांडव बने थे । जबकि अभी इस समय इन्द्र की पदवी भक्त प्रहलाद को प्राप्त है ।
अब सवाल ये उठता है कि पांडव स्वर्गारोहण हेतु हिमालय ही क्यों गये थे ?
इसी प्रसंग में एक और महत्वपूर्ण बात याद आती है कि रावण की अनेक महत्वाकाक्षाओं में एक इच्छा स्वर्ग तक सीङी बनवाने की भी थी । जिसका अन्तिम समय उसने इस कार्य के लिये लापरवाह रहने के प्रति अफ़सोस भी किया था । इससे भी जाहिर होता है कि - ये कार्य संभव था । क्योंकि रावण के लिये तो स्वर्ग जाना (बहुत आसान) सुबह की सैर के समान था और दूसरी बात ये भी कि प्रथ्वी से स्वर्ग की ऊँचाई बहुत अधिक नहीं है ।
जैसा कि मैं हमेशा कहता आया कि आपके सामने कोई भी प्रश्न हो, कोई भी इच्छा हो,जिज्ञासा हो । उसका रास्ता इसी जीवन से और फ़िर आपके शरीर से ही प्राप्त होगा । दूसरा कोई उपाय नहीं है । तब एक महत्वपूर्ण चीज पर गौर करिये । किसी को यात्रा पर जाना हो । कोई यन्त्र निर्मित करना हो । किसी तकनीक में सुधार करना हो । जिन्दगी का छोटे से छोटा बङे से बङा कार्य हो । इसके लिये एक चीज की सख्त आवश्यकता होती है नक्शा, ढांचा, रूपरेखा, माडल आदि ।
इसी आधार पर शरीर में प्रथ्वी की स्थिति देखिये । यह गुदा मार्ग और लिंग या योनि के मध्य है । जिसको मूलाधार चक्र कहते हैं और नाभि तक आते आते विष्णु लोक आ जाता है । जो स्वर्ग से काफ़ी ऊपर है । इससे नीचे बृह्मा का लोक है । जिसको जननेन्द्रिय मूल स्थित समझें । ये भी स्वर्ग से ऊपर ही है । क्योंकि इन्द्र के तुलनात्मक ये 3 देवता प्रमुख हैं । तो इनके स्थान भी ऊँचे होगे ।
इससे सिद्ध होता है कि मूलाधार चक्र और जननेन्द्रिय चक्र के मध्य ही स्वर्ग की स्थिति है । ये तो मैं पहले ही कई बार बता चुका हूँ कि विराट स्थिति और मनुष्य शरीर स्थिति एकदम समान है । विराट की एक एक तिनका चीज इसमें मौजूद है ।
आगे की बात से आपको थोङी भ्रान्ति पैदा हो सकती है । क्योंकि आज मनुष्य की जानकारी के विस्तार से यह बात अटपटी है । क्योंकि प्रथ्वी की स्थिति आज के समय में सभी जानते हैं ।
अभी मैंने कहा - प्रथ्वी से स्वर्ग की ऊँचाई थोङी ही है । यानी ये अलग है । लेकिन एक दूतावास के तौर पर, मनुष्य शरीर की तरह प्रथ्वी पर भी इनके स्थान हैं । जिनमें सिर्फ़ भारत का
हिमालयी क्षेत्र स्वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है । मध्य का मैदानी भाग प्रथ्वी और अमेरिका पाताल लोक का प्रतिनिधित्व करता है । जिसमें नागलोक आदि अन्यान्य बहुत से लोक आते हैं । स्वर्ग, प्रथ्वी, पाताल ये तीन प्रमुख होते हैं ।
भले ही आज आवागमन के एक से एक साधन मौजूद हैं और हम प्रथ्वी के चप्पे चप्पे पर पहुँच सकते हैं । फ़िर भी इस प्रथ्वी पर तमाम स्थान अभी भी दुर्गम हैं । इंसानी पहुँच से परे हैं और रहेंगे । ऐसे ही क्षेत्रों में हिमालय भी एक है । जिसके बहुत से हिस्सों के एकदम नजदीक जाकर भी आप प्रतिबन्धित क्षेत्र की सीमा में एक इंच भी पैर नहीं रख सकते । यद्यपि बहुत से दुस्साहसी लोगों ने समय समय पर ऐसी धृष्टता की है । जिसका एक ही परिणाम निकला - असमय ही मौत ।
इसी सम्बन्ध में त्रेता युग का बहुचर्चित प्रसंग भी स्मरण हो आता है । जब हनुमान जी लक्ष्मण के लिये संजीवन बूटी लेने हिमालय गये । तब दिव्य प्रकाश से झिलमिलाती आलोकित बूटियाँ उनके पहुँचते ही अदृश्य हो गयी और फ़िर उनके रक्षक देवता से अनुमति आदि मिलने पर ही प्रकट हुयीं । ये बात भी हिमालय के दैवीय क्षेत्र होने को स्पष्टतया कहती है ।
अब आगे बात करें । कुछ भारतीय पर्वतारोही जो धार्मिक भावना के साथ हिमालय के दुर्गम क्षेत्रों में भृमण पर गये । उन्होंने गन्धर्व घाटी, फ़ूलों की घाटी आदि के साथ साथ एक स्थान स्वर्ग सीङी का आँखों देखा वर्णन किया है और ये कोई प्रतीकात्मक नहीं है कि जमी हुयी बर्फ़ में कभी कोई वैसी छोटी मोटी आकृति बन गयी हो । जिससे तमाम किवदन्तियों का जन्म हुआ हो । बल्कि ये आसमान को छूती हुयी बर्फ़ से बनी सीङी आकृति है । जो सदैव ही रहती है और वहाँ पहुँच पाने पर लगातार आराम से देखी जा सकती है ।
इसकी पहली सीङी 30 फ़ुट लम्बी और 15 फ़ुट ऊँची है । जो कृमशः इंच इंच घटती हुयी ऊपर की ओर पतली होती चली गयी है और इसका अंतिम छोर नजर नहीं आता । अब एक और मजे की बात है । हालांकि 15 फ़ुट ऊँचाई कोई खास नहीं होती । इस गणित पर किसी भी साधन द्वारा दस बीस पचास सीङी तो आराम से चढ़ा जा सकता है ।
लेकिन नहीं, आप किसी भी बाह्य उपाय से एक सीङी भी नहीं चढ सकते । चाहे लाख कोशिश कर लें ।
फ़िर इसका एक ही उपाय है । आप सबसे निचली सीङी पर ठीक ईसामसीह जैसी स्थिति में बाँहे फ़ैलाकर मगर मुँह सीङी की तरफ़ चिपकाकर एकदम चिपक कर खङे हो जायें । बस और कुछ नहीं करना । और ध्यान रहे ये पूरी बर्फ़ से निर्मित है और तापमान क्या होगा बताने की आवश्यकता नहीं । तो अब तक तीन खास परिणाम देखने सुनने में आये । आपको एकदम सुन्नता आ जायेगी । चेतना शून्य हो जाती है ।
एक - आँख खुलने पर आप वहाँ से कुछ फ़र्लांग से लेकर 6-7 किमी दूर पीछे पहुँच जायेंगे । जिस मार्ग से आप पहुँचे थे ।
दो - आपको ये पता नहीं होगा कि कितनी देर बाद आपकी चेतना लौटी पर जब लौटेगी । आप पहली सीङी पर 15 फ़ुट ऊँचे चढ चुके होंगे । वो भी बिना हिले डुले ।
तीन - आगे का भी तरीका यही है । उसी भक्ति भाव से फ़िर चिपक कर खङे हो जायें और फ़िर देखें । आगे क्या होता है । इस तरह से तीसरी सीङी पर पहुँच जाने तक का विवरण प्रकाश में आया है । इससे ऊपर का मेरी जानकारी में तो नहीं आया ।
इसमें भी कई विभिन्नतायें नजर आयीं । जब तीसरी सीङी पर आगे हेतु प्रयास किया गया । तो कोई पहली सीङी पर वापस आ गया । तो कोई दूसरी सीङी पर और कोई कोई इससे भी पीछे मार्ग में पहुँच गया ।
इसका जो सबसे रोचक वर्णन मेरी जानकारी में आया । वह ये था कि इस तरह गये लोगों ने जो तीसरी सीङी पर पहुँचे थे । वहाँ ऐसे ही प्रयासरत 10-12 तक अन्य अपरिचित लोगों को चेतना लौटने पर वहाँ पाया । पहले ये सभी लोग एक मौन भाषा में एक अजीब वार्तालाप सा करते रहे । फ़िर अचानक ही आक्रामक होकर एक दूसरे का गला दबाने लगे । अनुभव कर्ताओं ने बताया । स्वयं ऐसी स्थिति बनी । जिस पर उनका कोई नियन्त्रण नहीं था । सबके साथ इसका परिणाम क्या हुआ । ये बताने वाला भी कोई नहीं था । बस जो लोग अपना अनुभव बताते हैं । वह या तो पहली सीङी पर या दूसरी या मार्ग में वापस ।
तब आगे क्या होता है । कैसे कहा जाये ।
हो सकता है । कुछ लोग काफ़ी ऊपर तक गये हों । कुछ स्वर्ग चले गये हों । खास बात यही है कि इसकी बनावट में जरा भी संशय वाली बात नहीं है । बर्फ़ीले क्षेत्र में होने के बाबजूद भी यह एकदम स्पष्ट जीने की सीङियों जैसी ही है और ऊपर को भी सीङी की डिजायन में ही पूर्ण नियम अनुसार ही निर्मित है ।
अब इसका सही रहस्य तो इस पर चढ़ने वाला और फ़िर वापिस आने वाला ही बता सकता है । या कोई अलौकिक जानकारी रखने वाले इस मार्ग के पथिक हुये महात्मा द्वारा ही ये बताना संभव है ।
लिखने को इस विषय पर बहुत कुछ लिखा जा सकता है । पर मेरा उत्तर अपने स्तर पर न होकर प्रमाणिक जानकारी के आधार पर और आपके प्रश्न की मूल भावना के अनुसार है । तब उसके अनुसार प्रथ्वी पर स्वर्ग क्षेत्र और उसके रास्ते का सबसे प्रमाणिक उल्लेख यही है और ये जगह गन्धमादन पर्वत से है ।
पहले कभी मेरी भी स्वर्ग और स्वर्ग जाने में गहरी दिलचस्पी थी । तब मैंने इस विवरण का गहन चिंतन मनन किया था । मेरे हिसाब से इस सीङी का जो रहस्य है कि - कोई भी इंसान अपने पूर्व संचित पुण्य पाप संस्कार धन द्वारा ही किसी अच्छे बुरे स्थान पर या किसी भी अच्छे बुरे इंसान से किसी भी उद्देश्य से या निरुद्देश्य भी कारणवश ही मिलता है । अकारण कुछ भी नहीं होता ।
तब ये सीङी भी अनगिनत अलौकिक रहस्यों में से एक है । जो वास्तव में रास्ता भी हो सकती है और दिव्यता की ओर बढने हेतु प्रेरक भी । कोई स्वर्ग लायक स्थिति का पूर्ण पुण्यवान इसकी पहली सीङी से लग कर सीधा स्वर्ग में भी जा सकता है और शायद गये भी होंगे । अब वे अलौकिकता की गूढ़ता नियम के आधार पर बताने तो आयेंगे नहीं कि - ऐसा भी होता है या ऐसा मेरे साथ हुआ ।
दूसरे जो लोग पहली सीङी या तीसरी सीङी से वापिस आ गये । जाहिर है कुछ न कुछ पुण्य संस्कार से ही वे वहाँ तक पहुँचे और तब सीङी ने स्पष्ट बता दिया कि - तुम्हारा पुण्य स्तर इतना ही बनता है । गौर करिये कुछ को सीङी ने पीछे भी फ़ेंक दिया ।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार उन्होंने लगभग कंकाल स्थिति के कुछ शव भी वहाँ देखे । इस परिणाम की बहुत स्थितियाँ बनती हैं । जो इस मार्ग से इस तरीके से स्वर्ग गये । उनकी स्थूल देह तो छूट ही जानी थी । कुछ अपनी हठता के चलते भी मृत्यु को प्राप्त हो सकते हैं । कुछ ऐसी भावना के साथ जबरन प्राणान्त कर सकते हैं कि - यहाँ मरने पर स्वर्ग निश्चित है और ये कोई चौंकाने वाली बात नहीं है । आज भी बनारस में मोक्ष की आशा से रहने आये लोग जब बहुत दिन रहते रहते ऊब जाते हैं और मृत्यु नहीं होती । तब वे जबरन ही स्व मृत्यु कर लेते हैं । जिसका आधार यही मान्यता है कि - काशी में देह त्यागने पर मोक्ष प्राप्त होता है । उनकी धारणा बन जाती है । मौत स्वाभाविक हो या सुसाइड से । मुख्य बात काशी में मरना है । सोचिये एक भीङ भाङ वाले शहर में जब इस तरह की सोच और घटनायें हो सकती हैं । तो उस निर्जन दुर्गम रहस्यमय अलौकिक क्षेत्र में क्या घटता होगा ? जहाँ गिनती के दस बीस लोग मुश्किल ही पहुँचते होंगे । इसके बारे में स्पष्ट क्या कहा जा सकता है ।
- आप सबके अंतर में विराजमान सर्वात्मा प्रभु आत्मदेव को मेरा सादर प्रणाम ।
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