11 nov 2011 अगले दिनों की इससे बङी और महत्वपूर्ण सूचना कुछ हो ही नहीं सकती कि इस प्रथ्वी की वर्तमान निर्माण स्थिति और इस पर रहते जीवों का समस्त लेखा जोखा इसी 11 nov 2011 तक के लिये था । जो अब समाप्त हो चुका है । अब इसको पूरी तरह तो मैं भी नहीं समझा पाऊँगा । पर इसको यूँ भी मान लो । नव निर्माण नयी व्यवस्था हेतु धीरे धीरे कार्यवाही शुरू हो जायेगी । इस समय प्रथ्वी की आवादी 7 अरब है । जबकि इस प्रथ्वी का क्षेत्रफ़ल संसाधन अधिकतम 2 अरब आवादी के ठीक से रहने के अनुसार है । ध्यान रहे अधिकतम 2 अरब । और इस 2 अरब में बच्चे । बूढे । जवान । स्त्री । पुरुष सभी आते हैं । ध्यान रहे । मैं अधिकतम 2 अरब की बात कह रहा हूँ । वास्तव में तो लगभग डेढ अरब संख्या में ही उत्थान पतन होते रहना चाहिये । जैसे कभी पौने दो अरब पहुँच जाये । और कभी 1 अरब पर आ जाये । तो प्रथ्वी की विभिन्न परिस्थितियों का संतुलन बना रहता है । जाहिर है । अभी आवादी तिगने से अधिक है । अतः प्रकृति द्वारा इस व्यवस्था को संतुलन करने का समय आ गया है ।
ये असंतुलन सिर्फ़ मानव आवादी में ही नहीं है । छोटे कीट पतंगो से लेकर विशालकाय पशु वृक्ष पहाङ नदियाँ वन भूमि मिट्टी आदि सब में हो चुका है । जबकि इनका समग्र संतुलन बनाये रखने में बहुत बङा हाथ होता है ।
तब जिस प्रकार आप विभिन्न अवसरों पर अपने घर कालोनी नगर आदि की सफ़ाई अभियान सा चलाते हैं । वैसे ही यह प्रकृति का सफ़ाई अभियान होगा । जिसके कई स्थानों से संकेत मिलने शुरू हो गये हैं । यानी साफ़ शब्दों में खण्ड प्रलय की क्रिया शुरू हो गयी । जैसा कि ऊपर मैंने कहा । विभिन्न ज्ञानियों के मतानुसार सभी जीवों की
लिखित व्यवस्था रिकार्ड 11 nov 2011 तक का ही है । ये बात मैं नहीं कह रहा । बल्कि सदियों पहले से अनेक तत्व दर्शियों द्वारा कही गयी है । चाहे वो माया सभ्यता का कलेण्डर हो । या अन्य स्रोत । सभी ने एकमत ही - संवत 2000 के ऊपर हाहाकारी योग..बताया है । और ये संवत 2000 चल ही रहा है । खास बात यही है कि लिखित ब्यौरे के अनुसार 11 nov 2011 तक ही जिन जीवों की जैसी व्यवस्था होनी थी । हो जायेगी । अब इसके बाद उनके द्वारा किया गया कोई भी तात्कालिक उपाय काम नहीं करेगा । और बचे जीवों की स्थिति रिफ़्यूजी वाली ही होगी । जैसे कि मैंने कहा था । अच्छे हँस जीव । अन्य श्रेणी के भक्त । अपनी सबलता के चलते इस संघर्ष में निज स्थिति अनुसार संभल सकते हैं । बाकी जो अपनी गलतियों से उदासीनता से निर्बलता को प्राप्त हो चुके हैं । वे असहाय ही हैं । जब भी किसी देश में युद्ध जैसी विभीषका या अन्य आपदा स्थितियाँ बनती हैं । तब वहाँ के निवासियों के साथ जो गुजरता है । वही बात है ।
कल ही की बात है । सन्त समाज के बीच किसी ने बढती जमीन महंगाई की बात की । तब बताया - अब इतने बने बनाये मकान खाली होने वाले हैं कि लोग कहेंगे । इसमें आ जाईये ।
अब इस बारे में ठीक से कुछ भी नहीं कहा जा सकता कि - कहाँ क्या कैसे होगा ? और स्पष्ट कहना उचित भी नहीं बनता । पर 11 nov 2011 से जनवरी तक का समय इसके लिये खास है । यानी इन्हीं दिनों में संतुलन की कार्यवाही आरम्भ हो जायेगी । जैसे बढा हुआ अतिकृमण आदि हटाने के लिये पूर्व कागजी कार्यवाही आदि निर्धारित करके बुलडोजर चलना शुरू हो जाता है । फ़िर ये भी पक्का नहीं कहा जा सकता कि यह सब कितने दिनों तक चलेगा ? फ़िर भी ये सब 2017 तक चल सकता है ।
क्यों ? क्योंकि जीवों को shift भी करना होता है । और यकायक 5 अरब ( सिर्फ़ मानव ) जीवों को shift करना आसान बात भी नहीं हैं । इस परिवर्तन रूपरेखा के अधिंकाश संकेत जमीनी हैं । क्योंकि प्राकृतिक व्यवस्था को दुरुस्त करने हेतु बिगङी जमीन सरंचना को ठीक करना सबसे महत्वपूर्ण है ।
जैसे मिट्टी में खनिज उर्वरक तत्वों की कमी । जल का दूषित होना । वायु का दूषित होना । बेढंगा निर्माण हो
जाना । जिसमें वन्य प्रदेशों वन्य जीवों का नष्ट हो जाना आदि है । अब जाहिर है । ये काम मानवीय स्तर पर और स्थूल मशीनों द्वारा तो होगा नहीं । इसलिये सीधी सी बात है । जमीन के अन्दर से विस्फ़ोट द्वारा ही यह हो सकता है । और सभी बिज्ञान द्वारा भी जानते हैं । ज्वालामुखी विस्फ़ोट से ही ये सभी बदलाव अधिकतर संभव होते हैं । तभी जल स्रोत शुद्ध होते हैं । तभी मिट्टी को नये शक्तिशाली खनिज और उर्वरक तत्व प्राप्त होते हैं । हडप्पा मोहन जोदङो जैसी तमाम सभ्यतायें नगर सहित जमीन में समा जाती हैं । और नयी सभ्यताओं के लिये जमीन तैयार हो जाती है ।
मैं पहले ही कह चुका । ये सब नयी व्यवस्था और नये बदलाव हेतु होगा । तब अनुमानतः 2017 तक प्रथ्वी और निर्वासित पुनर्वासित जीवों की सैटिंग हो जाने पर नया लेखा जोखा तैयार किया जाये । और तब तक ये व्यवस्था ठीक उसी तरह निर्धारित कर्मचारियों के अधीन होगी । जो अतिकृमण में खास व्यवस्था हेतु नियुक्त होते हैं ।
इस खास समय में सन्त महात्मा अन्य देव शक्तियाँ उन लोगों की भी नियम अंतर्गत सहायता नहीं करती । जो एकदम पङी मुसीवत से घबराकर हाय हाय करते हैं । और तत्काल सहायता चाहते हैं । काफ़ी पहले से जुङे हुये
लोग तो अपनी स्थिति अनुसार सेफ़ जोन में होते ही हैं । और जो इससे पूर्व भाव बना चुके । प्रार्थना अर्जी लगा चुके । उनको भी थोङा कामचलाऊ लाभ मिल जाता है । पर अभी यानी 11 nov 2011 से कोई प्रार्थना काम नहीं करती । कबीर साहब ने स्पष्ट कहा है - सुख में सुमरन ना किया । दुख में करता याद । कह कबीर ता दास की । कौन सुने फ़रियाद ।
ज्यादातर तत्वदर्शी सन्त इस समय सांसारिक सम्बन्धों से हट गये हैं । गतिविधियाँ बहुत सीमित कर दी हैं । नये लोगों जीवों की उनसे बात नहीं हो सकती । अपने से जुङे लोगों को भक्ति ध्यान अधिक से अधिक करने की सलाह दे रहे हैं । व्यर्थ के कार्यों को समाप्त करने का उपदेश बता रहे हैं । दूरस्थ यात्रायें भी हानिकारक हैं । क्योंकि अब कभी भी कुछ भी हो सकता है । ये एक तरह से ब्लेक आउट स्थिति का समय है ।
मैं भी इस अवधि में बहुत कम लेख आदि नये कार्य ना के बराबर ही करूँगा । क्योंकि जिस प्रकार भयानक आपदा के समय सभी अपने अपनों का ख्याल ही करते हैं । तब मेरा भी दायित्व बनता है । लगभग 5000 हमारे अपने जीव हैं । और कुछ विभिन्न स्तरों पर भाव से जुङे हुये । दूसरे इस महा बदलाव को देखने जानने की उत्सुकता किसे नहीं होगी । तब देखें । क्या होता है ।
ये असंतुलन सिर्फ़ मानव आवादी में ही नहीं है । छोटे कीट पतंगो से लेकर विशालकाय पशु वृक्ष पहाङ नदियाँ वन भूमि मिट्टी आदि सब में हो चुका है । जबकि इनका समग्र संतुलन बनाये रखने में बहुत बङा हाथ होता है ।
तब जिस प्रकार आप विभिन्न अवसरों पर अपने घर कालोनी नगर आदि की सफ़ाई अभियान सा चलाते हैं । वैसे ही यह प्रकृति का सफ़ाई अभियान होगा । जिसके कई स्थानों से संकेत मिलने शुरू हो गये हैं । यानी साफ़ शब्दों में खण्ड प्रलय की क्रिया शुरू हो गयी । जैसा कि ऊपर मैंने कहा । विभिन्न ज्ञानियों के मतानुसार सभी जीवों की
लिखित व्यवस्था रिकार्ड 11 nov 2011 तक का ही है । ये बात मैं नहीं कह रहा । बल्कि सदियों पहले से अनेक तत्व दर्शियों द्वारा कही गयी है । चाहे वो माया सभ्यता का कलेण्डर हो । या अन्य स्रोत । सभी ने एकमत ही - संवत 2000 के ऊपर हाहाकारी योग..बताया है । और ये संवत 2000 चल ही रहा है । खास बात यही है कि लिखित ब्यौरे के अनुसार 11 nov 2011 तक ही जिन जीवों की जैसी व्यवस्था होनी थी । हो जायेगी । अब इसके बाद उनके द्वारा किया गया कोई भी तात्कालिक उपाय काम नहीं करेगा । और बचे जीवों की स्थिति रिफ़्यूजी वाली ही होगी । जैसे कि मैंने कहा था । अच्छे हँस जीव । अन्य श्रेणी के भक्त । अपनी सबलता के चलते इस संघर्ष में निज स्थिति अनुसार संभल सकते हैं । बाकी जो अपनी गलतियों से उदासीनता से निर्बलता को प्राप्त हो चुके हैं । वे असहाय ही हैं । जब भी किसी देश में युद्ध जैसी विभीषका या अन्य आपदा स्थितियाँ बनती हैं । तब वहाँ के निवासियों के साथ जो गुजरता है । वही बात है ।
कल ही की बात है । सन्त समाज के बीच किसी ने बढती जमीन महंगाई की बात की । तब बताया - अब इतने बने बनाये मकान खाली होने वाले हैं कि लोग कहेंगे । इसमें आ जाईये ।
अब इस बारे में ठीक से कुछ भी नहीं कहा जा सकता कि - कहाँ क्या कैसे होगा ? और स्पष्ट कहना उचित भी नहीं बनता । पर 11 nov 2011 से जनवरी तक का समय इसके लिये खास है । यानी इन्हीं दिनों में संतुलन की कार्यवाही आरम्भ हो जायेगी । जैसे बढा हुआ अतिकृमण आदि हटाने के लिये पूर्व कागजी कार्यवाही आदि निर्धारित करके बुलडोजर चलना शुरू हो जाता है । फ़िर ये भी पक्का नहीं कहा जा सकता कि यह सब कितने दिनों तक चलेगा ? फ़िर भी ये सब 2017 तक चल सकता है ।
क्यों ? क्योंकि जीवों को shift भी करना होता है । और यकायक 5 अरब ( सिर्फ़ मानव ) जीवों को shift करना आसान बात भी नहीं हैं । इस परिवर्तन रूपरेखा के अधिंकाश संकेत जमीनी हैं । क्योंकि प्राकृतिक व्यवस्था को दुरुस्त करने हेतु बिगङी जमीन सरंचना को ठीक करना सबसे महत्वपूर्ण है ।
जैसे मिट्टी में खनिज उर्वरक तत्वों की कमी । जल का दूषित होना । वायु का दूषित होना । बेढंगा निर्माण हो
जाना । जिसमें वन्य प्रदेशों वन्य जीवों का नष्ट हो जाना आदि है । अब जाहिर है । ये काम मानवीय स्तर पर और स्थूल मशीनों द्वारा तो होगा नहीं । इसलिये सीधी सी बात है । जमीन के अन्दर से विस्फ़ोट द्वारा ही यह हो सकता है । और सभी बिज्ञान द्वारा भी जानते हैं । ज्वालामुखी विस्फ़ोट से ही ये सभी बदलाव अधिकतर संभव होते हैं । तभी जल स्रोत शुद्ध होते हैं । तभी मिट्टी को नये शक्तिशाली खनिज और उर्वरक तत्व प्राप्त होते हैं । हडप्पा मोहन जोदङो जैसी तमाम सभ्यतायें नगर सहित जमीन में समा जाती हैं । और नयी सभ्यताओं के लिये जमीन तैयार हो जाती है ।
मैं पहले ही कह चुका । ये सब नयी व्यवस्था और नये बदलाव हेतु होगा । तब अनुमानतः 2017 तक प्रथ्वी और निर्वासित पुनर्वासित जीवों की सैटिंग हो जाने पर नया लेखा जोखा तैयार किया जाये । और तब तक ये व्यवस्था ठीक उसी तरह निर्धारित कर्मचारियों के अधीन होगी । जो अतिकृमण में खास व्यवस्था हेतु नियुक्त होते हैं ।
इस खास समय में सन्त महात्मा अन्य देव शक्तियाँ उन लोगों की भी नियम अंतर्गत सहायता नहीं करती । जो एकदम पङी मुसीवत से घबराकर हाय हाय करते हैं । और तत्काल सहायता चाहते हैं । काफ़ी पहले से जुङे हुये
लोग तो अपनी स्थिति अनुसार सेफ़ जोन में होते ही हैं । और जो इससे पूर्व भाव बना चुके । प्रार्थना अर्जी लगा चुके । उनको भी थोङा कामचलाऊ लाभ मिल जाता है । पर अभी यानी 11 nov 2011 से कोई प्रार्थना काम नहीं करती । कबीर साहब ने स्पष्ट कहा है - सुख में सुमरन ना किया । दुख में करता याद । कह कबीर ता दास की । कौन सुने फ़रियाद ।
ज्यादातर तत्वदर्शी सन्त इस समय सांसारिक सम्बन्धों से हट गये हैं । गतिविधियाँ बहुत सीमित कर दी हैं । नये लोगों जीवों की उनसे बात नहीं हो सकती । अपने से जुङे लोगों को भक्ति ध्यान अधिक से अधिक करने की सलाह दे रहे हैं । व्यर्थ के कार्यों को समाप्त करने का उपदेश बता रहे हैं । दूरस्थ यात्रायें भी हानिकारक हैं । क्योंकि अब कभी भी कुछ भी हो सकता है । ये एक तरह से ब्लेक आउट स्थिति का समय है ।
मैं भी इस अवधि में बहुत कम लेख आदि नये कार्य ना के बराबर ही करूँगा । क्योंकि जिस प्रकार भयानक आपदा के समय सभी अपने अपनों का ख्याल ही करते हैं । तब मेरा भी दायित्व बनता है । लगभग 5000 हमारे अपने जीव हैं । और कुछ विभिन्न स्तरों पर भाव से जुङे हुये । दूसरे इस महा बदलाव को देखने जानने की उत्सुकता किसे नहीं होगी । तब देखें । क्या होता है ।
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