28 प्रश्न - श्री स्वामी जी ! साधना भजन करने का उद्देश्य क्या है ?
उत्तर - साधना भजन करके श्री सदगुरू स्वामी जी महाराज को जानना । श्री सदगुरू देव जी महाराज की कृपा प्राप्त करना प्रधान उद्देश्य है ।
काम कंचन से मन मलिन हो गया है । मन में मैल जमा हो गया है । उसे श्री सदगुरु देव जी महाराज की दया रूपी साबुन लेकर साफ़ करो । यानी भजन । सुमिरन । सेवा । पूजा । दर्शन । ध्यान । दान रूपी साबुन से धोकर साफ़ करो । कितने जन्मों से मन में परत दर परत मैल जमा हुआ है । उसे धोकर यदि साफ़ न किया जाए । तो हजार प्रयत्न करने पर भी कुछ नहीं होगा । मन, चित्त शुद्ध हुए बिना श्री सदगुरू देव जी महाराज की दया । कृपा नहीं प्राप्त की जा सकती है । श्री स्वामी जी महाराज एक सुन्दर उपमा देते हैं । सुई पर मिट्टी लगी रहने से चुम्बक उसे खींच नहीं सकता । मिट्टी के धो डालने पर चुम्बक उसे खींच लेता है । ठीक उसी प्रकार श्री सदगुरू देव जी महाराज का भजन । सुमिरन । सेवा । पूजा । दर्शन । ध्यान सरल ह्रदय से करने से । श्री सदगुरू जी के
निकट प्रार्थना करने से । अनुताप करने से । पश्चाताप करने से । खूब व्याकुल होकर रोने से । मन का सारा मैल धुल जाता है । अपनी भूल की क्षमा प्रार्थना पूर्वक प्रति क्षण मांगना चाहिये । तब गुरू रूपी चुम्बक मन रूपी सुई को खींच लेता है । मन के शुद्ध होने पर श्री सदगुरू देव जी महाराज का पावन दीदार होगा । दया होगी । कृपा मिलेगी । वे रहमत की बरसात करेंगे । रहमत होने पर । श्री सदगुरू की कृपा का पात्र बनने पर दर्शन हो जाता है । मन शुद्ध होता है । यदि कोई श्री सदगुरू देव जी महाराज का दिव्य दर्शन चाहता है । तो उसे श्री स्वामी जी से करबद्ध प्रार्थना करनी होगी । कहना होगा - हे मेरे परम आराध्य ! श्री सदगुरू स्वामी जी महाराज ! कृपा कीजिये । मेरे मन मस्तिष्क पर अपना कृपा रूपी प्रकाश डालिये । जिससे मैं अदना आपके दिव्य स्वरूप का दर्शन पा सकूं । श्री सदगुरू देव जी महाराज की कृपा पाने के लिये आर्तभाव से प्रभु के पास प्रार्थना करनी होगी । श्री स्वामी जी महाराज ज्ञान के सूर्य हैं । यदि वे कृपा कर एक बार भी अपना प्रकाश आपके ऊपर डाल दें । तो उनके दर्शन हो
सकेंगे । उसी क्षण मन हमेशा के लिये शुद्ध हो जाता है ।
29 प्रश्न - श्री स्वामी जी महाराज ! मन को कैसे स्थिर किया जाय ?
उत्तर - मन को स्थिर करने के लिये मन को प्रतिदिन श्री स्वामी जी महाराज के नाम के भजन । सुमिरन । सेवा । पूजा । आरती । दर्शन । ध्यान में नियमित नियमानुसार लगाना चाहिये । प्रतिदिन ध्यान करना चाहिये । ध्यान करने का सुन्दर समय है । सुबह का बृह्म मूहूर्त । बृह्म मूहूर्त में उठकर निश्चित रूप से ध्यान । सुमिरन करना चाहिये । ऐसे नियम के साथ थोडा शास्त्र पाठ । यानी अपने श्री सदगुरू देव जी महाराज की लिखी पुस्तकों का अध्ययन करने से मन सहज ही एकाग्र हो जाता है । ध्यान के बाद कम से कम आधा घण्टा गुरू भाव में चुपचाप बैठना जरूरी है । ध्यान के तुरन्त बाद मन को किसी सांसारिक कार्य में नहीं लगाना चाहिये । उसमें बहुत हानि होती है ।
30 प्रश्न - हे मेरे प्रभु ! ध्यान में मन नहीं लगता ।
उत्तर - श्री स्वामी जी महाराज का भजन । सुमिरन । सेवा । पूजा । दर्शन । ध्यान । चिन्तन का अभ्यास करने में मन लग जाता है । पहले पहल जप ध्यान का अभ्यास करने की बहुत ज्यादा आवश्यकता होती है । यदि अच्छा न भी लगे । तो भी नित्य अभ्यास करना चाहिये । किसी निर्जन बगीचे में । या नदी के किनारे । या बडे मैदान में । अथवा स्वयं के कमरे में । चुपचाप बैठे रहने से भी बहुत बार काम बन जाता है । पहले पहल एक नियमित कार्य पद्वति बनाकर काम करना उचित है । ऐसे किसी भी काम का भार लेना अच्छा नहीं । जिससे भजन का नियम टूटे । अपने
कार्यप्रणाली सही रखें । ढंग से जप ध्यान करने पर मन अवश्य ध्यान में लगता है ।
31 प्रश्न - इष्ट के स्वरूप का ध्यान करते करते यदि अन्य देवी देवताओं की मूर्ति सामने आए । तो क्या करना चाहिये ?
उत्तर - यह तो बहुत अच्छा है । सोचना कि मेरे श्री स्वामी जी महाराज ही विभिन्न देवी देवताओं के रूप में मेरे पास आ रहे हैं । वे एक ही हैं । फ़िर भी अनेक हैं । स्वयं की इष्ट मूर्ति को भी देखना । और अन्य रूपों में जो आते हैं । उन्हें भी देखना । फ़िर कुछ दिन बाद खुद देखोगे कि अन्य सारे रूपों का इष्ट में ही लय हो गया है ।
32 प्रश्न - श्री स्वामी जी ! जप करने के लिये जब बैठता हूं । तो मन्त्र ज्योतिर्मय अक्षरों में कपाल के पास ज्वलन्त तेजमय दिखाई देता है । स्पष्ट देख पाता हूं । मानो वह ज्योति से लिखा गया है । यह देखने के बाद इष्ट मूर्ति फ़िर नहीं देख पाता । इस मंत्र को ही सिर्फ़ देखता हूं ।
उत्तर - यह बहुत ही अच्छा और शुभ लक्षण है । दोनों को ही देखना होगा । मंत्र है नाम । बृह्म मंत्र भी देखना । और
इष्ट मूर्ति को भी देखने की चेष्टा करना । इच्छा बराबर रखना कि अपने श्री स्वामी जी की एक झलक पा लूं । हर पल लालायित रहना । बेचैन रहना । दर्शन । पूजन । ध्यान । जप । सेवा । भजन । सुमिरन के लिये । ऐसा मन से भाव बना रहने पर सच्ची आस्था । लगन । विश्वास रखने पर स्वरूप भी अवश्य दिखेगा ।
33 प्रश्न - श्री स्वामी जी ! इष्टदेव श्री स्वामी जी महाराज का ध्यान पहले क्या उनके श्री मुख से आरम्भ करूं ?
उत्तर - जी नहीं । अपने श्री सदगुरू देव जी महाराज का ध्यान पहले श्री चरण वन्दना से करना । और श्री चरण से ध्यान आरम्भ करना चाहिये । बाद में मुख । हाथ । पैर । जो भी ध्यान में आवे । आने दीजिये ।
34 प्रश्न - श्री स्वामी जी ! सुना है । श्री सदगुरू देव जी महाराज का जप । ध्यान करने के पहले गुरू पूजा करना चाहिये । मैं तो यह तर्क नहीं समझ पाता ।
उत्तर - जी हां । आपने ठीक सुना है । पहले श्री सदगुरू देव जी महाराज की पूजा करना नितान्त आवश्यक है ।
यदि आप कहीं ऐसे स्थान पर हैं । जहां यह सब सम्भव नहीं है । तो आप मानसिक रूप से अपने श्री स्वामी जी महाराज का भजन । सुमिरन । पूजा । ध्यान करें । श्री सदगुरू देव जी महाराज के दर्शन । पूजन । सेवा । भजन । सुमिरन । चिन्तन । ध्यान का हमेशा अच्छा परिणाम मिलता है ।
35 प्रश्न - स्वामी जी ! एक ही कुटुम्ब में एक प्रकार की शिक्षा पाकर एक व्यक्ति साधु और एक व्यक्ति दुष्ट क्यों होता है ? यह क्या संसार के कारण तो नहीं है ?
उत्तर - संस्कार से नहीं सोहबत से । सदगुरू की शरण में गया हुआ व्यक्ति भक्त होता है । चाहे समाज में हो । चाहे आश्रम में रहे । समाज में रहने वाला व्यक्ति ही नीतिवान । सत्य पथ पर चलने वाला । भक्त बनता है । यदि आश्रम में आया । तो साधु बनता है । कहा गया है -
संगत से गुण होता है । संगत से गुण जाय । बांस कांस मिश्री । एकै भाव बिकाय ।
जैसी संगत करोगे । गुण भी वैसा अर्जित करोगे । दुराचारी की संगत में व्यक्ति दुष्ट प्रवृत्ति का होता है । साधु की
संगत में हुआ तो साधु हो जाता है । क्योंकि वही आचार विचार । भाव उसको मिलता है । जैसे पढने लिखने से व्यक्ति बुद्धिजीवी । उच्च विचार । अच्छे व्यक्तित्व वाला । आदर्शवादी । वैज्ञानिक बनता है । इंजीनियर । डाक्टर । अध्यापक । वकील बनता है । न पढने वाले व्यक्ति की बुद्धि कुन्द रहती है । दुराचारी और दुष्ट बनता है । लकडहारा । भैंस गाय चराने वाला । अन्य छोटे विचार वाला होता है । इच्छा पर बहुत कुछ निर्भर करता है । एक ने इच्छा की कि मैं साधु होऊंगा । यह इच्छा कृमश: दृण होती गयी । तभी वह साधु हो सका । इसी प्रकार परमात्मा की स्वाधीन इच्छा के द्वारा ही सृष्टि । स्थिति और प्रलय चल रहा है । आप समझे । या नहीं ? साधन । भजन की इच्छा शक्ति जितनी बढेगी । वह श्री सदगुरू देव जी महाराज की ओर उतना ही अग्रसर होगा । श्री स्वामी जी महाराज कहते कि खुद के भीतर की इच्छा शक्ति को जगाओ । जिसका मन जितना शुद्ध होता है । उसकी स्वरूप लाभ की इच्छा उतनी ही बढती है । अच्छे धर्म, कर्म पथ पर वह बढता रहता है । अच्छे विचारों को हमेशा प्रबल करते रहना चाहिये।
- ये शिष्य जिज्ञासा से सम्बन्धित प्रश्नोत्तरी श्री राजू मल्होत्रा द्वारा भेजी गयी है । आपका बहुत बहुत आभार ।
उत्तर - साधना भजन करके श्री सदगुरू स्वामी जी महाराज को जानना । श्री सदगुरू देव जी महाराज की कृपा प्राप्त करना प्रधान उद्देश्य है ।
काम कंचन से मन मलिन हो गया है । मन में मैल जमा हो गया है । उसे श्री सदगुरु देव जी महाराज की दया रूपी साबुन लेकर साफ़ करो । यानी भजन । सुमिरन । सेवा । पूजा । दर्शन । ध्यान । दान रूपी साबुन से धोकर साफ़ करो । कितने जन्मों से मन में परत दर परत मैल जमा हुआ है । उसे धोकर यदि साफ़ न किया जाए । तो हजार प्रयत्न करने पर भी कुछ नहीं होगा । मन, चित्त शुद्ध हुए बिना श्री सदगुरू देव जी महाराज की दया । कृपा नहीं प्राप्त की जा सकती है । श्री स्वामी जी महाराज एक सुन्दर उपमा देते हैं । सुई पर मिट्टी लगी रहने से चुम्बक उसे खींच नहीं सकता । मिट्टी के धो डालने पर चुम्बक उसे खींच लेता है । ठीक उसी प्रकार श्री सदगुरू देव जी महाराज का भजन । सुमिरन । सेवा । पूजा । दर्शन । ध्यान सरल ह्रदय से करने से । श्री सदगुरू जी के
निकट प्रार्थना करने से । अनुताप करने से । पश्चाताप करने से । खूब व्याकुल होकर रोने से । मन का सारा मैल धुल जाता है । अपनी भूल की क्षमा प्रार्थना पूर्वक प्रति क्षण मांगना चाहिये । तब गुरू रूपी चुम्बक मन रूपी सुई को खींच लेता है । मन के शुद्ध होने पर श्री सदगुरू देव जी महाराज का पावन दीदार होगा । दया होगी । कृपा मिलेगी । वे रहमत की बरसात करेंगे । रहमत होने पर । श्री सदगुरू की कृपा का पात्र बनने पर दर्शन हो जाता है । मन शुद्ध होता है । यदि कोई श्री सदगुरू देव जी महाराज का दिव्य दर्शन चाहता है । तो उसे श्री स्वामी जी से करबद्ध प्रार्थना करनी होगी । कहना होगा - हे मेरे परम आराध्य ! श्री सदगुरू स्वामी जी महाराज ! कृपा कीजिये । मेरे मन मस्तिष्क पर अपना कृपा रूपी प्रकाश डालिये । जिससे मैं अदना आपके दिव्य स्वरूप का दर्शन पा सकूं । श्री सदगुरू देव जी महाराज की कृपा पाने के लिये आर्तभाव से प्रभु के पास प्रार्थना करनी होगी । श्री स्वामी जी महाराज ज्ञान के सूर्य हैं । यदि वे कृपा कर एक बार भी अपना प्रकाश आपके ऊपर डाल दें । तो उनके दर्शन हो
सकेंगे । उसी क्षण मन हमेशा के लिये शुद्ध हो जाता है ।
29 प्रश्न - श्री स्वामी जी महाराज ! मन को कैसे स्थिर किया जाय ?
उत्तर - मन को स्थिर करने के लिये मन को प्रतिदिन श्री स्वामी जी महाराज के नाम के भजन । सुमिरन । सेवा । पूजा । आरती । दर्शन । ध्यान में नियमित नियमानुसार लगाना चाहिये । प्रतिदिन ध्यान करना चाहिये । ध्यान करने का सुन्दर समय है । सुबह का बृह्म मूहूर्त । बृह्म मूहूर्त में उठकर निश्चित रूप से ध्यान । सुमिरन करना चाहिये । ऐसे नियम के साथ थोडा शास्त्र पाठ । यानी अपने श्री सदगुरू देव जी महाराज की लिखी पुस्तकों का अध्ययन करने से मन सहज ही एकाग्र हो जाता है । ध्यान के बाद कम से कम आधा घण्टा गुरू भाव में चुपचाप बैठना जरूरी है । ध्यान के तुरन्त बाद मन को किसी सांसारिक कार्य में नहीं लगाना चाहिये । उसमें बहुत हानि होती है ।
30 प्रश्न - हे मेरे प्रभु ! ध्यान में मन नहीं लगता ।
उत्तर - श्री स्वामी जी महाराज का भजन । सुमिरन । सेवा । पूजा । दर्शन । ध्यान । चिन्तन का अभ्यास करने में मन लग जाता है । पहले पहल जप ध्यान का अभ्यास करने की बहुत ज्यादा आवश्यकता होती है । यदि अच्छा न भी लगे । तो भी नित्य अभ्यास करना चाहिये । किसी निर्जन बगीचे में । या नदी के किनारे । या बडे मैदान में । अथवा स्वयं के कमरे में । चुपचाप बैठे रहने से भी बहुत बार काम बन जाता है । पहले पहल एक नियमित कार्य पद्वति बनाकर काम करना उचित है । ऐसे किसी भी काम का भार लेना अच्छा नहीं । जिससे भजन का नियम टूटे । अपने
कार्यप्रणाली सही रखें । ढंग से जप ध्यान करने पर मन अवश्य ध्यान में लगता है ।
31 प्रश्न - इष्ट के स्वरूप का ध्यान करते करते यदि अन्य देवी देवताओं की मूर्ति सामने आए । तो क्या करना चाहिये ?
उत्तर - यह तो बहुत अच्छा है । सोचना कि मेरे श्री स्वामी जी महाराज ही विभिन्न देवी देवताओं के रूप में मेरे पास आ रहे हैं । वे एक ही हैं । फ़िर भी अनेक हैं । स्वयं की इष्ट मूर्ति को भी देखना । और अन्य रूपों में जो आते हैं । उन्हें भी देखना । फ़िर कुछ दिन बाद खुद देखोगे कि अन्य सारे रूपों का इष्ट में ही लय हो गया है ।
32 प्रश्न - श्री स्वामी जी ! जप करने के लिये जब बैठता हूं । तो मन्त्र ज्योतिर्मय अक्षरों में कपाल के पास ज्वलन्त तेजमय दिखाई देता है । स्पष्ट देख पाता हूं । मानो वह ज्योति से लिखा गया है । यह देखने के बाद इष्ट मूर्ति फ़िर नहीं देख पाता । इस मंत्र को ही सिर्फ़ देखता हूं ।
उत्तर - यह बहुत ही अच्छा और शुभ लक्षण है । दोनों को ही देखना होगा । मंत्र है नाम । बृह्म मंत्र भी देखना । और
इष्ट मूर्ति को भी देखने की चेष्टा करना । इच्छा बराबर रखना कि अपने श्री स्वामी जी की एक झलक पा लूं । हर पल लालायित रहना । बेचैन रहना । दर्शन । पूजन । ध्यान । जप । सेवा । भजन । सुमिरन के लिये । ऐसा मन से भाव बना रहने पर सच्ची आस्था । लगन । विश्वास रखने पर स्वरूप भी अवश्य दिखेगा ।
33 प्रश्न - श्री स्वामी जी ! इष्टदेव श्री स्वामी जी महाराज का ध्यान पहले क्या उनके श्री मुख से आरम्भ करूं ?
उत्तर - जी नहीं । अपने श्री सदगुरू देव जी महाराज का ध्यान पहले श्री चरण वन्दना से करना । और श्री चरण से ध्यान आरम्भ करना चाहिये । बाद में मुख । हाथ । पैर । जो भी ध्यान में आवे । आने दीजिये ।
34 प्रश्न - श्री स्वामी जी ! सुना है । श्री सदगुरू देव जी महाराज का जप । ध्यान करने के पहले गुरू पूजा करना चाहिये । मैं तो यह तर्क नहीं समझ पाता ।
उत्तर - जी हां । आपने ठीक सुना है । पहले श्री सदगुरू देव जी महाराज की पूजा करना नितान्त आवश्यक है ।
यदि आप कहीं ऐसे स्थान पर हैं । जहां यह सब सम्भव नहीं है । तो आप मानसिक रूप से अपने श्री स्वामी जी महाराज का भजन । सुमिरन । पूजा । ध्यान करें । श्री सदगुरू देव जी महाराज के दर्शन । पूजन । सेवा । भजन । सुमिरन । चिन्तन । ध्यान का हमेशा अच्छा परिणाम मिलता है ।
35 प्रश्न - स्वामी जी ! एक ही कुटुम्ब में एक प्रकार की शिक्षा पाकर एक व्यक्ति साधु और एक व्यक्ति दुष्ट क्यों होता है ? यह क्या संसार के कारण तो नहीं है ?
उत्तर - संस्कार से नहीं सोहबत से । सदगुरू की शरण में गया हुआ व्यक्ति भक्त होता है । चाहे समाज में हो । चाहे आश्रम में रहे । समाज में रहने वाला व्यक्ति ही नीतिवान । सत्य पथ पर चलने वाला । भक्त बनता है । यदि आश्रम में आया । तो साधु बनता है । कहा गया है -
संगत से गुण होता है । संगत से गुण जाय । बांस कांस मिश्री । एकै भाव बिकाय ।
जैसी संगत करोगे । गुण भी वैसा अर्जित करोगे । दुराचारी की संगत में व्यक्ति दुष्ट प्रवृत्ति का होता है । साधु की
संगत में हुआ तो साधु हो जाता है । क्योंकि वही आचार विचार । भाव उसको मिलता है । जैसे पढने लिखने से व्यक्ति बुद्धिजीवी । उच्च विचार । अच्छे व्यक्तित्व वाला । आदर्शवादी । वैज्ञानिक बनता है । इंजीनियर । डाक्टर । अध्यापक । वकील बनता है । न पढने वाले व्यक्ति की बुद्धि कुन्द रहती है । दुराचारी और दुष्ट बनता है । लकडहारा । भैंस गाय चराने वाला । अन्य छोटे विचार वाला होता है । इच्छा पर बहुत कुछ निर्भर करता है । एक ने इच्छा की कि मैं साधु होऊंगा । यह इच्छा कृमश: दृण होती गयी । तभी वह साधु हो सका । इसी प्रकार परमात्मा की स्वाधीन इच्छा के द्वारा ही सृष्टि । स्थिति और प्रलय चल रहा है । आप समझे । या नहीं ? साधन । भजन की इच्छा शक्ति जितनी बढेगी । वह श्री सदगुरू देव जी महाराज की ओर उतना ही अग्रसर होगा । श्री स्वामी जी महाराज कहते कि खुद के भीतर की इच्छा शक्ति को जगाओ । जिसका मन जितना शुद्ध होता है । उसकी स्वरूप लाभ की इच्छा उतनी ही बढती है । अच्छे धर्म, कर्म पथ पर वह बढता रहता है । अच्छे विचारों को हमेशा प्रबल करते रहना चाहिये।
- ये शिष्य जिज्ञासा से सम्बन्धित प्रश्नोत्तरी श्री राजू मल्होत्रा द्वारा भेजी गयी है । आपका बहुत बहुत आभार ।
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