कबीरा संगत साधु की । नित प्रति कीजे जाय । दुरमति दूर बहावसी । देशी सुमति बताय ।
एक घड़ी आधी घड़ी । आधी में पुनि आध । कबीर संगत साधु की । कटे कोटि अपराध ।
कबिरा संगति साधु की । जो करि जाने कोय । सकल बिरछ चन्दन भये । बांस न चन्दन होय ।
मन दिया कहुँ और ही । तन साधुन के संग । कह कबीर कारी गजी । कैसे लागे रंग ।
एक घड़ी आधी घड़ी । आधी में पुनि आध । कबीर संगत साधु की । कटे कोटि अपराध ।
कबिरा संगति साधु की । जो करि जाने कोय । सकल बिरछ चन्दन भये । बांस न चन्दन होय ।
मन दिया कहुँ और ही । तन साधुन के संग । कह कबीर कारी गजी । कैसे लागे रंग ।
साधुन के सतसंग से । थर थर काँपे देह । कबहुं भाव कुभाव ते । जनि मिटि जाय सनेह ।
साखी शब्द बहुते सुना । मिटा न मन का दाग । संगति सो सुधरा नहीं । ताका बड़ा अभाग ।
साध संग अन्तर पड़े । यह मति कबहु न होय । कहैं कबीर तिहु लोक में । सुखी न देखा कोय ।
गिरिये परबत सिखर ते । परिये धरिन मंझार । मूरख मित्र न कीजिये । बूड़ो काली धार ।
कह कबीर गुरु देश में । बसि जावे जो कोय । कागा ते हंसा बने । जाति बरन कुल खोय ।
भुवंगम बास न बेधई । चन्दन दोष न लाय । सब अंग तो विष सों भरा । अमृत कहाँ समाय ।
तोहि पीर जो प्रेम की । पाका सेती खेल । काची सरसों पेरि के । खरी भया न तेल ।
काचा सेती मति मिलै । पाका सेती बान । काचा सेती मिलत ही । है तन धन की हान ।
कोयला भी हो ऊजला । जरि बरि है जो सेव । मूरख होय न ऊजला । ज्यों कालर का खेत ।
मूरख को समुझावते । ज्ञान गाँठि का जाय । कोयला होय न ऊजला । सौ मन साबुन लाय ।
ज्ञानी को ज्ञानी मिले । रस की लूटम लूट । ज्ञानी को आनी मिलै । हौवे माथा कूट ।
साखी शब्द बहुतक सुना । मिटा न मन का मोह । पारस तक पहुँचा नहीं । रहा लोह का लोह ।
ब्राह्मण केरी बेटिया । मांस शराब न खाय । संगति भई कलाल की । मद बिना रहा न जाए ।
जीवन जीवन रात मद । अविचल रहे न कोय । जु दिन जाय सत्संग में । जीवन का फल सोय ।
दाग जु लागा नील का । सौ मन साबुन धोय । कोटि जतन परमोधिये । कागा हंस न होय ।
जो छोड़े तो आंधरा । खाये तो मरि जाय । ऐसे संग छछून्दरी । दोऊ भाँति पछिताय ।
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