भक्ति जु सीढ़ी मुक्ति की । चढ़े भक्त हरषाय । और न कोई चढ़ि सके । निज मन समझो आय ।
भक्ति दुहेली गुरुन की । नहि कायर का काम । सीस उतारे हाथ सों । ताहि मिले निज धाम ।
भक्ति पदारथ तब मिले । जब गुरु होय सहाय । प्रेम प्रीति की भक्ति जो । पूरण भाग मिलाय ।
भक्ति भेष बहु अन्तरा । जैसे धरनि अकाश । भक्त लीन गुरु चरण में । भेष जगत की आस ।
भक्ति दुहेली गुरुन की । नहि कायर का काम । सीस उतारे हाथ सों । ताहि मिले निज धाम ।
भक्ति पदारथ तब मिले । जब गुरु होय सहाय । प्रेम प्रीति की भक्ति जो । पूरण भाग मिलाय ।
भक्ति भेष बहु अन्तरा । जैसे धरनि अकाश । भक्त लीन गुरु चरण में । भेष जगत की आस ।
कबीर गुरु की भक्ति करूं । तज विषय रस चौंज । बार बार नहिं पाइये । मानुष जन्म की मौज ।
भक्ति दुवारा सांकरा । राई दसवें भाय । मन को मैगल होय रहा । कैसे आवे जाय ।
भक्ति बिना नहिं निस्तरे । लाख करे जो कोय । शब्द सनेही होय रहे । घर को पहुँचे सोय ।
भक्ति नसेनी मुक्ति की । संत चढ़े सब धाय । जिन जिन आलस किया । जनम जनम पछिताय ।
गुरु भक्ति अति कठिन है । ज्यों खाड़े की धार । बिना साँच पहुँचे नहीं । महा कठिन व्यवहार ।
भाव बिना नहिं भक्ति जग । भक्ति बिना नहीं भाव । भक्ति भाव इक रूप है । दोऊ एक सुभाव ।
कबीर गुरु की भक्ति का । मन में बहुत हुलास । मन मनसा मांजे नहीं । होन चहत है दास ।
कबीर गुरु की भक्ति बिन । धिक जीवन संसार । धुवां का सा धौरहरा । बिनसत लगे न बार ।
जाति बरन कुल खोय के । भक्ति करे चितलाय । कहे कबीर सतगुरु मिले । आवागमन नसाय ।
देखा देखी भक्ति का । कबहुँ न चढ़ सी रंग । बिपति पड़े यों छाड़सी । केचुलि तजत भुजंग ।
आरत है गुरु भक्ति करूँ । सब कारज सिध होय । करम जाल भौजाल में । भक्त फँसे नहिं कोय ।
जब लग भक्ति सकाम है । तब लग निष्फल सेव । कह कबीर वह क्यों मिले । निहकामी निजदेव ।
पेटे में भक्ति करे । ताका नाम सपूत । मायाधारी मसखरे । लेते गये अऊत ।
निर्पक्षा की भक्ति है । निर्मोही को ज्ञान । निरद्वंद्वी की भक्ति है । निर्लोभी निर्बान ।
तिमिर गया रवि देखते । कुमति गयी गुरु ज्ञान । सुमति गयी अति लोभ ते । भक्ति गयी अभिमान ।
खेत बिगारेउ खरतुआ । सभा बिगारी कूर । भक्ति बिगारी लालची । ज्यों केसर में घूर ।
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