- पहली बात । ये सब नाम तंत्र के ही नाम हैं । तंत्र का ही 1 नाम वाममार्ग है । वाममार्ग का अर्थ होता है - बायें हाथ का रास्ता । तुम्हारे पास 2 हाथ हैं । 1 दायां हाथ है । 1 बायां हाथ है । ये 2 हाथ बस 2 हाथ ही नहीं हैं । इनके पीछे बड़े राज छिपे हैं । तुम्हारा दायां हाथ तुम्हारे बायें मस्तिष्क के खंड से जुड़ा है - उल्टा । तुम्हारा बायां हाथ तुम्हारे दायें मस्तिष्क के खंड से जुड़ा है । मस्तिष्क 2 खंडों में बंटा है । अब तो विज्ञान ने इस पर बड़ी खोज की है । और उस खोज ने बड़े रहस्य प्रगट किये हैं । तुम्हारा दायां मस्तिष्क । जो कि बायें हाथ से जुड़ा है । काव्य का स्रोत है - अनुभूति का । भाव का । कला का । प्रज्ञा का । आनंद । मस्ती । नृत्य । संगीत । उत्सव । कल्पना । जो भी मधुर है । जो भी स्त्रैण है । जो भी सुंदर है । उस सबका जन्म तुम्हारे दायें मस्तिष्क में होता है । उस दायें मस्तिष्क का प्रतीक है - बायां हाथ । तुम्हारा दायां हाथ जुड़ा है - बायें मस्तिष्क से । बायें मस्तिष्क में पैदा होता है - तर्क, गणित, कर्मठता, कार्य कुशलता, चालाकी, राजनीति, कूटनीति, संसार, गद्य, विज्ञान, हिसाब किताब, उपयोगिता, बाजार । इस सबका संबंध बायें मस्तिष्क से है । संसार सदा से दायें हाथ पर जोर देता रहा है । क्योंकि दायें हाथ में उपयोगिता है । हिसाब किताब है । गणित है । तर्क है । बाजार है । दुकान है । व्यवहार है । बायां हाथ खतरनाक मालूम होता रहा है । सदा से खतरनाक मालूम होता रहा है । कवि का क्या भरोसा । गणितज्ञ का भरोसा किया जा सकता है । नर्तक का क्या भरोसा । वैज्ञानिक का भरोसा किया जा सकता है । फिर विज्ञान का उपयोग है । नृत्य का क्या उपयोग है ? नृत्य तो है - स्वांत: सुखाय । यह जो बायां हाथ है । वह तुम्हारे भीतर स्वांत: सुखाय का प्रतीक है । इसका कोई लक्ष्य नहीं है । इसकी कोई दिशा नहीं है । यह कहीं जा नहीं रहा है । यह तो इसी क्षण में आनंद - मस्त, मुग्ध होकर जीने की कला है । कविता का क्या मूल्य है ? न तो पेट भर सकता है । न तन ढंक सकता है । न छप्पर बन सकता है । तो कवियों को हमने थोड़ा बहुत सम्मान दिया है 1 अनुपात में । जैसे सजावट की तरह । लेकिन गैर जरूरी । एक आध आदमी कवि हो जाये समाज में । हम बर्दाश्त करते हैं । लेकिन हम कवियों की जमात बर्दाश्त नहीं करेंगे । क्योंकि कवि किसी काम का नहीं मालूम पड़ेगा । उसकी उपयोगिता क्या है ? किसी ने पिकासो को पूछा कि - तुम्हारे चित्रों की उपयोगिता क्या है ? उसने अपना सिर पीट लिया । उसने कहा - फूलों से नहीं पूछते कि तुम्हारी उपयोगिता क्या है ? और कोयल गीत गाती है । उससे नहीं पूछते कि तुम्हारी उपयोगिता क्या है ? और आकाश तारों से भर जाता है । तब नहीं पूछते कि तुम्हारी उपयोगिता क्या है ? मुझसे ही क्यों पूछते हो ? यह कवि और चित्रकार और मूर्तिकार और संगीतज्ञ सदा से कहते रहे हैं - हमारी कोई उपयोगिता नहीं है । मगर जीवन उपयोगिता पर ही समाप्त नहीं होता । जीसस का वचन याद करो - मैन कैन नाट लिव बाय ब्रेड अलोन । आदमी अकेली रोटी से तो नहीं जी सकता । कुछ और भी चाहिए । रोटी से कुछ ज्यादा चाहिए । रोटी जरूरी है । मगर काफी नहीं । आवश्यक है । मगर पर्याप्त नहीं । रोटी के बिना कविता नहीं हो सकती । यह सच है । मगर अगर कविता के बिना रोटी हो । तो जीवन हुआ न हुआ बराबर है । रोज पेट भर लिया । जी लिये । और मर लिये । अगर जीवन में काव्य न जगा । गीत न उठा । वीणा न बजी । बांसुरी पर संगीत न खिला । तो क्या सार है ?
स्वांत: सुखाय रघुनाथ गाथा । जो स्वांत: सुख से भरा है । वही उस परम प्रिय के भाव से भी भरता है । इसलिए बायां हाथ सदा से खतरे का सूचक रहा है । इसलिए जिनसे भी हम डरते हैं । उनको हम वाममार्गी कहते हैं । जिनसे हम भयभीत होते हैं । उनको हम वाममार्गी कहते हैं । तुम्हें हजारों लोग मिल जायेंगे । जो मुझे वाममार्गी कहते हैं । ठीक ही कहते हैं । मैं वाममार्गी हूं । क्योंकि मैं तुम्हें स्वांत: सुखाय की कला सिखा रहा हूं । हिसाब किताब ही सब कुछ नहीं है । हिसाब किताब के बाहर भी 1 जगत है । और वही जगत तृप्तिदायी है । उसी जगत में परितोष है । उसी जगत में प्रकाश है । जरूरतें पूरी होनी चाहिए । ठीक है । फिर क्या करोगे ? जरूरतें पूरी हो जायेंगी । फिर क्या करोगे ? आज पश्चिम में यही अड़चन आ गयी है । जरूरतें पूरी हो गयीं । जो बाहर की जरूरतें थीं । पश्चिम ने पूरी कर लीं । समझना कठिनाई । जरूरतें पूरी करने के लिये बायें हाथ से जुड़े हुए दायें मस्तिष्क का कोई उपयोग नहीं किया । इसलिए पश्चिम ने धर्म को इंकार कर दिया । काव्य को इंकार कर दिया । संगीत को इंकार कर दिया । रहस्य की सारी विधा इंकार कर दी । ठीक गणित, विज्ञान, पदार्थ, ठोस जिसका प्रमाण है । उस पर ही पश्चिम जी रहा है । 300 साल के सतत प्रयोग ने, दायें हाथ के प्रयोग ने, पश्चिम को समृद्ध बना दिया । धन है । दौलत है । मकान है । सुंदर रास्ते हैं । सुस्वाद भोजन है । भरपेट भोजन है । सब जरूरत से ज्यादा है । 1 संपन्नता का युग पश्चिम में आ गया है । लेकिन 300 साल निरंतर । वह जो स्वांत: सुखाय का स्रोत है । उसको इंकार करके आया । तो पश्चिम संपन्न हो गया । लेकिन अब क्या करे ? क्योंकि उसके पास सिर्फ सुख को भोगने की कला ही नहीं बची । पश्चिम किंकर्तव्यविमूढ़ है । अब कहां जाये । अब क्या करे ? काम का जगत जो हो सकता था । हो चुका । पश्चिम के भीतर बड़ी बेचैनी है । रविवार के दिन भी पाश्चात्य मनुष्य छुट्टी नहीं मना पाता । छुट्टी मनाने की आदत ही भूल गयी । काम और काम और काम । काम पर इतना जोर दिया है कि काम को भगवान बना दिया । ती लीला की कला भूल गयी । तो बैठकर हंसें । बोलें कि वीणा बजायें कि बगिया में घास उगायें कि मस्त होकर लेट जायें तारों तले कि नौकाविहार करें । नहीं । यह सारी बात अर्थहीन है । क्योंकि 300 साल 1 ही बात दोहराई और सिखाई गयी है । स्कूल से लेकर विश्वविद्यालय तक कि काम का मूल्य है ।
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प्रार्थना में न तो शरीर को झुकाने की आवश्यकता है । न दंडवत करने की । प्रार्थना सोते जागते चलते, रुकते, बैठते हर समय, हर सांस में
चलती रहनी चाहिए ।
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SANNYASIN IS ONE WHO LIVES THROUGH THE IMAGINATION - Just the other day somebody asked - Are there ghosts, fairies, and things like that ? Yes, there are - if you move through the right - hemisphere brain, there are. If you move through the left-hemisphere brain, there are not. All children are right - hemisphered, they see ghosts and fairies all around, but you go on talking to them and putting them in their places and saying to them - Nonsense. You are stupid. Where is the fairy ? There is nothing, just a shadow.
By and by you convince the child, the helpless child; by and by you convince him and he moves from the right-hemisphered orientation to the left-hemisphered orientation - he has to. He has to live in your world: he has to forget his dreams, he has to forget all myth, he has to forget all poetry, he has to learn mathematics. Of course he becomes efficient in mathematics - and becomes almost crippled and paralyzed in life. Existence goes on getting farther and farther away and he becomes just a commodity in the market, his whole life becomes just rubbish.. although, of course, valuable in the eyes of the world.
A SANNYASIN is one who lives through the imagination, who lives through the dreaming quality of his mind, who lives through poetry, who poeticizes about life, who looks through visions. Then trees are greener than they look to you, then birds are more beautiful, then everything takes a luminous quality. Ordinary pebbles become diamonds; ordinary rocks are no longer ordinary - nothing is ordinary. If you look from the right hemisphere, everything becomes Divine, sacred. Religion is from the right hemisphere.
OSHO Ancient Music in the Pines
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