आदरणीय राजीव जी ! नमस्कार । 1 - क्या हरेक मनुष्य के लिए गुरु पूर्व निर्धारित होता है । या उसे अपने लिए गुरु की खोज करनी होती है ? 2 - काम वासना से पार पाने का सबसे उत्तम साधन कौन सा है ? आशा है । मेरे प्रश्नों का उत्तर देकर आप मुझे कृतार्थ करेंगे । आपका ही - कृष्ण मुरारी शर्मा । कोटा । राजस्थान ।
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आदरणीय राजीव जी..सप्रेम नमस्कार । मेरे सवाल मीरा के बारे में हैं - 1 क्या मीरा को कृष्ण के शरीर रूप में दर्शन होते थे । या यह उसकी भावावस्था ही थी ?
2 क्या मीरा को वास्तव में जहर पीना पड़ा था । जिसे उसकी भक्ति ने अमृत रूप कर डाला । बहुत सी किवंदंतियां हैं कि उसके जहर के प्याले को किसी भले इंसान ने पेय पदार्थ से बदल दिया था । कृपया मार्गदर्शन करें कि सच्चाई क्या रही होगी ।
3 क्या अन्त समय में मीरा कृष्ण कि मूर्ति में समा कर अदृश्य हो गयी । या गुप्त रूप से कही अन्यत्र चली गयी । या द्वारिका के समुद्र में जल समाधि ले ली ।
4 कृपा करके यह भी समाधान करे कि राम । कृष्ण । बुद्ध या अन्य किसी अवतार अथवा चिरंजीवी पुरुषों से साक्षात्कार हो सकता है । या ये सब मन की उड़ानें हैं ? मेरा नाम कृष्ण मुरारी शर्मा है । और मैं कोटा ( राजस्थान ) का रहने वाला हूँ ।
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जब भी सोचता हूँ । अब थोङी फ़ुरसत मिली । अचानक व्यस्तता घेर लेती है । सर्दी में छोटा दिन । और विधुत की अघोषित कटौती । कुल मिलाकर कुछ अस्त व्यस्त सा हो जाता है । इन्ही पलों में आपसे भी बात करनी होती है । खैर..ये जिन्दगी के राग रंग चलते ही रहेंगे । आईये सतसंग की बात करते हैं ।
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क्या हरेक मनुष्य के लिए गुरु पूर्व निर्धारित होता है - संसार में हरेक चीज की 2 स्थिति हैं । 1 पूर्व निश्चित । 2 कोई निश्चित नहीं । उदाहरण जैसे - स्वाभाविक मृत्यु और अकाल मृत्यु । स्वाभाविक मृत्यु अपने निश्चित समय
पर समय अनुसार होगी । और अकाल मृत्यु के बहुत से कारण बन जाते हैं । ये बङी सरलता से समझा जा सकता है कि सब कुछ पूर्व निश्चित ( एकदम टाइट अन्दाज ) होने से जिन्दगी मशीनी हो जाती । और आदमी इसका रहस्य जान जाता । फ़िर विविध रंग न होते । कर्ता भाव कब का खत्म हो गया होता । इसलिये सृष्टि निश्चित और अनिश्चित दोनों आधार पर चलती है । इसी आधार पर गुरु और सतगुरु । एक तो अपने जन्म जन्म से संचित हुये पुण्य धन आधार पर । किसी आध्यात्मिक यात्रा के समान । समय आते ही मिल जाते हैं । ये एक तरह से निश्चित निर्धारित हो गया ।
लेकिन जैसा कि मैंने कहा । कोई भी एक नियम निश्चित हो जाने से सृष्टि मशीनी हो जायेगी । बरसात में वर्षा हो भी सकती है । नहीं भी हो सकती । कम भी हो सकती है । बहुत ज्यादा भी हो सकती है । यही सृष्टि की सबसे बङी विलक्षणता है । और इसीलिये सृष्टि सदा रहस्यमय रहती है ।
दूसरे आधार पर गुरु संयोगवश अचानक भी प्राप्त हो सकते हैं । क्योंकि हर जीव को कभी न कभी आत्मा की ओर मुढना ही होगा । तब किसी महात्मा गुरु आदि से उसकी भेंट आगे का अध्यात्म मार्ग तय कर देती है । ये संयोग अन्य तरह से भी बन जाते हैं । उदाहरण के लिये - मेरे ब्लाग के अधिकांश पाठक - भूत प्रेत की कहानियों के
आकर्षण से आये । और उनमें से बहुत से हँसदीक्षा प्राप्त कर भजन सुमरन में लगे हैं । और अपने ही जीवन का ये दुर्लभ सत्य जानकर चकित हैं ।
कुछ अजीवोगरीब घटनाओं से भी लोगों का आत्मज्ञान की ओर रुझान हुआ । जैसे - कालीदास । तुलसीदास । मीरा । वाल्मीक । बुद्ध । अंगुलिमाल । सम्राट अशोक । अकबर । सिकन्दर । राजा भर्तहरि आदि अनेकों नाम हैं । इनकी घटनायें ज्यादातर मालूम ही है ।
और भी अजीव उदाहरण हुये हैं । जैसे बंगाल के राजा बाबू नाम के एक व्यक्ति सुबह टहलने जाते थे । तब उन्होंने एक औरत । जो अपने पु्त्र को यह कहते हुये जगा रही थी कि - राजा बाबू ! अब तो जागो । कब तक सोये रहोगे । बोध हो गया था । और वे वापिस घर नहीं गये । सत्यकीखोज ही उनका उद्देश्य बन गया । एक राजा जब बीमार था । तो उसकी रानियाँ चन्दन आदि औषधि का लेप उसके माथे पर कर रही थी । उसे उनके चूङी कंगन बजने की आवाज से परेशानी हो रही थी । उसके कहने पर रानियों ने एक चूङी छोङकर बाकी सब चूङियाँ उतार दीं । और उसे बोध हो गया - द्वैत या भीङ ही अशान्ति का कारण है । 1 होना ही शान्ति को प्राप्त होना है । यहाँ 1 होने का अर्थ है । अपने में स्थिति होना । इसके अलावा ये भी सत्य है कि महा प्रश्न - मैं कौन हूँ । ये सबके सामने ही होता है । इस सृष्टि का रहस्य क्या है ? ये अंधकार रूपी प्रश्न जब व्यक्ति के अन्दर उठते हैं । तब वह स्वयं में चिन्तन करना शुरू कर देता है । यानी अनजाने में ही ज्ञान रूप अंतर गुरु से जुङ जाता है । इस तरह कैसे भी शुरूआत हो जाने पर कङी दर कङी जुङती चली जाती है । फ़िर लक्ष्य तक पहुँचने में व्यक्ति की सतर्कता । लगन । मेहनत । श्रद्धा । भक्ति आदि बहुत से तत्वों का होना । या उन्हें स्वयं में पैदा करना । इस यात्रा को पूर्ण सफ़ल बनाता है ।
काम वासना से पार पाने का सबसे उत्तम साधन कौन सा है ?
अध्यात्म और कामवासना के सम्बन्ध पर बहुत दिनों से एक तकनीकी । बङा । और बारीक बिन्दुओं पर आधारित लेख लिखना चाहता हूँ । और जल्द ही लिखूँगा । लेकिन अभी संक्षिप्त में कहा जाये । तो कामवासना क्या ? सभी वासनाओं से पार पाने का सबसे उत्तम साधन मनुष्य के अंतर आकाश में स्व गूँजता ध्वनि रूप " शब्द " ही है । जिसको प्रतीक रूप में " नाम " या " राम " भी कहा गया है । ये शब्द समर्थ गुरु ही प्रकट करते हैं । ये सबसे उत्तम साधन है । इसको सुनने से वासना काबू में आ जाती है । जहाँ राम तहाँ काम नहिं । वैसे - संगीत । चित्रकारी । सत संगति । परमार्थ आदि बहुत से गुण ऐसे हैं । जो कामवासना को सन्तुलित कर देते हैं । वैसे भी व्यक्ति के अन्दर असली कामवासना न होकर झूठी अधिक होती है । विस्तार से जानने के लिये कुछ समय बाद लेख का अध्ययन करें ।
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क्या मीरा को कृष्ण के शरीर रूप में दर्शन होते थे । या यह उसकी भावावस्था ही थी ?
सच कहूँ । तो मीरा ही क्या ? मनुष्य की अज्ञानतावश अधिकांश सन्तों के बारे में मिथ्या धारणायें अधिक प्रचलित हैं । मीरा के द्वारा बचपन में एक बरात देखकर माँ से पूछना - मेरा पति कौन है ?माँ द्वारा कृष्ण मूर्ति को बता देना । मीरा का सचमुच ही उसे मान लेना । फ़िर काम पर आने वाली नाइन स्त्री द्वारा उसे गुरु महिमा का पता चलना । चुपके से सन्त रैदास से दीक्षा लेना । और समर्थ गुरु के चलते नाम जप द्वारा
आत्म अनुभव होना । और फ़िर मीरा का अन्तिम लक्ष्य तक पहुँचना । ये सत्य है । 16-17 साल की आयु में ही मीरा अच्छे आत्म अनुभव कर रही थी । और वास्तव में इस उमर पर समझ ठीक से परिपक्व भी नहीं होती । तब मीरा कौन से कृष्ण का दर्शन करती होगी । सहज ही सोचा जा सकता है ।
कृष्ण स्थिति को शब्द धातु आदि आधार पर तकनीकी आध्यात्म में आकर्षण शक्ति कहा गया है । जो अपने चुम्बकत्व यानी आकर्षण से सृष्टि को धारण किये हुये है । अतः वास्तव में मीरा उस भाव में मगन रहती थी । जिसके बारे में कहा है - बोदा नशा शराब का उतर जाय प्रभात । नाम खुमारी नानका चढी रहे दिन रात । न कि किसी राधे राधे कृष्ण आदि के ।
क्या मीरा को वास्तव में जहर पीना पड़ा था ?
यहाँ भी वही बात है । मीरा वास्तव में संसार द्वारा । ससुरालियों द्वारा दिये जा रहे मान । अपमान । प्रताङना आदि का जहर पीने में समर्थ हो गयी थी । इन सबका उस पर कोई असर न होता था । काम । क्रोध । लोभ । मोह । मद आदि विषयों सांसारिक वासनाओं को विष ही कहा गया है । नाम के प्रताप से ये सब मीरा पर असर नहीं करते थे । अमृत रूपी ये नाम समस्त विषयों के विष का नाश कर देता है । वैसे योग की स्थितियों में बङी बङी चमत्कारिक घटनायें सामने आती हैं । जिनका थोङे शब्दों में बता पाना संभव नहीं है ।
क्या अन्त समय में मीरा कृष्ण कि मूर्ति में समा कर अदृश्य हो गयी ?
मीरा सार शब्द ज्ञान की पूर्ण सन्त और जीवित ही मुक्त आत्मा थीं । उन्हें वह सब शरीर छोङने से काफ़ी पहले ही प्राप्त हो गया था । सरल शब्दों में वे अपनी मर्जी की मालिक थीं । उन पर कोई नियम कानून लागू नहीं होता था । वे स्वयं परमात्म स्वरूप थी । उनसे ऊपर कोई सत्ता ही न थी । अतः सब कुछ उनकी स्वेच्छा पर निर्भर था ।
राम । कृष्ण । बुद्ध या अन्य किसी अवतार अथवा चिरंजीवी पुरुषों से साक्षात्कार हो सकता है ?
कुण्डलिनी योग में ही ऐसे साक्षात्कार हो जाते हैं । आत्मज्ञान या सुरति शब्द योग तो फ़िर सबसे बङा योग ही है । बस सभी साक्षात्कारों का एक ही नियम है । उतना ही सूक्ष्म स्थिति में होना । जिससे साक्षात्कार करना है । उदाहरण के लिये - राम का जल्दी हो जायेगा । जबकि इसकी तुलना में श्रीकृष्ण का बहुत कठिन प्रयास से । कबीर नानक बुद्ध आदि के लिये और भी अधिक मंजिल तय करनी होगी । लेकिन साक्षात्कार के दो ही उपाय हैं । कुण्डलिनी योग । और सुरति शब्द योग ।
और अन्त में - दरअसल ये सभी सूक्ष्म ज्ञान के प्रश्न हैं । इनका सटीक उत्तर स्थूल शब्दों में है ही नहीं । और मुश्किल ये हैं । इन्हें संकेतों में ही बताया जाता है । हाँ ! साधक स्थिति वाले को ये ज्यों का त्यों ज्ञात होता है ।
आपके द्वारा पूछे गये सभी प्रश्नों का उत्तर अलग अलग प्रसंग अनुसार मेरे ब्लाग्स में विस्तार से भी मौजूद हैं । साथ ही आगे भी चर्चा होती रहेगी । कृपया किसी बिन्दु पर असन्तुष्ट होने पर फ़िर से पूछ सकते हैं ।
- आप सबके अंतर में विराजमान सर्वात्मा प्रभु आत्मदेव को मेरा सादर प्रणाम ।
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आदरणीय राजीव जी..सप्रेम नमस्कार । मेरे सवाल मीरा के बारे में हैं - 1 क्या मीरा को कृष्ण के शरीर रूप में दर्शन होते थे । या यह उसकी भावावस्था ही थी ?
2 क्या मीरा को वास्तव में जहर पीना पड़ा था । जिसे उसकी भक्ति ने अमृत रूप कर डाला । बहुत सी किवंदंतियां हैं कि उसके जहर के प्याले को किसी भले इंसान ने पेय पदार्थ से बदल दिया था । कृपया मार्गदर्शन करें कि सच्चाई क्या रही होगी ।
3 क्या अन्त समय में मीरा कृष्ण कि मूर्ति में समा कर अदृश्य हो गयी । या गुप्त रूप से कही अन्यत्र चली गयी । या द्वारिका के समुद्र में जल समाधि ले ली ।
4 कृपा करके यह भी समाधान करे कि राम । कृष्ण । बुद्ध या अन्य किसी अवतार अथवा चिरंजीवी पुरुषों से साक्षात्कार हो सकता है । या ये सब मन की उड़ानें हैं ? मेरा नाम कृष्ण मुरारी शर्मा है । और मैं कोटा ( राजस्थान ) का रहने वाला हूँ ।
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जब भी सोचता हूँ । अब थोङी फ़ुरसत मिली । अचानक व्यस्तता घेर लेती है । सर्दी में छोटा दिन । और विधुत की अघोषित कटौती । कुल मिलाकर कुछ अस्त व्यस्त सा हो जाता है । इन्ही पलों में आपसे भी बात करनी होती है । खैर..ये जिन्दगी के राग रंग चलते ही रहेंगे । आईये सतसंग की बात करते हैं ।
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क्या हरेक मनुष्य के लिए गुरु पूर्व निर्धारित होता है - संसार में हरेक चीज की 2 स्थिति हैं । 1 पूर्व निश्चित । 2 कोई निश्चित नहीं । उदाहरण जैसे - स्वाभाविक मृत्यु और अकाल मृत्यु । स्वाभाविक मृत्यु अपने निश्चित समय
पर समय अनुसार होगी । और अकाल मृत्यु के बहुत से कारण बन जाते हैं । ये बङी सरलता से समझा जा सकता है कि सब कुछ पूर्व निश्चित ( एकदम टाइट अन्दाज ) होने से जिन्दगी मशीनी हो जाती । और आदमी इसका रहस्य जान जाता । फ़िर विविध रंग न होते । कर्ता भाव कब का खत्म हो गया होता । इसलिये सृष्टि निश्चित और अनिश्चित दोनों आधार पर चलती है । इसी आधार पर गुरु और सतगुरु । एक तो अपने जन्म जन्म से संचित हुये पुण्य धन आधार पर । किसी आध्यात्मिक यात्रा के समान । समय आते ही मिल जाते हैं । ये एक तरह से निश्चित निर्धारित हो गया ।
लेकिन जैसा कि मैंने कहा । कोई भी एक नियम निश्चित हो जाने से सृष्टि मशीनी हो जायेगी । बरसात में वर्षा हो भी सकती है । नहीं भी हो सकती । कम भी हो सकती है । बहुत ज्यादा भी हो सकती है । यही सृष्टि की सबसे बङी विलक्षणता है । और इसीलिये सृष्टि सदा रहस्यमय रहती है ।
दूसरे आधार पर गुरु संयोगवश अचानक भी प्राप्त हो सकते हैं । क्योंकि हर जीव को कभी न कभी आत्मा की ओर मुढना ही होगा । तब किसी महात्मा गुरु आदि से उसकी भेंट आगे का अध्यात्म मार्ग तय कर देती है । ये संयोग अन्य तरह से भी बन जाते हैं । उदाहरण के लिये - मेरे ब्लाग के अधिकांश पाठक - भूत प्रेत की कहानियों के
आकर्षण से आये । और उनमें से बहुत से हँसदीक्षा प्राप्त कर भजन सुमरन में लगे हैं । और अपने ही जीवन का ये दुर्लभ सत्य जानकर चकित हैं ।
कुछ अजीवोगरीब घटनाओं से भी लोगों का आत्मज्ञान की ओर रुझान हुआ । जैसे - कालीदास । तुलसीदास । मीरा । वाल्मीक । बुद्ध । अंगुलिमाल । सम्राट अशोक । अकबर । सिकन्दर । राजा भर्तहरि आदि अनेकों नाम हैं । इनकी घटनायें ज्यादातर मालूम ही है ।
और भी अजीव उदाहरण हुये हैं । जैसे बंगाल के राजा बाबू नाम के एक व्यक्ति सुबह टहलने जाते थे । तब उन्होंने एक औरत । जो अपने पु्त्र को यह कहते हुये जगा रही थी कि - राजा बाबू ! अब तो जागो । कब तक सोये रहोगे । बोध हो गया था । और वे वापिस घर नहीं गये । सत्यकीखोज ही उनका उद्देश्य बन गया । एक राजा जब बीमार था । तो उसकी रानियाँ चन्दन आदि औषधि का लेप उसके माथे पर कर रही थी । उसे उनके चूङी कंगन बजने की आवाज से परेशानी हो रही थी । उसके कहने पर रानियों ने एक चूङी छोङकर बाकी सब चूङियाँ उतार दीं । और उसे बोध हो गया - द्वैत या भीङ ही अशान्ति का कारण है । 1 होना ही शान्ति को प्राप्त होना है । यहाँ 1 होने का अर्थ है । अपने में स्थिति होना । इसके अलावा ये भी सत्य है कि महा प्रश्न - मैं कौन हूँ । ये सबके सामने ही होता है । इस सृष्टि का रहस्य क्या है ? ये अंधकार रूपी प्रश्न जब व्यक्ति के अन्दर उठते हैं । तब वह स्वयं में चिन्तन करना शुरू कर देता है । यानी अनजाने में ही ज्ञान रूप अंतर गुरु से जुङ जाता है । इस तरह कैसे भी शुरूआत हो जाने पर कङी दर कङी जुङती चली जाती है । फ़िर लक्ष्य तक पहुँचने में व्यक्ति की सतर्कता । लगन । मेहनत । श्रद्धा । भक्ति आदि बहुत से तत्वों का होना । या उन्हें स्वयं में पैदा करना । इस यात्रा को पूर्ण सफ़ल बनाता है ।
काम वासना से पार पाने का सबसे उत्तम साधन कौन सा है ?
अध्यात्म और कामवासना के सम्बन्ध पर बहुत दिनों से एक तकनीकी । बङा । और बारीक बिन्दुओं पर आधारित लेख लिखना चाहता हूँ । और जल्द ही लिखूँगा । लेकिन अभी संक्षिप्त में कहा जाये । तो कामवासना क्या ? सभी वासनाओं से पार पाने का सबसे उत्तम साधन मनुष्य के अंतर आकाश में स्व गूँजता ध्वनि रूप " शब्द " ही है । जिसको प्रतीक रूप में " नाम " या " राम " भी कहा गया है । ये शब्द समर्थ गुरु ही प्रकट करते हैं । ये सबसे उत्तम साधन है । इसको सुनने से वासना काबू में आ जाती है । जहाँ राम तहाँ काम नहिं । वैसे - संगीत । चित्रकारी । सत संगति । परमार्थ आदि बहुत से गुण ऐसे हैं । जो कामवासना को सन्तुलित कर देते हैं । वैसे भी व्यक्ति के अन्दर असली कामवासना न होकर झूठी अधिक होती है । विस्तार से जानने के लिये कुछ समय बाद लेख का अध्ययन करें ।
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क्या मीरा को कृष्ण के शरीर रूप में दर्शन होते थे । या यह उसकी भावावस्था ही थी ?
सच कहूँ । तो मीरा ही क्या ? मनुष्य की अज्ञानतावश अधिकांश सन्तों के बारे में मिथ्या धारणायें अधिक प्रचलित हैं । मीरा के द्वारा बचपन में एक बरात देखकर माँ से पूछना - मेरा पति कौन है ?माँ द्वारा कृष्ण मूर्ति को बता देना । मीरा का सचमुच ही उसे मान लेना । फ़िर काम पर आने वाली नाइन स्त्री द्वारा उसे गुरु महिमा का पता चलना । चुपके से सन्त रैदास से दीक्षा लेना । और समर्थ गुरु के चलते नाम जप द्वारा
आत्म अनुभव होना । और फ़िर मीरा का अन्तिम लक्ष्य तक पहुँचना । ये सत्य है । 16-17 साल की आयु में ही मीरा अच्छे आत्म अनुभव कर रही थी । और वास्तव में इस उमर पर समझ ठीक से परिपक्व भी नहीं होती । तब मीरा कौन से कृष्ण का दर्शन करती होगी । सहज ही सोचा जा सकता है ।
कृष्ण स्थिति को शब्द धातु आदि आधार पर तकनीकी आध्यात्म में आकर्षण शक्ति कहा गया है । जो अपने चुम्बकत्व यानी आकर्षण से सृष्टि को धारण किये हुये है । अतः वास्तव में मीरा उस भाव में मगन रहती थी । जिसके बारे में कहा है - बोदा नशा शराब का उतर जाय प्रभात । नाम खुमारी नानका चढी रहे दिन रात । न कि किसी राधे राधे कृष्ण आदि के ।
क्या मीरा को वास्तव में जहर पीना पड़ा था ?
यहाँ भी वही बात है । मीरा वास्तव में संसार द्वारा । ससुरालियों द्वारा दिये जा रहे मान । अपमान । प्रताङना आदि का जहर पीने में समर्थ हो गयी थी । इन सबका उस पर कोई असर न होता था । काम । क्रोध । लोभ । मोह । मद आदि विषयों सांसारिक वासनाओं को विष ही कहा गया है । नाम के प्रताप से ये सब मीरा पर असर नहीं करते थे । अमृत रूपी ये नाम समस्त विषयों के विष का नाश कर देता है । वैसे योग की स्थितियों में बङी बङी चमत्कारिक घटनायें सामने आती हैं । जिनका थोङे शब्दों में बता पाना संभव नहीं है ।
क्या अन्त समय में मीरा कृष्ण कि मूर्ति में समा कर अदृश्य हो गयी ?
मीरा सार शब्द ज्ञान की पूर्ण सन्त और जीवित ही मुक्त आत्मा थीं । उन्हें वह सब शरीर छोङने से काफ़ी पहले ही प्राप्त हो गया था । सरल शब्दों में वे अपनी मर्जी की मालिक थीं । उन पर कोई नियम कानून लागू नहीं होता था । वे स्वयं परमात्म स्वरूप थी । उनसे ऊपर कोई सत्ता ही न थी । अतः सब कुछ उनकी स्वेच्छा पर निर्भर था ।
राम । कृष्ण । बुद्ध या अन्य किसी अवतार अथवा चिरंजीवी पुरुषों से साक्षात्कार हो सकता है ?
कुण्डलिनी योग में ही ऐसे साक्षात्कार हो जाते हैं । आत्मज्ञान या सुरति शब्द योग तो फ़िर सबसे बङा योग ही है । बस सभी साक्षात्कारों का एक ही नियम है । उतना ही सूक्ष्म स्थिति में होना । जिससे साक्षात्कार करना है । उदाहरण के लिये - राम का जल्दी हो जायेगा । जबकि इसकी तुलना में श्रीकृष्ण का बहुत कठिन प्रयास से । कबीर नानक बुद्ध आदि के लिये और भी अधिक मंजिल तय करनी होगी । लेकिन साक्षात्कार के दो ही उपाय हैं । कुण्डलिनी योग । और सुरति शब्द योग ।
और अन्त में - दरअसल ये सभी सूक्ष्म ज्ञान के प्रश्न हैं । इनका सटीक उत्तर स्थूल शब्दों में है ही नहीं । और मुश्किल ये हैं । इन्हें संकेतों में ही बताया जाता है । हाँ ! साधक स्थिति वाले को ये ज्यों का त्यों ज्ञात होता है ।
आपके द्वारा पूछे गये सभी प्रश्नों का उत्तर अलग अलग प्रसंग अनुसार मेरे ब्लाग्स में विस्तार से भी मौजूद हैं । साथ ही आगे भी चर्चा होती रहेगी । कृपया किसी बिन्दु पर असन्तुष्ट होने पर फ़िर से पूछ सकते हैं ।
- आप सबके अंतर में विराजमान सर्वात्मा प्रभु आत्मदेव को मेरा सादर प्रणाम ।
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