विश्व स्तर पर हम बहुत से दिवस मनाते हैं । इतने कि उन सभी का नाम बताना भी बेहद कठिन है । पर
अपने अब तक के अनुभवों से मैं समझता हूँ । इस प्रथ्वी पर गुरु पूर्णिमा से अधिक महत्वपूर्ण दिन कोई नहीं है । इसे व्यास पूर्णिमा या आषाङी पूर्णिमा भी कहा जाता है । हिन्दू तिथियों के अनुसार बस मुझे इसके जुलाई महीने में ही पङने से कुछ उलझन होती है । क्योंकि अभी नये नये स्कूल कालेज खुले होते हैं । और एडमीशन आदि चल रहे होते हैं । अबकी बार तो यह 3 जुलाई को पङ रही है । इससे थोङा पहले यह जून के महीने में पङती । तो सभी लोग बेफ़िक्र होकर इस महा दिवस पर सपरिवार गुरु आश्रमों में सम्मिलित होकर आध्यात्मिक लाभ उठाते । लेकिन मनुष्य जीवन के अनुसार इसके बे समय पङने से बहुत से इच्छुक लोग भी मजबूरी में वंचित रह जाते हैं ।
इस सबके बाबजूद भी इसका महत्व जानने वाले श्रद्धालु लोग हजारों किमी की यात्रा कर देश विदेश से गुरु के दर्शनों हेतु पहुँचते हैं क्योंकि - गु अंधियारा जानिये । रु कहिये प्रकाश । मिटि अज्ञाने ज्ञान दे । गुरु नाम है तास । गुरु पूर्णिमा का निमंत्रण हमारे शिष्यों श्रद्धालुओं को भेजते हुये मुझे इसी बात का अहसास हुआ । जब उन्होंने 3 जुलाई के कारण आने में बङी असमर्थता सी जताई । क्योंकि 1 दिन के कार्यकृम में भी दूर दूर से आने वालों को 3 दिन का समय चाहिये होता है । पर मैं
इसको एक दूसरे दृष्टिकोण से भी देखता हूँ कि शायद इसी को किस्मत भी कहते हैं । और दूसरे शब्दों में कोई पुण्य अर्जित करना भी हमारे हाथ में नहीं होता । इसके लिये सालों पहले से भावना भक्ति की धारा ह्रदय में संचरित हो । तभी ऐसे सुयोग बनते हैं । खैर..यदि आपके अन्दर भावना हो । तो गुरु कहीं दूर भी नहीं होते । बल्कि दीक्षा प्राप्त हंस ज्ञान में गुरु अंग संग होते हैं । इसलिये - लच्छ ( लाख ) कोस जो गुरु बसे । दीजे सुरति पठाय । शब्द तुरी असवार है । छिन ( पल में ) आवे छिन जाय । यानी आप अपनी भावना अनुसार घर पर ही गुरु चित्र के आगे भाव पूजन कर सकते हैं ।
ये विराट की अखिल बृह्माण्डी सत्ता - शब्द ( सबसे ऊपर के आसमान में धुर ( केन्द्र ) पर होती बहुत तेज घनघोर टंकार ) के वायव्रेशन से पल पल निर्मित और ध्वंस हो रही है । शब्द के वायव्रेशन से ही चुम्बकीय बल पैदा होता है । जिसे दूसरे शब्दों में गुरुत्व बल और अंग्रेजी में gravity force कहते हैं । अब आप इन्हीं 3 लाइनों में छिपे ( वास्तव में अलौकिक ) बिज्ञान के इस महा रहस्य को समझने की कोशिश करें । इस चुम्बकीय बल से ही ये सभी बृह्माण्ड निराधार टिके भी हुये हैं । और गति भी कर रहे हैं । किससे ? सिर्फ़ चुम्बकीय बल यानी gravity force से । और ये चुम्बकत्व किससे है - शब्द से । और शब्द ( स्वयं ) किससे है ? शाश्वत प्रकाश से । और गुरु का अर्थ
क्या है ? जीव को इसी गु ( अज्ञान के अंधकार ) से उसी रू ( शाश्वत प्रकाश ) तक ले जाकर मिला दे । वही गुरु है । यानी हर चीज का अन्त होकर । शाश्वत सत्य से - गुरु बिन ज्ञान न उपजे । गुरु बिन मिले न मोक्ष । गुरु बिन लखे न सत्य को । गुरु बिन मिटे न दोष ।
अब साइंस की बीन बजाने वाले एक और मजेदार चीज पर गौर करें । 500 साल पहले आये कबीर । जिन्हें दुनियाँ अंगूठा टेक कहती समझती है ( हालांकि ये बात अलग है कि कबीर का एक एक दोहा समझने में ही अच्छे अच्छे लम्ब लेट हो जाते हैं ) क्या कह रहे हैं - सतगुरु सम कोई नहीं । सात दीप नौ खण्ड । तीन लोक न पाइये । अरु इक्कीस बृह्मण्ड । तमाम बङी बङी दूरबीनें लगाये बैज्ञानिक और उनके पिछलग्गू आज भी मुझे इतना ही बता दें कि - 7 दीप 9 खण्ड 3 लोक और 21 बृह्मण्ड का आखिर सही सही मतलब क्या है ? ये कहाँ हैं ? और अनपढ ? कबीर आखिर किस आधार पर ऐसा कह सके ? यहाँ कहा जा सकता है । कबीर कवित्त की कल्पनायें करने में माहिर थे । उन्होंने कल्पना के घोङे दौङाये होंगे । तो कबीर वाणी में जो धार्मिक साहित्य वेद पुराण और सबसे बङी बात कृमवद्ध ढंग से युगों युगों की बैज्ञानिक तरीके से जानकारी दी गयी है । वो एक बुनकर अनपढ जुलाहा दे सकता है ? तब जब उसे जीविका के लिये कङी मेहनत करनी होती हो ।
देखिये द्वैत के महा योगी और राम के ससुर राजा जनक के शिष्य शुकदेव के लिये उन्होंने क्या कहा - शुकदेव
सरीखा फेरिया । तो को पावे पार । बिनु गुरु निगुरा जो रहे । पड़े चौरासी धार । शुकदेव को विष्णु ने निगुरा होने के कारण स्वर्ग से लौटा दिया था । मुझे नहीं लगता । बैज्ञानिक आज भी 84 लाख योनियों के बारे में कुछ जानते हों । जबकि आत्म ज्ञानियों का सन्त मत इसका विस्त्रत बैज्ञानिक विवेचन करता है । और भी देखिये । द्वैत का कोई कथावाचक । साधु सन्त ये कहने की हिम्मत रखता है - बिन सतगुरु उपदेश । सुर नर मुनि नहिं निस्तरे । बृह्मा विष्णु महेश । और सकल जीव को गिने ।
देवता । मुनि । बृह्मा विष्णु महेश जब इनका खुद का उद्धार मोक्ष बिना सतगुरु के नहीं हो सकता । तो फ़िर तुच्छ जीव ये मनुष्य किस गिनती में है ? मुझे एक बात याद आती है । कबीर सचखण्ड से जब मान सरोवर से जीवों को चेताने सतपुरुष के आदेश पर आ रहे थे । तो रास्ते में
विष्णु मिला । कबीर ने कहा - सतनाम को जानो । उसका सुमरन करो । तुम्हारा मोक्ष होगा । विष्णु चौंक गये । विष्णु ने कहा - मैं खुद जीवों को 4 प्रकार का मोक्ष देता हूँ । फ़िर मेरा कैसा मोक्ष ? कबीर ने कहा - तुम्हारा छोङो । तुम्हारे माता ( अष्टांगी या आदि शक्ति ) पिता ( काल पुरुष या निरंजन ) को भी मोक्ष प्राप्त नहीं है । वे भी अमर नहीं । वे भी समय आने पर मृत्यु को प्राप्त होते हैं । फ़िर तुम क्या मोक्ष दोगे ? तुम्हारा मोक्ष ( मुक्त ) नहीं मुक्ति ( एक लम्बे समय तक दिव्य जीवन आदि मिलना ) है ।
खैर..घोर अहंकारी विष्णु को यह बात अच्छी नहीं लगी ( जबकि उसे ये सोचना चाहिये था - मुझसे आखिर ये बात कहने वाला कौन है ? ) । कबीर आगे आये । तब अष्टांगी और काल पुरुष के सबसे छोटे पुत्र शंकर ने उनकी बातों को समझा । गौर किया ।
इसी को आगे दोहे में कहा है - गुरु सरनागति छाड़ि के । करे भरोसा और । सुख सम्पति की कह चली ।
नहीं नरक में ठौर । यहाँ - करे भरोसा और..का मतलब यही है । जो मनुष्य इन देवी देवताओं के उलझाऊ कठिन और लगभग पाखण्डी ( क्योंकि इनके द्वारा प्रेरित शास्त्र गोलमाल शब्दों में जीव को उलझाकर मोक्ष के नाम पर सदा धोखा देते हैं ) ज्ञान ? में फ़ँस जाता है । उसे नरक में भी स्थान पाना मुश्किल हो जाता है । क्योंकि नरक से भी भयानक स्थितियाँ इन 5 - काल पुरुष इसकी पत्नी आदि शक्ति तीनों पुत्र बृह्मा विष्णु महेश ने निर्मित की हैं । एकमात्र उद्देश्य वही । जीव को सदा काल के जाल में फ़ँसाये रखना । जीव ! जो काल पुरुष का भोजन है । अष्टांगी अपने पति काल पुरुष से डरती है । और उसकी ( अष्टांगी की ) शक्ति के आगे बृह्मा विष्णु महेश सिर्फ़ बच्चे हैं । जाहिर है । ये चारों काल पुरुष की इच्छा अनुसार ये धूर्तता करने पर विवश हैं ।
और देखिये - सतगुरु मिले तो सब मिले । न तो मिला न कोय । मात पिता सुत बांधवा । ये तो घर घर होय । माता पिता पुत्र भाई बहन पत्नी पति मित्र रिश्तेदार ये तो हर जन्म में मिलते रहे । और यही रोटी दाल कमाने का बखेङा फ़ैला रहा । पर सतगुरु लाखों करोंङो जन्मों के बाद पुण्य संचित होने पर ही मिलते हैं । इसलिये - गुरु को कीजे दण्डवत । कोटि कोटि परनाम । कीट न जाने भृगं को । गुरु कर ले आप समान । एक मामूली तिनके के समान रेंगने वाले किसी भी ( यहाँ जीव मनुष्य ) कीङे को भृंग ( उङने वाला । पंखों वाला चींटा ) अपने ( शब्द की गुंजार हूँऽऽ हूँऽऽ से ) समान शक्तिशाली बना देता है । सोचिये । कहाँ जमीन पर मुश्किल से घिसटते हुये रेंगना । और कहाँ मुक्त भाव से उङना । है अदभुत बिज्ञान ।
इसीलिये सन्तों की महिमा में कितना उचित ही कहा है - साधु बिरछ सत ज्ञान फल । शीतल शब्द विचार । जग में होते साधु नहिं । जर भरता संसार ।
लेकिन एक ही खास बात है । वो क्या - जो गुरु ते भृम न मिटे । भ्रान्ति न जिसका जाय । सो गुरु झूठा जानिये । त्यागत देर न लाय । जैसा कि कबीर वाणी अनुराग सागर इस काल पुरुष इसकी पत्नी तीनों पुत्र बृह्मा विष्णु महेश और काल द्वारा नियुक्त विभिन्न रूपा काल दूतों ( संसार में फ़ैले नकली साधुओं के रूप में ) की सटीक पोल खोल कर रख देती है । उसी प्रकार अन्य नकली पाखण्डी गुरुओं की भी संसार में भरमार है । खास अभी कबीर और आत्म ज्ञान के नाम पर तो झूठा ज्ञान देने वाले धूर्त बहुत मुखर हो गये हैं । इसलिये दीक्षा उपदेश के बाद तुरन्त से लेकर 3 महीने के अन्दर यदि आपके अंतर में प्रकाश नहीं हुआ । 3rd eye तीसरी आँख नहीं खुली । किसी प्रकार की अलौकिकता का अनुभव नहीं हुआ । तो गौर करिये । आपका गुरु वास्तव में ही गुरु है । या आप किसी काल दूत के चक्कर में फ़ँसे हुये हैं ?
गुरु पूर्णिमा के शुभ पावन अवसर पर आपको ठोस सच्चाईयों और गुरु महिमा से कुछ कुछ परिचित कराने की कोशिश करते हुये - आप सभी का 3 जुलाई को हमारे आश्रम में सादर सप्रेम निमन्त्रण है । भले ही आप हमारे मण्डल के शिष्य हैं । या नहीं है । आप हमारे पाठक हैं । मित्र हैं । या विश्व के नागरिक हैं । आप सभी का सप्रेम निमन्त्रण है । कार्यकृम की जानकारी स्थान आदि इसी लेख में छपे अंग्रेजी हिन्दी निमन्त्रण पत्र में देखें ।
- यह निमन्त्रण पत्र अमित ( गाजियाबाद ) द्वारा तैयार किया गया है ।
अपने अब तक के अनुभवों से मैं समझता हूँ । इस प्रथ्वी पर गुरु पूर्णिमा से अधिक महत्वपूर्ण दिन कोई नहीं है । इसे व्यास पूर्णिमा या आषाङी पूर्णिमा भी कहा जाता है । हिन्दू तिथियों के अनुसार बस मुझे इसके जुलाई महीने में ही पङने से कुछ उलझन होती है । क्योंकि अभी नये नये स्कूल कालेज खुले होते हैं । और एडमीशन आदि चल रहे होते हैं । अबकी बार तो यह 3 जुलाई को पङ रही है । इससे थोङा पहले यह जून के महीने में पङती । तो सभी लोग बेफ़िक्र होकर इस महा दिवस पर सपरिवार गुरु आश्रमों में सम्मिलित होकर आध्यात्मिक लाभ उठाते । लेकिन मनुष्य जीवन के अनुसार इसके बे समय पङने से बहुत से इच्छुक लोग भी मजबूरी में वंचित रह जाते हैं ।
इस सबके बाबजूद भी इसका महत्व जानने वाले श्रद्धालु लोग हजारों किमी की यात्रा कर देश विदेश से गुरु के दर्शनों हेतु पहुँचते हैं क्योंकि - गु अंधियारा जानिये । रु कहिये प्रकाश । मिटि अज्ञाने ज्ञान दे । गुरु नाम है तास । गुरु पूर्णिमा का निमंत्रण हमारे शिष्यों श्रद्धालुओं को भेजते हुये मुझे इसी बात का अहसास हुआ । जब उन्होंने 3 जुलाई के कारण आने में बङी असमर्थता सी जताई । क्योंकि 1 दिन के कार्यकृम में भी दूर दूर से आने वालों को 3 दिन का समय चाहिये होता है । पर मैं
इसको एक दूसरे दृष्टिकोण से भी देखता हूँ कि शायद इसी को किस्मत भी कहते हैं । और दूसरे शब्दों में कोई पुण्य अर्जित करना भी हमारे हाथ में नहीं होता । इसके लिये सालों पहले से भावना भक्ति की धारा ह्रदय में संचरित हो । तभी ऐसे सुयोग बनते हैं । खैर..यदि आपके अन्दर भावना हो । तो गुरु कहीं दूर भी नहीं होते । बल्कि दीक्षा प्राप्त हंस ज्ञान में गुरु अंग संग होते हैं । इसलिये - लच्छ ( लाख ) कोस जो गुरु बसे । दीजे सुरति पठाय । शब्द तुरी असवार है । छिन ( पल में ) आवे छिन जाय । यानी आप अपनी भावना अनुसार घर पर ही गुरु चित्र के आगे भाव पूजन कर सकते हैं ।
ये विराट की अखिल बृह्माण्डी सत्ता - शब्द ( सबसे ऊपर के आसमान में धुर ( केन्द्र ) पर होती बहुत तेज घनघोर टंकार ) के वायव्रेशन से पल पल निर्मित और ध्वंस हो रही है । शब्द के वायव्रेशन से ही चुम्बकीय बल पैदा होता है । जिसे दूसरे शब्दों में गुरुत्व बल और अंग्रेजी में gravity force कहते हैं । अब आप इन्हीं 3 लाइनों में छिपे ( वास्तव में अलौकिक ) बिज्ञान के इस महा रहस्य को समझने की कोशिश करें । इस चुम्बकीय बल से ही ये सभी बृह्माण्ड निराधार टिके भी हुये हैं । और गति भी कर रहे हैं । किससे ? सिर्फ़ चुम्बकीय बल यानी gravity force से । और ये चुम्बकत्व किससे है - शब्द से । और शब्द ( स्वयं ) किससे है ? शाश्वत प्रकाश से । और गुरु का अर्थ
क्या है ? जीव को इसी गु ( अज्ञान के अंधकार ) से उसी रू ( शाश्वत प्रकाश ) तक ले जाकर मिला दे । वही गुरु है । यानी हर चीज का अन्त होकर । शाश्वत सत्य से - गुरु बिन ज्ञान न उपजे । गुरु बिन मिले न मोक्ष । गुरु बिन लखे न सत्य को । गुरु बिन मिटे न दोष ।
अब साइंस की बीन बजाने वाले एक और मजेदार चीज पर गौर करें । 500 साल पहले आये कबीर । जिन्हें दुनियाँ अंगूठा टेक कहती समझती है ( हालांकि ये बात अलग है कि कबीर का एक एक दोहा समझने में ही अच्छे अच्छे लम्ब लेट हो जाते हैं ) क्या कह रहे हैं - सतगुरु सम कोई नहीं । सात दीप नौ खण्ड । तीन लोक न पाइये । अरु इक्कीस बृह्मण्ड । तमाम बङी बङी दूरबीनें लगाये बैज्ञानिक और उनके पिछलग्गू आज भी मुझे इतना ही बता दें कि - 7 दीप 9 खण्ड 3 लोक और 21 बृह्मण्ड का आखिर सही सही मतलब क्या है ? ये कहाँ हैं ? और अनपढ ? कबीर आखिर किस आधार पर ऐसा कह सके ? यहाँ कहा जा सकता है । कबीर कवित्त की कल्पनायें करने में माहिर थे । उन्होंने कल्पना के घोङे दौङाये होंगे । तो कबीर वाणी में जो धार्मिक साहित्य वेद पुराण और सबसे बङी बात कृमवद्ध ढंग से युगों युगों की बैज्ञानिक तरीके से जानकारी दी गयी है । वो एक बुनकर अनपढ जुलाहा दे सकता है ? तब जब उसे जीविका के लिये कङी मेहनत करनी होती हो ।
देखिये द्वैत के महा योगी और राम के ससुर राजा जनक के शिष्य शुकदेव के लिये उन्होंने क्या कहा - शुकदेव
सरीखा फेरिया । तो को पावे पार । बिनु गुरु निगुरा जो रहे । पड़े चौरासी धार । शुकदेव को विष्णु ने निगुरा होने के कारण स्वर्ग से लौटा दिया था । मुझे नहीं लगता । बैज्ञानिक आज भी 84 लाख योनियों के बारे में कुछ जानते हों । जबकि आत्म ज्ञानियों का सन्त मत इसका विस्त्रत बैज्ञानिक विवेचन करता है । और भी देखिये । द्वैत का कोई कथावाचक । साधु सन्त ये कहने की हिम्मत रखता है - बिन सतगुरु उपदेश । सुर नर मुनि नहिं निस्तरे । बृह्मा विष्णु महेश । और सकल जीव को गिने ।
देवता । मुनि । बृह्मा विष्णु महेश जब इनका खुद का उद्धार मोक्ष बिना सतगुरु के नहीं हो सकता । तो फ़िर तुच्छ जीव ये मनुष्य किस गिनती में है ? मुझे एक बात याद आती है । कबीर सचखण्ड से जब मान सरोवर से जीवों को चेताने सतपुरुष के आदेश पर आ रहे थे । तो रास्ते में
विष्णु मिला । कबीर ने कहा - सतनाम को जानो । उसका सुमरन करो । तुम्हारा मोक्ष होगा । विष्णु चौंक गये । विष्णु ने कहा - मैं खुद जीवों को 4 प्रकार का मोक्ष देता हूँ । फ़िर मेरा कैसा मोक्ष ? कबीर ने कहा - तुम्हारा छोङो । तुम्हारे माता ( अष्टांगी या आदि शक्ति ) पिता ( काल पुरुष या निरंजन ) को भी मोक्ष प्राप्त नहीं है । वे भी अमर नहीं । वे भी समय आने पर मृत्यु को प्राप्त होते हैं । फ़िर तुम क्या मोक्ष दोगे ? तुम्हारा मोक्ष ( मुक्त ) नहीं मुक्ति ( एक लम्बे समय तक दिव्य जीवन आदि मिलना ) है ।
खैर..घोर अहंकारी विष्णु को यह बात अच्छी नहीं लगी ( जबकि उसे ये सोचना चाहिये था - मुझसे आखिर ये बात कहने वाला कौन है ? ) । कबीर आगे आये । तब अष्टांगी और काल पुरुष के सबसे छोटे पुत्र शंकर ने उनकी बातों को समझा । गौर किया ।
इसी को आगे दोहे में कहा है - गुरु सरनागति छाड़ि के । करे भरोसा और । सुख सम्पति की कह चली ।
नहीं नरक में ठौर । यहाँ - करे भरोसा और..का मतलब यही है । जो मनुष्य इन देवी देवताओं के उलझाऊ कठिन और लगभग पाखण्डी ( क्योंकि इनके द्वारा प्रेरित शास्त्र गोलमाल शब्दों में जीव को उलझाकर मोक्ष के नाम पर सदा धोखा देते हैं ) ज्ञान ? में फ़ँस जाता है । उसे नरक में भी स्थान पाना मुश्किल हो जाता है । क्योंकि नरक से भी भयानक स्थितियाँ इन 5 - काल पुरुष इसकी पत्नी आदि शक्ति तीनों पुत्र बृह्मा विष्णु महेश ने निर्मित की हैं । एकमात्र उद्देश्य वही । जीव को सदा काल के जाल में फ़ँसाये रखना । जीव ! जो काल पुरुष का भोजन है । अष्टांगी अपने पति काल पुरुष से डरती है । और उसकी ( अष्टांगी की ) शक्ति के आगे बृह्मा विष्णु महेश सिर्फ़ बच्चे हैं । जाहिर है । ये चारों काल पुरुष की इच्छा अनुसार ये धूर्तता करने पर विवश हैं ।
और देखिये - सतगुरु मिले तो सब मिले । न तो मिला न कोय । मात पिता सुत बांधवा । ये तो घर घर होय । माता पिता पुत्र भाई बहन पत्नी पति मित्र रिश्तेदार ये तो हर जन्म में मिलते रहे । और यही रोटी दाल कमाने का बखेङा फ़ैला रहा । पर सतगुरु लाखों करोंङो जन्मों के बाद पुण्य संचित होने पर ही मिलते हैं । इसलिये - गुरु को कीजे दण्डवत । कोटि कोटि परनाम । कीट न जाने भृगं को । गुरु कर ले आप समान । एक मामूली तिनके के समान रेंगने वाले किसी भी ( यहाँ जीव मनुष्य ) कीङे को भृंग ( उङने वाला । पंखों वाला चींटा ) अपने ( शब्द की गुंजार हूँऽऽ हूँऽऽ से ) समान शक्तिशाली बना देता है । सोचिये । कहाँ जमीन पर मुश्किल से घिसटते हुये रेंगना । और कहाँ मुक्त भाव से उङना । है अदभुत बिज्ञान ।
इसीलिये सन्तों की महिमा में कितना उचित ही कहा है - साधु बिरछ सत ज्ञान फल । शीतल शब्द विचार । जग में होते साधु नहिं । जर भरता संसार ।
लेकिन एक ही खास बात है । वो क्या - जो गुरु ते भृम न मिटे । भ्रान्ति न जिसका जाय । सो गुरु झूठा जानिये । त्यागत देर न लाय । जैसा कि कबीर वाणी अनुराग सागर इस काल पुरुष इसकी पत्नी तीनों पुत्र बृह्मा विष्णु महेश और काल द्वारा नियुक्त विभिन्न रूपा काल दूतों ( संसार में फ़ैले नकली साधुओं के रूप में ) की सटीक पोल खोल कर रख देती है । उसी प्रकार अन्य नकली पाखण्डी गुरुओं की भी संसार में भरमार है । खास अभी कबीर और आत्म ज्ञान के नाम पर तो झूठा ज्ञान देने वाले धूर्त बहुत मुखर हो गये हैं । इसलिये दीक्षा उपदेश के बाद तुरन्त से लेकर 3 महीने के अन्दर यदि आपके अंतर में प्रकाश नहीं हुआ । 3rd eye तीसरी आँख नहीं खुली । किसी प्रकार की अलौकिकता का अनुभव नहीं हुआ । तो गौर करिये । आपका गुरु वास्तव में ही गुरु है । या आप किसी काल दूत के चक्कर में फ़ँसे हुये हैं ?
गुरु पूर्णिमा के शुभ पावन अवसर पर आपको ठोस सच्चाईयों और गुरु महिमा से कुछ कुछ परिचित कराने की कोशिश करते हुये - आप सभी का 3 जुलाई को हमारे आश्रम में सादर सप्रेम निमन्त्रण है । भले ही आप हमारे मण्डल के शिष्य हैं । या नहीं है । आप हमारे पाठक हैं । मित्र हैं । या विश्व के नागरिक हैं । आप सभी का सप्रेम निमन्त्रण है । कार्यकृम की जानकारी स्थान आदि इसी लेख में छपे अंग्रेजी हिन्दी निमन्त्रण पत्र में देखें ।
- यह निमन्त्रण पत्र अमित ( गाजियाबाद ) द्वारा तैयार किया गया है ।
1 टिप्पणी:
कबीर ने तो खुद कहा है, गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागूं पाय बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय। फिर अर्थ का अनर्थ बताकर ब्रह्मा विष्णु महेश के नाम पर क्यों बरगला रहे हो। यहां गोविंद ईश्वर को ही तो कहा गया है।
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