20 जून 2012

A B C D छोङो हिन्दी से नाता जोङो

हापुङ के अमित मुझसे फ़ोन पर बात करते हुये आश्चर्य प्रकट करते हैं - मैं सोच नहीं सकता था । भक्ति और आध्यात्म में इतना बङा और जटिल विज्ञान छुपा हुआ है । पर उनके आश्चर्य पर मुझे कोई आश्चर्य नहीं होता । ऐसा ही है, हमारी भोगवादी प्रवृति हमें सिर्फ़ भोगना सिखाती हैं । किसी चीज में ये उत्सुकता नहीं कि आखिर इसका रहस्य क्या है । आध्यात्म रहस्य ? योग विज्ञान । जो माँ के गर्भ में शुक्राणु अंडाणु के निषेचन के साथ ही शुरू हो जाते हैं । प्रकृति नियम अनुसार लिंग योनि संयोग से सिर्फ़ 1 बच्चा ही जन्म नहीं लेता । बल्कि 9 महीने बन्द उदर ( गर्भ ) में रहस्य दर रहस्य परतों की श्रंखला जारी रहती है । यह रहस्य सिर्फ़ ज्ञात चिकित्सा विज्ञान या शरीर विज्ञान तक ही सीमित नहीं हैं । इसमें आध्यात्म का पूरा समावेश होता है ।
पर अभी उसे छोङिये । बच्चे के ( प्रथम बार ) बोलने से ही शुरू करते हैं । संसार के किसी भी धर्म देश भाषा का बच्चा हो । वह रोता हँसता आऽ ऊऽ ईऽ एऽ ओऽ एक समान और सिर्फ़ हिन्दी में ही करता है । सिर्फ़ हिन्दी में । स्वर में ।

और यहीं से विभिन्नता के निर्माण की वह प्रक्रिया शुरू हो जाती है । क्योंकि मूल अक्षरों के बाद फ़िर वह अपनी मातृभाषा की ओर मुढ जाता है । जिस पर शायद किसी का ध्यान न गया हो । और बङे अदभुत और रहस्यमय हैं - ये अक्षर भी ।
अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ अं अः ( 12 स्वर )  क ख ग घ ङ ( 5 ) च छ ज झ ञ ( 5 )  ट ठ ड ढ ण ( 5 ) त थ द ध न ( 5 ) प फ ब भ म ( 5 ) य र ल व श ष स ह क्ष त्र ज्ञ ( 11 ) व्यंजन ।
A B C D E F G H I J K L M N O P Q R S T U V W X Y Z ( 26 ) 
ए बी सी डी ई एफ़ जी एच आई जे के एल एम एन ओ पी क्यू आर एस टी यू वी डब्ल्यू एक्स वाई जेड
अलिफ़, बे, पे, ते, टे, से, जीम, चे, हे, खे, दाल, डाल, जाल, रे, अङे, जे, बङी जे, शीन, बङी शीन, स्वाद, ज्वाद, तोय, जोय, एन, गेन, फ़े, काफ़, काफ़, गाफ़, लाम, मीम, नून, हे, हमजा, छोटी इये, बङी इये,
यहाँ मैंने सिर्फ़ 3 भाषाओं हिन्दी अंग्रेजी और उर्दू के ही उच्चारणों का खास प्रयोग किया है । वो इसलिये कि मुझे अन्य भाषाओं के वर्णमाला उच्चारण ठीक मालूम नहीं । पर प्रायः अन्य प्रांतीय देशीय लोगों के कुछ कुछ वर्णमाला उच्चारण भी सुने हैं ।
और अफ़सोस ! उनमें किसी का भी उच्चारण हिन्दी के समान सर्वश्रेष्ठ नहीं हैं । और यही बहुत बङा रहस्य है ? हिन्दी या संस्कृत के सर्वश्रेष्ठ होने का ।
सबसे पहले तो यही खासियत देखिये । हिन्दी वर्णमाला में प्रत्येक अक्षर को छत मिली हुयी है । जो हिन्दी लेखन को एक अलग ही सौन्दर्य प्रदान करती है । जो अंग्रेजी में सिर्फ़ T को मिली है । ये अलग बात है । आप मुङिया अक्षर ( अक्षरों के ऊपर लाइन न करना ) बनाते हैं । तब अलग बात है । और अधिकतर अक्षरों को लम्ब आधार ( । ) मिला हुआ है । जैसे किसी इमारत के लिये मजबूत स्तम्भ । इसमें छोटे बङे 2 अक्षरों का झमेला नहीं है । जो कम से कम अंग्रेजी और उर्दू में है । इतना तो मुझे मालूम ही है । अब इसके उच्चारण पर गौर करिये । सिर्फ़ हिन्दी में एक खङे मजबूत स्तम्भ का धातु मौजूद है ।

आप अ से ज्ञ तक किसी अक्षर का उच्चारण करके देखिये । ये 1 - वायु 2 स्वर 3 अक्षर 4 स्फ़ोट ( गूँज ) और अन्त में विलीनता का सफ़र है । यह अदभुत विज्ञान खास हिन्दी अक्षरों ( वर्णमाला ) में ही है । जैसे आप अ या क  या च या ज किसी का भी उच्चारण करें । उसमें अ का आधार है । क आदि कोई वर्ण बोलने पर अ और  स्फ़ोट ( गूँज ) साथ में है । ( हालांकि सभी वाणी भाषाओं के निकलने का स्वर तंत्र विज्ञान यही है । पर थोङे से लय के अंतर में ही बहुत बङा राज छिपा हुआ है । )
जबकि बोलकर देखिये - A B C D  या अलिफ़ बे पे ते में ऐसा नहीं है । मैंने ऊपर कहा । जीव ( मनुष्य ) विभिन्नता के निर्माण का आधार बहुत कुछ इसी बात में हैं । जिसका मतलब है । मजबूती से कृमशः कमजोरी का स्तर % । हिन्दी 100% । बाकी अन्य स्तरों पर निम्न % । ये मान लीजिये । हिन्दी और संस्कृत को छोङकर सभी का स्तर एकदम 50% से नीचे गिरकर शुरू होता है । और फ़िर गिरता ही चला जाता है ।
इतना बताने के बाद आईये इसके रहस्यों पर बात करते हैं । यदि आप इनका सही ठोस उच्चारण करना सीख जाते हैं । तो आश्चर्यजनक रूप से आपके चरित्र व्यक्तित्व स्वस्थता सुन्दरता बलिष्ठता आध्यात्मिकता आदि का बहुमुखी सर्वांगीण विकास निश्चित है ।
आपको क्या करना होगा  ? सुबह सुबह जब आप अनुलोम विलोम या रामदेव बाबा या किसी अन्य का मेडीटेशन करते हैं । उसके साथ आप इस वर्णमाला के एक एक अक्षर का ठोस उच्चारण बारबार करना सीखिये । इसको अ आ इ ई उ ऊ ऐसे जल्दी जल्दी न करें । बल्कि बहुत ठहरे गम्भीर अंदाज में एक एक अक्षर अऽ ( ऽ इसका मतलब गाने मत लगना ) अऽ अ अ आ आदि धीरे धीरे बारबार तब तक दोहरायें । जब तक आपके गले से अ से ज्ञ तक अक्षर अमिताभ बच्चन या ओमपुरी जैसे बेस साउंड में न निकलने लगें । अ क फ़ आदि ऐसे बोलें । जैसे अ.. लठ्ठ उठाया हो । आ ( इधर आ । तुझे बताऊँ अभी ) क ( कहाँ जायेगा बच के ) ख ( खा ले लड्डू )
दरअसल आपने देखा होगा । किसी समाचार वाचक, टीवी कार्यकृम प्रस्तोता । फ़िल्मी नायक या किसी भी क्षेत्र का प्रख्यात प्रवक्ता । स्पष्ट और ठोस उच्चारण इनका विशिष्ट गुण माना जाता है । तो अ से ज्ञ तक अक्षर जब आपके स्वर तंत्र से पूर्णता युक्त । सभी धातुओं के साथ 100% निकलने लगेगें । तो निश्चय ही आपकी बहुत सी शारीरिक आंतरिक मानसिक आध्यात्मिक कमियाँ तेजी से दूर होंगी । यहाँ तक कि नपुंसकता धातु कमजोरी जैसे रोग भी इससे दूर हो जाते हैं । क्योंकि आपकी शरीर धातुओं का संबन्ध इसी से है । वैसे इसका विज्ञान बहुत बङा है । जिसको अक्षर व्याकरण शब्द धातु आदि कहा गया है । अ से ज्ञ तक हर अक्षर का देवता या प्रतिनिधि  है । जिसको प्रमाण  रूप आप संस्कृत हिन्दी शब्दकोश में भी देख सकते हैं । जो कि A B C D या अलिफ़ बे में तो हरगिज नहीं है ।
इसके आध्यात्मिक लाभ भी हैं । जो कि वास्तव में सभी लाभों के स्रोत ही हैं । प्रत्येक अक्षर के ठोस उच्चारण के साथ उसका देवता पुष्ट और वह क्षेत्र ( या अंग भी ) ऊर्जा और हरियाली को प्राप्त होता है । सनातन धारा यानी अबाध चेतना से जुङता है । आपने प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति के पुराने हिन्दी स्कूलों में देखा होगा कि बच्चे उच्च स्वर में अऽऽ आऽऽऽ इ ई या 1 इकाई 2 इकाई 10 की दहाई 10..1 ग्यारह 2 की बिन्दी 20 और 90..9 निन्यानबे के बाद 1 कङा 2 बिन्दी 100 तक जोर जोर से गाते चिल्लाते थे । और मिट्टी में लोट मारते हुये स्वस्थ रहते थे । 

जबकि आज के बच्चे ? जाने दो । इसलिये लौट जाईये । एक बार फ़िर बचपन में । चाहे आप 9 के हैं या 90 के । ये आपके लिये समान रूप से लाभदायक है । और इसमें किसी गुरु का भी झंझट नहीं । बस एक बार अक्षर योग विज्ञान को आजमा कर देखिये ।
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नोट - जैसा कि ये लेख कुछ अटपटा सा और शीघ्र न समझ आने वाला लग सकता है । इसका कारण मेरी लेखन शैली में बदलाव हो जाना भी है । और आपके सटीक चिंतन मनन हेतु कुछ बातें संकेत रूप में कहकर छोङ देना भी है । जिससे ज्ञान ( गहराई से सोचने पर ) क्रियात्मक रूप से आप में घटित भी हो । फ़िर भी आप लेख के किसी भी बिन्दु पर जिज्ञासा या कोई प्रश्न रखते हैं । तो इसी ब्लाग के ऊपर फ़ोटो में लिखे फ़ोन नम्बर या ई मेल पर पूछ सकते हैं । स्वास्थय । सौन्दर्य । बीमारी । ग्रह नक्षत्र आदि जीवन की सभी बाधाओं समस्याओं में इसका क्या कैसे उपयोग हो सकता है ? उसी खास प्रश्न द्वारा भी पूछ सकते हैं । साहेब ।

2 टिप्‍पणियां:

mohit832003 ने कहा…

मुझे भाषा की उत्पत्ति पर जानकारी चाहिऐ,
संस्कृत के बाद हिन्दी तक का विकास और संस्कृत की उत्पत्ति के संदर्भ में।

सहज समाधि आश्रम ने कहा…

मूल भाषा संस्कृत की उत्पत्ति को लेकर कोई ग्रन्थ विशेष मेरी नजर में नही है । लेकिन अलग अलग ग्रन्थों में, खास चक्रिय जानकारी पर आधारित में यह जानकारी अंशों में मिलती है कि कौन से अक्षर कहाँ से कैसे उठते हैं ।
संस्कृत के बाद शुद्ध हिन्दी उसका व्यवहारिक और सरल और विच्छेदित रुप है । इसके बाद की तमाम भाषायें वहाँ के उच्चारण लहजे पर और अज्ञानतावश निर्मित हुयी हैं ।

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326