आगरा का तापमान इस समय 40 डिग्री से 47 डिग्री तक हो जाता है । सुबह सुबह ..सुबह होने के बजाय सीधी दोपहर हो जाती है । दोपहर को ऐसा लगता है । ये सूरज चाचू मुझसे Face to face होने के बजाय सीधा मेरे सर पर ही सवार हो गया है । जब शाम के 8 बजते है । तब लगता है । कुछ कुछ सुबह सी हो रही है । फ़िर धीरे धीरे रजनी ठंडी होने लगती है । रात कोई 2-3 बजे लगभग यकायक सर्दी सी हो जाती है । इसका बैज्ञानिक कारण मैंने खोज लिया है । आगरा का राजस्थान सीमा से लगा होना । भगवान जाने बेचारे दुबई वालों का क्या हाल होगा ? ये थी । मौसम की जानकारी ।
दरअसल गर्मी के इस up down होते पारे से मेरा भी तापमान जुङा है । क्योंकि इससे मेरा शारीरिक मान ( value ) प्रभावित होता है । इसलिये लिखने के विचार ओवर लोडिंग की वजह से कभी भी हुयी बिजली की कटौती के समान automatic shut down हो जाते हैं । हिन्दुस्तानी स्टायल में कहा जाये । तो - दिमाग का फ़्यूज ही उङ जाता है ।
अब क्या करना चाहिये ? प्रश्न पैदा हो जाता है । पर यकायक कोई बात समझ में नहीं आती । तब वही कुछ रोचक पढने के लिये सर्च इंजिन https://www.google.co.in/ के लिये google chrome पर क्लिक करता हूँ । मैं लिखता हिन्दी में हूँ । बोलता हिन्दी में हूँ । पर पढता हमेशा english में हूँ । क्योंकि मुझे नहीं लगता । हिन्दी में मेरे अलावा कोई अच्छा लेखक है । और अपने ही लिखे को पढने की कोई तुक ही नहीं हैं । संयोगवश प्राप्त समय में english में पढने के पीछे 1 और खास वजह है । दोबारा से english पर
command रखने की नाकाम कोशिश करना । इस वजह के अन्दर भी 1 खास वजह है । विभिन्न सोशल नेटवर्किंग साइटस पर मेरे अंग्रेजी लिखक बोलक मित्र । जो मेरे online होने पर chat विंडो में सिर्फ़ अंग्रेजी में ही बोलते हैं ।
मैं सच कह रहा हूँ । B.A की पढाई के लिये मैंने अंग्रेजी माध्यम से आवेदन किया था । उसमें मेरे subjects थे - both english हिन्दी और political science उस समय B.A में सिर्फ़ 4 subject पढाये जाते थे । और 10 साल पहले लोग मुझे भारत में गलती से पैदा हो गया अंग्रेज मानते थे । समझिये । मेरी english इतनी अच्छी थी । पर 2 कारणों ने मेरी अंग्रेजी का सत्यानाश कर दिया । 1 हिन्दी टायपिंग न आने के कारण । मैं रोमन से हिन्दी convert विधि अपनाता हूँ । इससे मेरी कम्प्यूटर के समान ही sharp memory कुछ इस तरह confused हुयी । जैसे कम्प्यूटर 1 भी word इधर उधर हो जाने पर - मैं समझा नहीं । आपका क्या मतलब है ? मैसेज दिखाता है । इस रोमन से हिन्दी converting से मेरी मति कुछ इस तरह से मति भंग हुयी कि मैं small को smaal और girl को garl लिख जाता हूँ ।
लेकिन ये समस्या मेरे लिये कोई बङी समस्या नहीं थी । थोङे अभ्यास से मैं शीघ्र ही इस पर नियंत्रण कर सकता ( हूँ ) था । पर 2 असली समस्या की वजह है - ध्यान से उत्पन्न गहन शून्यता 0 । ध्यान वास्तव में विचारों और वैचारिक ( मगर सांसारिक ) ज्ञान को नष्ट कर देता है । सब कुछ आपके दिमाग
से निकल जाता है । पर मैंने इसमें 1 खास अनुभव किया । संस्कृत और शुद्ध परिष्कृत हिन्दी के वे वे शब्द जो आपने कभी सपने में भी नहीं सोचे होंगे । स्वयं आपके ज्ञान व्यक्तित्व में तेजी से जुङते हैं । आपको कुछ नही सीखना पढना । ये स्वतः आपके अन्दर प्रकट होगा । आदि कवि कहलाये वाल्मीकि के मुँह से स्वतः निकले प्रथम श्लोक का उदाहरण देखिये - मा निषाद प्रतिष्ठां त्वम अगमः शाश्वतीः समाः । यत क्रौञ्चमिथुनादेकम अवधीः काममोहितम । अरे ओ कठोर मानव ! तुमने प्रेम में मग्न 2 पक्षियों में से 1 को मार डाला । जीवन भर तुम सुखी और शांत नहीं रहोगे ।
आध्यात्म बिज्ञान में ये बात निर्विवाद रूप से सिद्ध है - संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है । यानी इसी से सभी भाषाओं का जन्म हुआ है । और आप थोङा भी समझने की कोशिश करें । तो संस्कृत और परिष्कृत हिन्दी में कोई विशेष अन्तर नहीं है । संस्कृत लय युक्त और देव मंत्रों की भाषा है । जबकि शुद्ध हिन्दी इसी का स्थूल ठोस और up down left right टायप सपाट रूपांतरण । मतलब शुद्ध हिन्दी में संस्कृत की तरह सा रे गा मा पा धा नी जैसी लय बनना संभव ही नहीं । यदि आप वेद आदि मंत्रों का शुद्ध हिन्दी में रूपांतरण करके उनसे कोई याज्ञिक कार्य या शक्ति अनुष्ठान सम्पन्न करना चाहे । तो कभी नहीं होगा । सोम रस । दिव्य विमान । सूक्ष्मता । transform आदि बहुत सी दिव्य क्रियाओं की सिद्धि सिर्फ़ संस्कृत वाणी से ही संभव है । इसके बाद सर्वश्रेष्ठ भाषा हिन्दी ही है । अक्षर धातु सिद्धांत के आधार पर हिन्दी ( और संस्कृत में ) में इतने गुण हैं कि उनको समग्र रूप से बताने के लिये 1 पूरे बङे लेख की आवश्यकता है ।
फ़िर से ऊपर वाली बात पर आते हैं । मैं google में यूँ ही फ़ालतू में सर्च key word डालकर कुछ
अच्छा सर्च करने की कोशिश कर रहा था । जब अचानक मेरे सामने results में Sunanda Pushkar आया । और अचानक मेरे दिमाग में घण्टी सी बज गयी । मैंने फ़िर से केवल Sunanda Pushkar को search किया । और मेरे मुँह से निकला - hey really this is Sunanda Pushkar ?
बस मुझे कल पढने के लिये काफ़ी मसाला मिल गया । और मैं विभिन्न बेव पेजस खोल कर पढता गया ।
Kashmir Valley के Sopore की कश्मीरी कन्या सुनन्दा ( के बारे में ) को पढना वाकई रोचकता से भरा था । उनका उतार चढाव युक्त जीवन ..जीवन की रंग बिरंगी धूप छाँव के तले सुख दुख से ओत प्रोत था ।
मेरा हमेशा मानना ( बल्कि कहिये सिद्धांत ) रहा है । किसी की बाहय रूप से आलोचना समालोचना करना सहज है । लेकिन यदि हम वाकई किसी के बारे में कोई बात कहें । तब पहले खुद को उसकी जगह रखकर सोचें । यहाँ पर ..सारी सुनन्दा जी ! आप ये मत सोचना कि मैं आपके ऊपर बात कह रहा हूँ । कहीं कहीं बात आपके जीवन को स्पर्श करती लगती अवश्य है । पर मेरा वह भाव नहीं है । वास्तव में बात भी अलग है ।
इसके लिये हिन्दी के 2 सम्मानित और प्रसिद्ध लेखक मुंशी प्रेमचंद और राहुल सांस्कृत्यायन का ही जीवन देखें । प्रेमचंद जी की कम उमृ में शादी हो गयी थी । फ़िर उन्होंने पहली पत्नी के रहते ही 1 शिक्षिका से शादी की थी । और राहुल सांस्कृत्यायन ने कई स्थानों पर सामयिक भाव में शादियाँ की । वे पहले ही ऐसा
कह देते थे । दरअसल इसके पीछे वही आदि सिद्धांत कार्य करता है कि - हम निरंतर पूर्णता की खोज कर रहे हैं । स्त्री पूर्ण पुरुष की तलाश में है । और पुरुष पूर्ण स्त्री की तलाश में है । इसलिये जीवन के साथ विकास करते हुये हमारे अंतर में जो नये नये रिक्त आयाम पैदा हो जाते हैं । हम उनको fill किये बिना शान्ति नहीं पा सकते । ये सिर्फ़ विपरीत लिंगी व्यक्ति के लिये ही खोज ही नहीं है । कला । संगीत । लेखन आदि तमाम विधाओं में से किसी का भी रिक्त आयाम निर्मित हो जाने पर हम उसे इच्छित रूप से भरे बिना चैन नहीं पा सकते । हमारी यही बैचेनी हमें तमाम सांसारिक संयोग वियोग से गुजारती हुयी नये नये पढावों पर ले जाती है । और ये अनन्त यात्रा चलती ही रहेगी । जब तक कि हम स्वयं के स्तर पर पूर्णता को प्राप्त न हो जायें । कोई आवश्यक नहीं कि हम अभी अभी मिले व्यक्ति या कला या गुण से हमेशा के लिये सन्तुष्ट हो जायें । पर ये अवश्य है कि - फ़िलहाल वह हमारी सन्तुष्टि का पूरक अवश्य है । इस आयाम के भरने के दौरान ही नये रिक्त आयाम स्वतः निर्मित हो रहे होंगे । और फ़िर हमें उन्हें भरने की तलाश जारी हो जायेगी । इसलिये कोई भी नर मादा ये कभी नहीं कह सकता - हम बने तुम बने एक दूजे के लिये । हाँ वे लम्बे
समय तक ( कुछ जन्मों तक भी ) एक दूसरे के सर्वश्रेष्ठ पूरक हो सकते हैं । फ़िर उनमें उदासीनता आनी ही आनी है । विरक्तता होनी ही होनी है । यही खेल है । नित नूतन । आत्मा के विशेष गुण के रूप में कहा जाता है । सिर्फ़ वर्तमान । इसमें भूत भविष्य है ही नहीं ।
इसलिये मैं सुनन्दा ( जी ) को पढते हुये कश्मीर से दुबई तक का बार बार सफ़र करता रहा । देखिये यहीं 1 बहुत महत्वपूर्ण बात आपको बताऊँ । ओशो कहते हैं - भले ही आप इसे न जानते हों । पर ये सच है । हम सिर्फ़ खुद ही सांस नहीं लेते । बल्कि एक दूसरे के अन्दर भी सांस ले रहे हैं । और चेतन का यही खास गुण है । विचार को गृहण करके आकार देना । कल शाम 6:30 से 8:30 तक मैं खुद को भूल गया । और सुनन्दा और शशि थरूर जी के रूप में परिवर्तित हो गया । इस बात को आप बारीकी और
तकनीकी रूप से तभी महसूस कर सकते हैं । जब आपको अद्वैत का अच्छा योग अभ्यास हो ।
मुझे सुनन्दा या शशि जी में व्यक्तिगत तौर पर कोई दिलचस्पी नहीं थी । मुझे दिलचस्पी उनके ( सिर्फ़ सम्मिलित नहीं । बल्कि अलग अलग भी ) जीवन वृत में थी । हम मानवीय उपलब्धियों के किसी भी स्तर पर हों । जीवन चक्र हमें वहुरंगी shades अवश्य दिखायेगा । इसी से हमें प्रेरणा मिलती है । और संघर्ष की इच्छा शक्ति प्रबल होती है । जबकि संस्कारों के इस खेल में हम किसी हथकङी बेङी पङे कैदी की भांति पूर्णतया विवश हैं । अच्छा । बहुत अच्छा । बुरा । बहुत बुरा । हमें संस्कार फ़ल पर उसके नियम अनुसार स्वीकार करना ही होगा । कल मैंने सुनन्दा ( जी ) के बारे में ही अधिक पढा । शशि जी के बारे में जो साथ था । वह जाना । मुझे प्राप्त विवरण के अनुसार सुनन्दा जी का जीवन संघर्ष युक्त लगा । त्रासदी युक्त भी लगा । और जिजीविषा युक्त भी । जिसका विराम ( अभी तक ) लगभग वांछित उपलब्धि के साथ था । ये दोनों लोग अभी विभिन्न क्षेत्रों में कई कल्याण कारी कार्यों में भी सलंग्न हैं ।
सुनन्दा जी से 1 बार chat हुयी थी । इससे मेरे जेहन में उनका नाम था । यह संयोग था । कल अचानक वह याद आ गया । और मैंने सुनन्दा को जाना । वैसे राजनीतिज्ञ और उनसे जुङे लोगों से मुझे 1 प्रकार की एलर्जी सी है । जाने क्यों बोरियत होती है । पर सुनन्दा को पढकर कम से कम ऐसा नहीं हुआ ।
मैंने इसी ब्लाग पर कहा था - मैं आप लोगों को नहीं जानता । पर अब मैं कह सकता हूँ । हाँ मैं आप लोगों को कुछ तो जानता हूँ ।
शशि जी सुनन्दा जी ! आपका बहुत बहुत धन्यवाद । मेरी कल की शाम में साथ देने के लिये । प्रभु आपको सफ़लता पर अग्रसर करे । और आपकी सभी खोजें पूर्णता को प्राप्त हों ।
इस लेख में सभी फ़ोटो सुनन्दा जी के हैं ।
दरअसल गर्मी के इस up down होते पारे से मेरा भी तापमान जुङा है । क्योंकि इससे मेरा शारीरिक मान ( value ) प्रभावित होता है । इसलिये लिखने के विचार ओवर लोडिंग की वजह से कभी भी हुयी बिजली की कटौती के समान automatic shut down हो जाते हैं । हिन्दुस्तानी स्टायल में कहा जाये । तो - दिमाग का फ़्यूज ही उङ जाता है ।
अब क्या करना चाहिये ? प्रश्न पैदा हो जाता है । पर यकायक कोई बात समझ में नहीं आती । तब वही कुछ रोचक पढने के लिये सर्च इंजिन https://www.google.co.in/ के लिये google chrome पर क्लिक करता हूँ । मैं लिखता हिन्दी में हूँ । बोलता हिन्दी में हूँ । पर पढता हमेशा english में हूँ । क्योंकि मुझे नहीं लगता । हिन्दी में मेरे अलावा कोई अच्छा लेखक है । और अपने ही लिखे को पढने की कोई तुक ही नहीं हैं । संयोगवश प्राप्त समय में english में पढने के पीछे 1 और खास वजह है । दोबारा से english पर
command रखने की नाकाम कोशिश करना । इस वजह के अन्दर भी 1 खास वजह है । विभिन्न सोशल नेटवर्किंग साइटस पर मेरे अंग्रेजी लिखक बोलक मित्र । जो मेरे online होने पर chat विंडो में सिर्फ़ अंग्रेजी में ही बोलते हैं ।
मैं सच कह रहा हूँ । B.A की पढाई के लिये मैंने अंग्रेजी माध्यम से आवेदन किया था । उसमें मेरे subjects थे - both english हिन्दी और political science उस समय B.A में सिर्फ़ 4 subject पढाये जाते थे । और 10 साल पहले लोग मुझे भारत में गलती से पैदा हो गया अंग्रेज मानते थे । समझिये । मेरी english इतनी अच्छी थी । पर 2 कारणों ने मेरी अंग्रेजी का सत्यानाश कर दिया । 1 हिन्दी टायपिंग न आने के कारण । मैं रोमन से हिन्दी convert विधि अपनाता हूँ । इससे मेरी कम्प्यूटर के समान ही sharp memory कुछ इस तरह confused हुयी । जैसे कम्प्यूटर 1 भी word इधर उधर हो जाने पर - मैं समझा नहीं । आपका क्या मतलब है ? मैसेज दिखाता है । इस रोमन से हिन्दी converting से मेरी मति कुछ इस तरह से मति भंग हुयी कि मैं small को smaal और girl को garl लिख जाता हूँ ।
लेकिन ये समस्या मेरे लिये कोई बङी समस्या नहीं थी । थोङे अभ्यास से मैं शीघ्र ही इस पर नियंत्रण कर सकता ( हूँ ) था । पर 2 असली समस्या की वजह है - ध्यान से उत्पन्न गहन शून्यता 0 । ध्यान वास्तव में विचारों और वैचारिक ( मगर सांसारिक ) ज्ञान को नष्ट कर देता है । सब कुछ आपके दिमाग
से निकल जाता है । पर मैंने इसमें 1 खास अनुभव किया । संस्कृत और शुद्ध परिष्कृत हिन्दी के वे वे शब्द जो आपने कभी सपने में भी नहीं सोचे होंगे । स्वयं आपके ज्ञान व्यक्तित्व में तेजी से जुङते हैं । आपको कुछ नही सीखना पढना । ये स्वतः आपके अन्दर प्रकट होगा । आदि कवि कहलाये वाल्मीकि के मुँह से स्वतः निकले प्रथम श्लोक का उदाहरण देखिये - मा निषाद प्रतिष्ठां त्वम अगमः शाश्वतीः समाः । यत क्रौञ्चमिथुनादेकम अवधीः काममोहितम । अरे ओ कठोर मानव ! तुमने प्रेम में मग्न 2 पक्षियों में से 1 को मार डाला । जीवन भर तुम सुखी और शांत नहीं रहोगे ।
आध्यात्म बिज्ञान में ये बात निर्विवाद रूप से सिद्ध है - संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है । यानी इसी से सभी भाषाओं का जन्म हुआ है । और आप थोङा भी समझने की कोशिश करें । तो संस्कृत और परिष्कृत हिन्दी में कोई विशेष अन्तर नहीं है । संस्कृत लय युक्त और देव मंत्रों की भाषा है । जबकि शुद्ध हिन्दी इसी का स्थूल ठोस और up down left right टायप सपाट रूपांतरण । मतलब शुद्ध हिन्दी में संस्कृत की तरह सा रे गा मा पा धा नी जैसी लय बनना संभव ही नहीं । यदि आप वेद आदि मंत्रों का शुद्ध हिन्दी में रूपांतरण करके उनसे कोई याज्ञिक कार्य या शक्ति अनुष्ठान सम्पन्न करना चाहे । तो कभी नहीं होगा । सोम रस । दिव्य विमान । सूक्ष्मता । transform आदि बहुत सी दिव्य क्रियाओं की सिद्धि सिर्फ़ संस्कृत वाणी से ही संभव है । इसके बाद सर्वश्रेष्ठ भाषा हिन्दी ही है । अक्षर धातु सिद्धांत के आधार पर हिन्दी ( और संस्कृत में ) में इतने गुण हैं कि उनको समग्र रूप से बताने के लिये 1 पूरे बङे लेख की आवश्यकता है ।
फ़िर से ऊपर वाली बात पर आते हैं । मैं google में यूँ ही फ़ालतू में सर्च key word डालकर कुछ
अच्छा सर्च करने की कोशिश कर रहा था । जब अचानक मेरे सामने results में Sunanda Pushkar आया । और अचानक मेरे दिमाग में घण्टी सी बज गयी । मैंने फ़िर से केवल Sunanda Pushkar को search किया । और मेरे मुँह से निकला - hey really this is Sunanda Pushkar ?
बस मुझे कल पढने के लिये काफ़ी मसाला मिल गया । और मैं विभिन्न बेव पेजस खोल कर पढता गया ।
Kashmir Valley के Sopore की कश्मीरी कन्या सुनन्दा ( के बारे में ) को पढना वाकई रोचकता से भरा था । उनका उतार चढाव युक्त जीवन ..जीवन की रंग बिरंगी धूप छाँव के तले सुख दुख से ओत प्रोत था ।
मेरा हमेशा मानना ( बल्कि कहिये सिद्धांत ) रहा है । किसी की बाहय रूप से आलोचना समालोचना करना सहज है । लेकिन यदि हम वाकई किसी के बारे में कोई बात कहें । तब पहले खुद को उसकी जगह रखकर सोचें । यहाँ पर ..सारी सुनन्दा जी ! आप ये मत सोचना कि मैं आपके ऊपर बात कह रहा हूँ । कहीं कहीं बात आपके जीवन को स्पर्श करती लगती अवश्य है । पर मेरा वह भाव नहीं है । वास्तव में बात भी अलग है ।
इसके लिये हिन्दी के 2 सम्मानित और प्रसिद्ध लेखक मुंशी प्रेमचंद और राहुल सांस्कृत्यायन का ही जीवन देखें । प्रेमचंद जी की कम उमृ में शादी हो गयी थी । फ़िर उन्होंने पहली पत्नी के रहते ही 1 शिक्षिका से शादी की थी । और राहुल सांस्कृत्यायन ने कई स्थानों पर सामयिक भाव में शादियाँ की । वे पहले ही ऐसा
कह देते थे । दरअसल इसके पीछे वही आदि सिद्धांत कार्य करता है कि - हम निरंतर पूर्णता की खोज कर रहे हैं । स्त्री पूर्ण पुरुष की तलाश में है । और पुरुष पूर्ण स्त्री की तलाश में है । इसलिये जीवन के साथ विकास करते हुये हमारे अंतर में जो नये नये रिक्त आयाम पैदा हो जाते हैं । हम उनको fill किये बिना शान्ति नहीं पा सकते । ये सिर्फ़ विपरीत लिंगी व्यक्ति के लिये ही खोज ही नहीं है । कला । संगीत । लेखन आदि तमाम विधाओं में से किसी का भी रिक्त आयाम निर्मित हो जाने पर हम उसे इच्छित रूप से भरे बिना चैन नहीं पा सकते । हमारी यही बैचेनी हमें तमाम सांसारिक संयोग वियोग से गुजारती हुयी नये नये पढावों पर ले जाती है । और ये अनन्त यात्रा चलती ही रहेगी । जब तक कि हम स्वयं के स्तर पर पूर्णता को प्राप्त न हो जायें । कोई आवश्यक नहीं कि हम अभी अभी मिले व्यक्ति या कला या गुण से हमेशा के लिये सन्तुष्ट हो जायें । पर ये अवश्य है कि - फ़िलहाल वह हमारी सन्तुष्टि का पूरक अवश्य है । इस आयाम के भरने के दौरान ही नये रिक्त आयाम स्वतः निर्मित हो रहे होंगे । और फ़िर हमें उन्हें भरने की तलाश जारी हो जायेगी । इसलिये कोई भी नर मादा ये कभी नहीं कह सकता - हम बने तुम बने एक दूजे के लिये । हाँ वे लम्बे
समय तक ( कुछ जन्मों तक भी ) एक दूसरे के सर्वश्रेष्ठ पूरक हो सकते हैं । फ़िर उनमें उदासीनता आनी ही आनी है । विरक्तता होनी ही होनी है । यही खेल है । नित नूतन । आत्मा के विशेष गुण के रूप में कहा जाता है । सिर्फ़ वर्तमान । इसमें भूत भविष्य है ही नहीं ।
इसलिये मैं सुनन्दा ( जी ) को पढते हुये कश्मीर से दुबई तक का बार बार सफ़र करता रहा । देखिये यहीं 1 बहुत महत्वपूर्ण बात आपको बताऊँ । ओशो कहते हैं - भले ही आप इसे न जानते हों । पर ये सच है । हम सिर्फ़ खुद ही सांस नहीं लेते । बल्कि एक दूसरे के अन्दर भी सांस ले रहे हैं । और चेतन का यही खास गुण है । विचार को गृहण करके आकार देना । कल शाम 6:30 से 8:30 तक मैं खुद को भूल गया । और सुनन्दा और शशि थरूर जी के रूप में परिवर्तित हो गया । इस बात को आप बारीकी और
तकनीकी रूप से तभी महसूस कर सकते हैं । जब आपको अद्वैत का अच्छा योग अभ्यास हो ।
मुझे सुनन्दा या शशि जी में व्यक्तिगत तौर पर कोई दिलचस्पी नहीं थी । मुझे दिलचस्पी उनके ( सिर्फ़ सम्मिलित नहीं । बल्कि अलग अलग भी ) जीवन वृत में थी । हम मानवीय उपलब्धियों के किसी भी स्तर पर हों । जीवन चक्र हमें वहुरंगी shades अवश्य दिखायेगा । इसी से हमें प्रेरणा मिलती है । और संघर्ष की इच्छा शक्ति प्रबल होती है । जबकि संस्कारों के इस खेल में हम किसी हथकङी बेङी पङे कैदी की भांति पूर्णतया विवश हैं । अच्छा । बहुत अच्छा । बुरा । बहुत बुरा । हमें संस्कार फ़ल पर उसके नियम अनुसार स्वीकार करना ही होगा । कल मैंने सुनन्दा ( जी ) के बारे में ही अधिक पढा । शशि जी के बारे में जो साथ था । वह जाना । मुझे प्राप्त विवरण के अनुसार सुनन्दा जी का जीवन संघर्ष युक्त लगा । त्रासदी युक्त भी लगा । और जिजीविषा युक्त भी । जिसका विराम ( अभी तक ) लगभग वांछित उपलब्धि के साथ था । ये दोनों लोग अभी विभिन्न क्षेत्रों में कई कल्याण कारी कार्यों में भी सलंग्न हैं ।
सुनन्दा जी से 1 बार chat हुयी थी । इससे मेरे जेहन में उनका नाम था । यह संयोग था । कल अचानक वह याद आ गया । और मैंने सुनन्दा को जाना । वैसे राजनीतिज्ञ और उनसे जुङे लोगों से मुझे 1 प्रकार की एलर्जी सी है । जाने क्यों बोरियत होती है । पर सुनन्दा को पढकर कम से कम ऐसा नहीं हुआ ।
मैंने इसी ब्लाग पर कहा था - मैं आप लोगों को नहीं जानता । पर अब मैं कह सकता हूँ । हाँ मैं आप लोगों को कुछ तो जानता हूँ ।
शशि जी सुनन्दा जी ! आपका बहुत बहुत धन्यवाद । मेरी कल की शाम में साथ देने के लिये । प्रभु आपको सफ़लता पर अग्रसर करे । और आपकी सभी खोजें पूर्णता को प्राप्त हों ।
इस लेख में सभी फ़ोटो सुनन्दा जी के हैं ।
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