22 जून 2012

मैं दिव्य कन्या से विवाह करना चाहता हूँ




राजीव जी ! नमस्कार । मैंने पहले भी आपसे एक प्रश्न पूछा था । किन्तू उसका उत्तर प्राप्त नहीं हो पाया था । इस बार फिर से आपसे अपनी एक जिज्ञासा का समाधान चाहता हूँ । आशा है । इस बार जवाब मिल जायेगा ।
Q - क्या अप्सरा । यक्षिणी । गन्धर्व आदि की तरह कोई योद्धा जाति भी होती है ? जिसकी स्त्रियां भी योद्धा होती हैं ? क्या कोई मनुष्य इनसे विवाह कर सकता है ? यदि हाँ ! तो क्या वह मनुष्य रूप में प्रथ्वी पर ही रहेगी । व क्या वह सन्तान भी उत्पन्न कर सकती हैं ? यदि सम्भव हो । तो क्या आप मुझे ऐसा करने में मेरी सहायता कर सकते हैं । यानी कोई साधना आदि के द्वारा । यदि आपकी सहमति हो तब ही । मैं कोई गलत भावना से यह सब नहीं कह रहा । या करना चाहता हूँ । बल्कि मैं हकीकत में किसी ऐसी ही दिव्य कन्या से विवाह करना चाहता हूँ । जो सुन्दर । सुशील । बहादुर । पतिवृता आदि गुणों से युक्त हो । क्योंकि प्रथ्वी पर इन गुणों से युक्त कन्या का मिलना अत्यन्त कठिन व मुश्किल है । किन्तु आप चाहें । तो यह सब बडी आसानी से मिल सकता है । क्योंकि जितना मैंने आपके ब्लाग को पडा व समझा है । उस हिसाब से आप परम तत्व को प्राप्त कर चुके है । और ये सब बातें आपके लिये अत्यन्त मामूली स्तर की हैं । इसलिये बडे सोचने व समझने के बाद ही मैं आपसे अपने मन की बात कह पा रहा हूँ । यह बात मैंने आज तक किसी से नहीं कही है । इसलिये यदि आपको सही व उचित लगे । तो कृपया मेरा मार्गदर्शन करें ।
एक और बात है । मैंने कुछ समय पूर्व हनुमान व शिव की साधना भी की थी । किन्तु उन्हें बीच में ही छोड दिया 

था । मुझे स्वपन में यह सन्देश भी मिला था कि - मेरी साधना मेरे विवाह के बाद ही पूरी होगी । व मेरी समस्त अभिलाषायें भी पूरी हो्गी । किन्तु मेरी सबसे बडी अभिलाषा तो विवाह से ही सम्बन्धित है । अतः आपसे विनमृ निवेदन है कि - कृपया मेरी सहायता कीजिये । आपके मार्ग दर्शन के इन्तजार में -
कृपया यदि सम्भव हो । तो मेरी पहचान गुप्त रखी जाय । क्योंकि इस तरह के सवालों पर हमारे समाज में मजाक बनायी जाती है । और मैं स्वभाव से थोडा अंतर्मुखी हूँ । बडे प्रयास के बाद ही मैं अपनी बात को आपके सामने रख रहा हुँ । क्योंकि हमारे समाज में इन बातों ( यक्षिणी । अप्सरा । साधनायें आदि ) का कोई भी स्थान नही है । आम आदमी तो इन बातों से पूरी तरह अनभिज्ञ है । जबकि यह सब हमारे प्राचीन इतिहास का एक अभिन्न अंग है । पर आज के आधुनिक समाज में इन बातों का कोई अस्तित्व ही नही है । माफी चाहता हुँ । मैंने आपका बहुमूल्य समय लिया । आपका एक तुच्छ सा जिज्ञासु ।
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दीपक जी ! सत्यकीखोज पर प्रथम प्रत्यक्ष आगमन पर आपका बहुत बहुत स्वागत है । आपसे मिलकर बेहद खुशी हुयी । यह सच है । यदि कोई नवयुवक हो । और वह साधना करने का इच्छुक और इन विषयों का वास्तविक जिज्ञासु हो । तो मुझे वाकई खुशी होती है । हालांकि योग आध्यात्म और भगवद विषयों को रोमांटिक मजाकिया और बेहद हल्के फ़ुल्के अंदाज में पेश करने की वजह से तमाम लोग मेरी ( कटु 

भी ) आलोचना  करते हैं । पर मैं ये कटु सत्य भी जानता हूँ । तमाम लङके लङकियाँ । जो अक्सर 18 के आसपास भी हैं । इसी शैली और भाव के कारण इस दुर्लभ योग बिज्ञान की तरफ़ तेजी से आकर्षित हुये । और मुझसे सम्पर्क किया । अधिकतर साधु अपने मानवीय जीवन के पक्षों को छुपाते हैं । जबकि इसके अपवाद मैंने अपने जीवन के अधिकाधिक सामान्य और योग पक्षों को सिर्फ़ इसीलिये उजागर किया । ताकि लोग समझ सकें कि - एक आम आदमी भी किसी न किसी स्तर पर साधना कर सकता है । न कि अपनी महिमा गाने हेतु ।
सबसे पहले मैं आपकी शिकायत दूर कर दूँ । आपने शायद एक बहुत छोटी सी ब्लाग टिप्पणी द्वारा ये प्रश्न किया था । जो उस वक्त मेरे ध्यान से उतर गयी । मैं अपने सभी पाठकों से कहना चाहूँगा । यदि आप गम्भीरता से अपनी किसी इच्छा जिज्ञासा पर बात करना चाहते हैं । तो मेरे सभी ब्लाग्स पर ऊपर फ़ोटो पर मेल I D और फ़ोन नम्बर दिया है । जिस पर आप अपनी बात रख सकते हैं । कृपया अपनी जिज्ञासा पूरे विस्तार से परिचय के साथ फ़ोटो के समेत भेजें । आपकी इच्छा अनुसार ही आपके परिचय को गुप्त या प्रकट किया जायेगा । ध्यान रहें । ये सेवा पूरी तरह निशुल्क है । निर्मल बाबा के ढाबा की तरह 2000 रुपया रजिस्ट्रेशन और बाद में आमदनी के 10% के रूप में कोई दसबन्द ( हमेशा के लिये ) भी नहीं देना होता ।
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आपके प्रश्नों पर बात करने से पहले मैं आपको देवलोक के ताजा समाचारों से अवगत करा दूँ । आपने भक्त ध्रुव
और प्रहलाद का नाम अवश्य सुना होगा । अपनी भक्ति के चलते इन दोनों को ही देवराज इन्द्र का पद और स्वर्ग लोक प्राप्त हुआ था । जिसमें अभी तक इन्द्र पद पर प्रहलाद था । अब उसका कार्यकाल समाप्त हो रहा है । उसे  नीचे फ़ेंक दिया जायेगा । और उसकी जगह नया इन्द्र ध्रुव बनेगा । बस इस कार्य हेतु कार्यवाही जारी है । प्रथ्वी से जाने के बाद इतना समय ध्रुव ने दिव्य लोकों में ऐश्वर्य भोगते हुये गुजारा । आप इनके प्रथ्वी पर होने के कालखण्ड से अभी तक की समय गणना करते हुये अलौकिक रहस्यों के नये ज्ञान से परिचित हो सकते हैं । गंगा 1 महीने से कुछ ही पहले प्रथ्वी पर अपना शाप और उतरने के अन्य उद्देश्य पूरा कर वापस चली गयी । अब आईये । आपके प्रश्नों पर बात करते हैं ।
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क्या अप्सरा । यक्षिणी । गन्धर्व आदि की तरह कोई योद्धा जाति भी होती है ? अप्सरा । यक्षिणी । गन्धर्व आदि योनियाँ हैं । और जिस प्रकार मनुष्य और जानवरों में भी डरपोक और बहादुर दोनों तरह के जीव होते हैं । हर योनि में होते हैं । चाहे वो देवता हो । या राक्षस । योद्धा कोई जाति न होकर किसी कला विशेष और वीरता युक्त लोगों का एक वर्ग ही होता है ।

क्या कोई मनुष्य इनसे विवाह कर सकता है ? अगर इस बात का आशय साधारण मनुष्य से लिया जाये ।

तो कभी नहीं । दरअसल उपरोक्त खासियतों का 1 अर्थ - खास अमीरी । खास सुन्दरता । खास विशेषता से भी लिया जा सकता है । जाहिर है । 1 राजकुमारी या अपूर्व सुन्दरी ( साधारण मानवी ) भी कभी साधारण पुरुषों से आकर्षित नहीं होगी । दूसरे शारीरिक क्षमतायें उसके लिये साधारण मनुष्य के पास नहीं होंगी । जैसे मान लो । वह किसी लोक में ही अपने साथी हेतु विहार के लिये जाना चाहे । तो बिना सूक्ष्म शरीर ज्ञान और उससे सम्बंधित ताकत योग्यताओं के साथी पुरुष नहीं जा सकता । दूसरा काम भोग और सम्बंधित श्रंगार कलायें आदि भी साधारण मनुष्य नहीं जानता । दरअसल एक आम धारणा सी बन गयी है कि किसी विशेष मंत्र के जाप सिद्धि आदि से ऐसी अलौकिक योनियाँ वश में हो जाती हैं । और उनसे मनचाहा काम लिया जा सकता है
। यह बात सत्य तो है । पर उतना स्थूल रूप में नहीं । जितना कि लोग समझते हैं । क्योंकि कोई भी मंत्र का सिद्ध कर्ता जब तक उस मंत्र को सिद्ध करने लायक होगा । तब तक उसमें दिव्यता आ चुकी होगी । संक्षेप में कहूँ । तो ऐसी उचित पात्रता प्राप्त करने में 10 साल लग ही जाते हैं । बाकी वह मनुष्य रूप ही आराम से रह सकती है । और बच्चे भी पैदा कर सकती है । शान्तनु के साथ गंगा । और विश्वामित्र के साथ मेनका आदि अनेकों बहुत से उदाहरण हैं । जिनमें दिव्य स्त्रियों ने मनुष्य जीवन जिया । और संतान उत्पन्न की ।
क्या आप मुझे ऐसा करने में मेरी सहायता कर सकते हैं ? मैं आपकी क्या सबकी सहायता करना चाहता हूँ । चाहे वह लङका हो । लङकी हो । स्त्री हो । पुरुष हो । बूढा हो । जवान हो । ये एक पढाई है । बिज्ञान है । योग बिज्ञान । अगर आप में इसकी पात्रता आ जाती है । तो इससे भी बङे लक्ष्य आसानी से मिल सकते हैं । लेकिन पढाई मेहनत आपकी ही होगी । और इसके 2 तरीके हैं । 1 कुछ साल निरंतर आश्रम में रहकर साधना करना । और 2 योग विधि सीखकर मंत्र दीक्षा आदि के बाद अपने घर रहकर लक्ष्य की प्राप्ति करना । इसके लिये बीच बीच में अङचन महसूस करने पर आपको आश्रम आना होगा । आप हनुमान व शिव की

साधना कर चुके हैं । ये उससे बहुत सरल है । इसीलिये इसका नाम सहज योग है ।
मैं हकीकत में किसी ऐसी ही दिव्य कन्या से विवाह करना चाहता हूँ - अगर मैं कहता । तो शायद लोग विश्वास न करते । पर सन्त मत की किताबों में एक दिलचस्प बात लिखी होती है । आत्म ज्ञान की इस पढाई में आपके 0/0 नम्बर भी आते हैं । तो भी स्वर्ग आपके पैरों में होगा । द्वैत में स्वर्ग की प्राप्ति को जहाँ बहुत बङी प्राप्ति माना गया है । वहीं सन्त मत में इसे बेहद तुच्छ और हेय माना गया है । अक्सर मुसलमान और ईसाई भक्ति भाव और धार्मिक होने का अंतिम फ़ल स्वर्ग प्राप्ति को ही मानते हैं । अज्ञान का चश्मा पहने सिख भी अब इसी लाइन में लग गये । और हिन्दुओं को पण्डों पुजारियों कथावाचकों ढोंगी बाबाओं ने स्वर्ग के सपने दिखा दिखा कर तबाह कर दिया । ऐसा ही कोई भृमित भटका इंसान जब किसी सच्चे सन्त के पास आता है । और कहता है - स्वर्ग । तो सन्त 1 ही बात कहेगा - थू .. स्वर्ग थू ।
और आप समझिये । स्वर्ग में ऐसी दिव्य कन्याओं की भरमार होती है । लेकिन जैसा कि आपके प्रश्न से ध्वनि निकल रही है । अभी इसी स्थिति अनुसार किसी दिव्य सुन्दरी से विवाह नहीं हो सकता । यदि आप योग की दिव्यता में आते हैं । तब कुछ विकल्प बनते हैं । 1 आप साधना की ऊँचाई प्राप्त करते हुये बिना विवाह ही ऐसी दिव्य स्त्रियों के सम्पर्क में रह सकते हैं । 2 कोई अच्छा योग पद प्राप्त कर हजारों साल किसी सुन्दर रमणी के साथ आनन्दमय जीवन व्यतीत करें । जो दोनों के लिये सदा बुढापा रहित होता है । लेकिन ये पुण्य फ़ल समाप्त होने पर आपको वापस इन्हीं कीङों मकोङों में फ़ेंक दिया जायेगा । 3 आत्म ज्ञान में कोई अच्छी स्थिति प्राप्त हो जाने पर देवी स्तर की लाखों सुन्दरियाँ 

आपको पाने के लिये हर जतन करेंगी । ये स्थिति ( स्थिति अनुसार ) सदा के लिये होगी । कहने का मतलब आप दिव्यता की शुरूआत करते हुये कृमशः एक लम्बा दिव्य ऐश्वर्य युक्त जीवन प्राप्त कर सकते हैं ।
प्रथ्वी पर इन गुणों से युक्त कन्या का मिलना अत्यन्त कठिन व मुश्किल है - प्रथ्वी के नियम अनुसार आपको कोई कन्या या वर अपनी मर्जी से नहीं । बल्कि पूर्व जन्म संस्कार अनुसार मिलते हैं । जिसको बुजुर्गों ने लम्बे अनुभव के बाद गठजोरी ( यानी जिसका जोङ जहाँ तय है ) कहा है । हालांकि लोगों को ऐसा भृम फ़िर भी हो जाता है । उन्होंने अच्छा या बुरा विवाह अपनी अक्ल से कर लिया । पर यह सही नहीं है । आपके इस जन्म के संस्कारों में जो लिखा होगा । उसे सर्वोच्च आत्म ज्ञान से भी नहीं मिटाया जा सकता । हाँ उसका प्रभाव बहुत हद तक क्षीण हो जाता है । जहाँ लिखने मिटाने की योग्यता आती है । वह बहुत ऊँची स्थिति होती है । और वहाँ पर ये पूरी सृष्टि ही सिर्फ़ एक खेल प्रपंच मात्र है । प्रथ्वी की कोई भी लङकी सिर्फ़ संस्कारी जीव ही होती है । उसे ढंग से चाय रोटी बनाना आता हो । यही बहुत बङा गुण है । कुल मिलाकर जैसा आपने पहले बोया है । वही फ़सल काटेंगे । चाहे वह फ़सल पत्नी ही हो । अभी की बोयी फ़सल समय आने पर फ़ल देगी । न कि तुरन्त के तुरन्त । फ़सल तैयार होने का समय फ़सल की किस्म के ऊपर निर्भर है कि उसका फ़ल कितना आयु वाला और प्रभावी होगा ।


आप चाहें । तो यह सब बडी आसानी से मिल सकता है - हाँ ! ये सच है । लेकिन ये बात कम से कम ऐसी ही आशा और याचना के साथ 10 000 लोग मुझसे विभिन्न कार्यों के लिये कह चुके हैं । पर मैं सभी से 1 ही बात कहता हूँ । क्यों ? क्यों मैं आपकी सहायता करूँ ? जबकि सभी तो ऐसा ही चाहते हैं । ऐसा ही कहते हैं । कोई बेहद धनी और शक्तिशाली आदमी चाहे तो बीसियों निर्धनों का पलक झपकते जीवन बदल सकता है । पर सवाल वही है । वो ऐसा क्यों करें ? क्योंकि गरीब या परेशान सिर्फ़ गिने चुने 100-200 लोग नहीं हैं । बल्कि पूरी दुनियाँ ही गरीब है । दया बिन सन्त कसाई । और दया करी तो आफ़त आई । इसलिये मैं यही महत्वपूर्ण सवाल करता हूँ - आप मुझे वह वजह स्वयं बतायें । जिसके लिये आपकी सहायता की जाये । हाँ ! एक बात पर आपकी पूरी पूरी सहायता की जा सकती है । और वो है - पात्रता । आप इस सहायता ( लोन ) के बाद समाज ( सृष्टि और जीव ) के लिये उपयोगी हों । इसलिये कोई भी सन्त आपको हल्की सहायता के बाद मजबूत बनाता है । ताकि आपको आगे सहायता की आवश्यकता ही न हो । पारस और सन्त में यही अन्तरौ जान । वो लोहा कंचन करै  यह करले आप समान । हाँ ! ये सच है । इसकी प्राप्ति हेतु आपको खोजबीन मेहनत और भटकना नहीं होगा । वह सब बैज्ञानिक तरीके से सुलभ है । सिद्ध है ।
मेरी साधना मेरे विवाह के बाद ही पूरी होगी - जीव स्तर पर स्वपन आदि ऐसी बातें सच भी हैं । पर क्योंकि मनुष्य योनि कर्म योनि भी है । अतः  भक्ति बिज्ञान द्वारा आप किसी भी रोग का इलाज करते हुये कृमशः स्वस्थ हो सकते हैं । अतः स्वपन आदि के आधार पर हाथ पर हाथ रखकर बैठना भी उचित नहीं ।
क्योंकि इस तरह के सवालों पर हमारे समाज में मजाक बनायी जाती है - अहम रूपी मनुष्य समाज अपने दोहरे आचरण से खुद मजाक बना हुआ है । आप शादी के लिये लङकी लङका खोजते हैं । तब अधिकतम सुन्दरता यौवन बहुत मुश्किल 50 साल ( यदि पूरा स्वस्थ जीवन 100 का मिले  ) का होता है । फ़िर भी उसके लिये कितना जतन करते हैं । सुन्दर जवान लङकी । सुन्दर बलिष्ठ मेहनती धनी लङका । क्यों खोजते हैं ? यदि इन बातों का कोई महत्व ही नहीं । सिनेमा का पर्दा हमारी अतृप्त वासनाओं को ही तो अप्रत्यक्ष रूप से पूरा करता है । धन । यौवन । शक्ति । ज्ञान । मुक्त सदा आनन्दमय जीवन पाने का नाम ही योग है ।

हमारे समाज में इन बातों ( यक्षिणी । अप्सरा । साधनायें आदि ) का कोई भी स्थान नही है - हमारा समाज पाखण्डियों का समाज है । अच्छे से अच्छा लखपति भी अगर 100 रुपये का नोट रास्ते में पङा मिल जाये । तो लपक कर उठा लेगा । साधारण लङकियों स्त्रियों को ऐसे घूर घूर कर देखेंगे । मानों आँखों से ही हजम कर जायेंगे । और जब बातें करेंगे । तो आदर्शवाद का शिखर भी इनके समान न होगा । वास्तविकता तो ये है कि सबकी ऐसी प्राप्तियों के लिये लार टपकती रहती है । पर बिल्ली मजबूरी में अंगूर खट्टे बताती है । हकीकत में समाज का कोई व्यक्ति खुद को कभी रोगी नहीं बतायेगा । पर डाक्टर के सामने सबको नंगा होना ही पङता है । वह सबकी असलियत जानता है ? साधारण लोगों की क्या बिसात । जब साधु भी ऐसे ही दिव्य भोगों प्राप्तियों के आकांक्षी होकर साधना करते हैं । मुझे ये स्वीकार करने में कोई हर्ज नहीं । मेरी समस्त भक्ति साधनायें लालच पर ही केन्द्रित थी । मोक्ष भी एक तरह से लालच ही है ।

- जैसा कि मैं हमेशा स्पष्ट करता हूँ । कोई भी प्रश्न आपका व्यक्तिगत होता है । पर मेरा उत्तर सार्वजनिक दृष्टिकोण से होता है । अतः उसी भाव से अध्ययन करें ।

2 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
बेनामी ने कहा…

जयंत जी आप सही जगह पहुंच गये हैं । राजीव जी से ई मेल पर सम्पर्क कर आध्यात्म की सर्वोच्च साधना का प्रारम्भ करें ।

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326