चंद्रमोहन जी । इसे सिर्फ एक चर्चा मंच जान कर लें । हम अकसर प्रचलित मान्यताओं और प्रचारित बातों के आधार पर अपनी सोच का निर्माण कर लेते हैं । हमारी सोच हमारा ज्ञान उधार का होता है । इसलिए जब कोई हमारी बँधी बँधाई ( रेडीमेड ) धारणा के विपरीत कोई बात करता है । तो हम विचलित से हो जाते हैं ।
अब बात जहाँ तक सिक्ख धर्म के गुरुओं की है । तो वहाँ भी ओशो के व्यक्तिगत विचार जरा हट के हैं । किसी के व्यक्तिगत विचारों से सहमत या असहमत होने की भी कोई नितांत आवश्यकता नहीं होती । तटस्थ भाव से भी उन्हे सुना जा सकता है ।
ओशो कहते हैं - सिख लोग अमृतसर के मंदिर में मेरी पूजा लगभग अपने गुरुओं के जैसे करते थे । उनके दस 10 गुरु हैं ? वस्तुतः जिस व्यक्ति ने सभा में मेरा परिचय कराया । उसने कहा कि - मैं उनके ग्यारहवें गुरु के रूप में स्वीकारा जा सकता हूँ । परंतु अब वे मुझे उस मंदिर में जाने तक न देंगे । उस
समय मैं बहुत सी चीजें कर रहा था । मैंने एक छोटी सी किताब " जपुजी " पर बोला । और सिक्ख लोग बहुत हर्षित हुए । क्योंकि किसी गैर सिक्ख ने कभी ऐसी फ़िकर न की थी । और जैसा अर्थ मैंने उनकी किताब ( जपुजी ) का किया । वैसा कभी उन्होनेँ सोचा तक न था । परंतु जब मैंने दो साल बाद स्वर्ण मंदिर में एक सभा में कहा कि - मैं केवल नानक को ही संबुद्ध ( Enlightened ) मानता हूँ । शेष नौ 9 गुरु केवल साधारण शिक्षक हैं । तो वे मुझे मारने को तैयार हो गए । मैंने कहा - तुम मुझे मार सकते हो । परंतु तुम अपने ग्यारहवें 11 गुरु को मार रहे होंगे । ( it is a translation )
I was worshipped in the temple of Amritsar by the Sikhs almost as one of their masters. They have ten masters. Actually the man who introduced me in their conference said that I could be accepted as their eleventh master. But now they won't let me into the temple.
At that time I was holding back many things. I had talked about one small book, Japuji, and the Sikhs were immensely happy because no non-Sikh had ever bothered. And the meaning I gave to their small booklet they had never thought of. But when I said,after two years, in a meeting in their Golden Temple
that, "I consider only Nanak to be enlightened; the remaining nine masters are just ordinary teachers," they were ready to kill me. I said, "You can kill me, but you will be killing your eleventh master !"
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Link to original source -
http://www.oshoworld.com/biography/innercontent.asp?FileName=biography5/05-25-sikhs.txt
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बहुत बहुत धन्यवाद उमेश जी । मैं एक बात स्वीकार करता हूँ । अकस्मात ही जब हमारी ( सत्यकीखोज ) चर्चा ( राधास्वामी पंचनामा प्रकरण ) ने एक महत्वपूर्ण मोङ लिया । आपका उसमें महत्वपूर्ण योगदान रहा । बहुत
कम लोग होते हैं । जो न सिर्फ़ किसी चीज की सार्थकता को पकङ पाते हैं । बल्कि सटीक अन्दाज में बात को आगे भी बढा देते हैं । मैंने पहले लिखा - मैं स्वीकार करता हूँ । दरअसल मैं और अशोक फ़ोन पर बात कर रहे थे । जब आपका ये महत्वपूर्ण कमेंट देखा । तो जो मैटर आपने उपलब्ध कराया । इसकी हम दोनों में से किसी को जानकारी नहीं थी । उसे बहुत मजा आया । बस अशोक ने एक बात बोली कि - महाराज ! " परंतु जब मैंने दो साल बाद स्वर्ण मंदिर में एक सभा में कहा कि - मैं केवल नानक को ही संबुद्ध ( Enlightened ) मानता हूँ । " ये बात आप बातचीत में प्रसंगवश दसियों बार बोल चुके हो । व्यक्तिगत रूप से बातचीत में ये मैंने बहुत से सिखों को बोला है । सार्वजनिक रूप से ऐसी दिलचस्पी ज्यादा नहीं । भावना को ठेस न पहुँचे । ये बात भी है । और कभी ऐसी जरूरत भी महसूस नहीं हुयी । साहेब ।
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