15 अगस्त 2012

उनका पूरा मत ही काल्पनिक हैं - ओशो


राजीव जी ! आपसे अनुरोध है कि एक बार फ़िर से लिखने से पहले अच्छी तरह research कर लें । मैं न तो राधास्वामी मत के पक्ष में हूँ । ना ही ओशोधारा के विरुद्ध में हूँ । परन्तु ऊपर जो लिखा है । सब गलत है । चन्द्र मोहन जैन । टिप्पणी - बोलो कोका कोला भगवान की जय । लेख पर ।
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चन्द्र मोहन जी ! मेरा भी आपकी तरह ही न तो ओशो से कोई राग है । और न ही चरण सिंह या राधा स्वामी से कोई द्वेष । पर सनातन धार्मिकता में आज जिस तरह मिलाबट ढोंग पाखंड रूढिवादिता की लाइलाज बीमारी सी फ़ैल चुकी है । ऐसे में सत्यकीखोज द्वारा इस तरह के विवादित पक्षों को जनता के सामने ज्यों का त्यों लाने का प्रयास रहता है । आप लोग अब जानते ही हैं । आप जो भी पक्ष विपक्ष किसी भी मामले में रखते हैं । सत्यकीखोज पूर्ण निर्भीकता से जनता की अदालत में लाता है । राधास्वामी मत के बारे में प्रकाशित इस श्रंखला में मेरा एक भी शब्द नहीं है । इसका अनुरोध भी पूर्व में राधास्वामी मत से जुङे रहे निर्मल

बंसल द्वारा किया गया । और इसका अनुवाद भी पूर्व में राधास्वामी से जुङे रहे अशोक द्वारा किया जा रहा है । जाहिर है । वे लोग मुझसे ज्यादा इस बारे में जानते होंगे । दूसरी खास बात - इसमें मेरा । निर्मल बंसल या अशोक का अपना कोई भाव विचार पूर्वाग्रह आदि कुछ नहीं है । ये एक बेवसाइट पर उपलब्ध अंग्रेजी लेख का अनुवाद भर है । और ये लिंक भी हमारे पाठक उमेश द्वारा उपलब्ध कराया गया है । यदि आपका कोई सामान्य objection भाव नजर भी आता है । तो वह बस इतना हो सकता है कि - राधास्वामी मत की किसी पुस्तक में ऐसा कहीं नहीं लिखा । ये सच भी हो सकता है । लेकिन चन्द्र मोहन जी ध्यान दें । ओशो वाणी का पूरा matter उनकी ही आवाज में ( रिकार्डिंग ) उपलब्ध है । जो भी text रूप में है । वह एक सबूत के तौर पर उनकी खुद की वाणी में भी मौजूद है । अतः उसके फ़र्जी होने की कोई संभावना नहीं । अतः इन प्रश्नों के भाव आधार पर किसी आदमी को जरूर ऐसी कोई पुस्तक मिली है । जिसमें ऐसा लिखा है । ओशो किसी

मत के विरुद्ध ऐसा फ़र्जी कुप्रचार करें । ऐसी भी कोई संभावना नहीं । मैं आपको अपना एक निजी अनुभव बताता हूँ । हमारी गली में चरन सिंह का एक अनुयायी सब्जी की ठेल लगाता है । मामूली शिक्षित ये इंसान ऐसी ही बातों (  चरन सिंह ही सब कुछ हैं ) से प्रभावित हुआ इतनी अकङ के साथ बोलता है । जैसे टाटा बिरला भी उसके सामने कुछ नहीं । और यह ठीक ऐसे ही शब्दों का ( चरन सिंह ही सब कुछ ) प्रयोग करता है । जैसे इस श्रंखला में प्रश्नकर्ता ने ओशो से किये । इसके भी अलावा आप इन लेखों से चरन सिंह या राधास्वामी को हटा कर सोचें । तो ओशो ने नकली धार्मिक गुरुओं की जो धज्जियाँ उङाई हैं । वो बिलकुल सही है । अतः यदि इस तरह सोचा जाये । क्या चरन सिंह ने ऐसा कहा ? किसी और ने चरन सिंह के बारे में ऐसा कहा ? या माना - किसी चरन सिंह ने ऐसा कहा ? तो क्या ये बात सही है ? फ़िर इसका सत्य क्या है ?
दूसरे मैं सोचता हूँ । किसी भी धार्मिक व्यक्ति संस्था गुरु में इतनी सहनशीलता होनी चाहिये कि किसी तरह कहीं कोई मिथ्या बात उसके विरुद्ध प्रचारित हो गयी । तो वह या उससे जुङे लोग उसका सही स्पष्टीकरण करें । इससे उन्हें लाभ ही होगा ।
- वैसे मैं आपसे सहमत हूँ । किसी भी बात को research के बाद लिखूँ । बस थोङा इंतजार करिये । राधास्वामी में गुरुओं की वंशवाद परम्परा पर सबूतों सहित विस्तार से लेख आयेगा । तब तक आप सोचिये । राधास्वामी में 

सभी मुख्य गद्दी गुरु उनके बेटे या खानदानी ही क्यों हुये । क्या बाहर के लाखों लोगों में से कोई शिष्य योग्य नहीं हो पाया ? यदि ऐसा भी तो क्यों ?
आईये इसके बाद आगे बढते हैं ।
राधास्वामी पंथ पर ओशो से एक जिज्ञासु द्वारा पूछे गये 5 प्रश्नों का ओशो द्वारा उत्तर । पिछले उत्तर इसी माह प्रकाशित अन्य लेख में देखें ।
http://www.messagefrommasters.com/Psychic-World/Osho-on-Charan-Singh-Radha-Soami.html ( ये हिन्दी अनुवाद है । अंग्रेजी में मूल लेख हेतु क्लिक करें )
और ये अंतिम 5 वां उत्तर -

एक बार की बात है । एक बार बग़दाद में एक आध्यात्मिक औरत दिखाई दी । लोग सोचने लगे कि शायद वह पागल है । पर वह पूर्ण गुरु थी । असली गुरु को हमेशा ही पागल समझ लिया जाता है । क्योंकि उनकी भाषा लोगों को समझ नहीं आती । उनकी वाणी स्वतन्त्र भय मुक्त और सच्चाई से पूर्ण होती है । वे डर और लालच की बातही नहीं करते । जिसका जन साधारण में प्रचलन होता है । लोगों ने देखा । राबिया भागी जा रही है । तब उन्होंने पूछा - कहाँ जा रही हो । उसने तो मजमा ही जमा लिया । बहुत भीड़ इक्कठा हो गयी । क्योंकि उसके एक हाथ में जलती मशाल और दूसरे में पानी से भरा मटका था । वह इस तरह से भागी जा रही थी कि लोगों ने सोचा । शायद कोई आपातकालीन स्थिति हो । उन्होंने पूछा - कहाँ जा रही हो राबिया ? क्या हुआ ? तब उसने कहा - जब तक मैं अपने इस पानी से नरक को डूबा न दूँ । और स्वर्ग को जला न दूँ । तब तक इस दुनिया के लोग अधर्मी ही रहेंगे । 
जब भी तुम किसी पूरे गुरु के सानिध्य में आते हो । तब वह तुम्हे निर्भयता का स्वाद चखा देते हैं । वापिस गिरने का कोई रास्ता नहीं है । आज तक कोई भी नीचे नहीं गिरा । यह एक बेवकूफाना विचार है । लेकिन लाखों ऐसे हैं । जो इसी तरह के विचारों के प्रभाव में आ गए ।
पाँचवां - कुल सात स्वर्ग हैं । हर एक का दर्जा दुसरे से ऊपर है । और केवल चरण सिंह ही वहाँ तक ले जाने में 

सक्षम हैं । बाकी संत केवल दूसरे स्वर्ग तक ले जाने में समर्थ होते हैं । जहाँ तक ईसा और बुद्ध की पहुँच थी ।
बड़े उदार हैं चरण सिंह । जो इन्होने उन गरीबों को कम से कम दुसरे में तो रहने दिया । वह चाहता । तो उन्हें वहाँ भी न रहने देता । ये है उसकी कहानी । बहुत उदार । नानक और कबीर का क्या । और उन संतो के बारे मैं क्या कहें । जो बेचारे बुद्ध और ईसा जितने प्रसिद्ध न हो सके ? उसने बुद्ध और ईसा को वहाँ रहने दिया । ताकि बौद्ध और ईसाई आकर्षित हो सकें । पर कम प्रसिद्ध गुरुओं का क्या ? नानक और कबीर तो प्रथम स्वर्ग में ही रह गए होंगे । बेचारे मुहम्मद का क्या हुआ होगा ? अगर चरण सिंह उन्हें पहले बाले में ही कुछ जगह दिला पाये । तो भी बहुत होगा । और बाकियों का क्या होगा ? और मेरे जैसे पापी ? अगर हम सातवें नरक में भी कुछ जगह

पा सके । तो भी बहुत जानो । इस तरह के खेल बहुत पुराने हो चुके । ये नये नहीं हैं । ये लोग पागल और अहम वादी होते हैं । ऐसे लोगों से बचें । उनसे दूर रहें ।
आप कहते हैं कि - मैं चरण सिंह का शिष्य नहीं हूँ । और बनने की इच्छा भी नहीं है । परन्तु राधा स्वामी पंथ की किताबों ने बड़ी दुविधा में डाल दिया है ।
इसमें खतरा है । अगर तुम दुविधा में हो । तो इसका मतलब है कि - तुम प्रभाव में आ चुके हो । अगर आप दुविधा में हो । तब आप शिष्यता की ओर एक कदम पहले ही बढ़ा चुके हो । तुम्हें दुविधा में क्यों होना चाहिए ?

क्या आपको दीखता नहीं कि गन्दगी तो गन्दगी ही है । तुम दुविधा में क्यों हो ? यह बहुत सरल है । इसलिए दुविधा में मत पड़ो । नहीं तो वहाँ खतरा पैदा हो जायेगा । तुमने इसके बारे में सोचना शुरू कर दिया है । जब तुम इस बारे में सोचने लगते हो । तब तुम्हे स्पष्टीकरण की आवश्यकता पड़ी है । और वे लोग स्पष्टीकरण में बहुत चालाक हैं । चूँकि उनका पूरा मत ही काल्पनिक हैं । स्पष्टीकरण संभव है । संभव है । वे इसका चतुराई से स्पष्टीकरण करें ।
वास्तविकता को स्पष्ट नहीं किया जा सकता । पर झूठ को वहुत ख़ूबसूरती से किया जा सकता है । कुछ ऐसे भी मानव निर्मित झूठ हैं । जिनसे आप स्वेच्छा से किसी भी हद तक स्पष्ट कर सकते हैं । वास्तविकता समझौतों से परे है । तो आप उलझन में पड़ गये । आप और किताबें पढेंगे । और उलझन में पड़ जायेंगे । और फिर कभी न कभी तुम्हे चरण सिंह के साथ सतसंग के लिए ब्यास जाना पड़ेगा । तब वहाँ बड़ा खतरा और लालच पैदा हो जाता है । तब जल्द ही तुम भी फंस जाओगे । इसलिए Mr H. Thorne Crosby  उलझन में न पड़ो । उसमे पड़ने की कोई आवश्यकता ही नहीं है । आपको इतनी समझ तो होनी ही चाहिए  कि वास्तविकता देख सको ।
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Life is no fun if we can’t enjoy other people, because they are everywhere we go. We are placed together on this universe. to grow and bloom beautifully. Therefore, it is a challenge to live together...Try to understand the people because understanding helps to smooth our strained relationships...Learn from each other and be happy wherever we are...Accept others for “who they are”  Ask God to help you enlarge your circle of love by taking in people of all types, colour and backgrounds...Pray for the eyes to see into people’s heart and expect to enjoy a great day - Spirited Butterfly
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We are often fooled by someone's appearance, their age or illness or anger, or meanness or just too busy to recognize that there is in everyone a place of goodness and integrity, no matter how deeply

buried... We are too hurried or distracted to stop and bear witness to it. When we recognize the spark of God in others, we blow on it, no matter how deeply it has been buried or for how long... When we bless someone, we touch the unborn goodness in them and wish it well. - Rachel Naomi Remen
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सोनिया गाँधी की बेटी प्रियंका गाँधी का पति रावर्ट वढेरा  15 aug 2012 के दिन शराब पीकर इस तरह नशे में चूर हुये कि चला भी न जा रहा था । पूरी जानकारी यहाँ देखें । फ़ोटो इसी ब्लाग पर भी ।
http://seeker401.wordpress.com/2011/09/02/an-explosive-story-on-indian-corruption-robert-vadra/ ( क्लिक करें )

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