मेरी कमजोरी हैं । आसमान में छायी काली घटायें । उमङती घुमङती नदियाँ । बरसता सावन । हरियाली से ढकी धरती । और मेरे घर के सामने लगे कनेर के पेङों में orange flavor का orange flower tree.. कनेर का ये दिलकश पेङ निहारना मुझे बहुत अच्छा लगता है । जैसे मुझसे कुछ कह रहा हो ? अपने अलग जीवन के चलते मैं प्रकृति के सदा ही बेहद करीब रहा हूँ । और शायद इसी वजह से दुर्लभ रहस्यों की तह तक जा सका । 3 july 2012 के बाद से ही आगरा पर मौसम कुछ अधिक ही मेहरबान है । और इक्का दुक्का समय को छोङकर अक्सर बादल छाये रहते हैं । बरसात ज्यादा तो नहीं हुयी । पर फ़िर भी हुयी । छोटी छोटी रिमझिम बूँदों में भीगना तन मन को अजीव आनन्द देता है । यहाँ तक कि मेरा सूदूर अंतरिक्ष क्षेत्रों में जाने को भी मन नहीं करता । क्योंकि वहाँ ये सब नहीं है । जब तक किसी ग्रह आदि पर न जाओ ।
शायद मेरी जिन्दगी में कभी कभी ही ऐसे पल आते हैं । इसीलिये जो समय मिलता भी है । उसमें लिखने का मन नहीं करता । दूसरे ये भी सोचता हूँ । क्या लिखूँ ? दुनियाँ की कोई उपलब्धि हासिल करना । यहाँ कुछ भी प्राप्त करना मेरी मंजिल नहीं - रहना नहीं देश विराना है । यह संसार कागज की पुङिया बूँद पङे गल जाना है ।
मैंने आपको पूर्व में बताया था । मेरी योग पढाई पूरी हो चुकी । अब जीवन के शेष 38 वर्ष सिर्फ़ शिष्य कसौटी में गुजारने हैं । इसके बाद मेरे सामने पूर्णतः मुक्त जीवन होगा । और मैं आत्मा की विभिन्न
अवस्थाओं में से किसी भी अवस्था में स्वेच्छा अनुसार इच्छित समय तक रह सकूँगा । अखिल सृष्टि में कहीं भी तुरन्त आ जा सकूँगा । मैं अपने जीवन की कहानी जितनी चाहूँ खुद लिखूँगा । और इसका कभी कोई अच्छा बुरा फ़ल नहीं बनेगा ( क्योंकि मैं कर्ता भाव से रहित होऊँगा ) । आगे जनमने नरने का कोई कारण भी नहीं बनेगा - अपनी मढी में आप मैं खेलूँ । खेलूँ खेल स्वेच्छा । हालांकि ये सभी कुछ मेरे पास अभी भी है । पर उस समय मैं इस मल मूत्र शरीर से और शिष्य कसौटी से भी मुक्त होऊँगा । बस यही बङा अन्तर होगा । दूसरे अभी मैं दूसरे लोकों में या इसी प्रथ्वी पर जाने पर एक या अनेक स्थूल शरीर प्रकट नहीं कर सकता । उस समय मुझे इन सबका अधिकार होगा । और मेरा एकमात्र काम होगा - सिर्फ़ जीवों को चेताना ।
ये कसौटी ( मेरी वाली ) आत्मज्ञान के हरेक शिष्य को हासिल नहीं होती । इसलिये प्रायः सन्त मत की तमाम पुस्तकों में इसका वर्णन न के बराबर है । हालांकि तुलसीदास मीरा रामतीर्थ विवेकानन्द जैसे पूर्ण सन्तों को अलग अलग स्तर पर इससे गुजरना पङा ।
शायद आप इस कसौटी का सही मतलब न समझ पायें । ये क्यों और क्या होती है ?
दरअसल ये एक अलौकिक बिज्ञान है । जब कोई शिष्य निरंतर भजन ध्यान के अभ्यास से आंतरिक रूप से पूर्ण निर्विकारी होकर खाली हो जाता है । और अपनी पात्रता के चलते ऊपर बतायी स्थिति ( पूर्ण मुक्त ) को प्राप्त होता है । तब उसे इस शिष्य कसौटी की अति कङी परीक्षा से गुजरना होता है । जिसके बारे में कहा गया है - पुरजा पुरजा हुय रहे तऊँ न छांङे खेत । यानी शरीर के चिथङे चिथङे हो जायें । फ़िर भी उफ़ ! न करे । इसीलिये मुझे देखकर ही लोग घबरा जाते हैं ।
खैर..ये खाली हुआ कसौटी शिष्य हमारे शिष्य और अन्य सम्पर्कियों तथा नियम अनुसार पिछली पीङियों के लिये अनेक प्रकार से कार्य करता हुआ इस कसौटी पर खुद को खरा साबित करता है । इसका बिज्ञान यह होता है । जब भी कोई नया शिष्य दीक्षा लेता है । कोई फ़रियादी अर्जी लगाता है । जीवित और मृत पीङियाँ
उद्धार के कृम में आती हैं । आंतरिक जगत के लङाई झगङे । अदृश्य में बैठे दिग्गज योगियों के अहम से टकराव । सत्ता के परिदृश्य में बनती नयी परिस्थतियाँ । और नयी चुनौतियाँ । इन सबका कसौटी शिष्य अकेले सामना करता है । और मजे की बात ये होती है । इस स्थिति में उसे गुरु से कोई सपोर्ट नहीं होती । बल्कि कहीं कमजोर पङा भी । तो गुरु की उपेक्षा । रूखे व्यवहार । और व्यंग्य वाणी का सामना करना होता है - मत कर । तेरे वश का कुछ नहीं । ये हँसी खेल नहीं है ।
तब वास्तव में ऐसी स्थिति में एक मजबूत साधक भी बुरी तरह से टूट जाता है । अखिल सृष्टि जैसे दुश्मन । और अकेला कसौटी शिष्य । शरीर से । मन से । भावना से । साधनों से टूटा । कुछ कुछ लाचार और असहाय सा । कुछ समय तक घोर हताशा में रहता है । फ़िर उसी थकी अवस्था में लङने को तैयार हो जाता है । क्योंकि इसके अलावा कोई चारा नहीं - ज्ञान का पंथ कृपाण की धारा । कहो खगेस को बरने पारा ।
बस आशा और उत्साह की उमंग इसी बात की होती है । निरंतर कठिनाईयों को खत्म करता हुआ दुर्लभ को प्राप्त कर रहा है । कसौटी एक दृष्टि से इतनी खतरनाक होती है कि मैं झुँझला कर गालियाँ देने लगता हूँ - क्या अजीब खेल बनाया है ? लेकिन अब इसका इतना अभ्यास सा हो गया है कि लगता ही नही कसौटी पर हूँ ।
कसौटी एक खतरनाक मजेदार खेल की तरह भी है । जब आप इसके खिलाङी हो जाते हैं । पर कभी कभी बहुत अजीब सी ऊब भी होती है । मैंने ऊपर जो स्थितियाँ बतायीं । उसी अनुसार दीक्षित हुये स्त्री पुरुष या किसी भी कारण से सम्पर्क में आये अन्य जीव इस कसौटी शिष्य से ( आंतरिक रूप से ) जोङ दिये जाते हैं । कभी 1-2 ही । और कभी कभी इकठ्ठे 50 तक । तव उनके पाप अंश । नीच संस्कार । और वासना कामवासना कसौटी शिष्य पर हावी हो जाती हैं । एक तरह से कहिये । उनका कूङा इसे दे दिया जाता है । और वह बदले में अपनी दिव्यता ( कमाई हुयी ) इन्हें देता है । जब तक ये अच्छी स्थिति में न आ जायें ।
इस तरह से नया शिष्य तो अचानक स्फ़ूर्ति ताजगी महसूस करता है । और कसौटी शिष्य ( उसकी ) उलझन और टेंशन ।
--oo--
उफ़ ! व्यवधान फ़िर । शेष बाद में
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