जय गुरुदेव की । राजीव जी । मुझे शायरी बनाने काशौक है । तो मेरी ये दो शायरी आपको पोस्ट कर रहा हूं । इसे पढें और पसन्द आये तो अपने ब्लाग पर लगाने की कृपा करें । { श्री विजय तिवारी । मुम्बई । ई मेल से } 1- ( चाहत है ,अगर दुखों से मुक्ति की । तो ढाई अक्षर कानाम जपो । देखेगा ना दुख भूलकर भी तुम्हारी तरफ़ । चाहो अगर सफ़ल जिंदगी ?? तो भूल के दुनियादारी । कर लो ढाई अक्षर से पक्की यारी । ) 2- ढाई अक्षर का नाम है बडा प्यारा । जपने मात्र से इसको । हो जाता है । हर दुख दर्द दूर हमारा । जो रह गयी हों कुछ मुरादें जीवन में अधूरी । जपने से ढाई अक्षर नाम को हो जाती हैं पूरी । जय गुरुदेव की ।
*** धन्यवाद । विजय जी । आपने बहुत सुन्दर और बहुत सही पकडा है । ढाई अक्षर के नाम या महामन्त्र को । इसी नाम की तारीफ़ में रामायण आदि में कहा गया है । निज अनुभव तोहे कहूं खगेसा । बिनु हरि भजन ? नमिटे कलेसा ।( कागभुशुंडि जी गरुण से ।) कलियुग केवल नाम ? उद्धारा । सुमरि सुमरि नर उतरहिं पारा । काशी मुक्ति हेतु उपदेशू । महामन्त्र ? जोई जपत महेशू । उमा कहूं मैं अनुभव अपना । सत हरि नाम ? जगत सब सपना । अब प्रभु कृपा करो येहि भांती । सब तजि भजन ? करों दिन राती ।जपहिं नामु ? जन आरत भारी । मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी । चहु जुग चहु श्रुति नाम ? प्रभाऊ । कलि बिसेषि नहिं आन उपाऊ । अगुन सगुन दुइ ब्रह्म सरूपा। अकथ अगाध अनादि अनूपा । मोरें मत बड़ नामु ? दुहू तें । किए जेहिं जुग निज बस निज बूतें । उभय अगम जुग सुगम नाम ? ते। कहेउ नामु ? बड़ ब्रह्म राम ते । राम एक तापस तिय तारी । नाम ? कोटि खल कुमति सुधारी । चहुं जुग तीनि काल तिहु लोका । भए नाम ? जपि जीव बिसोका । नहिं कलि करम न भगति बिबेकू । राम नाम ? अवलंबन एकू । इसी के लिये कबीर साहब ने बहुत सुन्दर कहा है । पोथी पढ पढ जग मूआ । पंडित भया न कोय । ढाई अक्षर ?? प्रेम के पढे सो पंडित होय ।
यही ढाई अक्षर का नाम ( महामन्त्र ) सबसे शक्तिशाली है । जो हमारे शरीर की चेतनधारा में स्वयं गूंज रहा है । इसको न जपा जाता है । और न कोई अन्य पूजा पाठ का विधान है । इसको जानकार संत द्वारा प्रकट कर दिया जाता है । और जीव अखन्ड चेतनधारा से जुड जाता है । इस तरह भगवान से सीधे ही जुड जाने पर उसकी जीवन बगिया रंग बिरंगे फूलों से महकने लगती है । यही असली और सच्ची भक्ति है । यही सहज योग है । और ये ग्यान आज से नहीं अनादिकाल से चला आ रहा है । बस असली नाम सच्चे संतो के पास होता है । बनाबटी संतों के पास नहीं है क्योंकि .. संत हैं । सो अंत ( मतलब और ही जगह पर होते हैं । ) हैं । बाकी सब बन्त हैं । ( अर्थात बनते हैं संत होते नहीं हैं । ) संत हैं । सो अंत हैं । बाकी सब बन्त हैं ।
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