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मेरी बात..मुझे दरअसल गाली । भद्दी गाली आदि की कभी कोई परवाह ही नहीं रही । एक साधु जीवन वाले को गाली और आदर या प्रणाम दोनों ही परिस्थितियों से गुजरना होता है । इस सम्बन्ध में सबसे मशहूर वाकया गौतम बुद्ध जी के साथ हुआ था । वे अपने दल के साथ एक गाँव से गुजर रहे थे । तो रास्ते में खङे युवाजनों ने उनकी साधुता को ढोंगपना आदि करार देते हुये उच्चस्वर में गालियाँ दी । ताकि वे आराम से सुन सके । बुद्ध के साथ चल रहे उनके अनुयायी ( जो निरे बाबा ही नहीं । अच्छे खासे हट्टे कट्टे भी थे । ) आस्तीनें समेटते हुये आन द स्पाट ही निपटारा करने के लिये आगे बङे । किन्तु बुद्ध ने सख्ती से मना कर दिया ।..प्रभु की लीला से जब बुद्ध शान्त मुद्रा में ही आगे बङ गये । तो गालीदाता को पश्चाताप हुआ कि नाहक ही मैंने साधु को गाली दी । और आश्चर्य । साधु को कतई क्रोध नहीं आया । वह लपकता हुआ तेजी से बुद्ध के आगे पहुँचा । और बोला । महात्मन । हमने आपको इतनी गालियाँ दी । फ़िर भी आपको क्रोध नहीं आया । बुद्ध सौम्य शीतल मुस्कान के साथ बोले । प्रिय भाई । जब हम लोग पिछले गाँव से आ रहे थे । तो वहाँ के लोगों ने कहा । महाराज जी । कुछ भोजन पानी कर लें । परन्तु भूख न होने से हमने उनका भोजन स्वीकार नहीं किया । तब वह भोजन किसके पास रहा ? गालीदाता बोला । उसी के पास ।
बुद्ध फ़िर बोले । आपके शब्द हमारे किसी काम के नहीं थे । अतः हमने उन्हें स्वीकार नहीं किया । तब वे किसके पास रहे ? गालीदाता बोला । मेरे पास । बुद्ध बोले । जब हमारा कोई लेन देन ही नहीं हुआ । फ़िर क्रोध किस बात का । गालीदाता उनके पैरों पर गिर पङा । और बोला । क्षमा कर दो । महाराज । मुझसे भारी भूल हुयी ।
..लेकिन मौखिक गाली । ब्लाग कमेंट @ गाली..में काफ़ी अंतर होता है । ये गाली न सिर्फ़ नये विजिटर्स पर असर डाल सकती है । बल्कि ऐसी प्रवृति के अन्य लोगों को प्रोत्साहन भी दे सकती है । इस तरह एक गलत परम्परा ही शुरू हो जाती है । इसके रिएक्ट में मेरे द्वारा प्रकाशित पोस्ट का भी टिप्पणीकर्ता पर प्रतिकूल असर ही हुआ । और उन्होंने फ़िर से रिएक्ट पोस्ट पर कमेंट दिया ।..मूर्खानन्द..पहले पढ लिखकर समझो । तर्कशील बनो ।..बात यहीं समाप्त करने हेतु मैंने इसे डिलीट कर दिया ।
अबकी बार इस कमेंट से मुझे कोई क्षोभ नहीं हुआ । क्योंकि अबकी ये उपहार मेरे लिये था । जबकि पहले दिव्या जी के लिये । तब मैंने निंदक नियरे राखिये..की तर्ज पर । अपना आत्मवलोकन शुरू किया ।..गाली से मुझ पर कोई असर नहीं हुआ था । अतः संतों द्वारा सिखाई गयी सहिष्णुता कायम थी ।
मूर्खानन्द का खिताब बुरा नही है । अर्थ ।..मूर्खो को भी आनन्द पहुँचाने वाला । दुनियाँ की नजरों में मूर्ख होने के बाद भी आनन्द में रहने वाला । आदि । हमारे मंडल में एक पागल बाबा उर्फ़ पागलानन्द जी हैं । उन्होंने अपने बैग पर पेंटर से लिखा रखा है । पागल बाबा ।..किसी के पूछने पर हाथ जोङकर कहते हैं । भैया । दुनियाँ होशियार । मैं पागल । इसलिये अपना परिचय खुद ही लिखा रखा है ।
.. अब.. पहले पढ लिख..इन्होंने कुछ सजेस्ट नहीं किया । क्या पढूँ ? मैं खुद बता देता हूँ । क्योंकि प्रायः लोग फ़ोन पर भी ऐसा सवाल करते हैं । स्कूली शिक्षा - B A । सब्जेक्ट । हिन्दी । राजनीति शास्त्र । BOTH ENGLISH । इंटरमीडियेट । हिन्दी । मनोबिग्यान । टेक्नीकल आर्ट । उर्दू । इंगलिश । HIGH SCHOOL । हिन्दी । इंगलिश । संस्कृत । बायोलोजी । गणित । फ़िजिक्स केमिस्टी । अतिरिक्त ।.. फ़ाइन आर्ट का डिप्लोमा । कम्प्यूटर कोर्स ।..धार्मिक..चार वेद । 18 प्रमुख पुराण । अन्य पुराण भी संक्षिप्त में । 6 उपनिषद । गीता । रामचरित मानस । वाल्मीकि रामायण । सत्यार्थ प्रकाश । वेदान्त दर्शन । कबीर साहित्य । संतमत की लगभग सभी पुस्तकें आदि । इसके अलावा देश विदेश के साहित्यिक और दार्शनिक लेखकों की पुस्तकें । तंत्र मंत्र साहित्य आदि । रुचि । कार्टून फ़िल्म मेकिंग का बङा स्तर पर कार्य करने की थी । और स्वयँ सीखा भी था । इसके अलावा फ़िल्म मेकिंग की भी थी । जिसके लिये बैनर । माडर्न फ़िल्म प्रोडक्शन । के नाम से IMPA में 2012 तक के लिये रजिस्टर्ड है । जो लगभग 2002 में रजिस्टर्ड कराया था ।
लेकिन अब ये सब विचार समाप्त हो गये । क्योंकि इन तमाम एक्टिविटीज के साथ साथ साधना में रुचि थी । जिसके लिये प्रयास और साधुओं से मिलना जुलना बना रहा । इस सबके साथ साथ साधना भी कम अधिक चलती रही । 2003 में द्वैत की एक साधना । अति उत्साह में । अपनी गलती से । उल्टी पङ गयी । और लेने के देने पङ गये । किसी भी क्षण मृत्यु की आशंका होने लगी । और निरंतर मायावी संसार में भटकते रहने की स्थिति बन गयी । सब साधना भूलकर प्रभु से निरंतर प्रार्थना करने लगा कि किसी तरह इस जंजाल से निकाल दो । तब छह महीने बाद ( संभवतः प्रभु ने सोचा । और मजा ले के देख बेटा । यानी मुझे मनमुखता का सबक सिखाया । ) मेरा श्री महाराज जी ( वर्तमान अद्वैत संत । श्री शिवानन्द जी महाराज । ) से मिलना हुआ ।
मेरे द्वारा प्रथम प्रणाम के उत्तर में जैसे ही महाराज जी ने आशीर्वाद के लिये हाथ उठाया । छह महीने से उस क्षण तक जारी सभी तिलिस्म और शक्तियाँ रफ़ूचक्कर हो गयी । भन भन करता दिमाग शीतल हो गया । तब महाराज जी ने कहा । साधना के नाम पर तुम अब तक भटकते रहे । अब सबसे बङी और सबसे सरल साधना जानों आदि..।
अब आखिरी बात..तर्कशील बनो ।..ये भी मुझे समझ में नहीं आया । संतों द्वारा प्रदत्त जिस ग्यान को ब्लाग पर पढकर बङे बङे लोगों के तर्क समाप्त हो जाते हैं । उनकी वर्षों से कुलबुला रही शंका का समाधान हो जाता है ।..और मैं धर्म के ज्यादातर मैटर को पोंगापन्थी के बजाय तथ्यात्मक और तार्किक अंदाज में ही आप लोगों के सामने रखता हूँ । जिसकी प्रशंसा और पुष्टि हजारों सुधी पाठकों ने की है । यहाँ तक कि बीच में दो महीने मेरे नेट पर अनुपस्थित रहने पर बहुत लोगों को बैचेनी रही । और तमाम मेल आये कि भाई कहाँ हो ?
ALL THE EVIDENCE SHOWS THAT GOD WAS ACTUALLY QUITE A GAMBLER . AND THE UNIVERSE IS A GREAT CASINO . WHERE DICE ARE THROWN . AND ROULETTE WHEELS SPIN ON EVERY OCCASION...STEPHEN HAWKINS .
आशा है । आगे भी आप लोगों का प्यार और प्यार भरी गालियाँ मिलती ही रहेंगी । कुछ देते ही हो भाई । लेते तो नहीं । अतः मेरा तो फ़ायदा ही फ़ायदा है ।
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