14 जनवरी 2011

परपुरुष से संतान नियोग या संभोग ?

सर जी मैं भी आपके ब्लाग का एक रीडर हूँ । मुझे मेरे बहुत से सवालों के जवाव आपके ब्लाग से मिल गये । तो मुझे किसी से कुछ पूछने की जरूरत नहीं हुयी । लेकिन एक सवाल मेरे मन में है ? उस पर जरा प्रकाश डालिये । ये नियोग विधि क्या होती है ?? मैंने गूगल में सर्च किया । तो कुछ खास मैटर नहीं मिल पाया । सिर्फ़ इतना पढने को मिला कि नियोग विधि में औरत अपने पति के अलावा किसी दूसरे पुरुष से प्रेगनेंट हो सकती है ? जैसे किसी देवर या रिश्तेदार से ? लेकिन पति की रजामन्दी से अगर पति को कोई फ़िजीकल प्राब्लम हो । या पति मर चुका हो ? ये महाभारत में भी क्या महाराज पान्डु के मरने के बाद कुन्ती ने बच्चे नियोग विधि से पैदा किये । ( देवताओं से फ़िजीकल रिलेशन द्वारा । ) तो क्या कर्ण भी नियोग विधि से पैदा हुआ ? पान्डवों की तरह ? इस पर जरा प्रकाश डालिये । शुक्रिया ।..( विनोद त्रिपाठी  ई मेल से । )
मेरी बात - भारतीय पौराणिक इतिहास में नियोग पद्धति से पैदा होने वालों की एक लम्बी लिस्ट है । जिसमें कर्ण । युधिष्ठर । भीम । अर्जुन । नकुल । सहदेव आदि पांडव हैं । इन्ही के पिता पांडु । ताऊ धृतराष्ट्र । चाचा विदुर भी नियोग से उत्पन्न हुये थे । परशुराम जी के पिता जमदग्नि ऋषि और उनके मामा । ( भृगु ऋषि जो परशुराम के बाबा GRAND FATHER लगते थे । उनके द्वारा दी गयी खीर खाकर । औरतों द्वारा पीपल और गूलर वृक्ष के आलिंगन से हुये थे । ) भी नियोग से पैदा हुये थे ।
अयोध्या के महाराज दशरथ के चारों पुत्र राम । लक्ष्मण । भरत । शत्रुहन भी । दशरथ के रिश्ते के बहनोई । श्रंगी ऋषि द्वारा । पुत्रेष्टि यग्य में आहुति देने । और परिणाम स्वरूप चरु यानी यग्य फ़ल रूपी खीर का प्रसाद यग्य से मिलने पर । रानियों द्वारा उसको खाने पर पैदा हुये थे । ) ईसामसीह भी नियोग से उत्पन्न हुये थे । हनुमान जी भी शंकर जी और अंजनी के नियोग से उत्पन्न हुये थे । इन प्रमुख और प्रसिद्ध लोगों के अलावा नियोग से पैदा होने वालों की संख्या अच्छी खासी है ।.. यह तो रही खास या किसी भी तरह की दिव्यता से जुङे लोगों की बात । अब जैसा कि आपने लिखा है । सामान्य स्त्री पुरुषों द्वारा नियोग ? जैसे किसी पुरुष के वीर्य में यह क्षमता नहीं हैं कि वह अपनी औरत को गर्भवती कर सके ।..या वह शारीरिक रूप से इतना अशक्त है कि अपनी पत्नी से संभोग नहीं कर सकता । ऐसी स्थिति में किसी दूसरे पुरुष द्वारा नियोग कैसे होता है ? और उसकी विधि क्या है ?
..आपकी बात का उत्तर देने से पहले मुझे एक बहुत मजेदार बात याद आती है ।..एक आदमी का बाप मर गया । वो बिलकुल नहीं रोया । माँ मरी । अब भी नहीं रोया । बहन मरी । भाई मरा । फ़िर भी नहीं रोया । लेकिन बीबी मरी..तो फ़ूट फ़ूटकर रोया । लोगों को बङी हैरत हुयी । अजीब आदमी है । माँ । बाप । भाई । बहन किसी के मरने पर एक आँसू तक नहीं निकला । बीबी के मरने पर बिलख बिलखकर रो रहा है ।..तब उस आदमी ने कहा । मुझे गलत मत समझो । भाईयो । जब बाप मरा । तो बाप की उमर वाले लोगों ने कहा । चिंता न करो । हम तुम्हारे बाप के समान हैं ( यानी खुद को अनाथ मत समझो । ) माँ के मरने पर भी उस उमर की औरतों ने ऐसा ही कहा । भाई के मरने पर । बहन के मरने पर । मुझे ये भी दूसरे मिल गये ।..पर बीबी के मरने पर..किसी एक भी औरत ने यह नहीं कहा । चिंता न करो । मैं तुम्हारी बीबी के समान हूँ ?? एक चुटकले जैसी यह कहानी हमारी नियोग पद्धति के बारे में बहुत कुछ कहती है ।
हिन्दू शास्त्रों में संतान उत्पत्ति में असमर्थ लोगों के लिये कई तरह के तरीके बताये हैं । जैसे कि विधवा औरत या किसी अक्षम पुरुष की पत्नी के लिये उसके देवर या ऐसे ही किसी संबन्धी द्वारा पूरे शरीर पर घी आदि का लेपन करके । तथा उस औरत द्वारा पूरे शरीर पर पीली पडुआ मिट्टी ( जो मुल्तानी मिट्टी जैसी होती है । ) का लेप करके । इतने दिनों तक संभोग करना चाहिये । जब तक गर्भ ठहर न जाय..आदि ।..अब क्योंकि प्राचीन समय में धर्म । कर्म । पाप । पुण्य । स्वर्ग । नरक आदि का आज की अपेक्षा अधिक बोलबाला था । अधिक दबदबा था । गाय आपसे मर जाय । सजा समाज देगा ? कोई धार्मिक सामाजिक गलती हो जाय । तो भी सजा धार्मिक ठेकेदार या ऐसे ही लोग देंगे । कहने का अर्थ हमारा सामाजिक कानून धर्म पुस्तकों में लिखे नियम से संचालित हो रहा था ।..इस तरह के माहौल में । सही बात कहने वाले । मजा लेने वाले । मौके का फ़ायदा उठाने वाले । उस समय भी । किसी समय भी । आज भी ..ये तीन तरह के लोग हमेशा रहे हैं । अब क्योंकि हमारी सनातन धर्म परम्परा आदिकाल से ही ब्राह्मणों । पंडितो । क्षत्रियों । ऋषियों । मुनियों आदि के हाथ रही । यानी इन्होंने जो कह दिया । वही सत्य हो गया । पंडित जो कहे । वही पत्रा में लिखा है ।
..परन्तु एक भारी अंतर था । शुरूआत के ब्राह्मण ( सबसे ऊँचे । बृह्म का हकीकी ग्यान रखने वाले । बृह्म में स्थित । बृह्म में विचरण करने वाले । या सीधी पहुँच रखने वाले थे । ) पंडित ( उस विषय के वास्तविक विद्वान । ) आदि वस्तुस्थिति का सही ग्यान रखते थे । पर समय गुजरने के साथ साथ उस पर लीक पीटने वाले ज्यादा रह गये ।..अब क्योंकि ये लोग दिव्यगुणों ( जिसके अन्य तत्व होते हैं । साधारण इंसान 5 तत्वों के बारे में ही जानता है । जबकि कुल तत्व 32 होते हैं । ) से वाकिफ़ नहीं थे । वास्तविक नियोग का रहस्य नहीं जानते थे ? और जीव बुद्धि द्वारा यही सोच सकते थे कि स्त्री पुरुष जब तक संभोग करके वीर्य का शुक्राणु और स्त्री डिम्ब का अंडाणु नहीं मिलायेंगे । संतान पैदा नहीं होगी । यह उसी तरह का मजाकिया सवाल है कि पहले मु्र्गी हुयी या अंडा ? अगर आप कहें । मुर्गी । तो मुर्गी बिना अंडे के कहाँ से आयी ? अगर आपने कहा कि अंडा । तो बिना मुर्गी के अंडा कहाँ से आया ?..जबकि इसमें कोई बडी बात नहीं है । निसंदेह मुर्गी पहले हुयी ।
 हमारे पौराणिक इतिहास में इससे संबन्धित घटनाओं की भरमार है । क्या आपको वाल्मीकि द्वारा सीता पुत्र कुश को कुशा के तिनकों द्वारा बनाने की बात याद है ? क्या आपको बृह्मा द्वारा श्रीकृष्ण की परीक्षा लेने पर श्रीकृष्ण द्वारा एक महीने तक तमाम गोपिकाओं के डुप्लीकेट बना देने की याद है ? क्या आपको मालूम है । द्रोपदी यग्य अग्नि से पैदा हुयी ? जिसकी वजह से उसका एक नाम याग्यसेनी भी था । क्या आपको मालूम है कि मेघनाथ ने राम और उनकी सेना को भृमित करने के लिये माया सीता का निर्माण किया था ? क्या आपको मालूम है । सीताहरण से पहले ही उसका स्थान नकली सीता ले चुकी थी । कितने उदाहरण बताऊँ । शुरू में आपका बाप परमात्मा अकेला ही था । तब उसने इच्छा व्यक्त की । मैं एक से अनेक हो जाऊँ । ( ये पूर्ण अवस्था में होता है । ) बताइये । उस समय संभोग करने के लिये कौन सी औरत मौजूद थी ? जो बच्चे पैदा करती । इससे निम्न मंडलों की सृष्टि भी ऐसे ही हुयी । जिसे संकल्प सृष्टि कहते हैं । इच्छानि सृष्टि नाम की ये योग सिद्धि या उपलब्धि एक उच्चग्यान द्वारा प्राप्त होती है । जो इन दिव्यात्माओं को प्राप्त थी । पुरुष के वीर्य से निकला । एक चेतन शुक्राणु । जो स्त्री की योनि में डिम्ब से क्रिया करके संतान का निर्माण करता है । उसका निर्माण शरीर से नहीं होता । बल्कि ये चेतन तत्व स्वतः विधमान है ।
अब अदृश्य प्रकृति और चेतन के इस रहस्य को जानने वाले अपनी क्षमता अनुसार उसका मनचाहा उपयोग कर लेते हैं । जो क्रिया संतान निर्माण हेतु स्त्री के गर्भ में होती है । ( वहाँ भी तो प्रकृति ही का कार्य है । ) वही वे चेतन केन्द्रक का बाहर प्रयोग करके उस पर प्रकृति के आवश्यक मैटेरियल आवरण चढा देते हैं । और नये शरीर का जन्म हो जाता है । क्योंकि जो धर्म इतिहास द्रोपदी को भरी सभा में अपने ही घरवालों द्वारा नंगा किये जाने की बात लिखने की हिम्मत रखता है । जो राम के पिता दशरथ को संतानोत्पति में अक्षम कहने की हिम्मत रखता है । उसे फ़िर ये लिखने में क्या आपत्ति हो सकती थी ? कि व्यास ने पांडु । धृतराष्ट । विदुर की माँ के साथ संभोग करके उनको पैदा किया था ? जो इतिहास ये बता सकता है कि स्वर्ग के राजा देवराज इन्द्र ने गौतम नारी अहिल्या के साथ छल से संभोग किया था । और अहिल्या संभोग से पहले ही जान गयी थी कि उसके साथ यौन सहवास करने वाला उसका पति गौतम नहीं कोई और है । अपनी लडकी अंजनी यानी हनुमान की माँ द्वारा देख लेने पर उससे ये कहना कि अपने पिता को मत बताना ।
जो इतिहास ये सब लिखने की हिम्मत रखता है । उसे ये लिखने में क्या संकोच होगा कि कुन्ती ने देवताओं से कामभोग कर बच्चे पैदा किये । क्योंकि उसका पति अक्षम था । या पौराणिक कथाओं में औरतों के विचलित होने या कामभावना में बहक जाने के किस्से हैं नहीं क्या ? साफ़ साफ़ लिखे गयें हैं ।..तो उन्ही धर्मगृन्थों का सहारा लेकर बाद में समाज के लोगों ने दैहिक संभोग को नियोग बता दिया । क्योंकि वे कल्पना भी नहीं कर सकते थे समागम के बिना भी देह का निर्माण हो सकता है । आप उस समय की बात छोङ दें । इस समय औरतें जब पति के द्वारा बच्चा पैदा नहीं होता । तो अपनी कदर कम होने के डर से । बच्चे की अत्यधिक इच्छा से । वंश चलाने आदि की इच्छा से । बिना किसी धार्मिक क्रियाकलाप के । बिना पडुआ मिट्टी लेपन करे । उल्टे परफ़्यूम आदि से चमाचम होकर । इच्छित पुरुष के पास चली जाती हैं ।
 तो निष्कर्ष यही है कि शास्त्रों की देखादेखी । जो नियम बनाकर कि शास्त्र इसकी इजाजत देते हैं ?? स्त्री पुरुष को नियोग के नाम पर संभोग की छूट दी गयी । वो दरअसल नियोग नहीं संभोग था । संभोग है । लेकिन व्यास प्लस हस्तिनापुर की रानियों द्वारा । कुन्ती प्लस देवताओं द्वारा । श्रंगी ऋषि का यग्य चरु प्लस दशरथ की तीनों रानियाँ का वास्तव में नियोग था । जिसमें पावरफ़ुल योगी द्वारा  संकल्प शक्ति से स्त्री गर्भ में प्रतिष्ठित कर दिया जाता है । इसको असली नियोग कहते हैं । अधिक शक्ति वाले योगी को स्त्री शरीर की आवश्यकता और उसमें नौ माह तक बच्चे को पोषण देने की भी आवश्यकता नहीं होती । वह अदृश्य प्रकृति ( जो कहीं लन्दन में नहीं है । जहाँ आप बैठे हो । या कोई भी स्थान हो । उसके कण कण में ये चेतन तत्व और प्रकृति तत्व मौजूद हैं । जो आपस में निरंतर गति करते हुये संभोग सा कर रहे हैं । इसीलिये शास्त्रों में लिखा है । जड प्रकृति चेतन पुरुष से निरंतर संभोग कर रही है । ) से ही वह कार्य ले लेता है । जो स्त्री गर्भ में सम्पन्न होता है । यही श्रीकृष्ण जानते थे । यही वाल्मीकि जानते थे । यही रावण जानता था । यही मेघनाथ जानता था ।

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

na jane kitne jahilo ne hmare drm Ko gnda kr rkha hai ulti sidhi bate Google pr dal kr, dhnyawaad aapka , aisi aur gltfhmiya door krte rhiye

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326