मुल्ला नसरुद्दीन एक रात को सोया है । और सपना देख रहा है कि भाग रहा हूं । भाग रहा हूं । तेजी से भाग रहा हूं । एक सिंह पीछे लगा हुआ है । और वह करीब आता जा रहा है । इतना करीब कि उसकी सांस पीठ पर मालूम पड़ने लगी । तब तो मुल्ला ने सोचा कि - मारे गये । अब बचना मुश्किल है । और जब सिंह ने पंजा भी उसकी पीठ पर रख दिया । तो घबड़ाहट में उसकी नींद खुल गई । देखा तो और कोई नहीं -पत्नी...। हाथ उसकी पीठ पर रखे है ।
पत्नियां नींद में भी ध्यान रखती हैं कि कहीं भाग तो नहीं गये । कहीं पड़ोसी के घर में तो नहीं पहुंच गये ।
मुल्ला ने कहा - माई । कम से कम रात तो सो लेने दिया कर । दिन में जो करना हो, कर । और क्या मेरी पीठ पर सांसे ले रही थी कि मेरी जान निकली जा रही थी । यह कोई ढंग है ।
एक दिन सुबह सुबह बैठकर अपने मित्रों को सुना रहा था कि शेर के शिकार को गया था । घंटों हो गये । शिकार मिले ही नहीं । सब मित्र थक गये । मैंने कहा - मत घबड़ाओ । मुझे आवाज देनी आती है । जानवरों की । तो मैंने सिंह की आवाज की । गर्जना की । क्या मेरी गर्जना करनी थी कि फौरन एक गुफा में से सिहंनी निकल कर बाहर आ गयी । धड़ाधड़ हमने बंदूक मारी । सिंहनी का फैसला किया ।
मित्रों ने कहा - अरे, तो तुम्हें इस तरह की आवाज करनी आती है । जरा यहां करके हमें बताओ तो । कैसी आवाज की थी ?
मुल्ला ने कहा - भाई ! यहां न करवाओ तो अच्छा ।
नहीं माने मित्र कि - नहीं, जरा करके, जरा सा तो बता दो ।
जोश चढ़ा दिया । तो उसने कर दी आवाज । और तत्काल उसकी पत्नी ने दरवाजा खोला । और कहा - क्यों रे, अब तुझे क्या तकलीफ हो गयी ? मुल्ला बोला - देखो । सिहंनी हाजिर । इधर आवाज दी । तुम देख लो । खुद अपनी आंखों से देख लो । पत्नी खड़ी है विकराल रूप लिये वहां । हाथ में अभी भी बेलन उसके ।
मुल्ला ने कहा - अब तो मानते हो । कि मुझे आती है जानवरों की आवाज । रात तुम अगर ऐसे सपने देखोगे । ऐसी आवाजें बोलोगे । ऐसी आवाजें निकालोगे । रात देखो, लोग क्या क्या आवाजें निकालते हैं ? कभी उठकर बैठकर निरीक्षण करने जैसा होता है ।
मैं वर्षो तक सफर करता रहा । तो मुझे अकसर यह झंझट आ जाती थी । रात एक ही डिब्बे में किसी के साथ सोना । एक बार तो यूं हुआ । चार आदमी डिब्बे में । मगर अदभुत संयोग था । चमत्कार कहना चाहिए कि पहले आदमी ने जो घुर्राहट शुरू की । तो मैंने कहा कि - आज सोना मुश्किल । मगर उसके ऊपर की बर्थ वाले ने जवाब दिया । तो मैंने कहा - पहला तो कुछ नहीं है - नाबालिग । दूसरा तो गजब का था । मैंने कहा - आज की रात तो बिलकुल गयी ।
और उनमें ऐसे जवाब सवाल होने लगे । संगत छिड़ गयी । तीसरा थोड़ी देर चुप रहा । जो मेरे ऊपर की बर्थ पर था । जब उसने आवाज दी । तब तो मैं उठकर बैठ गया । मैंने कहा - अब बेकार है । अब चेष्टा ही करनी बेकार है । और उन तीनों में क्या साज सिंगार छिड़ा ।
थोड़ी देर तक तो मैंने सुना । मैंने कहा कि - यह तो मुश्किल मामला है । यह पूरी रात चलने वाला है । तो मैंने भी आंखें बंद की । और फिर मैं भी जोर से दहाड़ा । वे तीनों में क्या साज सिंगार छिड़ा ।
बोले कि - भाईजान ! अगर आप इतनी जोर से नींद में और घुर्रायेंगे । तो हम सोंयेगे । कैसे ?
मैंने कहा - सो कौन रहा है मूर्ख । मैं जग रहा हूं । और तुम्हें चेतावनी दे रहा हूं कि अगर तुमने हरकत की । न मैं सोऊंगा । न तुम्हें सोने दूंगा । सो तुम रहे हो । मैं जग रहा हूं । मैं बिल्कुल जग कर आवाज कर रहा हूं । नींद में मैं आवाज नहीं करता । तुम सम्हल कर रहो । नहीं तो मैं...रात भर मैं भी तुम्हें नहीं सोने दूंगा ।
लोग सोते क्या हैं । रात में भी सुर सिंगार चलता है । और क्या जवाब सवाल । और फिर उनके भीतर क्या चल रहा है । वह तुम सोच सकते हो । कैसी कैसी मुसीबतों में से गुजर रहे होंगे । फिर सुबह अगर थके मांदे उठे । तो आश्चर्य क्या । सोये ही नहीं - ओशो ।
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भक्त सिर्फ प्रतीक्षा करता है । प्रतीक्षा का अर्थ है । कबीर कहते हैं - आंख बंद करूं ? नाक रूंधू ? शीर्षासन करूं ? पता नहीं । ये तुझे राजी न पड़ेंगे । न पड़ेंगे । तो भक्त कहता है - मैं तो इतना ही कर सकता हूं कि आंख खोलकर द्वार पर बैठा तेरी प्रतीक्षा करूं । भक्त की सारी साधना प्रतीक्षा है । और प्रतीक्षा से बड़ी कोई साधना नहीं है । क्योंकि प्रतीक्षा सबसे कठिन है । साधना में कुछ तो करने को रहता है । तो तुम व्यस्त रहते हो । माला जप रहे हो । बैठे हो । पूजन कर रहे हो । बैठे हो आसन जमा कर । प्राणायाम कर रहे हो । कुछ करने को रहता है । मन उलझा रहता है । आलंबन रहता है । मन लगा रहता है । भक्त सिर्फ प्रतीक्षा करता है । प्रतीक्षा का अर्थ है । मन शून्य हो । तो ही प्रतीक्षा हो सकती है । विचार बीच में न हो । अन्यथा मेहमान आएगा । और अगर विचार बीच में रहे । तो तुम देख न पाओगे । तो भक्त निर्विचार होकर प्रतीक्षा करता है । सब हटा देता है विचार - ओशो ।
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जीवन की सच्चाई - जीवन झाग का बुलबुला है । जो उसे ऐसा नहीं देखते । वे उसी में डूबते । और नष्ट हो जाते हैं । किंतु जो इस सत्य के प्रति सजग होते हैं । वे एक ऐसे जीवन को पा लेने का प्रारंभ करते हैं । जिसका कि कोई अंत नहीं होता है ।
एक फकीर कैद कर लिया गया था । उसने कुछ ऐसी सत्य बातें कहीं थीं । जो कि बादशाह को अप्रिय थीं । उस फकीर के किसी मित्र ने कैदखाने में जाकर उससे कहा - यह मुसीबत व्यर्थ क्यों मोल ले ली ? न कही होती वे बातें । तो क्या बिगड़ता था ?
फकीर ने कहा - सत्य ही अब मुझसे बोला जाता है । असत्य का ख्याल ही नहीं उठता । जब से जीवन में परमात्मा का आभास मिला । तब से सत्य के अतिरिक्त कोई विकल्प ही नहीं रहा है । फिर यह कैद तो घड़ी भर की है ।
किसी ने जाकर यह बात बादशाह से कह दी । बादशाह ने कहा - उस पागल फकीर को कह देना कि कैद घड़ी भर की नहीं । जीवन भर की है । जब यह फकीर ने सुना । तो खूब हंसने लगा । और बोला - प्यारे बादशाह को कहना कि उस पागल फकीर ने पूछा है कि क्या जिंदगी घड़ी भर से ज्यादा की है ?
सत्य जीवन जिन्हें पाना हो । उन्हें इस तथाकथित जीवन की सत्यता को जानना होगा । और जो इसकी सत्यता को जानने का प्रयास करते हैं । वे पाते हैं कि एक स्वप्न से ज्यादा न इसकी सत्ता है । और न अर्थ है ।
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