30 अगस्त 2011

फ्रायड ठीक कहता है



बुद्ध परम होश हैं । शुद्ध बोध हैं । खुले आकाश जैसे हैं । वे निश्चित नहीं है । निश्चित होने को क्या है ? वे अनिश्चित भी नहीं है । अनिश्चित होने का क्या है ? केवल वही अनिश्चित हो सकता है । जो निश्चित की खोज में है । मन सदा अनिश्चित रहता है । और निश्चय की खोज करता है । मन सदा कन्फ्यूज रहता है । और क्लैरिटी की तलाश करता है । बुद्ध ने मन को ही गिरा दिया है । और मन के साथ सारे विभ्रम को । सारे निश्चय अनिश्चय को,सब कुछ को गिरा दिया है - ओशो ************* एक काफिला सफ़र के दौरान अंधेरी सुरंग से गुजर रहा था । उनके पैरों में कंकरिया चुभी । कुछ लोगों ने इस ख्याल से कि किसी और को ना चुभ जाये । नेकी की खातिर उठाकर जेब में रख ली । कुछ ने ज्यादा उठाई । कुछ ने कम । जब अँधेरी सुरंग से बाहर आये । तो देखा । वो हीरे थे । जिन्होंने कम उठाये । वो पछताए कि ज्यादा क्यों नहीं उठाए । जिन्होंने नहीं उठाए । वो और पछताए । दुनिया में जिन्दगी की मिसाल इस अँधेरी सुरंग जैसी है । और नेकी यहाँ कंकरियों की मानिंद है । इस जिंदगी में जो नेकी की । वो आखिर में हीरे की तरह कीमती होगी । और इन्सान तरसेगा कि और ज्यादा क्यों ना की ।
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मन और सेक्स । फ्रायड ठीक कहता है कि मनुष्य का मन सेक्स के आसपास ही घूमता है । लेकिन वह यह गलत कहता है कि सेक्स बहुत महत्त्वपूर्ण है । इसलिए घूमता है । नहीं । घुमने का कारण है - वर्जना । इनकार । विरोध । निषेध । घूमने का कारण है - हजारो साल की परंपरा । सेक्स को टैबू, वर्जित, निन्दित, गर्हित सिद्ध करने वाली परंपरा । सेक्स को इतना महत्त्वपूर्ण बनाने वालो में साधू संतो, महात्माओ का हाथ है । उन्होंने तख्तियां लटकाई वर्जना की । यह बड़ा उल्टा मालूम पड़ेगा । लेकिन यही सत्य है । और कहना ज़रूरी है । मनुष्य जाति को सेक्सुअलिटी की, कामुकता की तरफ ले जाने का काम महात्माओ ने ही किया है । जितने जोर से वर्जना लगाई है उन्होंने ।

आदमी उतने जोर से आतुर होकर भागने लगा है । इधर वर्जना लगा दी है । उसका परिणाम यह हुआ है कि सेक्स रग रग से फूटकर निकल पड़ा है । कविता - थोड़ी खोजबीन करो । ऊपर की राख हटाओ । भीतर सेक्स मिलेगा । चित्र देखो । मूर्ति देखो । सिनेमा देखो । और साधू संत इस वक़्त सिनेमा के बहुत खिलाफ हैं । और उन्हें पता नहीं कि सिनेमा नहीं था । तो भी आदमी यही करता था । कालिदास के ग्रन्थ पढो । कोई फिल्म इतनी अश्लील नहीं बन सकती । जितने कालिदास के वचन है । उठाकर देखो पुराना साहित्य । पुराणी मूर्तियां देखो । पुराने मंदिर देखो । जो फिल्म में है । वह पत्थरों में खुदा मिलेगा । लेकिन आँख नहीं खुलती हमारी । अंधे की तरह पीटते चले जाते है लकीरों को । सेक्स जब तक दमन किया जायेगा । और जब तक स्वस्थ खुले आकाश में उसकी बात न होगी । और जब तक एक एक बच्चे के मन से वर्जना की तख्ती नहीं हटेगी । तब तक दुनिया सेक्स के पागलपन से मुक्त नहीं हो सकती है । तब तक सेक्स एक रोग की तरह आदमी को पकडे रहेगा - ओशो ।
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कुतूहल, जिज्ञासा और मुमुक्षु । मुमुक्षु गुरु को खोजता है । जिज्ञासु शास्त्र को खोजता है । कुतूहली किसी से भी पूछ लेता है । मनुष्य तीन तरह से पूछ सकता है । एक कुतूहल होता है - बच्चों-जैसा । पूछने के लिए पूछ लिया । कोई जरूरत न थी । कोई प्यास भी न थी । कोई प्रयोजन भी न था । ऐसे ही मन की खुजली थी । उठ गया प्रश्न । पूछ लिया । उत्तर मिले तो ठीक । न मिले तो ठीक । दुबारा पूछने का भी खयाल नहीं आता । छोटे बच्चे जैसा पूछते हैं । रास्ते से गुजर रहे हैं । पूछते हैं - यह क्या है ? वृक्ष क्या है ? वृक्ष हरे क्यों हैं ? सूरज सुबह क्यों निकलता है । रात क्यों नहीं निकलता ? अगर तुमने उत्तर दिया । तो कोई उत्तर सुनने के लिए उनकी प्रतीक्षा नहीं है । जब तुम उत्तर दे रहे हो । तब तक वे दूसरा प्रश्न पूछने चले गये । तुम उत्तर न भी दो । तो भी कुछ जोर न डालेंगे कि उत्तर दो । तुम दो या न दो । यह असंगत है । प्रसंग के बाहर है । बच्चा पूछने के लिए पूछ रहा है । बच्चा केवल बुद्धि का अभ्यास कर रहा है । जैसा पहली दफे जब बच्चा चलता है । तो बारबार चलने की कोशिश करता है । कहीं पहुंचने के लिए नहीं । क्योंकि अभी बच्चे की क्या मंजिल है । अभी तो चलने में मजा लेता है । अभी तो पैर चला लेता है । इससे ही बड़ा प्रसन्न होता है । नाचता है कि मैं भी चलने लगा । अभी चलने का कोई संबंध मंजिल से नहीं है । अभी चलना अपने आप में ही अभ्यास है । ऐसा ही बच्चा जब बोलने लगता है । तो सिर्फ बोलने के लिए बोलता है । अभ्यास करता है । उसके बोलने में कोई अर्थ नहीं है । पूछना जब सीख लेता है । तो पूछने के लिए पूछता है । पूछने में कोई प्रश्न नहीं है । सिर्फ कुतूहल है । तो एक तो उस तरह के लोग हैं । वे बचकाने हैं । जो परमात्मा के संबंध में भी कुतूहल से पूछते हैं । मिले उत्तर, ठीक । न मिले उत्तर, ठीक । और कोई भी उत्तर मिले । उनके जीवन में उस उत्तर से कोई भी फर्क न होगा । तुम ईश्वर को मानते रहो । तो तुम वैसे ही जीओगे । तुम ईश्वर को न मानो । तो भी तुम वैसे ही जीओगे । यह बड़ी हैरानी की बात है कि नास्तिक और आस्तिक के जीवन में कोई फर्क नहीं होता । तुम जीवन को देख के बता सकते हो कि यह आदमी आस्तिक है । या नास्तिक । नहीं, तुम्हें पूछना पड़ता है कि क्या आप आस्तिक हैं ? या नास्तिक । आस्तिक और नास्तिक के व्यवहार में रत्ती भर का कोई फर्क नहीं होता । वैसा ही बेईमान यह । वैसा ही दूसरा । वे सब चचेरे मौसेरे भाई हैं । कोई अंतर नहीं है । एक ईश्वर को मानता है । एक ईश्वर को नहीं मानता है । इतनी बड़ी मान्यता । और जीवन में रत्ती भर भी छाया नहीं लाती । कहीं कोई रेखा नहीं खिंचती । दुकानदारी में वह उतना ही बेईमान है । जितना दूसरा । बोलने में उतना ही झूठा है । जितना दूसरा । न इसका भरोसा किया जा सकता है । न उसका । क्या जीवन में कोई अंतर नहीं आता आस्था से ? तो आस्था दो कौड़ी की है । तो आस्था कुतूहल से पैदा हुई होगी । वह बचकानी है । ऐसी बचकानी आस्था को छोड़ देना चाहिए । सबसे सतह पर कुतूहल है । दूसरे थोड़ी गहराई बढ़े । तो जिज्ञासा पैदा होती है । जिज्ञासा सिर्फ पूछने के लिए नहीं है । उत्तर की तलाश है । लेकिन तलाश बौद्धिक है । आत्मिक नहीं है । तलाश विचार की है । जीवन की नहीं है । जिज्ञासा से भरा हुआ आदमी । निश्चित ही उत्सुक है । और चाहता है कि उत्तर मिले । लेकिन उत्तर बुद्धि में संजो लिया जायेगा । स्मृति का अंग बनेगा । जानकारी बढ़ेगी । ज्ञान बढ़ेगा । आचरण नहीं । जीवन नहीं । उस आदमी को बदलेगा नहीं । वह आदमी वैसा ही रहेगा । ज्यादा जानकार हो जाएगा । जिज्ञासा पैदा होती है - बुद्धि से । फिर एक तीसरा तल है । जिसको - मुमुक्षा कहा है । मुमुक्षा का अर्थ है । जिज्ञासा सिर्फ बुद्धि की नहीं है । जीवन की है । इसलिए नहीं पूछ रहे हैं कि थोड़ा और जान लें । इसलिए पूछ रहे हैं कि जीवन दांव पर लगा है । इसलिए पूछ रहे हैं कि उत्तर पर निर्भर होगा कि हम कहां जाएं । क्या करें । कैसे जियें । एक प्यासा आदमी पूछता है - पानी कहां है ? यह कोई जिज्ञासा नहीं है । मरुस्थल में तुम पड़े हो । प्यास जगती है । और तुम पूछते हो । पानी कहां है ? उस क्षण तुम्हारा रोआं रोआं पूछता है । बुद्धि नहीं पूछती । उस क्षण तुम यह नहीं जानना चाहते कि पानी की वैज्ञानिक परिभाषा क्या है । उस समय कोई तुमसे कहे कि पानी पानी क्या लगा रखा है । एचटूओ । विज्ञान का उपयोग करो । फार्मूला जाहिर है कि हाइड्रोजन और ऑक्सीजन से मिलकर पानी बनता है । दो मात्रा हाइड्रोजन, एक मात्रा ऑक्सीजन - एच टू ओ । लेकिन जो आदमी प्यासा है । उसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि पानी कैसे बनता है । यह सवाल नहीं है । पानी क्या है । यह भी सवाल नहीं है । यह कोई जिज्ञासा नहीं है । पानी के संबंध में जानकारी बढ़ाने के लिए । यहां जीवन दांव पर लगा है । अगर पानी नहीं मिलता घड़ी भर और । तो मृत्यु होगी । पानी पर ही जीवन निर्भर है । मृत्यु और जीवन का सवाल है । मुमुक्षा गुरु को खोजता है । जिज्ञासु शास्त्र को खोजता है । कुतूहली किसी से भी पूछ लेता है । कबीर उसको साधु कहते हैं । जो मुमुक्षु है । इसलिए उनका हर वचन इस बात को ध्यान में रखकर कहा गया है - सुनो भाई साधो । साधु का मतलब है - जो साधना के लिए उत्सुक है । जो साधक है । साधु का अर्थ है - जो अपने को बदलने के लिए, शुभ करने के लिए, सत्य करने के लिए आतुर है । जो साधु होने को उत्सुक है । साधु शब्द बड़ा अदभुत है । विकृत हो गया बहुत उपयाग से । साधु का अर्थ है - सीधा, सादा, सरल, सहज । साधु शब्द की बड़ी भाव भंगिमाएं हैं । और सीधा, सादा, सरल, सहज । यही साधना है । इसलिए कबीर कहते हैं - साधो, सहज समाधि भली । सहज हो रहो । सरल हो जाओ - ओशो । *********** प्रेम और सेक्स । आप जानकर हैरान होंगे - प्रेम और काम । प्रेम और सेक्स विरोधी चीजें हैं । जितना प्रेम विकसित होता है । सेक्स क्षीण हो जाता है । और जितना प्रेम कम होता है । उतना सेक्स ज्यादा हो जाता है । जिस आदमी में जितना ज्यादा प्रेम होगा । उतना उसमें सेक्स विलीन हो जाएगा । अगर आप परिपूर्ण प्रेम से भर जाएंगे । आपके भीतर सेक्स जैसी कोई चीज नहीं रह जाएगी । और अगर आपके भीतर कोई प्रेम नहीं है । तो आपके भीतर सब सेक्स है । सेक्स की जो शक्ति है । उसका परिवर्तन, उसका उदात्तीकरण प्रेम में होता है । अगर सेक्स से मुक्त होना है । तो सेक्स को दबाने से कुछ भी न होगा । उसे दबाकर कोई पागल हो सकता है । और दुनिया में जितने पागल हैं । उसमें से सौ में से नब्बे संख्या उन लोगों की है । जिन्होंने सेक्स की शक्ति को दबाने की कोशिश की है । और यह भी शायद आपको पता होगा कि सभ्यता जितनी विकसित होती है । उतने पागल बढ़ते जाते हैं । क्योंकि सभ्यता सबसे ज्यादा दमन सेक्स का करवाती है । सभ्यता सबसे ज्यादा दमन, सप्रेशन सेक्स का करवाती है । और इसलिए हर आदमी अपने सेक्स को दबाता है । सिकोड़ता है । वह दबा हुआ सेक्स विक्षिप्तता पैदा करता है । अनेक बीमारियां पैदा करता है । अनेक मानसिक रोग पैदा करता है । सेक्स को दबाने की जो भी चेष्टा है । वह पागलपन है । ढेर साधु पागल होते पाए जाते हैं । उसका कोई कारण नहीं है सिवाय इसके कि वे सेक्स को दबाने में लगे हुए हैं । और उनको पता नहीं है । सेक्स को दबाया नहीं जाता । प्रेम के द्वार खोलें । तो जो शक्ति सेक्स के मार्ग से बहती थी । वह प्रेम के प्रकाश में परिणत हो जाएगी । जो सेक्स की लपटें मालूम होती थीं । वे प्रेम का प्रकाश बन जाएंगी । प्रेम को विस्तीर्ण करें । प्रेम सेक्स का क्रिएटिव उपयोग है । उसका सृजनात्मक उपयोग है । जीवन को प्रेम से भरें । आप कहेंगे - हम सब प्रेम करते हैं । मैं आपसे कहूं । आप शायद ही प्रेम करते हों । आप प्रेम चाहते होंगे । और इन दोनों में जमीन आसमान का फर्क है । प्रेम करना । और प्रेम चाहना । ये बड़ी अलग बातें हैं । हममें से अधिक लोग बच्चे ही रहकर मर जाते हैं । क्योंकि हरेक आदमी प्रेम चाहता है । प्रेम करना बड़ी अदभुत बात है । प्रेम चाहना । बिलकुल बच्चों जैसी बात है । छोटे छोटे बच्चे प्रेम चाहते हैं । मां उनको प्रेम देती है । फिर वे बड़े होते हैं । वे और लोगों से भी प्रेम चाहते हैं । परिवार उनको प्रेम देता है । फिर वे और बड़े होते हैं । अगर वे पति हुए । तो अपनी पत्नियों से प्रेम चाहते हैं । अगर वे पत्नियां हुईं । तो वे अपने पतियों से प्रेम चाहती हैं । और जो भी प्रेम चाहता है । वह दुख झेलता है । क्योंकि प्रेम चाहा नहीं जा सकता । प्रेम केवल किया जाता है । चाहने में पक्का नहीं है । मिलेगा या नहीं मिलेगा । और जिससे तुम चाह रहे हो । वह भी तुमसे चाहेगा । तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी । दोनों भिखारी मिल जाएंगे । और भीख मांगेंगे । दुनिया में जितना पति पत्नियों का संघर्ष है । उसका केवल एक ही कारण है कि वे दोनों एक दूसरे से प्रेम चाह रहे हैं । और देने में कोई भी समर्थ नहीं है । इसे थोड़ा विचार करके देखना । आप अपने मन के भीतर । आपकी आकांक्षा प्रेम चाहने की है हमेशा । चाहते हैं । कोई प्रेम करे । और जब कोई प्रेम करता है । तो अच्छा लगता है । लेकिन आपको पता नहीं है । वह दूसरा भी प्रेम करना । केवल वैसे ही है । जैसे कि कोई मछलियों को मारने वाला आटा फेंकता है । आटा वह मछलियों के लिए नहीं फेंक रहा है । आटा वह मछलियों को फांसने के लिए फेंक रहा है । वह आटा मछलियों को दे नहीं रहा है । वह मछलियों को चाहता है । इसलिए आटा फेंक रहा है । इस दुनिया में जितने लोग प्रेम करते हुए दिखायी पड़ते हैं । वे केवल प्रेम पाना चाहने के लिए आटा फेंक रहे हैं । थोड़ी देर वे आटा खिलाएंगे, फिर..। और दूसरा व्यक्ति भी जो उनमें उत्सुक होगा । वह इसलिए उत्सुक होगा कि शायद इस आदमी से प्रेम मिलेगा । वह भी थोड़ा प्रेम प्रदर्शित करेगा । थोड़ी देर बाद पता चलेगा । वे दोनों भिखमंगे हैं । और भूल में थे । एक दूसरे को बादशाह समझ रहे थे । और थोड़ी देर बाद उनको पता चलेगा कि कोई किसी को प्रेम नहीं दे रहा है । और तब संघर्ष की शुरुआत हो जाएगी । दुनिया में दाम्पत्य जीवन नर्क बना हुआ है । क्योंकि हम सब प्रेम मांगते हैं । देना कोई भी जानता नहीं है । सारे झगड़े के पीछे बुनियादी कारण इतना ही है । और कितना ही परिवर्तन हो । किसी तरह के विवाह हों । किसी तरह की समाज व्यवस्था बने । जब तक जो मैं कह रहा हूं । अगर नहीं होगा । तो दुनिया में स्त्री और पुरुषों के संबंध अच्छे नहीं हो सकते । उनके अच्छे होने का एक ही रास्ता है कि हम यह समझें कि प्रेम दिया जाता है । प्रेम मांगा नहीं जाता । सिर्फ दिया जाता है । जो मिलता है । वह प्रसाद है । वह उसका मूल्य नहीं है । प्रेम दिया जाता है । जो मिलता है । वह उसका प्रसाद है । वह उसका मूल्य नहीं है । नहीं मिलेगा । तो भी देने वाले का आनंद होगा कि उसने दिया । अगर पति पत्नी एक दूसरे को प्रेम देना शुरू कर दें । और मांगना बंद कर दें । तो जीवन स्वर्ग बन सकता है । और जितना वे प्रेम देंगे । और मांगना बंद कर देंगे । उतना ही अदभुत जगत की व्यवस्था है- उन्हें प्रेम मिलेगा । और उतना ही वे अदभुत अनुभव करेंगे । जितना वे प्रेम देंगे । उतना ही सेक्स उनका विलीन होता चला जाएगा - ओशो ।
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अनिद्रा एक जीवन शैली है - अंतिम । जगह जगह ऐसे लोगों के लिए विशेष ध्यान केंद्र होने चाहिए । जो अनिद्रा से पीड़ित हैं । ध्यान उन्हें शिथिल होने में सहयोगी होगा । और जब वे ध्यान करें । तो उन्हें यह बता दिया जाना चाहिए कि केवल ध्यान से काम नहीं चलेगा । वह उपचार का केवल आधा हिस्सा है । तुम्हें शारीरिक श्रम भी करना पड़ेगा । और मेरा मानना है कि जो लोग अनिद्रा से पीड़ित हैं । वे कुछ भी करने को तैयार होंगे । और कड़े श्रम की अपनी खूबसूरती है । लकड़ी काटते हुए तुम पसीना पसीना हो जाओ । और अचानक ठंडी हवा तुम्हारे शरीर से टकराए । शरीर में ऐसी प्यारी अनुभूति होगी कि जो व्यक्ति परिश्रम नहीं करता । वह उसे समझ भी नहीं सकता । गरीब आदमी के भी अपने ऐश्वर्य हैं । केवल वही उनके बारे में जानता है - ओशो ।
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सेक्स को समझें । युवकों से मैं कहना चाहता हूँ कि तुम्हारे माँ बाप तुम्हारे पुरखे, तुम्हारी हजारों साल की पीढ़ियाँ सेक्स से भयभीत रही हैं । तुम भयभीत मत रहना । तुम समझने की कोशिश करना उसे । तुम पहचानने की कोशिश करना । तुम बात करना । तुम सेक्स के संबंध में आधुनिक जो नई खोजें हुई हैं - उसको पढ़ना । चर्चा करना । और समझने की कोशिश करना कि क्या है सेक्स ? क्या है सेक्स का मेकेनिज्म ? उसका यंत्र क्या है ? क्या है उसकी आकांक्षा ? क्या है प्यास ? क्या है प्राणों के भीतर छिपा हुआ राज इसको समझना । इसकी सारी की सारी वैज्ञानिकता को पहचानना । इससे भागना । 'एस्केप' मत करना । आँख बंद मत करना । और तुम हैरान हो जाओगे कि तुम जितना समझोगे । उतने ही मुक्त हो जा जाओगे । तुम जितना समझोगे । उतने ही स्वस्थ हो जाओगे । तुम जितना सेक्स के फैक्ट को समझ लोगे । उतना ही सेक्स के 'फिक्शन' से तुम्हारा छुटकारा हो जाएगा - ओशो ।
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बेनियाजी हद से गुजरी बन्दा परवर कब तलक । हम कहेंगे हाले दिल और आप फरमायेंगे कया ।
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देखी जो नब्ज़ मेरी तो हँसकर बोला हक़ीम । जा दीदार कर उसका जो तेरे हर मर्ज की दवा है । 
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ये संगदिलों की दुनिया है यहाँ संभल के चलना ग़ालिब । यहाँ पलकों पे बिठाया जाता है नज़रों से गिराने के लिए । ********** 
एक बच्चे ने सारे सवालों के जवाब दिए । फिर भी मौखिक परीक्षा में फेल हो गया. क्यों ? सवाल के जवाब कुछ इस तरह थे । सवाल - टीपू सुल्तान की मृत्यु किस युद्ध में हुई थी ? जवाब - उसके आखिरी युद्ध में । सवाल - तलाक का प्रमुख कारण क्या है ? जवाब - शादी । सवाल - गंगा किस स्टेट में बहती है ? जवाब - लिक्विड स्टेट । सवाल - महात्मा गांधी का जन्म कब हुआ था ? जवाब - उनके जन्मदिन के दिन । सवाल - 6 लोगों के बीच 8 आम को तुम कैसे बांटोगे ? जवाब - मैंगो शेक बनाकर । सवाल - भारत में पूरे साल सबसे ज्यादा बर्फ कहां गिरती है ? जवाब - दारू के ग्लास में ।

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326