04 अगस्त 2011

पुरुष के पीछे होने में उसका हित है

नारी और क्रांति - जैसे हजारों वर्षों तक शूद्रों को समझा दिया था कि - तुम शूद्र हो । तो हजारों वर्षों तक धीरे धीरे वे भूल ही गए कि - वे आदमी हैं । वैसी ही स्थिति स्त्री के साथ हो गई है । वह सिर्फ छाया है पुरुष की । पुरुष के पीछे होने में उसका हित है । पुरुष से भिन्न और पृथक खड़े होने में उसका कोई अस्तित्व नहीं है । यह पहली बात समझ लेनी जरूरी है कि बिना आत्मा के भी नारी के जीवन में कोई आनंद, कोई मुक्ति, कोई सृजनात्मकता, कोई अभिव्यक्ति, उसके जीवन में कोई सुगंध हो सकती है ? ऐसे धर्म हैं । जो कहते हैं कि - नारी के लिए मोक्ष नहीं है । यह तो आपको पता ही होगा कि - मस्जिद में नारी के लिए प्रवेश नही है । मस्जिद में नारी के लिए प्रवेश नहीं है । आश्चर्यजनक है । मस्जिद सिर्फ पुरुषों के लिए है ? नारी की छाया भी मस्जिद के भीतर नहीं पड़ी है । मोक्ष में नारी के लिए प्रवेश नहीं है । ऐसे धर्म हैं । ऐसे धर्म हैं । जो घोषणा करते है - नारी नरक का द्वार है । ऐसे धर्म हैं । जिनके श्रेष्ठतम शास्त्र भी नारी के लिए अभद्रतम शब्दों का उपयोग करते हैं । और भी आश्चर्य की बात है कि जिन धर्मों ने, जिन धर्मगुरुओं ने, जिन साधु संन्यासियों और महात्माओं ने नारी को आत्मा मिलने में सबसे ज्यादा बाधा दी है । नारी अजीब पागल है । उन साधु संन्यासियों और महात्माओं को पालने का सारा ठेका नारियों ने ले रखा है । ये मंदिर और मस्जिद नारी के ऊपर चलते हैं । साधु और संन्यासी नारी के शोषण पर जीते हैं । और उनकी ही सारी की सारी करतूत और लंबा षड्यंत्र है कि - नारी को अस्तित्व नहीं मिल पाता । जो रोज रोज घोषणा करते हैं कि - नारी नरक का द्वार है । नारी उन्हीं के चरणों में दूर से, पास से छू तो नहीं सकती । क्योंकि छूने की मनाही है । दूर से नमस्कार करती रहती है । भीड़ लगाए रहती है । अभी मैं बंबई था । 1 महिला ने मुझे आकर कहा कि - 1 संन्यासी का, 1 महात्मा का प्रवचन चलता है । हजारों लोग सुनने इकट्ठे होते हैं । लेकिन कोई नारी उनका पैर नहीं छू सकती । लेकिन 1 दिन एक नारी ने भूल से उनका पैर छू दिया । महात्मा ने 7 दिन का उपवास किया - प्रायश्चित्त में । और इस प्रायश्चित्त का परिणाम यह हुआ कि नारियों की, लाखों नारियों की संख्या उनके दर्शन के लिए इकट्ठी हो गई कि बहुत बड़े महात्मा हैं । बेवकूफी की भी कोई सीमाएं होती है ? 1 नारी को नहीं जाना चाहिए था । फिर वहां और नारी को विरोध करना चाहिए था कि - वहां कोई भी नहीं जाएगा । लेकिन नारी बड़ी प्रसन्न हुई होगी कि बड़ा पवित्र आदमी है यह । नारी को छूने से 7 दिन का उपवास करके प्रायश्चित्त करता है । महान आत्मा है यह । नारियों के मन में भी यह ख्याल पैदा कर दिया है पुरुषों ने कि वे अपवित्र हैं । और उन्होंने उसे स्वीकार कर लिया है । उसे वे मानकर बैठ गई हैं । कितने आश्चर्य की बात है । ये जो महात्मा जिनके पैर छूने से 7 दिन का इन्होंने उपवास किया । ये नारी के पेट में 9 महीने रहे होंगे । और अगर अपवित्र होना है । तो हो चुके होंगे । अब बचना बहुत मुश्किल है - अपवित्रता से । और 1 नारी की गोद में बरसों बैठे रहे होंगे । खून उसका है । मांस उसका है । हड्डी उसकी है । मज्जा उसकी है । सारा व्यक्तित्व उसका है । और उसी के छूने से ये 7 दिन का इन्हें उपवास करना पड़ता है । क्योंकि वह - नरक द्वार है । साधु संन्यासियों से मुक्त होने की जरूरत है - नारी को । और जब तक वह साधु संन्यासियों के खिलाफ उसकी सीधी बगावत नहीं होती । और वह यह घोषणा नहीं करती कि नारी को नरक कहने वाले लोगों को कोई सम्मान नहीं मिल सकता है । नारी को अपवित्र कहने वाले लोगों की के लिए कोई आदर नहीं मिल सकता है । सीधा विद्रोह और बगावत चाहिए । तो नारी की आत्मा की यात्रा की पहली सीढ़ी पूरी होगी । जिन जिन देशों में धर्मों का जितना ज्यादा प्रभाव है । उन उन देशों में नारी उतनी ही ज्यादा अपमानित और अनादृत है । यह बड़ी हैरानी की बात है । धर्म का प्रभाव जितना कम हो रहा है । नारी का सम्मान उतना बढ़ रहा है । धर्म का जितना ज्यादा प्रभाव । नारी का उतना अपमान । यह कैसा धर्म है ? होना तो उल्टा चाहिए कि धर्म का प्रभाव बढ़े । तो सबका सम्मान बढ़े । सबकी गरिमा बढ़े । ओशो
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पढ़ो आकाश को । क्योंकि वही शास्त्र है । सुनो शून्य 0 को । क्योंकि वही मंत्र है । जीयो मृत्यु को । क्योंकि वही अमृत है । और गये शास्त्र में कि - भटके । और पकड़े शब्द कि - डूबे । लिया सहारा मंत्र का कि - किया छेद नाव में । और खोजना मत - अमृत को । क्योंकि उसे ही खोजते तो जन्म जन्म व्यर्थ ही गंवाये हैं । खोजो मृत्यु को । मिलो मृत्यु से । और अमृत के द्वार खुल जाते हैं । मृत्यु - अमृत का ही द्वार है ।
भूत और भविष्य सिर्फ़ अज्ञान है । मन की स्मृति ( भूत ) और कल्पना ( भविष्य ) चाह ( वासना ) ही वर्तमान है ।
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भूल्या मन भंवरा क्यूं फिरे । फिर रह्यो दिन और रात ।
माया के भूल्या ने जमड़ा ले ज्यासी । फिर रह्यो दिन और रात ।
गणपति हंसा छत्रपति । गया लख दोय च्यार ।
गोखा बेठ्या धरती तोलता । जाता ने लागी कोनी बार ।
किसकी छोरी और छोकरा । किसका भाई और बाप ।
भूखो आयो रीतो ही जासी । पाप पुण्य है तेरे साथ ।
उंची चढ़कर सुरता देख ले । उघड आयो तेरो भाग ।
गाडो भर्यो लेर काठ को । फुटेडी हांडी में आग ।
उग सोई फूल शाम कुम्हलाये । चिनेडी दिवार गिरे ।
पर जनम सोई मर ज्याए । मिनख जनम न दुबार मिले ।
खाट नहीं रे आग बाणिया । खर्ची लेल्यो अपने साथ ।
काजी मोहम्मद बोलिया । लेखो है साहिब के हाथ ।
OPENNESS - It is impossible to know anything real unless you have known yourself. And the only way to know oneself is to live a life of vulnerability. openness.  Don't live in a closed cell. Don't hide yourself behind your mind. Come out. Once you come out you will become by and by aware of millions of things in you. You are not a one-room apartment, you have many rooms - you are a palace. But you have become accustomed to living on the porch and you have forgotten the palace completely. Many treasures are hidden in you, and those treasures constantly go on knocking, inviting. But you are almost deaf.This blindness, this deafness, this insensitivity , has to be broken - and nobody else can do it. Life is for those who share, Life is for those who love, Life is for those who are not too clinging to things - because then they become available to persons. OSHO 

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326