25 अगस्त 2011

हम परमात्मा को किस रिश्ते से याद करें ? पप्पी

नमस्कार जी ! मेरा नाम पप्पी है । मैं लालडू में रहती हूँ । मुझे आपके ब्लाग के बारे मे मेरी सहेली जोबनबीर कौर ने बताया है । जोबनबीर ने मुझे स्पेशली जोर दे देकर आपके ब्लाग पर जाने को कहा । जोबनबीर आपकी पाठक है ।
मैं भी पिछ्ले कई दिनों से लगातार आपका ब्लाग पढ रही हूँ । सब कुछ अच्छा लगा । जोबनबीर से मेरी मुलाकात जोबनबीर की शादी के बाद हुई । क्युँ कि मैं तो शुरू से लालडू में ही रहती हूँ । लेकिन जोबनबीर शादी के बाद लालडू में आयी । हम दोनों आज कल 1 ही कालोनी में रहती हैं ।
मेरे पति का नाम राजू सिंह बेदी है । उनकी गहनों की दुकान है । यानि वो सुनियारे हैं । मैं आपसे 1 बहुत जरुरी बात पूछना चाहती हूँ । ये तो सब जगह पढने को मिल गया । खासकर आपके ब्लाग पर भी ।
जैसे श्रीमद भगवत गीता में भी लिखा है कि - आत्मा अनादि । अजन्मी । अमर । अजर और अबिनाशी है । कबीर जी की वाणी में भी लिखा है कि - ये जीव ( आत्मा ) का आदि अन्त कोई भी नहीं जानता । आदि अन्त तो उसका होता है । जिसका जनम हुआ हो । जैसे शरीर पैदा होता है । और नष्ट हो जाता है ।
लेकिन जो अजन्मा है । उसका अन्त कौन जानेगा । इसलिये ये जीव ( आत्मा ) आदि अन्त रहित है । रामायण में भी श्री राम चन्द्र जी कह रहे हैं कि - ईश्वर अँश जीव अबिनाशी । इसी तरह हर दिव्यवाणी में ये बात अलग अलग ढंग से बताई गयी है ।
अब ये तो सुनी हुई और पढी हुई जानकारी के तहत पता लगा कि - हम आत्मा हैं । हमारा वास्तविक रूप आत्मा

है । ये शरीर जरुर हमारा है । लेकिन वास्तव में हम शरीर नहीं हैं । हम सब वास्तव में आत्मा हैं । अब मेरा जो प्रश्न है । वो ये है कि - हम परमात्मा को किस रिश्ते से याद करें ?
क्यूँ कि कोई उसे अपना सखा या मित्र कहकर याद करता है । कोई उसे दाता या मालिक या साहेब कहकर याद करता है । मीरा जी उसे अपने पति रुप में याद करती है । कोई उसे पिता रुप में याद करता है ।
तो आप ही बतायें कि - परमात्मा जो सर्वशक्तिमान । सर्वोच्च । सर्वसमर्थ और बेअन्त है । उसे हम किस रिश्ते से याद करें । या उससे कैसा रिश्ता मानते हुये उसकी भक्ति करें ।
मुझे तो परमात्मा को पिता के रुप में ही याद करना सबसे अच्छा लगता है । साथ में ये भी बताने की कृपा करे कि परमपिता परमेश्वर का शाब्दिक अर्थ क्या है ? परम + पिता और परम + ईश्वर । मुझे आपकी तरफ़ से बेहद सही जवाबों का जल्द इन्तजार रहेगा । नमस्कार ।
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नमस्कार पप्पी जी ! सत्यकीखोज पर आपके प्रथम शुभ आगमन पर हम सभी आपका हार्दिक स्वागत करते हैं । आपसे मिलकर अत्यन्त खुशी हुयी । जोबनवीर जी का बहुत बहुत धन्यवाद । जो आपको जोर दे देकर इस ब्लाग पर ले ही आयीं । वास्तव में सत्यकीखोज सिर्फ़ एक ब्लाग ही न होकर एक समान विचारों वाला सतसंगी परिवार है । जिसके सभी सदस्य आपस में प्रेम प्यार नोंक झोंक मीठा कङवा हँसी मजाक आदि सभी रसों से परिपूर्ण व्यवहार आपस में कर लेते हैं ।

दूसरे जो महत्वपूर्ण बात है । मैं इस ब्लाग को अपना ब्लाग न मानकर आप सभी का ही मानता हूँ । जोबनवीर जी और मेरे एक विचार में एकदम समानता है । हम दोनों जो भी काम करते हैं । जोर से और जोर दे देकर ही करते हैं । इसी वैचारिक एकता के चलते एक बार मैं इनके घर मेहमान बनकर गया । और  जोर दे देकर ( मतलब जबरदस्ती ) टिका ही रहा । जाने का नाम ही नहीं लिया । तब भी जोबनवीर जी ने मुझे जोर दे देकर भगाया ।
जोबनवीर की भाभी जी रूप कौर जी से शुरू हुआ ये सिलसिला आज उनके भाई सुरिन्दर जी । रूप जी की छोटी बहन नबरूप जी और उनसे जुङे बहुत से अन्य लोग मित्र रिश्तेदार के रूप में एक बङे परिवार के रूप में बदल गया है । सो अगेन थेंक्स जोबनवीर जी ! आपकी कौन सी नयी फ़िल्म रिलीज होने वाली है ?
चलिये थोङे से हँसी मजाक के बाद अब बातचीत शुरू करते हैं ।
ये शरीर जरुर हमारा है । लेकिन वास्तव में हम शरीर नहीं हैं । हम सब वास्तव में आत्मा हैं ।
- वास्तव में ये शरीर किराये का घर है । अपने दान आदि पुण्य रूपी भाग्य से जो किराया हमने अदा किया है । उसी किराये के आधार पर हमें यह शरीर स्वस्थ रोगी धन निर्धन सुख दुख आदि के साथ प्राप्त हुआ है । लेकिन इसका उपयोग सिर्फ़ अच्छा बुरा भोगना भर नहीं हैं । किराये के घर से अधिक ये एक गाङी हैं । जिसमें बैठकर हम इस दुर्लभ मनुष्य जीवन से नीचे की तरफ़ ( नरक नीच लोक आदि ) से लेकर ऊपर परम लक्ष्य परमात्मा के VVIP जोन तक की यात्रा करके उसे पा सकते हैं ।

अब मेरा जो प्रश्न है । वो ये है कि - हम परमात्मा को किस रिश्ते से याद करें ?
- वास्तव में परमात्मा को याद करने का सबसे श्रेष्ठ सुमरन सदगुरु द्वारा दी गयी नाम भक्ति ही है । जिसकी ही गुरुवाणी आदि तमाम सन्तवाणी में चर्चा की गयी है । और इस matter पर तो मेरे ब्लाग में भंडार ही भरा हुआ है । लेकिन जब तक किसी सच्चे सदगुरु द्वारा आपको नाम प्राप्त न हो । आप उसको आत्मा यानी निर्मल अति चमकीले प्रकाश के रूप में याद करें । और उसे प्रेम से साहेब कहते हैं । साहेब ।
क्यूँ कि कोई उसे अपना सखा या मित्र कहकर याद करता है । कोई उसे दाता या मालिक या साहेब कहकर याद करता है ।
- मैं तो किसी तरह याद नहीं करता । बिकाज न तो उसने मुझे कोई लव करने वाली दी । न बीबी दी । न साली दी । सर पे 1 लाख बाल दिये । बच्चे नहीं दिये । मून की टिकट और हनी की बाटल दोनों के पैसे खामखांह ही गये । फ़िर बताओ भला । मैं क्यूँ याद करूँ ?
मीरा जी उसे अपने पति रुप में याद करती है । कोई उसे पिता रुप में याद करता है ।
- मीरा जी के बारे में 99% विश्व के लोग यह नहीं जानते कि मीरा सार शब्द ग्यान की विलक्षण साधिका थीं । और 100 में से पूरे 100 नम्बर लेकर पास हुयी थी । वास्तव में वह खुद परमात्मा हो गयी थी । उन्होंने करोंङों जन्मों का लक्ष्य प्राप्त कर लिया था । फ़िर कौन पति ? किसका पति ?

वह खुद ही पति हो गयी थी । मीरा और कृष्ण की पति रूप भक्ति सिर्फ़ 13 वर्ष आयु तक थी । इसके बाद उन्हें रैदास जी द्वारा दीक्षा प्राप्त हो गयी । वे नाम सुमरन करने लगी - पायो जी मैंने नाम रतन धन पायो ।
अब क्योंकि एकदम तो सभी संस्कार कट नहीं जाते । अतः बाद में उन्होंने कृष्ण के बारे में भी कहा । उनसे सम्बन्धित मन्दिरों आदि में भी रही । पर अब बेचारे कृष्ण जी भी उनसे मिलने को हजार सिफ़ारिश लगायें । तो भी मिलना बहुत मुश्किल है । क्योंकि परमात्मा के उस VVIP जोन में हरेक को जाने की इजाजत नहीं है । जहाँ अपनी भक्ति से आज परम आदरणीय मीरा जी हैं ।
तो आप ही बतायें कि - परमात्मा जो सर्वशक्तिमान । सर्वोच्च । सर्वसमर्थ और बेअन्त है । उसे हम किस रिश्ते से याद करें । या उससे कैसा रिश्ता मानते हुये उसकी भक्ति करें ।
- आपकी जैसे मर्जी याद करो जी । मैं आपको God जी का मोबायल नम्बर दे दूँगा । आप डायरेक्ट बात कर लेना । ( आपके प्रश्न का उत्तर ऊपर दे चुका । इसलिये मजाक कर रहा हूँ । मैं लिखते लिखते बोर हो जाता हूँ । फ़िर ऐसी ही बातें करने लगता हूँ । आज मुझे बहुत लिखना पङा । यही हाल मैं आमने सामने के सतसंग में भी करता हूँ । )
मुझे तो परमात्मा को पिता के रुप में ही याद करना सबसे अच्छा लगता है ।
- और मुझे बङा बोरिंग लगता है । बताओ सवाल उसके । आप लोग मेरे पीछे पङे हो । तभी तो मैं कहता हूँ - O My God Where Are You ? ओ रूप कौर जी ! आपसे मुझे गिन गिनकर बदले लेने हैं ।
साथ में ये भी बताने की कृपा करें कि परमपिता परमेश्वर का शाब्दिक अर्थ क्या है ? परम + पिता और परम + ईश्वर ।
- परम यानी इस अखिल सृष्टि से परे । सबका पिता - क्योंकि सब उसी के संकल्प से उसी के अंश होकर जन्में यानी उत्पन्न हुये हैं । और वह अपने मूल रूप में आत्मा है । ईश्वर शब्द ऐश्वर्य से बना है । जो इस सब ऐश्वर्य का मालिक है । तो उसी तरह इस अखिल सृष्टि के समस्त ऐश्वर्य का मालिक जो इस सबसे परे रहता है । वही परमेश्वर है । ध्यान रहे । ईश्वर अलग होता है ।

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