01 अगस्त 2011

रावण क्या हनुमान से अधिक ताकतवर था - प्रसाद कुमार सेतिया

जब हमने देखा । सब लोग अपना अपना फ़ोटू आपके ब्लाग पर भेज रहा है । तो हम क्यूँ पीछे रहें । हम भी ऐसे वैसे नहीं हैं । हम भी सेतिया हैं । प्रसाद कुमार सेतिया । आज हम भी आपको अपना फ़ोटू भेज रहे हैं । आप अपने अंकल त्रिपाठी जी के स्टायल में । हमारा फोटो भी बिना थूक लगाये ब्लाग में छाप दीजिये ।
मैं अब इतनी देर बाद ब्लाग पर प्रश्न लेकर इसलिये आया हूँ । क्यूँ कि इससे पहले मुझे प्रश्न पूछ्ने का मौका ही नहीं मिला । रोज आपके ब्लाग पर इतने सवाल जवाब पढने को मिल रहे थे कि हम चकित ही रह गया । लेकिन आज मैं भी सवाल ढूँढकर ले ही आया । वो भी आपके ब्लाग के पुराने लेख में से ही निकाल कर ।
आपने इस साल के ही किसी पुराने लेख में लिखा था कि - काली माता और भैरव की पूजा करने वालों साधकों । तांत्रिकों या लोगों आदि से हमेशा 100 कदम दूर रहें । नहीं तो घर उजड जायेगा । इस बात को जरा डिटेल में समझाईये । साथ में ये भी बताइये कि काली और महाकाली में क्या फ़र्क है । क्या काली माता का ही भंयकर रूप महाकाली है ।
मुझे ये भी बताये कि रामायण के युद्ध में मेधनाथ लक्षमण पर भारी पड रहा था । कहते हैं कि मेघनाथ के पास बहुत सिद्धियाँ थी । राम जी तो नारायण यानि हरि यानि कालपुरुष का अवतार थे । लेकिन लक्ष्मण किसका अवतार थे ? क्यूँ कि द्वापर में श्रीकृष्ण के साथ रहने वाले दाऊ भी शेषनाग के अवतार थे । लेकिन शेषनाग को विष्णु जी की शैया के रूप में दिखाया जाता है । तो फ़िर वो कालपुरुष के अवतार श्रीकृष्ण के साथ कैसे और क्या कर रहे थे ?
ये भी बतायें कि रावण क्या हनुमान जी से अधिक ताकतवर था । क्यूँ कि टी वी सीरियल में दिखाया था कि


हनुमान जी ने रावण को मुक्का मारा । तो रावण बौखला गया । रावण ने भी पलट कर मुक्का मारा । तो हनुमान जी दूर जाकर गिरे । रावण किस स्तर का साधक था । किन साधनाओं का साधक था । और उसके पास कितना शक्ति थी ? इसके बारे में भी कुछ बतायें ।
ये भी सुना है कि रावण ही अपने पिछ्ले जन्म में प्रहलाद का पिता था । और उससे भी पिछले जन्म में वो देवलोक में गण था । उसे सजा के तहत यहाँ प्रथ्वी लोक भेजा गया था । क्या ये सच है ? ये भी बतायें । क्या राम और कृष्ण के अलग अलग अपने लोक भी हैं ? क्या ध्रुव भगत का भी 1 अपना लोक है । इस बार का आखिरी सवाल शंकर भगवान को भोलेनाथ भी कहा जाता है । सबसे दयालु और भोले बाबा । ऐसा कहने के पीछे क्या कारण है ? सवाल अभी और भी है ( महाभारत से सम्बन्धित )  जब अगली बार आऊँगा । तब तोप चलाऊँगा । क्षमा करें । आपके रिशतेदार त्रिपाठी जी के एक साथ कई लेख पढने के कारण मेरी भाषा में परिवर्तन हो गया ।
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आपने किसी पुराने लेख में लिखा था कि - काली माता और भैरव की पूजा करने वालों साधकों । तांत्रिकों या लोगों आदि से हमेशा 100 कदम दूर रहें । नहीं तो घर उजड जायेगा । इस बात को जरा डिटेल में समझाईये ।

- आजकल जितने भी साधक है । वे लोगों को आकषित करने के लिये या चङावे के लिये ज्यादातर मन्दिर तो किसी देवी देवता भगवान का बना लेते हैं । या बने बनाये में पहुँच जाते हैं । फ़िर बहककर जल्द प्राप्ति हेतु जिन्न मसान प्रेत या नीच शक्तियों को सिद्ध कर लेते हैं ।
फ़िर इससे लोगों को प्रभावित करते हुये बलि बकरा गोश्त शराब आदि का चङावा करवाते हुये उन्हें भयंकर लाइलाज जंजाल में फ़ँसा देते हैं । रामकृष्ण परमहँस आत्मग्यान होने से पूर्व काली के असली साधक थे । उनके जीवन परिचय में कहीं आया है कि - काली को बकरा शराब आदि की भेंट करते थे ।
कोई भी आपको साधारण सात्विक पूजा के अतिरिक्त इस तरह की नौटंकी तामसिक या दुष्टता की बात करे । तो उसकी बात मानने के बजाय उसमें एक जबरदस्त लात लगायें । सबसे सरल सहज प्रभु की सतनाम भक्ति ही है ।

जिसमें कोई खतरा  नहीं है । और आनन्द ही आनन्द है । मरने के बाद परमानन्द भी ।
साथ में ये भी बताइये कि काली और महाकाली में क्या फ़र्क है । क्या काली माता का ही भंयकर रूप महाकाली है ।
- सभी देवियाँ आध्याशक्ति की ही अंश हैं । बल्कि सभी स्त्रियाँ इसी आध्याशक्ति की वंशबेल का अंश है । इसीलिये स्त्री को देवी कहने का भी चलन है । इच्छाशक्ति रूपी ये देवियाँ अपने अपने कार्यों हेतु नियुक्त हैं । जिस प्रकार शंकर के अनेक रूप हैं । भोले बाबा । क्रोधित रूप - महाकाल । तांडव रूप - नटराज ।
इसी प्रकार आवश्यकता अनुसार ये भी रूप धारण कर लेती हैं ।
मुझे ये भी बताये कि रामायण के युद्ध में मेधनाथ लक्षमण पर भारी पड रहा था । कहते हैं कि मेघनाथ के पास बहुत सिद्धियाँ थी ।
- इन्द्र को जीतने वाले रावण के इस अति बलशाली और बुद्धिमान पुत्र का नाम मेघनाथ नहीं मेघनाद था । ये जब पैदा हुआ था । तब इसके रोने में बादलों की भयंकर गर्जना के समान स्वर हुआ । तब इसके डैडी रावण ने अत्यन्त प्रसन्न होकर इसका नाम मेघनाद रखा ।
ये राक्षसों की कुलदेवी निकुम्भिला का घोर  उपासक था । और इसने बहुत सी मायावी शक्तियाँ विभिन्न तप यग्य आदि द्वारा प्राप्त की थी । लेकिन इसके बाबजूद एक बङी बात ये थी कि इसकी पत्नी सुलोचना बेहद धर्म परायण और सती स्त्री थी । उसका सतीत्व मेघनाद को हमेशा एक कवच कैसी सुरक्षा देता था । और अतिरिक्त ताकत प्रदान करता था । मेघनाद की तमाम जीतों में सुलोचना का अमूल्य योगदान था ।

लक्ष्मण किसका अवतार थे ? क्यूँ कि द्वापर में श्रीकृष्ण के साथ रहने वाले दाऊ भी शेषनाग के अवतार थे । लेकिन शेषनाग को विष्णु जी की शैया के रूप में दिखाया जाता है । तो फ़िर वो कालपुरुष के अवतार श्रीकृष्ण के साथ कैसे और क्या कर रहे थे ?
- लक्ष्मण शेषनाग का ही अवतार थे । मेघनाद के शक्ति प्रयोग से जब लक्ष्मण मूर्छित होकर रणभूमि में गिर पङे थे । तब मेघनाद उन्हें उठाकर लंका ले जाना चाहता था । पर उठाना तो दूर वह उन्हें हिला भी न सका । इसी स्थान पर लक्ष्मण के लिये " धरनीधर " यानी धरती को धारण करने वाला शब्द प्रयोग हुआ है । इस धरती का भार शेषनाग के सहस्त्र 1000 फ़नों पर टिका हुआ है ।
ऐसा भी कहते हैं कि - शेषनाग जब कभी थक जाने पर धरती को दूसरे फ़न पर लेते हैं । तो धरती कंपित ( भूकंप ) होती हैं ।
विष की ज्वाला के कारण ही शेषनाग क्रोधी स्वभाव के हैं । राम अवतार के समय शेषनाग छोटे भाई लक्ष्मण के रूप में राम के मर्यादित स्वभाव के कारण तंग आ गये । क्योंकि वे उग्र स्वभाव के थे । इसलिये जब कृष्ण अवतार का समय आया । तब शेषनाग ने कह दिया कि इस अवतार में वह बङे भाई रहेंगे । तब बारबार आदेश मानने को बाध्य नहीं होंगे ।
इस त्रिलोकी सृष्टि होने के पहले विष्णु का रंग गोरा था । पर वह अपने पिता काल निरंजन की तलाश में पाताल


चले गये । काल निरंजन तो नहीं मिला । वहाँ शेषनाग के मुँह से निकल रही विष की भयंकर ज्वालाओं की लपट से विष्णु झुलस गये । और श्यामल वर्ण हो गये ।
इससे सावित होता है कि शेषनाग की मुख्य डयूटी धरती को धारण करना है । रही बात अवतार भूमिका की या विष्णु की शेष शैय्या की । तो अवतार आधा या अंश रूप होता है । यदि शेषनाग अवतार में पूर्ण रूप आ जाता । तो उस समय धरती कौन संभालता । जबकि इसी धरती पर सब खेल हो रहा था ।
ये महा आत्मायें अपने अंशों से एक ही समय में कई भूमिकाओं में होती हैं । शंकर विष्णु आदि एक साथ कई भूमिकायें निभाते हैं । अतः शेषनाग का विष्णु का शैय्या रूप होना कोई बङी बात नहीं है ।
ये भी बतायें कि रावण क्या हनुमान जी से अधिक ताकतवर था । क्यूँ कि टी वी सीरियल में दिखाया था कि हनुमान जी ने रावण को मुक्का मारा । तो रावण बौखला गया । रावण ने भी पलट कर मुक्का मारा । तो हनुमान जी दूर जाकर गिरे । रावण किस स्तर का साधक था । किन साधनाओं का साधक था । और उसके पास कितना शक्ति थी ? इसके बारे में भी कुछ बतायें ।

- चीटीं और हाथी दोनों ही अपने अपने स्थान पर ताकतवर हैं । चीटीं यदि हाथी के पैर या शरीर के किसी अन्य भाग से दब जाये । तो उसका कचूमर निकलकर राम राम सत्य ही हो जाता है । और वही चीटीं यदि हाथी की सूँढ में घुस जाये । तो उसकी जान ले लेती है ।
रावण वाकई ताकतवर और बुद्धिमान था । पर अभिमान और स्त्रियों से भोग विलास का बेहद शौकीन होने के दुर्गुण के कारण वह अपने तप को क्षीण कर लेता था । रावण की शक्तियों साधनाओं के बारे में थोङे शब्दों में बताना कठिन है । वह मुख्यतः बृह्मा शंकर निकुम्भिला देवी और वेदशास्त्र के मन्त्रों का उपासक था । वेदमन्त्र और उनके रहस्यों की उसे बहुत अच्छी जानकारी थी ।
सीता हरण अभियान में हनुमान द्वारा कई महत्वपूर्ण कार्य करने से  हनुमान के ह्रदय में थोङा सा अभिमान भाव जागृत हो गया था । उसी अभिमान को दूर करने हेतु श्रीहरि ने उन्हें वास्तविकता से परिचय कराया था कि तुम सिर्फ़ निमित्त मात्र हो । असली शक्ति संचालन किसी और का ही होता है ।
महाभारत के युद्ध में डंका बजा देने वाले अर्जुन को भी अपने सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर होने का बेहद अभिमान था । पर अंतिम समय में साधारण भील युवकों ने उसे दौङा दौङाकर पीटा । और उसके साथ की स्त्रियों को छीनकर घोर बेइज्जती की । अभिमान घोर पतन का कारण होता है । इससे सदैव बचना चाहिये ।

सुना है कि रावण पिछ्ले जन्म में प्रहलाद का पिता था । और उससे भी पिछले जन्म में वो देवलोक में गण था । उसे सजा के तहत यहाँ प्रथ्वी लोक भेजा गया था । क्या ये सच है ?
- श्रीकृष्ण के गोलोक में जय विजय नाम के दो द्वारपाल थे । एक बार कोई सन्त आदि श्रीकृष्ण से मिलने गोलोक आये । परन्तु जय विजय ने ऐसा आदेश न होने के कारण अन्दर नहीं जाने दिया । तब उन महात्माओं ने राक्षसी व्यवहार करने के कारण उन्हें राक्षस होने का शाप दे दिया ।
श्रीकृष्ण ने भी इस शाप को लेकर कोई उनके पक्ष में मध्यस्थता नहीं की । इसलिये वे श्रीकृष्ण से द्वेष और नफ़रत का भाव लिये शाप के फ़ल अनुसार मृत्युलोक आ गये ।
इनका पहला जन्म हिरणाकश्यप और हिरण्याक्ष के रूप में हुआ । दूसरा वैर भक्ति जन्म रावण और कुम्भकरण के

रूप में हुआ । फ़िर भी वैर भाव बना रहा । तब तीसरा जन्म कंस और शिशुपाल रूप में हुआ ।
कुछ जगहों पर इन्हें विष्णु का द्वारपाल भी बताया गया है । शास्त्र के विद्वान टीकाकारों से यह गलती " हरि " शब्द के कारण हुयी । विष्णु का हरि नाम अधिक प्रसिद्ध है । जबकि गूढ रहस्य के अंतर्गत तकनीकी भाषा में हरि स्वांस या चेतनधारा को कहते हैं । क्योंकि इसी से सब हरा भरा है । ये ररंकार या रमता  या राम रूप है ।
सोचने वाली बात है कि ये विष्णु के द्वारपाल होते । या विष्णु द्वारा इनका वध संभव होता । तो ये फ़्री स्टायल विष्णु की खिल्ली क्यों उङाते । तब देवता इनसे इतना भयभीत क्यों होते । क्योंकि फ़िर तो ये आपसी लङाई का मामला था । स्टाफ़ का मामला था ।
गोलोक वो जगह है । जहाँ बृह्मा विष्णु महेश जैसे लोगों को एक मुलाकात के लिये हजार सिफ़ारिशें लगानी होती हैं ।
वहाँ के साधारण कर्मचारी इन स्तर के देवों से इस तरह बात करते हैं - अरे तुम विष्णु हो । शंकर हो । फ़लाने ढिकाने कोई भी हो । पहले अपना पूरा विवरण तो दो । कौन सी प्रथ्वी से आये हो । यहाँ तो सैकङों बृह्मा विष्णु आदि रोज ही आते हैं ।
क्या राम और कृष्ण के अलग अलग अपने लोक भी हैं ? क्या ध्रुव भगत का भी 1 अपना लोक है । इस बार का आखिरी सवाल शंकर भगवान को भोलेनाथ भी कहा जाता है । सबसे दयालु और भोले बाबा । ऐसा कहने के पीछे क्या कारण है ?

- श्रीकृष्ण के गोलोक का वर्णन मैंने ऊपर किया ही है । राम का रामलोक नाम से है । ध्रुव का लोक तो ध्रुव तारा आराम से देखा भी जा सकता है । गीता प्रेस गोरखपुर से उपनिषद विशेषांक प्रकाशित हुआ है । आज के समय में इसकी अधिकतम कीमत rs -150 होगी । इसमें सभी उपनिषदों का सार दिया हुआ है । जिसमें इस तरह की सभी दुर्लभ जानकारी मिलती है । श्रीकृष्ण के गोलोक के बारे में सम्पूर्ण जानकारी " बृह्मवैवर्त पुराण " और उनकी दिव्य लीलाओं की बहुत सी जानकारी " गर्ग संहिता " नामक किताब में मिलती हैं । गीता प्रेस गोरखपुर से तथा अन्य प्रकाशनों से भी प्रकाशित rs -150 से भी कम की कीमत में मिलने वाली ये किताब भी अच्छी जानकारी वाली हैं ।
भोलेनाथ - कालपुरुष और आध्या के सबसे छोटे पुत्र शंकर बचपन से ही सरल और भोले स्वभाव के हैं । इनकी माँ द्वारा झूठ बोलने पर भी इन्होंने आसानी से विश्वास कर लिया । जबकि विष्णु और बृह्मा ने नहीं किया ।
शंकर अपने भक्तों पर शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं । और वरदान देते समय ये नहीं सोचते कि इसके दूरगामी हानि लाभ परिणाम क्या होंगे । तथा शंकर की पूजा में अन्य देवताओं की तरह विशेष शुद्धता और पवित्रता आदि कङे नियम नहीं हैं । क्षणे तुष्टा क्षणे रुष्टा - यानी क्षण में प्रसन्न और क्षण में क्रोधित होने से भी इन्हें भोले स्वभाव का माना गया है ।

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