10 अगस्त 2011

समय से पहले और भाग्य से ज्यादा कभी नहीं मिलता - गुरलीन चोपङा

हैलो जी ! मेरा नाम गुरलीन चोपङा है । मेरा पेट नेम किम है । मैं अब आस्ट्रेलिया में रहती हूँ । मुझे आपके ब्लाग के बारे में बनदीप ने बताया है । इस समय ये लिखते समय बनदीप ही मेरी तरफ़ से टाइप कर रही है । लेकिन शब्द मेरे हैं । मैं इस समय लुधियाना आई हुई हूँ । शादी से पहले भी मैं लुधियाना ही रहती थी । मैं बनदीप के पङोस में रहती थी । इस बार मैं 1 साल बाद वापिस लुधियाना आई हूँ । मैं कल लुधियाना पहुँची थी । तो आज सुबह इधर उधर की बातें करते रहे । बस दोपहर का खाना खाने के बाद । बनदीप ने मुझे आपके ब्लाग के बारे में बताया । उसने आपसे उसकी तरफ़ से पूछे सवालों और जवाबों के बारे में भी बताया । तो मैंने सोचा कि आपसे मुझे भी जरुर कुछ न कुछ जानना चाहिये । मेरे मन में 1 सवाल अक्सर आ जाता है । तो मेरा निवेदन है कि आप उस सवाल या उस बात को बिलकुल सही रुप से मुझे समझा दें । वो बात ये है । समय से पहले और तकदीर से अधिक न कभी किसी को कुछ मिला है । और न कभी मिलेगा । सर ! क्या ये बात 100 % सही है । आप इस बात को अच्छी तरह उदाहरण सहित मेरे को समझा दें । अब आपके ब्लाग के बारे में पता लग चुका है । इसलिये आपका ब्लाग तो मैं पढूँगी ही । और साथ में और लोगों को भी इस ब्लाग के बारे में बताऊँगी । सत श्री अकाल ।
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सत श्री अकाल ! गुरलीन जी ! सत्यकीखोज पर प्रथम शुभ आगमन पर मैं और हमारे सभी पाठकों द्वारा आपका हार्दिक स्वागत है । आपसे मिलाने के लिये बनदीप जी का बहुत बहुत धन्यवाद । बनदीप बहुत प्यारी और शैतान बच्ची है । उसकी मासूम बातें मुझे बहुत अच्छी लगती हैं । आस्ट्रेलिया के कई लोग हमारे ब्लाग के सतसंगी भाई हैं । जिनका परिचय आपको ब्लाग पढने पर
मिल ही जायेगा ।
चलिये आपके साथ बातचीत शुरू करते हैं ।
समय से पहले और भाग्य से ज्यादा कभी नहीं मिलता । ये बात 100 % सही है । और जाहिर है । अंतर के 


ग्यानियों । समय और भाग्य की अदृश्य आंतरिक संरचना को । ग्यान नेत्र से । प्रामाणिक रूप से देखने वालों द्वारा ही कही गयी है । इसके अलावा इंसान जब जिन्दगी के सच से एकदम करीब से गुजरता है । तब भी उसको स्वतः अनुभव होता है कि - समय से पहले और भाग्य से ज्यादा कभी नहीं मिलता ।
लेकिन जैसा कि सभी ग्यान वाणियों के साथ हुआ है । इंसान ने अपनी तसल्ली के लिये हरेक वाणी का असली भाव त्याग कर अपने को अच्छा लगने वाला भाव अपना लिया है ।
जैसा कि अभी आस्ट्रेलिया की ही सरबजीत कौर जी ने एक वाणी मुझे भेजी थी -

वो लेटा था जमीन पर । लोगों ने कहा मर गया । लेकिन वो था सफ़र में । बस आज अपने घर गया ।
गौर से देखिये इस वाणी से यही ध्वनि निकल रही है कि मरने के बाद कोई दिक्कत वाली बात नहीं है । इंसान अपने घर को ही जाता है । अब असली बात देखिये । कबीर साहब किस तरह कह रहे हैं -
कहे कबीर तभे नर जागे । जब जम का डण्ड मुण्ड में लागे ।
यानी इस इंसान को जीवन में कितना ही समझाओ । ये मृत्यु के बाद आने वाली भीषण स्थिति को सीरियसली नहीं लेता । कब लेता है - जब जम का डण्ड मुण्ड में लागे । यानी यमदूत जब इसे मारते पीटते हुये घोर कष्ट देते हैं । जबकि ये वो दिन भूल गया -
कबिरा वह दिन याद कर । पग ऊपर तल शीश । मृत मंडल में आय कर । बिसर गयो जगदीश ।
जब माँ के गर्भ में उल्टा - सिर नीचे पैर ऊपर कर । प्रभु से प्रार्थना कर रहा था । एक बार इस नरक से निकाल दो । फ़िर भक्ति द्वारा इस गर्भवास के कष्ट से छुटकारा पाऊँ । लेकिन मृत्युलोक में आकर मायावश सब भूल गया ।
खैर..वो बात अलग है । इसलिये अपनी बात करते हैं - समय से पहले और भाग्य से ज्यादा कभी नहीं मिलता ।
अब ये क्यों मिलता है ? कैसे मिलता है ? और क्यों नहीं मिलता ? इसका मूल गणित जानते हैं । हमारे तीसरे " कारण शरीर " में इन सब बातों का रहस्य । हमारे अनेकों जन्म के संस्कारों के रूप में लिखा हुआ जमा है । इंसान 


के कर्म 3 प्रकार के हैं । 1 संचित ( जमा ) 2 क्रियमाण ( जो हम अभी मनुष्य योनि में कर्म करते हैं ) और 3 प्रारब्ध ( भाग्य ) संचित कर्मों में - हमारे अच्छे । बुरे । और मध्यम ( मिले जुले भाव के ) प्रकार के बहुत से कर्म जमा हैं । क्रियमाण में - जो भी हम अच्छे बुरे कर्म अभी कर रहे हैं । और प्रारब्ध - जो हमारे संचित कर्मों का पका फ़ल रूपी भाग्य ( यानी जिसके मूल में कोई बदलाव नहीं होता ) इस जीवन के लिये मिला है ।
अब हमारी लाइफ़ लाइन शुरू हो गयी । और प्रारब्ध के अनुसार जीवन में घटनायें घटने लगी ।
इसको सरल उदाहरण से इस तरह समझें - जैसे एक लङके लङकी को पढा लिखाकर उनकी शादी करके सभी दहेज आदि के सामान आदि से व्यवस्था कर उनको नये जीवन हेतु तैयार कर दिया । ( यह उनका प्रारब्ध था ) यानी इसमें उनको कुछ विशेष नहीं करना पङा । ये तो उन्हें समाज ने ही दे दिया ।
लेकिन अब उन्हें अपना जीवन सही चलाने के लिये उचित आवश्यक कर्म ( क्रियमाण ) करना ही होगा । इसके अलावा इसी व्यवस्था में से । अपनी मौजूदा हालत में से ही । भविष्य के लिये संचित भी करना होगा ।
अब मान लीजिये । उनके बच्चा हुआ ( क्रियमाण ) अब इसको उन्हें पालना पोसना ( संचित - क्योंकि भाव यही है । यह आगे सुख देगा ) बच्चा बङा होकर योग्य बन गया ( प्रारब्ध या भाग्य )
इसी तरह हम पैसा जमा करते हैं । तो वो हमारी मेहनत का परिणाम ( कर्म ) और जमा अवधि ( समय ) के नियत

समय पर दोगुना तिगुना होकर प्राप्त होता है । खेती करते हैं । बीज बोना + खाद पानी ( कर्म ) पौधों के उगने बढने की अवधि के बाद - फ़सल ( समय पर ही तो प्राप्त हुयी । पहले तो नहीं हो सकता थी )
यही बात बिजनेस पर भी लागू होती है ।
ठीक यही बात हमारे कर्म और कर्म फ़लों पर भी लागू होती है । भाग्य बनता ही हमारे कर्मफ़ल से हैं । न कि भगवान बैठा हुआ । फ़ालतू में मनमर्जी चलाता हुआ । किसी का अच्छा और किसी का बुरा भाग्य लिख रहा हो । ऐसा हरगिज नहीं है । जबकि अक्सर इंसान सोचता ऐसा ही हैं ।
आज जो भी हमारे साथ अच्छा बुरा घटित हो रहा है । वह हमारे पूर्व जन्मों का कर्मफ़ल ही है । लेकिन पूर्वजन्मों का कर्मफ़ल इस जीवन में क्यों मिल रहा है ? और कैसे साबित हो कि ये हमारे कर्मों का ही फ़ल है ?
इसके बहुत से उदाहरण इसी जीवन में मिल जाते हैं । अपनी औलाद । खेती । बिजनेस किसी एक को लेकर सभी को समझा जा सकता है । आपने औलाद को जैसा खिलाया पिलाया । वैसा उसका शरीर बना । जैसा पढाया लिखाया । संस्कार डाले । वैसा उसका चरित्र व्यक्तित्व स्वभाव बना आदि ।
अब ये सब एक निश्चित समय के बाद ही तो हुआ । एकदम तो नहीं हो गया । दूध का दही जमाने में भी कर्म और समय दोनों की आवश्यकता होती है । उसी तरह इंसान के इस जन्म के कर्म खेती की फ़सल इसी जन्म में पूरी पूरी कैसे मिल सकती हैं ?

आपने देखा होगा । बहुत से इंसान गलत कर्म करते हैं । और मौज से रहते हैं । क्योंकि अभी उनके अच्छे कर्मों का फ़ल मिल रहा है । इसके बाद बुरे का आना शुरू हो जायेगा । अब ये इसी जीवन में हो जाये । या अगले जन्मों में । क्योंकि जन्म मरण का चक्र मोक्ष न होने तक चलता ही रहता है ।
इस प्रकार सिद्ध हुआ कि इंसान को अपने कर्मों का ही अच्छा या बुरा फ़ल अच्छे या बुरे भाग्य के रूप में समय आ जाने पर मिलता है ।
आत्मा की चेतना से - 3 गुण - सत ( अच्छा ) रज ( क्रियाशील ) तम ( बुरा ) ऊर्जा लेकर कार्य करते हैं । फ़िर आपके उस समय के क्रियमाण कर्मों में यह 3 गुण संचित कर्मों को निकालकर मिलाते हुये । अभी का भी । और आगे का भी भाग्य लिखते हैं । जो प्रकृति के क्रियानुसार समय अवधि पूरा होने पर फ़ल रूप में प्राप्त होता है ।
( इस संबन्ध में भीष्म पितामह का उदाहरण जानने हेतु - मेरी ये गति क्यों हुयी ? शीर्षक को गूगल में सर्च कर मेरे इन्हीं ब्लाग्स में देखें ।  इस सम्बन्ध में और भी बहुत अलग मैटर लेखों में मौजूद है )
अनिष्टमिष्टं मिश्रं च त्रिविधं कर्मणः फलम । भवत्यत्यागिनां प्रेत्य न तु संन्यासिनां क्वचित ।
कर्म का 3 प्रकार का फल होता है । अनिष्ट ( बुरा ) इष्ट ( अच्छा अथवा प्रिय ) और मिला जुला ( दोनों ) । जिन्होंने कर्म के फलों का त्याग नहीं किया । उन्हें वे फल मृत्यु के पश्चात भी प्राप्त होते हैं । परन्तु उन्हें कभी नहीं । जिन्होंने उनका त्याग कर दिया है ।
उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत । आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मन ।
स्वयँ से अपना उद्धार करो । स्वयँ ही अपना पतन नहीं । मनुष्य स्वयँ ही अपना मित्र होता है । और स्वयँ ही अपना शत्रु ।
नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः । शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मणः ।
जो तुम्हारा काम है । उसे तुम करो । क्योंकि कर्म से ही अकर्म पैदा होता है । मतलब कर्म योग द्वारा कर्म करने से ही कर्मों से छुटकारा मिलता है । कर्म किये बिना तो इस शरीर की यात्रा भी संभव नहीं हो सकती । शरीर है । तो कर्म तो करना ही पड़ेगा ।
हरि मंदिर एह शरीर है । गिआन रतन परगट होए । मनमुख मूल न जाण । नी माणस हरि मंदिर ना होए
मेरा वैद गुरु गोबिंद हरी । हरी नाम औखद मुख देवे । काटे  जम की फंदा ।
जगत में बहुत गुरु कन फूंका । फ़ासी ला बुझाए । कहत कबीर सोई गुरु पूरा । जो कथनी आन मिलाए ।
सतपुरख जिन जानिया । सतगुरु तिस का नाम ।
और अन्त में याद रखें - रोम के सेंटा मारिया नामक चर्च के नीचे एक स्मारक बना है । ये स्मारक ढेर सारे अस्थि पिंजरों । रुण्ड मुण्ड और खोपड़ियों को जोड़कर सुन्दर कलाकृति के रूप में बनाया गया है । और उसकी हर खोपड़ी पर लिखा है ।
we were what you are, & what we are you will be .
हम वही थे । जो आज तुम हो । तुम वही होगे । जो आज हम है ।
- आप सभी का बहुत बहुत आभार । आप सबके अन्तर में विराजमान सर्वात्मा प्रभु आत्मदेव को मेरा सादर प्रणाम । धन्यवाद ।

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