सुबह सुबह जब ई मेल के साथ फ़ेसबुक पेज भी खोला । तो श्री कृष्ण मुरारी शर्मा ( राजस्थान ) ने श्री रवि रतलामी की साइट का ये लिंक मेरे वाल पर जोङा था । मैंने लिंक चैक किया । और किन्हीं श्री नरेन्द्र तोमर की ये लघुकथा देखी । जो वास्तव में व्यंग्य अन्दाज में लिखी गयी है । लेकिन मेरे हिसाब से एकदम वाहियात है । शर्मा जी का ये लिंक देने का कोई औचित्य मेरी समझ में नहीं आया । क्योंकि शर्मा जी BSNL राजस्थान से रिटायर्ड हैं । और जाहिर है । 65 के तो होंगे ही । दूसरे इस लिंक के साथ कोई कमेंट भी उन्होंने नहीं किया । जो कुछ उद्देश्य समझ आता । नरेन्द्र
तोमर ( हिन्दू ) द्वारा लिखी ये कहानी हिन्दू समाज के बौद्धिक ( धार्मिक ) दिवालियापन का स्पष्ट संकेत करती है । हाँ इसी कहानी में ऐसे लालची भक्त और उनकी मूर्खतापूर्ण भावना उभर कर आती । और देव पात्रों द्वारा उनकी मूर्खता पर सटीक व्यंग्य होता । तो यही कहानी बेहद सार्थक हो सकती थी । मुझे इस सबसे कोई लेना देना नहीं था । मैं इस लिंक को सिर्फ़ देख कर ही छोङ सकता था । पर आज समाज क्या है ? उसकी सोच क्या है ? का जीवंत विवरण तब आपके सामने नहीं आ पाता । अतः आप नीचे ये कहानी पढें । और
जानें कि - आध्यात्मिकता के धरातल पर समाज किस तरह गुमराह हो चुका है ।
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नारद जी जब दरबार में पहुंचे । तो देखा बृह्मा । विष्णु । महेश तीनों सिर झुकाए चिंतित एवं उदास मुद्रा में बैठे हैं । नारायण नारायण कहने और अपनी वीणा के तार झनझनाने पर भी तीनों ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की । और न ही समाचार पूछे । कारण पूछने पर भी तीनों में से किसी ने भी उत्तर नहीं दिया ।
बहुत आग्रह करने पर विष्णु जी ने कहा कि - वे अब भगवान का पद छोड़ना चाहते हैं । शिवजी और बृह्मा जी ने
अपना सिर हिला कर सहमति प्रकट की । नारद जी को महान आश्चर्य हुआ ।
- नारायण नारायण । नारद जी ने अपनी भृकुटि को किंचित ऊपर चढ़ा कर माथे पर बल डालते हुए कहा - परंतु सृष्टि के निर्माता ? तीनों लोक के नियंता ? और पालनहार ? आप तीनों देव
ऐसा विचार क्यों ला रहे हैं । अपने मन में ? प्रभु क्या मैं कारण जानने की घृष्टता कर सकता हूं ।
- अरे ऐसे पूछ रहे हो । मानों आपको कुछ पता ही न हो ? फिर भी यदि कहते हो । तो बताए देते हैं । देखिये । संक्षेप में बात यह है कि - इस युग में हम लोग अपने भक्तों से बेहद तंग आ चुके हैं । न दिन में चैन लेने देते हैं । न रात में । अब तो लक्ष्मी जी भी दुखी हो गईं हैं । कुछ समझ में नहीं आता कि क्या किया जाए ? इन भक्तों से छुटकारा कैसे मिले ?
- परंतु आखिर हुआ क्या ? आप तो युगों युगों से भक्तों की नैया पार लगाते आ रहे हैं । नारद जी ने फिर कुरेदा ।
इस पर भगवान शिव ने गहरी सांस भरते हुए कहा - पता नहीं । कब क्यों और किसने भगवान को भक्तों के बस
में कर दिया था ?? पहले तो सब कुछ ठीक ठाक चलता रहा । पर अब न जाने कैसे भक्त पैदा हो गए हैं । आकर
तरह तरह के काम कराने के लिए हम पर दबाव डालते रहते हैं । जो हमें बिलकुल पसंद नहीं । पर कभी करने पड़ जाते हैं । हमारी आत्मा बड़ी दुखी होती है । और हमारी साख भी घटती है । क्या बताएं दुविधा में पड़ जाते हैं । काम करो । तो अपयश मिलता है । और न करो । तो भक्त बुरा मानते हैं ।
- भगवन ! आप तो पहेलियां सी बुझा रहे हैं । कुछ स्पष्ट बताईए न । देखिए इस युग में लोग तो आपका इतना आदर सम्मान करने लगे हैं । जगह जगह जहाँ जगह मिल पाती है । लोग भव्य मंदिर खड़ा कर देते हैं । आपकी मूर्तियों में मानों जान डाल देते हैं । उनको सचल बना देते हैं । लाखों करोड़ों के चढ़ावे चढ़ रहे हैं । आप तो महादेव हैं । अरे छोटे मोटे देवताओं तक के मंदिरों में अपार अभूतपूर्व भीड़ें हो रहीं हैं । सारा देश ईशमय हो रहा है । किंचित विचार तो कीजिए । आपका गुणगान करने । आपकी लीला बखान करने वाले प्रवचनों में कैसी बड़ी संख्या में लोग टूटते हैं । सब आपकी लीला है । अपरंपार है आपकी महिमा प्रभु ।
- बस भी करो नारद ! कोरा स्वार्थ है । भगवान शिव किंचित क्रोधित होकर बोले - आकंठ पाप में डूबे हैं । प्रवचन करने वाले । और सुनने वाले दोनों ही ।
- पर प्रभु हुआ क्या ? नारद जी ने अपनी चिर परिचित स्थाई मुस्कान के साथ पूछा ।
- अरे हुआ क्या पूछते हो ? कभी कभार की बात हो तो टाल भी जाये । अब तो यह रोज का सिर दर्द हो गया है ।
थोड़ा सोच कर फिर बोले - बहुत दिनों से 1 व्यक्ति पीछे पड़ा है । पुराना भक्त है । बचपन से ही हमारी सेवा कर रहा है । घर में हमारा विशाल मंदिर बनवाया है । उसमें हम सभी देवताओं की भव्य प्रतिमाओं को प्रतिष्ठित किया । और मानों कि हम पर पूरा भरोसा न हो । उसने अनेक नए देवी देवताओं की मूर्तियां भी लगा दी हैं । पहले ये सब हमारे निष्छल भक्त होते थे । अब उनकी भी पूजा करता है ।
- तो आपको ईर्ष्या क्यों हो रही है भगवन ? नारद जी ने फिर निशाना साधा ।
- अरे बात यह नहीं है । बात यह हैं कि कुछ महीने पहले उसने पहले बिजनेस में अपने 1 प्रतिद्वंदी की सरे आम हत्या कर दी । और जेल पंहुच गया । अपने वकील के जरिए पुलिस और निचली अदालत में रिश्वत देकर जमानत पर बाहर आ गया । तबसे मेरे पीछे पड़ा है । दिन रात मंदिर में पड़ा रहता है । कहता है कि नीचे तो मैने सबको पटा रखा है । पर मेरा वकील कहता है कि इसके आगे वे कुछ नहीं कर सकते । बस भगवान ही बचा सकते हैं । गवाहों को वे ही तोड़ सकते हैं । और ऊपर की अदालत का दिमाग को वे अर्थात आप ही पलट सकतें हैं । वह मामले से बरी होकर चुनाव लड़ना और मंत्री बनना चाहता है । भक्त पक्का है । बताओ क्या करूं ? आखिर मेरी भी तो रिपुटेशन है ।
इसके मैं पहले भी सही गलत काम करा चुका हूँ कि वे इसके बिज़नेस से जुड़े थे । पर यह तो घोर पाप है । वो भी सबके सामने दिन दहाड़े । अब उसने भगवती जागरण बिठा दिया है कि यदि मैं नहीं
करूंगा । तो अपना काम वह पार्वती से करा लेगा । अजब दुविधा में हूं । अब तो मैं भक्तों से ही पीछा छुटाना चाहता हूँ ।
- अरे आप मना कर दीजिए । सिंपल । निर्णय तो लेने ही पड़ते है । अपनी वीणा के तार टनटनाते हुए नारद जी बोले ।
- अरे 1 मामला हो तब ना । यहाँ तो अब लाइन लगी है । पहले तो 2-4 पापी भक्त होते थे । क्षमा करके वैतरणी पार करा देते थे । अनंत काल तक स्वर्ग में पड़े रहते थे । किसी को कोई हानि पहंचाए बिना । हमें भी परेशानी नहीं होती थी । पर इनका क्या करें । इनको न तो मोक्ष चाहिए । और न स्वर्ग । ये तो पृथ्वी पर ही भोग विलास करते अजर अमर बने रहना चाहते है । अब मेरी उलझन देखो । मेरे अनन्य भक्तों में 1 डाक्टर है । अभी कुछ समय पहले तक वह नामी डाक्टर था । अब वह उतना ही बदनाम है । फुसला धमका कर वह गरीब
लोगों की किडनी चुरा कर अमीरों को बेच देता था । करोड़ो अरबों कमाए । अपने दुनिया भर में बने घरों और तथाकथित
अस्पतालों में शानदार मंदिर बनवाए । धर्मार्थ संस्थांए स्थापित कीं । साधु संतों का आना जाना बना रहता था । पर होनी को कौन कब तक टाल सकता है । पकड़ा गया । अब जेल में पड़ा है । साल भर से । वहाँ कोई काम धंधा तो है नहीं । दिन भर पूजा पाठ करता रहता है । दूसरे देवी देवताओं से सिफारिश भी कराता रहता है । जेल में मौज मस्ती का प्रबंध तो हनमानजी ने करा दिया था । जेलर भी हनुमान जी का भक्त है । अब वह मेरे पीछे पड़ा है कि मैं कैसे ही उसे बरी करा दूँ । उसकी पहली पतिवृता पत्नी देश भर के मंदिरों मोटा चढ़ावा चढ़ाती फिरती है । मेरे दूसरे असरदार भक्तों से संपर्क कर दबाव बना रही है । मैं तो बहुत दुखी हो गया हूँ । इन भक्तों से ।
- नारायण नारायण । नारद जी ने किंचित व्यंग्य भाव से कहा - पर भगवन आप भी तो इन भक्तों का माल उड़ाते
रहते हैं । 56 प्रकार के भोग । सोने चांदी के मुकुट । सिंहासन सहर्ष स्वीकार करते रहते है । यह कभी सोचते विचारते भी नहीं कि यह अकूत संपदा कहाँ से आती हैं इनके पास । जब पाप का माल डकारोगे । तो सिफारिशें तो करनी पड़ेंगी ।
कह कर अपनी वीणा के तार टनटना कर नारद जी नारायण नारायण कहते हुए वहाँ से विदा हो गए ।
रचनाकार - नरेंद्र तोमर की लघुकथा - भगवान और भक्त http://www.rachanakar.org/2012/08/blog-post_32.html#ixzz2559DTOI3 ( क्लिक करें )
नारद जी जब दरबार में पहुंचे - कौन सा दरबार था यह ? साधारण धार्मिक ज्ञान रखने वाला भी कुण्डलिनी चक्रों के आधार पर यह जानता है कि बृह्मा का लोक - लिंग योनि स्थान पर । यहीं इसका आफ़िस भी है । फ़िर इससे ( लाखों योजन ) ऊपर नाभि स्थल पर - विष्णु लोक । यहीं इसका कार्यालय । फ़िर इससे भी ( लाखों
योजन ) ऊपर ह्रदय स्थान पर - शंकर का लोक । यहीं इसका दफ़्तर ।
अल्प ज्ञानी आम स्तर के लोग इस तरह की सहज कल्पना कर लेते हैं कि टहलते हुये ये लोग एक दूसरे के यहाँ चाय पीने पहुँच जाते होंगे । डिनर पर इनवाइट करते होंगे । अब आप विचार करिये । प्रथ्वी के बेहद मामूली प्रशासन में एक डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट जैसा मामूली ओहदेदार यदि दूसरे डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के यहाँ भी जायेगा । तो उसे कागजों पर पूरा विवरण देना होगा । मतलब ये एक झमेले की तरह होता है । उनकी दिनचर्या अति सख्त रूप से व्यस्त होती है । फ़िर अगर ये ( किसी दरबार ? जैसे स्थान पर ) आपातकालीन मीटिंग मान भी ली जाये । तो ये ठीक वैसे ही होगा । जैसे किसी मामूली चोर पर निर्णय लेने के लिये प्रधानमंत्री ग्रहमंत्री रक्षामंत्री को गम्भीर फ़ैसला लेना पङ रहा हो । जबकि बेवकूफ़ भी जानते हैं कि जिला स्तर पर भी यदि बहुत बङा अपराधी ( बाहर से आ जाय ) हो । तो एक सुदृढ सक्षम सत्ता तंत्र है । और वह तुरन्त सक्रिय हो जाता है । यह मनुष्यों की बात है । फ़िर इनसे बहुत अधिक शक्तिशाली 3 मुख्य देवता ( तुच्छ मनुष्य क्रियाओं पर ) इस तरह चिंतित हों । तो सत्ता 1 दिन भी न चले ।
तेरी सत्ता के बिना हिले न पत्ता । खिले न एक हू फ़ूल । हे मंगल मूल । एक पत्ता नियम से बाहर नहीं हिल सकता ।
वे अब भगवान का पद छोड़ना चाहते हैं - इसके बाद कहाँ जायेंगे ? जब उन्हें खुद भी मालूम है कि निश्चय ही 84 लाख योनियों में गिरना होगा । वहाँ ऐसा कोई
विधान नहीं कि पद छोङने के बाद रिटायरमेंट लेकर पेंशन ।
सरकारी कोठी । गाङी ( दिव्य विमान ) अन्य भत्ते मिलते रहेंगे । सत्ता इतनी सख्त है कि - कार्यकाल पूरा होते ही तुरन्त फ़ेंक देती है । फ़ालतू लोगों की कोई जगह नहीं । जाहिर है । बृह्मा विष्णु शंकर ऐसे मूर्ख नहीं हो सकते ।
सृष्टि के निर्माता ? तीनों लोक के नियंता ? और पालनहार - ये सृष्टि के निर्माता नहीं हैं । त्रिलोकी ( स्थान ) सृष्टि तो इनके पैदा होने से पहले ही हो चुकी थी । इन्होंने अष्टांगी से " सोहंग " जीव बीज लेकर । अन्य पदार्थ लेकर उसका ( यथोचित भूमि में ) अंकुरण भर किया । हाँ ( विभिन्न ) जीव सृष्टि इन्होंने ठीक इसी तरह बनाई । जैसे राज मजदूर ( ईंट सीमेंट आदि लेकर ) आपका मकान बनाते हैं । या कोई भी अन्य विधा का कारीगर संबन्धित सामग्री लेकर वस्तुओं का उत्पादन करता है ।
तीनों लोक के नियंता ये नहीं । इनके अम्मा बापू हैं । क्यों बच्चों को टेंशन में डाल देते हो आप लोग । ( एक तरह से ) पालनहार सिर्फ़ विष्णू है । लेकिन उसकी कोई खेती नहीं है । ध्यान रहे । विष्णु का स्थान आंतों के पास नाभि है । तो जो तैयार खाध पदार्थ ( आपके द्वारा खाया ) वहाँ जाता है । उसका सार रस निकाल कर शरीर को आपूर्ति करना उसका काम है । यही पालनहार कहा है । शायद आप जानते ही होंगे । विष्णु माने सत गुण होता है । और सत के बिना ( शरीर की ) सत्ता नहीं रहेगी । तो विष्णु जैसे गन्ने का रस निकाल कर - गुङ । खांङ । चीनी । मिश्री बनती है । वही उसका भी काम है । विभिन्न तरीकों से ( जीव की पाप पुण्य स्थिति अनुसार ) सत उत्पादन । और वितरण । संक्षिप्त में यही पालनहार का मतलब है ।
न दिन में चैन लेने देते हैं । न रात में - थोङा भी धार्मिक ( बृह्माण्डिय स्थिति ) ज्ञान रखने वाले जानते हैं कि
मनुष्यों का 1 साल इन्द्र के 1 दिन के बराबर होता है । अन्य देव लोकों की उच्चता के आधार पर यह समय और भी बढता जाता है । काल । महाकाल । अपवर्ग आदि आदि ( TIME ZONE ) की समय स्थितियाँ अलग अलग हैं । इससे भी अलग मनुष्य जीवन
को क्षणभंगुर या पानी का बुलबुला ( के समान आयु ) बताया गया है । आप जानते ही हैं । बुलबुला बनता हैं । उसे ठीक से देख भी नहीं पाते कि फ़ूट जाता है । ये पूरा कार्य एक अति विशाल सशक्त ( और त्रुटि रहित ) तंत्र के द्वारा संचालित है । अतः इससे अधिक हास्यास्पद बात हो नहीं सकती कि - किन्हीं दो चार व्यक्तियों को लेकर ( उस ) सत्ता के प्रमुख ऐसा सोचें कि जब तक वह बात भी न समझ पायें । व्यक्ति ही समाप्त हो गया ।
अब तो लक्ष्मी जी भी दुखी हो गईं हैं - लक्ष्मी खुद कभी दुखी नहीं होती । बल्कि लोगों को दुखी करना उसका धर्म है । ये बेहद मायावी है । इसके खुश होने का भी मतलब है । जिस पर यह खुश हुयी । वह भारी संकट और
तगङे झंझटों में फ़ँस गया । ताजा उदाहरण किसी मनमोहन नाम के आदमी का है । काला और कोयला इस नाम के पर्यायवाची बन गये । हो गया सिद्ध । इसके खुश होने से क्या होता है ?
आप तो युगों युगों से भक्तों की नैया पार लगाते आ रहे हैं - युगों युगों से भक्तों की नैया पार नहीं लगाते आ रहे । बल्कि मम्मी पापा ( की खातिर ) के लिये डुबाते आ रहे हैं । वो भी पूरी तरह से भरमा कर ।
भक्त पक्का है । बताओ क्या करूं - पक्का भक्त तो बहुत दूर । साधारण भक्त होने में इंसान को दस्त लग जाते हैं । वास्तव में तो लोग भक्त शब्द का मतलब तक नहीं जानते । भक्त होना मजाक नहीं । भक्त नरसी । भक्त सुदामा । ध्रुब । प्रहलाद आदि के उदाहरणों से धार्मिक इतिहास भरा पङा है ।
पहले तो दो चार पापी भक्त होते थे । क्षमा करके वैतरणी पार करा देते थे - वैसे तो ( इस भाव में ) क्षमा शब्द ईश्वरीय संविधान में है ही नहीं । क्षमा की अलग अलग स्थितियाँ होती हैं । इसमें व्यक्ति के कुल ( पूरे ) आचरण । कर्म । भावना आदि पर निष्कर्ष निकाला जाता है । और ये तो मनुष्यों में भी होता है । किसी सज्जन
व्यक्ति से ( जान बूझ कर भी ) गलती हो जाये । तो संबन्धित लोग समझा बुझा कर मामला खत्म ( क्षमा ) कर देते हैं । कानून और जेल व्यवस्था का अर्थ ही जहाँ अपराधी को सजा देना भी है । वहीं इसका मुख्य उद्देश्य अपराध और अपराधियों को सुधारना होता है । आपने देखा नहीं । पुलिस थाने में चोर आदि को उल्टा लिटाकर उसके नितम्बों पर जिस रबङ पट्टे से मार लगाते हैं । उस पर पेंट आदि से लिखा होता है - समाज सुधारक । अब तुम सुधर जाओगे आदि आदि ।
अनंत काल तक स्वर्ग में पड़े रहते थे - स्वर्ग का प्रधानमंत्री इन्द्र । और खुद बृह्मा विष्णु शंकर । खुद इनका बाप काल पुरुष । खुद इनकी अम्मा अष्टांगी उर्फ़ महादेवी - अनंत काल तक ? सत्ता वाले नहीं हैं । फ़िर ये बेचारे कैसे किसी को अनंत काल का स्वर्ग दे सकते हैं ।
जेल में मौज मस्ती का प्रबंध तो हनुमानजी ने करा दिया था - इससे ज्यादा मूर्खता की बात ( ये कल्पना )
मैंने आज तक नहीं सुनी । हनुमान की गिनती श्रेष्ठ भक्तों में होती है । यदि आप हनुमान उपासना भी करते हैं ।
तो वह स्वयं हनुमान के जीवन व्यवहार जैसी ही कठिन है । वास्तव में हनुमान उपासना के सख्त नियम है । जो व्यक्ति स्वयं के लिये ही सख्त आचरण वाला है । वह दूसरों के लिये ऐसी मूर्खता क्यों करेगा ?
जब पाप का माल डकारोगे । तो सिफारिशें तो करनी पड़ेंगी - यदि विष्णु की पत्नी लक्ष्मी ही ( अपने बेंक का ) सिर्फ़ 1 रुपये का only one rupees चैक काट दे । तो ये प्रथ्वी पूरी चल सम्पदा सहित खरीदी जा सकती है ।
फ़िर सोचो । तुम कंगाल इंसान इन देवताओं को क्या दे सकते हो ? क्योंकि ये बजट आवंटन भी वही करती है ।
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पता नहीं । कब क्यों और किसने भगवान को भक्तों के बस में कर दिया था ??
आकर तरह तरह के काम कराने के लिए हम पर दबाव डालते रहते हैं । जो हमें बिलकुल पसंद नहीं । पर कभी करने पड़ जाते हैं ।
और न करो । तो भक्त बुरा मानते हैं -
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वही समय का रोना । आज का समय खत्म हुआ ।
अतः इन 3 बिन्दुओं पर विचार स्पष्ट नहीं हो पाया । फ़िर ये इतने महत्वपूर्ण भी नहीं हैं । साहेब ।