10 अगस्त 2010
मैं शुद्ध चेतन आत्मा हूं ।
तब तक ही तप वृत तीर्थ जप होम आदि कर्मों एवं वेद शास्त्र और आगम की कथा है । जब तक व्यक्ति उस परम तत्व को नही जान जाता है । यदि कोई व्यक्ति अपना मोक्ष चाहता है । तो वह सभी अवस्थाओं में प्रसन्नतापूर्वक सदैव तत्वअनिष्ठ होकर ही रहे । दैहिक । दैविक । भौतिक इन तीन तापों से त्रस्त प्राणी को धर्म और ग्यान ही जिसका पुष्प है । परमानन्द और मोक्ष ही जिसका फ़ल है । ऐसे मोक्षरूपी वृक्ष की छाया का आश्रय निश्चय ही ग्रहण करना चाहिये । अतः श्री गुरुदेव के मुख से प्राप्त ग्यान के द्वारा आत्मतत्व को जानना चाहिये । ऐसा करने से वह जीव इस कठिन संसार के कठोर बंधन से तत्काल ही मुक्ति का अधिकारी हो जाता है । यह सत्य है । इसमें कोई संशय हरगिज नहीं है । अब उस तत्वग्य का अंतिम कार्य क्या है ? जिसके द्वारा ब्रह्मपद या निर्वाण मोक्ष की प्राप्ति होती है ? अन्त समय आ जाने पर पुरुष भय रहित होकर असंग रूपी शस्त्र से देह आदि की समस्त आसक्ति को काट दे । घर से सन्यासी बनकर निकला हुआ वह धीरवान पुरुष किसी पवित्र तीर्थ के जल में स्नान करे । इसके बाद वहीं पर एकान्त में स्वच्छ एवं शुद्ध भूमि में आसन लगाकर बैठ जाय । तथा एकाग्र चित्त होकर महामन्त्र के द्वारा परमात्मा का ध्यान करे । मन्त्र को भुलाये बिना वह श्वांस को सहज करके मन को वश में करे । मन रूपी घोडे को बुद्धि रूपी सारथी द्वारा सांसारिक विषयों से हटाकर उसका नियन्त्रण करें । अन्य कर्मों से रोककर मन को बुद्धि द्वारा शुभ कर्मों में लगायें । मैं ही ब्रह्म हूं । मैं ही सदा आनन्दमय हूं । मैं शुद्ध चेतन आत्मा हूं । परमपद भी मैं ही हूं । इस प्रकार जो अपनी आत्मा को अचल आत्मा में मिलाता है । वह अपने शरीर का परित्याग करने के बाद परम पद को प्राप्त करता है । क्योंकि जहां ग्यान वैराग्य से रहित प्राणी नही जाते । वहां भक्ति करने वाले साधु ह्रदय सरलता से सहजता से जाते हैं । मान मोह से रहित । आसक्ति दोष से परे । नित्य अध्यात्म चिंतन करने वाले । संसार की समस्त कामनाओं से रहित । और सुख दुख के द्वन्द से मुक्त । जो ग्यानी और धीर पुरुष हैं । वे ही उस अविनाशी परमात्मा को प्राप्त होते हैं । जो व्यक्ति ग्यान रूपी ह्यद में राग द्वेष नाम के मल को दूर करने वाले । सत्य रूपी जल से भरे हुये । उस मानस तीर्थ ? में स्नान करता है । वही मोक्ष को प्राप्त होता है । वैराग्य में परिपक्व होकर । अनन्यभाव से जो परमात्मा का भजन करता है । वह पूर्ण दृष्टि वाला व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त करता है । इसमें क्या संशय है । अर्थात कोई संशय नहीं है । इसीलिये तत्वग्य मोक्ष प्राप्त करते हैं । धर्मनिष्ठ स्वर्ग प्राप्त करते हैं । पापी नरक में जाते हैं । पशुवत जीवन गुजार देने वाले पशु पक्षी कीट आदि योनियो को प्राप्त होतें हैं । पशु पक्षी आदि इसी संसार में अन्य योनियों में प्रविष्ट होकर बहुत काल तक घूमते रहते हैं । इसमें क्या संशय है । अर्थात कोई संशय नहीं है । जिस प्रकार प्राणी मृत्य के बाद तत्काल दूसरी योनि में चला जाता है । अथवा वह बिलम्ब से भी देह को प्राप्त करता है । फ़िर भी इन दोनों बातों में परस्पर कोई विरोध नहीं है । क्योंकि इस बेहद विचित्र खेल को कोई तत्वग्य कोई धीर ग्यानी पुरुष कोई आत्मवेत्ता ही ठीक से बता सकता है । अनुभव करा सकता है । इसमें क्या संशय है । अर्थात कोई संशय नहीं है । कैसा अदभुत खेल बनाया । मोह माया में जीव फ़ंसाया ।
सत्यसाहिब जी
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