31 अगस्त 2010

रानी रासमणि खुद ही शूद्र थी

श्री दत्तावाल ने कहा कि - श्री रामकृष्ण परमहंस ने कहा था कि अगले जन्म में मैं 1 हरिजन की कुटिया की सफाई करूंगा । क्या आचार्य रजनीश भी ऐसा कह सकते हैं ?
- मुझे पता नहीं कि श्री रामकृष्ण ने ऐसा कहा था । या नहीं । लेकिन दत्तावाल कहते हैं । तो माने लेता हूं कि कहा होगा । जरूर कहा होगा । 
अब सवाल यह है । क्या इस जन्म में रामकृष्ण को कोई हरिजन नहीं मिल रहा था । जो अगले जन्म में...! हरिजनों की कोई कमी है ? कोई हरिजनों की कुटियाओं की कमी है ? इस जन्म में तो काली मैया की पूजा कर रहे हैं । पत्थर की मूर्ति पूज रहे हैं । आरती उतार रहे हैं । घंटी बजा रहे हैं । जिंदगी भर वही करते रहे । और हरिजन की कुटिया की सफाई अगले जन्म में करेंगे । क्या चालबाजियां हैं ? कौन रोकता है अभी करने से ? और 1 ही कुटिया की सफाई करना है । सो कर ही दो न । अगले जन्म के लिए क्या टाल रहे हो ?  6-6 घंटे । 8-8 घंटे काली मैया की पूजा हो रही है । उन्हीं काली मैया की ? जिनके लिए बकरे काटे जा रहे हैं । खून बहाया जा रहा है । कलकत्ते की काली के सामने जितना खून बहा है । दुनियां के किसी मंदिर में कभी नहीं बहा । जितनी प्राणियों की हिंसा कलकत्ते की काली के लिए हुई है । उतनी दुनिया के किसी देवता के सामने नहीं हुई । मगर वही कटे हुए बकरों का मांस और खून प्रसाद रूप में वितरित होता है । प्रसाद की तो बड़ी महिमा है । ये डोंगरे जी महाराज क्या खाक प्रसाद बंटवाते हैं - लस्सी बूंदी । अरे यह कोई प्रसाद है ? असली प्रसाद बंटता है कलकत्ते की काली के मंदिर में ? यह रामकृष्ण परमहंस को कोई शूद्र नहीं मिल रहा था ? दूर तो नहीं था शूद्र । क्योंकि जिनके मंदिर में वे पुजारी का काम करते थे - रानी रासमणि । रानी रासमणि खुद ही शूद्र थी । उसका ही बनवाया हुआ मंदिर था । रामकृष्ण परमहंस 14 रुपए महीने की नौकरी पर वहीं तो पुजारी का काम करते थे । शूद्रों की कोई कमी थी । सच तो यह है कि - विवेकानंद खुद ही शूद्र हैं । कायस्थों की गिनती और कहां करोगे ? कायस्थों की गिनती व्यवस्था से शूद्रों में ही होगी । असल में कायस्थ शब्द ही शूद्र का पर्यायवाची है - काया में स्थित । आत्मस्थ हो । तो ब्राह्मण । और कायस्थ हो - तो शूद्र । और क्या चाहिए ? सीधा साफ हिसाब है । रामकृष्ण परमहंस अगले जन्म में सफाई करेंगे ? बड़ी गजब की बात कही । जिंदगी भर ये पत्थर की मूर्ति पूजते रहे । तो यहीं कर लेनी थी । एकाध कुटिया साफ कर लेते । इसके लिए अगले जन्म का क्यों उपद्रव लेना ? और वे मुझसे पूछते हैं - क्या आचार्य रजनीश ऐसा कर सकते हैं ? पहली तो बात - मैं अपनी कुटिया की सफाई नहीं करता । किसी ब्राह्मण की कुटिया की सफाई नहीं की । तो हरिजन की कुटिया की सफाई क्या खाक करूंगा ? अरे, अपनी अपनी कुटिया की सफाई करो । मैं जब विश्वविद्यालय में विद्यार्थी था । तो अपना बिस्तर दरवाजे के पास लगाए रखता था कि सीधा अपने बिस्तर में कूद जाता था । जिसमें कमरे की सफाई न करनी पड़े । कौन झंझट करे । अरे रोज सफाई करो । फिर कचरा इकट्ठा । फिर सफाई करो । फिर कचरा इकट्ठा । इधर भीतर की सफाई से फुर्सत नहीं है । बाहर की सफाई में कौन पड़े । और क्या फायदा ? क्या मिल जाने वाला है ? कचरा थोड़ा कम हुआ कि ज्यादा । कमरा ही है । और कोई अपना है ? अरे, आज यहां । कल वहां । होस्टल ही तो ठहरा । सरायघर है । तो मैं तो दरवाजे पर । बिलकुल दरवाजे पर अपने बिस्तर को लगाकर रखता था कि सीधा दरवाजे से कूद जाना बिस्तर में । और बिस्तर से कूद जाना बाहर । न देखना भीतर । न झंझट में पड़ना । मगर मेरे प्रोफेसरों को दया आती । मेरे आसपास के विद्यार्थियों को दया आती । मेरे साथ 2 लड़कियां पढ़ती थीं । उनको दया आती । वे मुझसे कहतीं कि हमें आज्ञा दो कि आपका आकर 1 दिन कमरा साफ कर दिया करें । सप्ताह में कम से कम 1 दिन । मैंने कहा - क्यों नाहक परेशान करना । तुम साफ करोगी । वह फिर धूल जम जाएगी । और मैं वहां जाता ही नहीं । उस स्थान में । जहां धूल जमी है । फायदा क्या है साफ करने का ? मगर फिर भी कोई न कोई आकर साफ करता । तुम्हारी मर्जी । तुम्हें सेवा करके अगर मोक्ष पाना है - पाओ । हम तो अपने बिस्तर पर मोक्ष में हैं । और अगले जन्म की तो बड़ी मुश्किल है । अगला जन्म मेरा होना नहीं । रामकृष्ण का होना होगा । तो वे करें अगले जन्म में । मेरा तो यह आखिरी जन्म है - दत्तावाल । अब आगे कोई मेरा जन्म नहीं है । तुम जानो । तुम्हारे रामकृष्ण जानें । उनका होगा आगे जन्म । 
यह तो दत्तावाल । अगर यह बात रामकृष्ण ने कही हो । तो यह सिद्ध कर रहे हैं कि रामकृष्ण अभी मुक्त नहीं हुए । क्योंकि मुक्ति के बाद कहां जन्म है ? मुक्ति के बाद कैसा जन्म है ? यह तो इसका अर्थ इतना हुआ कि अभी भी बंधे हैं । और यह भी 1 वासना ही रही कि 1 हरिजन की कुटिया साफ करनी है । अरे, इतनी छोटी सी वासना । कर करा लेते साफ । झंझट मिट जाती । अगले जन्म का उपद्रव खतम हो जाता । अब होंगे कहीं पैदा । कर रहे होंगे कोई हरिजन की कुटिया साफ । यह भी क्या पतन हुआ । इसी को कहते हैं - योगभ्रष्ट होना । कहां से कहां पहुंचे ? काली मैया की पूजा करते करते अब हरिजन की कुटिया साफ कर रहे हैं । मेरा तो कोई अगला जन्म नहीं है । मेरा तो काम पूरा हो चुका है । अब मुझे लौटना नहीं है । इसलिए कैसे वायदा करूं दत्तावाल, कि अगले जन्म में आकर हरिजन की कुटिया साफ करूंगा । और दूसरी बात यह है कि मैं तो ब्राह्मण और शूद्र का भेद मानता नहीं । जो मानते हों भेद । वे इन चिंताओं में पड़ें । मेरे लिए तो हरिजन शब्द का उपयोग करना शूद्र के लिए गलत है । हरिजन तो वह जो हरि को जाने । क्या पागलपन है । बिना ब्रह्म को जाने ब्राह्मण बने बैठे हैं लोग । और बिना हरि को जाने हरिजन बने बैठे हैं लोग । ब्रह्म को जाने सो ब्राह्मण । हरि को जाने सो हरिजन । 1 ही मतलब हुआ दोनों बातों का । चाहे हरि कहो । चाहे ब्रह्म कहो । मेरे लिए तो ये सारे लोग ही । जब तक ब्रह्म को नहीं जान लिए हैं । तब तक हरिजन नहीं हैं । ब्राह्मण नहीं हैं । शूद्र ही हैं । और इन्हीं की कुटियाएं तो साफ करने में लगा हूं । लेकिन कुटियाएं मेरे लिए भीतर हैं । बाहर नहीं । बाहर की कुटिया मैं क्या साफ करूं ? असली सफाई में लगा हूं । भीतर तुम्हारी आत्मा का स्नान हो जाए । उसको ही मैं ध्यान कहता हूं । भीतर तुम स्वच्छ हो जाओ । उसी को मैं स्वास्थ्य कहता हूं । भीतर तुम आनंदमग्न हो जाओ । उत्सव आ जाए । दीए ही दीए जल जाएं । फूल ही फूल खिल जाएं । तो तुमने जाना । तुमने जीया । तुमने पहचाना । उसको मैं संन्यास कहता हूं । उसी कार्य में लगा हुआ हूं ।  ओशो
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तुम वही दे सकते हो । जो तुम्हारे पास है । तुम शरीर का भोजन दे सकते हो । बुद्ध पुरुष वही दे सकते हैं । जो उनके पास है । वे आत्मा का भोजन दे सकते हैं । तुम जो देते हो । वह तो न कुछ है । बुद्ध पुरुष जो देते हैं । वह सब कुछ है । जो समझदार हैं । वे यह सौदा कर ही लेंगे । यह सौदा बड़ा सस्ता है । बुद्ध को । महावीर को लोग भोजन देते । तो भोजन के बाद वे 2 वचन उपदेश के कहते थे । तुमने कुछ दिया । उससे बहुत ज्यादा तुम्हें देते थे । तुमने जो दिया । उसका क्या मूल्य है ? कितना मूल्य है ? उन्होंने जो दिया । वह अमूल्य है । वे
2 पंक्तिया कभी किसी के जीवन के अंधेरे मार्ग पर रोशनी बन जातीं । वे 2 पंक्तियां कभी किसी के सूखे मरुस्थल जैसे हृदय में फूल बनकर खिल जातीं । वे 2 पंक्ति जहां गीतों का पैदा होना बंद हो गया था ।
वहां गीतों को जन्म देने लगतीं । उन थोड़े थोड़े उपदेशों ने लोगों का आमूल जीवन बदल डाला है । 

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326