31 अगस्त 2010

अज्ञान में ही मैंने जाना - भगवत्ता को

यह बात सच है । इसे मैं स्वीकार करता हूं । मैं अज्ञानी हूं । क्योंकि मैं तो उपनिषद के इस सूत्र को मानता हूं कि ज्ञानी महा अंधकार में भटक जाते हैं । सुकरात ने तो कम से कम इतना कहा कि मैं इतना ही जानता हूं कि मैं कुछ भी नहीं जानता । मगर इतना तो कहा कि मैं इतना ही जानता हूं । मैं मानता हूं कि इतनी ही कमी रह गई । मैं तुमसे कहता हूं । मैं इतना भी नहीं जानता कि मैं कुछ भी नहीं जानता हूं । परम अज्ञानी हूं । महा अज्ञानी हूं । छोटा मोटा काम ही मैं नहीं करता । जब काम ही करना हो । तो बड़ा । अज्ञान भी क्या ? महा अज्ञान । मुझे कुछ भी नहीं मालूम । कबीरदास ने तो कहा कि मसि कागद छुओ नहीं । उन्होंने तो छुआ भी नहीं था । मैंने छुआ जरूर । लेकिन फिर भी तुमसे कहता हूं कि मसि कागद छुओ नहीं । अरे नहीं छुआ । यह कोई बड़ी बात हुई ? छूकर और नहीं छुआ । यह कुछ बात हुई । चले पानी में । और भीगे भी नहीं । यह कुछ बात हुई । कबीर दास तो चले ही नहीं । किनारे पर ही बैठे रहे । कहा भी है उन्होंने कि - जिन खोजा तिन पाइयां । गहरे पानी पैठ । मैं बौरी खोजन गई । रही किनारे बैठ । तुम किनारे बैठोगे महाराज । तो फिर कैसे खोजोगे ? मैंने डुबकी भी मारी । और गीला भी नहीं हुआ । तो कहता हूं कि मसि कागद छुओ नहीं । बिलकुल अज्ञानी हूं । मगर परमात्मा को जानने में अज्ञान बाधा ही कब रहा ? बाधा खड़ी होती है - ज्ञान से ।
कबीर कहते हैं - लिखा लिखी की है नहीं । देखा देखी बात ।
लिखा लिखी की नहीं है । इसलिए ज्ञान क्या करेगा ? देखा देखी बात । देखने की बात है । तो यह तो मैं स्वीकार करता हूं कि मैं अज्ञानी हूं । और अज्ञान में ही मैंने जाना - भगवत्ता को । अज्ञान का अर्थ है । मैंने सारे ज्ञान को इनकार कर दिया । सारे ज्ञान को झाड़ कर अलग कर दिया । और जब सारे ज्ञान से छुटकारा हो गया । तो जो शेष बच रहता है । वही भगवत्ता है । वही दिव्यता है । ओशो ।
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ओशो दर्शन - ओशो ने प्रचलित धर्मों की व्याख्या की । तथा प्यार, ध्यान और खुशी को जीवन के प्रमुख मूल्य माना । ओशो कहते हैं कि - धार्मिक व्यक्ति की पुरानी धारणा यह रही है कि वह जीवन विरोधी है । वह इस साधारण जीवन की निंदा करता है । वह इसे क्षुद्र, तुच्छ, माया कहता है । वह इसका तिरस्कार करता है । मैं यहां हूं । जीवन के प्रति तुम्हारी संवेदना व प्रेम को जगाने के लिये ।
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मैं बिलकुल नई धार्मिक चेतना की शुरुआत हूं । कृपया मुझे अतीत के साथ न जोड़ें । यह तो स्मरण करने के योग्य भी नहीं है । यह मनुष्य जाति के लिये बड़े भाग्य की बात होगी । यदि हम अतीत का संपूर्ण इतिहास जला दें । अतीत को पूरी तरह से मिटा दें । और मनुष्य को निर्भार कर 1 नई शुरुआत दें । उसे फिर आदम और हव्वा बना दें । ताकि वह प्रारंभ से शुरुआत कर सके । 1 नया मनुष्य । 1 नई सभ्यता । 1 नई संस्कृति ।
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1 ताऊ रोज़ बैंक जाया करता था । कभी 2 लाख तो कभी 3 लाख और ऐसी बड़ी बड़ी रकम जमा किया करता था । बैंक का मैनेजर उसे हमेशा संशय की दृष्टि से देखता था । उसे समझ नहीं आता था कि यह ताऊ रोज़ इतना पैसा कहाँ से लाता है । अंत में 1 दिन उसने उस व्यक्ति को बुलाया । और कहा - ताऊ ! तुम रोज़ इतना पैसा कहाँ से लाते हो । आखिर क्या काम करते हो तुम ? 
ताऊ ने कहा - भाई ! मेरा तो बस 1 ही काम है । मैं शर्त लगाता हूँ । और जीतता हूँ ।
मैनेजर को यक़ीन नहीं हुआ । तो उसने कहा - ऐसा कैसे हो सकता है कि आदमी रोज़ कोई शर्त जीते ? 
ताऊ ने कहा - चलिए मैं आपके साथ 1 शर्त लगाता हूँ कि आपके नितंब पर 1 फोड़ा है । अब शर्त यह है कि कल सुबह मैं अपने साथ 2 आदमियों को लाऊँगा । और आपको अपनी पैंट उतार कर उन्हें अपने कूल्हे दिखाने होंगे । यदि आपके नितंब पर फोड़ा होगा । तो आप मुझे 10 लाख दे दीजिएगा । और अगर नहीं हुआ । तो मैं आपको 10 लाख दे दूँगा । बताईए मंज़ूर है ?
मैनेजर जानता था कि उसके कूल्हों पर फोड़ा नहीं है । इसलिए उसे शर्त जीतने की पूरी उम्मीद थी । लिहाज़ा वह तैयार हो गया । अगली सुबह ताऊ 2 व्यक्तियों के साथ बैंक आया । उन्हें देखते ही मैनेजर की बाँछें खिल गईं । और वह उन्हें झटपट अपने केबिन में ले आया । इसके बाद मैनेजर ने उनके सामने अपनी पैंट उतार दी । और ताऊ से कहा - देखो मेरे कूल्हों पर कोई फोड़ा नहीं है । तुम शर्त हार गए । अब निकालो 10 लाख रुपए ।
ताऊ के साथ आए दोनों व्यक्ति यह दृश्य देख बेहोश हो चुके थे । ताऊ ने हँसते हुए मैनेजर को 10 लाख रुपयों से भरा बैग थमा दिया । और ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा ।
मैनेजर को कुछ समझ नहीं आया । तो उसने पूछा - तुम तो शर्त हार गए । फिर क्यों इतना हँसे जा रहे हो ? 
ताऊ ने कहा - तुम्हें पता है । ये दोनों आदमी इसलिए बेहोश हो गए । क्योंकि मैंने इनसे 40 लाख रूपयों की शर्त लगाई थी कि बैंक का मैनेजर तुम्हारे सामने पैंट उतारेगा । इसलिए अगर मैंने तुम्हें 10 लाख दे भी दिए । तो क्या फ़र्क पड़ता है । 30 तो फिर भी बचे न ।
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1 दिन किसी ने पूछा - कोई अपना तुम्हे छोड़ के चला जाये । तो यूं क्या करोगे ? हमने कहा - अपने कभी छोड़ के नहीं जाते । और जो चले जायें । वो अपने नही ।
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ज़रूरी काम है लेकिन । रोज़ाना भूल जाता हूँ ।
मुझे तुमसे मोहब्बत है । बताना भूल जाता हूँ ।
तेरी गलियों में फिरना ही । मुझे अच्छा सा लगता है ।
मैं रास्ता याद रखता हूँ । ठिकाना भूल जाता हूँ ।
बस इतनी बात पर मैं । लोगों को अच्छा नहीं लगता ।
मैं नेकी कर तो देता हूँ । जताना भूल जाता हूँ ।
शरारत ले के आखों में । वो तेरा देखना तौबा ।
मैं नज़रों पे जमी नज़रें । झुकाना भूल जाता हूँ ।
मोहब्बत कब हुई कैसे हुई । सब याद है मुझको ।
मगर फिर भी मोहब्बत को । भुलाना भूल जाता हूँ ।
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पश्चिम से हमने चुम्बन लिया । पश्चिम से हमने समलैंगिकता ली । लिव इन रिलेशनशिप लिया । कम कपड़ों वाली नंगी पुंगी लड़कियाँ भी पाईं । नाबालिग कन्याओं के गर्भपात भी बस दहलीज़ पर खड़े ही हैं ।
लेकिन ? हमने पश्चिम से अनुशासन नहीं लिया । समय की पाबन्दी नहीं ली । राष्ट्र के दुश्मनों को मार गिराने की प्रतिबद्धता नहीं सीखी । अपने देश के नागरिकों के लाभ के लिये " किसी भी हद " तक जाने की जीवटता नहीं सीखी । लानत है हम पर । दूसरों को दोष क्या दें ?
Rajendra Swami
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1 बार हसबेंड के मोबाइल पर मैसेज आया - सारी सर ! मैंने आपकी WIFE   का उपयोग किया है । दिन रात उपयोग किया है । ख़ास करके जब जब आप घर पर नहीं होते थे । मैं कबूल करता हूँ कि जितना उपयोग मैंने किया होगा । शायद आपने भी नहीं किया होगा । लेकिन 
अब मैं मेरी गलती के लिए बहुत शर्मिन्दा हूँ । हो सके तो मुझे माफ़ कर देना ।
ये पढ़कर हसबेंड ने अपनी रिवाल्वर निकाली । और अपनी पत्नी को शूट कर दिया । फिर उसी नंबर से मैसेज आया - सारी सर ! स्पेलिंग मिस्टेक हो गई थी WI FI क़े बदले WIFE   टाइप हो गया था ।

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326