आईये भगवान के प्रमुख अवतारों के विषय में जाने ।
भगवान श्रीहरि ने सबसे पहले कौमारु सर्ग में " सनत कुमार " आदि के रूप में अवतार धारण किया । इस अवतार में कठोर अखण्ड ब्रह्मचर्य वृत का पालन किया । दूसरे अवतार में जगत की स्थिति के लिये हिरण्याक्ष द्वारा रसातल में ले जायी गयी प्रथ्वी का उद्धार करने के लिये " वराह रूप " अवतार लिया । तीसरे ॠषि सर्ग में " देवर्षि " नारद के रूप में अवतार लिया । जिसमें निष्काम कर्म की महत्ता बताने वाले सात्वत तंत्र । नारद पाच्चरात्र का विस्तार किया । चौथा अवतार " नर नारायण " के रूप में लिया । और धर्म की रक्षा के लिये कठोर तपस्या की । इस अवतार में देवता तथा असुर दोनों ने इनकी पूजा की ।पांचवा अवतार सिद्धों में सर्वश्रेष्ठ " कपिल " के नाम से हुआ । जिसमें कपिल ने काल के प्रभाव से लुप्त हो चुके सांख्यशास्त्र की शिक्षा दी । छठवां अवतार महर्षि अत्रि की पत्नी अनसूया के गर्भ से " दत्तात्रेय " के रूप में लिया । इसमें राजा अलर्क और प्रहलाद को आन्वीक्षिकी यानी ब्रह्म विध्या का उपदेश दिया ।
सातवां अवतार स्वायम्भुव मन्वन्तर में आकूति के गर्भ से रुचि प्रजापति के पुत्र रूप में " यग्यदेव " के नाम से हुआ । जिसमें इन्द्र आदि देवों के साथ यग्य का अनुष्ठान किया । आठवां अवतार विष्णु नाभ एवं मेरुदेवी के पुत्र रूप में " ऋषभ देव " नाम से लिया । इस अवतार में आदर्श ग्रहस्थाश्रम की शिक्षा दी । नवें अवतार में पार्थिव शरीर यानी " पृथु " का रूप धारण किया । और गो रूप प्रथ्वी से दुग्ध रूप अन्नादिक महा औषधियों का दोहन किया ।
दसवां अवतार ।" मत्स्यावतार " । के रूप में । चाक्षुष मन्वन्तर के बाद । होने वाले प्रलयकाल में । निराश्रति वैवस्वत मनु को । प्रथ्वी रूप नौका में बैठाकर सुरक्षा प्रदान की । ग्यारहवां अवतार । देवता और दैत्यों के । समुद्र मन्थन के समय " कूर्म रूप " में लिया । और मन्दराचल पर्वत को अपनी पीठ पर धारण किया । बारहवां अवतार " धन्वन्तरि " के रूप में लिया । तेरहवां अवतार " मोहिनी " रूप में ( स्त्री ) लिया । और देवताओं को अमृतपान कराया । चौदहवां अवतार " नृसिंह " के रूप में लिया । और हिरण्यकश्यप का वध किया । पंद्रहवें अवतार " वामन रूप " लिया । और राजा बलि के यग्य में तीन पग भूमि में तीन लोकों को नापा । सोलहवां अवतार " परशुराम " के रूप में लिया । और इक्कीस बार प्रथ्वी को क्षत्रियों से रहित कर दिया । सत्रहवां अवतार । पाराशर और सत्यवती द्वारा " व्यास " रूप में लिया । और एक ही वेद को चार भागों में विभाजित किया । अठाहरवां अवतार । दशरथ पुत्र
" राम " के रूप में लिया । उन्नीसवां तथा बीसवां अवतार । वृष्णिवंश में । " कृष्ण " और " बलराम " के रूप में लिया । इक्कीसवां अवतार । कलियुग की सन्धि के अंत में । कीकट देश में । जिनपुत्र " बुद्ध " के रूप में हुआ । बाईसवां अवतार । कलियुग की आठवीं संध्या में । अधिकांश राजवर्ग समाप्त होने पर । विष्णुयशा । नाम के । ब्राह्मण के घर में " कल्कि " नाम से होगा । इस अवतार को चिरंजीवी परशुराम शस्त्र शिक्षा देंगे । यह भगवान के प्रमुख अवतारों का ही वर्णन है । अन्य छोटे अवतारों में बहुत अवतार होते हैं ।
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